Vainkuth me darshan in Hindi Adventure Stories by सुप्रिया सिंह books and stories PDF | बैकुंठ के दर्शन ।

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बैकुंठ के दर्शन ।



मुझे अच्छी तरह से याद है ,मैं रात पढ़ते -पढ़ते सो गया था । मेरे दोंनो हाथ मेरे सीने पर रखे हुए थे । उससे पहले मैं कोई सस्पेंस नॉवेल पढ़ रहा था । ठंड का मौसम था ,बाहर गली में दूर किसी छोटे कुत्ते के किकयाने की आवाज कानों में पड़ रही थी ।निसंदेह वो आवाज दूर से आरही थी पर उसे सुनकर मेरा प्यारा कुत्ता टॉमी भी न जाने क्योंभौंकने लगा था ?मैंने उसे गुस्से से डाँटा और करवट बदल करलेट गया । रात का दूसरा पहर बीत चुका था जब मैं नींद के आगोश में गया ।
नींद खुली तो खुद को एक अलग जगह पाया ,ये मेरा घर तो नहीं है ।कौन सी जगह आ गया था मैं ? अजीब की दमघोंटू सी बदबू और सीलन वाली जगह थी ये ।मैने अपना चश्मा टटोला ,मैं अपने हाथों को महसूस तो कर रहा था पर हिला नहीं पा रहा था । मेरे माथे पे पसीने की बूंदें आ गयी । बड़ी मुश्किल से मैं खड़ा हुआ ।एक हल्की सी रोशनी दिखाई दे रही थी,मैं खुद को लगभग घसीटते हुए वहाँ लेकर गया ।मेरे जैसे कई लोग वहाँ पर पड़े कराह रहे थे । सब की हालत खराब थी ।मैंने एक आदमी से पूछा ,ये कौन सी जगह है ?तब उसने बताया कि ये स्वर्ग और नर्क के बीच की जगह है ।यहाँ पर आत्माओं को रखा जाता है । जब तक कर्मों का हिसाब नहीं हो जाता यहीँ पर रहना पड़ता है ।
मैं मर चुका हूँ ? पर ये कैसे सम्भव है ? मैं तो सो रहा था ?
मैंने नींद से जागने की बहुत कोशिश की पर सब बेकार। वहाँ मौजूद लोंगो ने बताया कि सबके साथ ऐसा होता है ।कुछ दिनों बाद सबकी तरह मुझे भी अपनी मौत का यकीन आ जायेगा ।
मैं अपनी याददाश्त पर जोर डाल ही रहा था कि दो हट्टे -कट्टे से आदमियों ने मुझे एक अजीब सी दिखने वाली बाईक पर बैठा लिया ।
मैं उनसे कुछ पूछता इससे पहले वो खुद बोल पड़ा ....जिंदगी में कभी स्पोटर्स बाईक नहीं देखी क्या ? अब हम भी अफोर्ड कर सकते हैं । तुम धरती-बासी पता नहीं क्या -क्या सोच कर मरते होऔर ऊपर आकर मूर्खों जैसे चेहरे बना कर हमें देखते हो । हमारा भी सातवाँ वेतन आयोग चल रहा है ।उसी के हिसाब से वेतन मिलता है । घटिया सा घोड़ा लेकर थोड़े ही घूमेंगे जिंदगी भर ।

