Chotu in Hindi Short Stories by saba vakeel books and stories PDF | छोटू

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छोटू


चाय पीने के लिए छोटे से ढाबे पर गई थी। देखा तो वहां पर एक छोटा लड़का काम कर रहा था। सब उसको छोटू-छोटू कह रहे थे।
वह छोटू वास्तव में अपनी उम्र से काफी बड़ा लग रहा था। उसके चेहरे पर तो आज भी बचपन का भाव था। लेकिन हाव-भाव से किसी बड़े आदमी की तरह ही बात कर रहा था। या फिर बड़े होने का नाटक कर रहा था। सोचा होगा कहीं छोटा समझ कर लोग उसका मजाक न उड़ाएं।
कुछ देर में वह छोटू मेरे सामने खड़ा था। आखों में किसी छह-सात साल के बच्चे जितनी ही मासूमियत थी।
सीधे आ कर पूछा क्या लेंगी मैडम..
साफ पता चल रहा था कि यह उसको समझाया गया है कि कोई भी आए तो यही पूछना।
मैं दो मिनट तक उसको गौर से देखती रही। फिर उससे कहा एक चाय ले आओ।
इतना सुन कर वह वहां से जाने लगा। तो मैंने उसे वापस बुलाया। कहा सुनो...
हां मैडम...
क्या नाम है तुम्हारा ?
दो मिनट के लिए शायद वह समझ नहीं पाया। शायद पहली बार उससे किसी ने उसका नाम पूछा था।
सब मुझे छोटू बुलाते हैं...
लेकिन तुम्हारा नाम है क्या...
चांद.... मेरी मां ने रखा था।
अच्छा चांद दो चाय ले आना...
दो? उसने भी सोचा अकेली लड़की दो चाय क्यों ?
खैर एक सवाल के साथ वह चला गया।
कुछ ही देर में मेरी टेबल पर दो चाय की प्याली रखी हुईं थी।
मेरे साथ चाय पीयोगे? चाय की प्याली रख कर छोटू जा ही रहा था कि मैंने उससे पूछ लिया।
छोटू ने अजीब सी नजरों से मुझे देखा...हमारी बातें उस होटल का मालिक भी सुन रहा था।
छोटू ने अपने मालिक की तरफ देखा...मालिक नेक दिल था...हां में सिर हिला दिया। मैं अकसर इस होटल में आया करती थी। मालिक से जान-पहचान भी थी। इसलिए छोटू का मेरे साथ चाय पीने पर उसको एतराज नहीं हुआ।
बैठो..मैं कुछ नहीं कहूंगी। मैंने अपनेपन की एक मुस्कान के साथ उससे कहा।
छोटू बैठ गया। मैंने अपने बैग से एक बिस्कुट का पैकेट निकाल कर उसके सामने रखा।
उसने फिर मुझे अजीब नजरों से देखा।
लो ना...छोटू ने मेरे दोबारा कहने पर पैकेट में से एक बिस्कुट ले लिया।
ये सभी तुम्हें खाने हैं... तुम्हें पसंद है?
उसने हां में सिर हिला दिया।
तुम कहां रहते हो...
पास की बस्ती में... उसने दबी आवाज में कहा..
स्कूल जाते हो?
उसने मुझे देखा और न जाने आंखों ही आंखों में ही कह दिया कि मैं इतना खुशकिस्मत नहीं हूं।
क्यों नहीं जाते...सवाल पूछने की मेरी पुरानी आदात है...आदात से मजबूर फिर सवाल पूछ लिया।
बाबा कहता है...पढ़ाई से पैसा नहीं मिलता... काम कर..
तुम कभी स्कूल गए ही नहीं ?
जब तक मां थी..जाता था। लेकिन मां के बाद...
मां कहां है तुम्हारी...
उसने मुझे देखा ...दुनिया से चली गई...
मुझे लगा शायद मैंने कुछ गलत सवाल पूछ लिया।
तुम्हारे बाबा क्या करते हैं ?