मैंने भी अपनी डेढ पसेरी की खोपड़ी हिला दी ।
डूड हम तुमको तुम्हारे घर लेकर चल रहे हैं । नियम के अनुसार तुम अगले तेरह दिन वहाँ रहने वाले हो।
मैं खुश हो गया कि इतनी जल्दी फिर से घर पहुँच जाऊंगा । सबसे ज्यादा चिंता अपने मोबाईल की थी । जिसे कल रात मैं यों ही छोड़ कर सो गया था ,मेरा मतलब है मर गया था । कहीँ मम्मी ने उसमें नताशा की कॉल्स और फ़ोटो देख ली तो मुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगी ....ओह्ह मैं तो पहले ही मर चुका हूँ ,सोच कर थोड़ा सा सुकून मिला । मम्मी .... मम्मी को पता चल गया होगा अब तक ? और पापा वो तो सोच रहे होंगे नालायक रात भर जगा है तो घोड़े बेच कर सो रहा है ....।
अरे मेरे प्यारे मम्मी -पापा एक बार बेटे के कमरे का दरवाजा खटखटा कर देख लो ....आपका लाल ..राम प्यारे हो गया है अब ....।
ओह्ह! तो कल टॉमी इसलिए भौक रहा था ....। कमीना.. कुत्ता बता देता तो मैं सोता ही नहीं ...। कितनी हड्डियां खिलाई मैंने उसको और मुझे दगा दे गया । मै ये सब सोच ही रहा था कि पृथ्वी लोक में आपका स्वागत है कि रिंगटोन बजी ।
ये कौन सी सेवा है बाबू ? मैंने फिर से अचकचा कर यमदूतों की तरफ़ देखा ।
फिर तूने गधों की तरह शक्ल बनाई ....एक यमदूत ने मुझे घुड़की दी । ये यमदूतों की स्पेशल सेवा है जो पृथ्वी से सीधा प्रसारण यमलोक में करती है ।अब वो पुराना वाला जमाना नहीं है जब यमराज जी अपना भैंसा लेकर घूमते रहते थे ।अब तो मरने वालों को सीधे आधार से लिंक कर देते हैं ।इधर धरती पर जैसे ही तुम लोग अपनी जन्मतिथि डालते हो वैसे ही हमारा कम्प्यूटर उसमे म्रत्यु की तिथि भी डाल देता है ।ये बात अलग है कि वो तुम लोग नहीं पढ़ सकते ।
मैंने अपना थूक गटका । ये लोग भी हाईटेक हो गए हैं । अभी पता नहीं कितना और देखना बाकी है सोचते हुए मैंने अपने मुँह पर उंगली रख ली ।
घर के दरवाजे पर अच्छी खासी भीड़ जमा थी ।मेरी उम्मीद के विपरीत पापा मम्मी और मेरा जानी दुश्मन मेरा छोटा भाई दहाडे मार कर रो रहे थे । उन्हें रोता देख कर मुझे भी रोना आ गया ।
आस- पड़ोस के लोगों के साथ नताशा और उसके पिता भी थे ।मैं जाकर नताशा के बगल में खड़ा हो गया ।एक पल के लिए पापा की तरफ देखा पर यमदूतों ने बताया कि अब कोई मुझे नहीं देख सकता। मेरा दिल खुशी के मारे उछल पड़ा ।यानी कि मैं अगले तेरह दिनों तक नताशा के साथ कुछ भी .....। यमदूत बोला ज्यादा खुश मत हो तू मर चुका है। चाह कर भी तू कुछ नहीं कर सकता । मैं मायूस हो गया।
तभी वो लोग मुझे छोड़कर जाने लगे ।मैंने उनसे पूछा ..."आप लोग जा रहे हैं तो क्या मैं खुद को फ्री समझूँ ।
एक यमदूत ने दूसरे की तरफ देखा और दोंनो पेट पकड़कर हँसने लगे ।
"ऐडा है क्या?
"आईला... मुंबई कर...। मेरे मुँह से निकला तुम मुंबई के हो भाऊ" ?
"हो "....वो बोला ..."पहले वहाँ म्युनिसिपालिटी में काम करता था ,काम का अनुभव था तो सीधे यमदूत की पोस्ट पर नियुक्ति मिल गयी" ।
"तो ऊपर भी काम करना पड़ता है क्या "? मैंने थूक निगला ..।
"और नहीं तो फोकट का खाएगा क्या" ?
"चल तू ऐश कर हम बगल से बड़ापाव खा कर आते हैं, तू भागने की सोचेगा भी तो नहीं भाग सकता ।तेरे शरीर में चिप लगी है।हम तुझे पकड़ लेंगे" ।
तेरह दिनों के संस्कारों के बाद मैं इस दुनियां से मुक्त हो चुका था । ऊपर की दुनियां में भी अब सारी मॉर्डन सुविधा है सोच कर थोड़ी सी राहत मिली थी । मेरे कर्मों का हिसाब होने में समय था तब तक मुझे "मरलोक "में जगह मिल गयी । नीचे धरती के सरकारी क्वाटर जैसे दो कमरों के फ़्लैट का जुगाड़ मैंने अपने रहने के लिए कर लिया ।