कुछ नहीं करते...शराब पीते हैं...
मैं समझ गई थी...इस मासूम का बचपन पूरी तरह से मिटाया जा रहा था।
काफी देर तक मेरी चांद से बात होती रही। मुझे उसने बताया कि उसकी मां के पहले घरों में काम करती थी एक दिन बीमार हुई दवा न मिलने से ..दुनिया से चली गई। उसकी दो बहनें भी थीं जो अब इस दुनिया में नहीं हैं।
अब चांद से मेरी दोस्ती हो गई थी। रोज मैं दुकान पर आती थी चांद से बातें होती थी। चांद मुझे देखते ही मेरी लिए स्पेशल चाय बनाने लगता था।
मैंने उसकी बातों से जाना कि वह काफी खुद्दार है...उसे मेहनत से कोई परेशानी नहीं है..लेकिन वह भी अपने दोस्तों की तरह स्कूल जाना चाहता है। कई बार मैंने उसको स्कूल भेजने में मदद की बात भी कही..लेकिन वह तैयार नहीं हुआ।
एक बार मैं अपने घर इलाहाबाद चली गई....कई दिन तक उस दुकान पर जाना नहीं हुआ।
एक हफ्ते बाद रोज के टाइम पर जब मैं वहां पहुंची तो चांद वहां दिखा नहीं।
उसकी जगह अब एक बड़ा लड़का था...उसको भी छोटू ही कह रहे थे।
मैंने चांद के बारे में पता किया तो पता चला कि अब वह वहां नहीं आता।
कई दिनों तक मैं उसके बारे में सोचती रही...
कई बार लगा कि उसके घर का पता लगाया जाए।
लेकिन कुछ दिनों के बाद मैं भी अब अपने काम में लग गई।
एक दिन अचानक रेडलाइट पर मेरी गाड़ी रुकी। गाड़ी के आगे ही एक लड़का आ गया।
भीख मांग रहा था...मैंने एक नजर देखा... कुछ जानी पहचानी सी शक्ल लगी।
ये क्या... छोटू...नहीं चांद नाम है...नहीं.. नहीं ये वह नहीं हो सकता। लेकिन उसने भी शायद मुझे देख लिया था।
वह तेजी से मुझे देख कर निकल गया। मैंने गाड़ी साइड में लगा दी।
उसके पीछे चल दी। वह अब भी मुझे दिख रहा था।
मैं उसके पास पहुंची तो देखा कि वह अपने जेब से निकाल कर कुछ सिक्के गिन रहा है।
आज तो काफी कमाई हो गई लगता है.... मैंने गुस्से में उसे देखते हुए कहा...
मुझे अफसोस हो रहा था कि मैंने इस लड़के के साथ बातें की इसको समझाया लेकिन आज यह एक गलत रास्ते पर निकल चुका है। मुझे लगता था तुम खुद्दार हो...मेहनत करना तुमको पसंद है।
उसने एक बार फिर मुझे अनजान नजरों से देखा। कुछ कहा नहीं।
मेरा गुस्सा और बढ़ गया... मैंने उसे बहुत सुनाया। पिछले कुछ दिनों की दोस्ती से मुझे चांद मेरे भाई जैसा लगने लगा था।
उसने जब मेरी बातों का कोई जवाब नहीं दिया तो मैं वापस अपनी गाड़ी में आ कर बैठ गई और ऑफिस की तरफ चल दी। मन ही मन में एक तूफान उबल रहा था।
मुझे लगता था कि चांद दूसरे लड़कों की तरह नहीं है...लेकिन क्या किया इसने... भीख मांग रहा है ...जरा हिम्मत तो देखो सड़क पर बैठ कर इन भीख के पैसों को गिन भी रहा है। शायद लोग ठीक ही कहते हैं यह लोग कभी सुधर ही नहीं सकते...लोवर क्लास....