मेरी योग्यता के हिसाब से मुझे कॉल सेंटर में जॉब मिली जो धरती से मरने वालों की सूचना यमदूतों को देते थे और नई भेजी गई आत्मा में कोई दिक्कत आ रही है तो उस गड़बड़ी की सूचना भी दी जाती थी ।
एक दिन एक कॉल ने मेरे दिमाग की घण्टी बजा दी । ये कॉल "बैकुंठ "के लिए थी । ओहहो बॉस बैकुंठ यानी कि" दादी के ठाकुर जी "।
अगर यहाँ कोई जुगाड़ हो जाये तो मेरी जिंदगी यानी कि मौत सुधर जाए । मेरे दिल में हलचल मच गई । बड़ी कोशिश के बाद एक बन्दा मिला जो बैकुंठ के कॉल सेंटर में पी. ओ.था ।मैंने उससे बात की तो हँस पड़ा ।
" बोला "भाई !तुम धरती से आये हो, कभी स्विजरलैंड देखा है "?
मैंने सिर हिला दिया ,"न वहाँ तो सारे अमीर बन्दे जाते हैं।हम जैसे तो केवल यू ट्यूब पर घर बैठ कर देख लेते हैं "।

मेरे लाख चिरौंरी करने पर वो मुझे बैकुंठ की असली वाली सीडी देने को तैयार हो गया ।
"सीडी में देख ले ,असल में भी ऐसा ही है ।मैं तुझे ले गया तो मेरी नौकरी तो जाएगी ही मुझे वहाँ से निकाल भी दिया जाएगा । अभी पीछली बार एक नकली बाबा आया था ,बहुत हंगामा हुआ था उंसके चक्कर में । न मैं कोई जोखिम नहीं ले सकता" ।

दूसरे दिन तय समय पर वो मेरे लिए बैकुंठ की सीडी लेकर आया । मेरे पास खुद का लेपटॉप नहीं था ।उंसके लिए भी एक बन्दे से जुगाड़ लगाई ।
मैं लेपटॉप लेकर बैठा और सीडी डाली तो लेपटॉप पासवर्ड माँगने लगा । मैं पासवर्ड के लिए उस आदमी को फोन कर ही रहा था कि किसी तीखी चीज का एहसास मुझे अपने कान के पास हुआ ।जैसे किसी ने जोर से कुछ मारा हो ।
मेरी आँखों के सामने एक पल के लिए अँधेरा छा गया ,और जब आँख खुली तो पापा अपनी चप्पल लिए मेरे सिर पर खड़े हुए थे । "साला !रात भर उपन्यास पढ़ेगा ,फिर दिन में बारह बजे तक चारपाई तोड़ेगा और सपने में भी इनको पासवर्ड चाहिए ।
मिला पासवर्ड .....या अभी एक चप्पल और दूँ ,शायद इससे पासवर्ड मिल जाये ।
मैं घबरा कर उठ बैठा ....ओह्ह तो मैं सो रहा था ,मैं मरा नहीं हूँ ।
धत्त तेरे की कितनी अच्छी जिंदगी थी .... मतलब मौत थी ..… मतलब सपना था ।
"अब क्या आँख फाड़ के देख रहा है ? कभी बाप नहीं देखा क्या" ?
पिता जी मुझे उन दो यमदूतों की तुलना में ज्यादा भयानक लगे ।मैं चुपचाप बाथरूम की तरफ भाग लिया ।
काश की पापा थोड़ी सी देर और सोने देते तो कमसे कम असली वाले बैकुंठ के दर्शन तो तो जाते । अब ये राज कभी नहीं खुलेगा ......।
सुप्रिया सिंह।