मैं अब ऑफिस पहुंच चुकी थी। दिमाग में काम का प्रेशर था। शाम तक सब कुछ भूल चुकी थी। काम के बीच में रुक रुक कर ये बातें ध्यान आ रही थीं।
शाम को ऑफिस से बाहर निकली...तो देखा...मेरी गाड़ी के पास चांद खड़ा था।
उसे देख कर मेरा गुस्सा फिर बढ़ गया...लेकिन इस वक्त इसके चेहरे पर एक मायूसी थी। मुझे लगा कहेगा कि मुझे मजबूर किया गया..या नौकरी से निकाल दिया गया...तो क्या भीख मांगेगा...
खैर मैं उसके पास गई....यहां क्या कर रहे हो?
आपसे मुझे कुछ कहना था दीदी।
उसने आज पहली बार मुझे दीदी कहा था।
क्या है....
मैं बहुत छोटा था जब मेरे बाबा ने मुझे घर से बाहर निकाल कर पैसे कमाने के लिए भेज दिया था। उस समय कुछ समझ नहीं आता था तो देखा कुछ बच्चों को सड़कों पर रोने से...दूसरों के आगे हाथ फैलाने से पैसे मिल रहे हैं। मैंने भी मांगना शुरू कर दिया। उन लोगों का एक माफिया था। रोज जो कुछ मिलता था सब कुछ ले लेता। कुछ पैसे देता था। घर जाता तो बाबा उस पैसे की शराब पी लेता था। खाना कभी होता था तो कभी नहीं।
जब कुछ बड़ा हुआ तो लगा ये कैसा काम है...गाली भी देते हैं पैसे भी नहीं देते...
एक दिन उसी ढाबे के बाहर बैठा था। मालिक ने आकर मुझसे बात की। बातों-बातों में मैंने उसे बताया की मैं पैसा कमाना चाहता हूं। मेरी बातें सुन कर मालिक ने मुझे बर्तन धोने के लिए कह दिया। मुझे दस रुपये भी दिए। मुझे वहां काम भी मिला उसका पैसा भी ...किसी ने डांटा भी नहीं।
वहीं काम करने लगा। वहीं आपसे भी मिला।
लेकिन मेरे ऊपर वह माफिया नजर रख रहा था। एक दिन उसने मेरे सारे पैसे छीन लिए। बहुत मारा...मुंह से खून आने लगा।
कहा दोबारा ढाबे पर गया तो मार देगा मुझे....
घर गया तो बाबा ने पैसे मांगे..कहां से देता...सारे पैसे तो उसने छीन लिए थे। बाबा को पैसे नहीं दिए थे तो उन्होंने भी मुझे मारा।
मैं क्या करता..तब से यही कर रहा हूं।
एक दिन आपके ऑफिस के बाहर भी आया था लेकिन आपकी गाड़ी भी नहीं थी।
मैं कुछ कहने ही वाली ही थी कि वह फिर बोला... आप परेशान मत हो मैडम... हम लोग कभी नहीं सुधरेंगे ... आपने सही कहा था।
यह कह कर भागता हुआ चला गया वहां से...
मैं फिर से दीदी से मैडम हो गई थी...फिर से शायद उसके लिए अनजान हो गई थी।
मैंने उसे रोकने की कोशिश की लेकिन नहीं रुका....उस रेडलाइट पर भी ढूंढा ..वहां भी नहीं मिला।
ढाबे के मालिक को उसका घर नहीं पता था ...फिर कभी मुझे छोटू नजर नहीं आया... शायद गलती मेरी ही थी...थोड़ा सा पढ़ लिख कर हम जमीनी सच्चाई को भूल जाते हैं।
क्या गलती थी छोटू की... था तो बच्चा ही...था तो छोटू ही...लेकिन दुनिया ने वक्त से पहले ही उसे बड़ा कर दिया था।
शायद आपको भी ऐसा ही कोई छोटू कहीं मिल जाए तो मेरी गलती को मत दोहराईएगा।