वो ओर कोई नही कावेरी के क्लास का लड़का वीरा था।
वीरा ठुकर साहब के दोस्त रतनसिंह का छोटा बेटा था,
वैसे वीरा पर तो स्कूल की सारी लड़कियां मरती थी पर कावेरी उससे पसन्द करती थी ये बात जानकर कोई उसकी ओर देखने की भी हिमंत नही करता।
आँख बनके तुझे देखती ही रहूं
प्यार की ऐसी तस्वीर बन जा..
आँख बनके तुझे देखती ही रहूं
प्यार की ऐसी तस्वीर बन जा..
तेरी बाहों की छाँव से लिपटी रहू
मेरी साँसों की तक़दीर बन जा..
तक़दीर बन जा...
तेरे साथ वादा किया नहीं तोडना..
हो..तेरे संग प्यार मैं नहीं तोडना..
हो..तेरे संग प्यार में नही तोड़ना..
जैसे ही सरस्वती का वो गाना खतम हुवा सबलोग उसे सम्मान देते हुवे खड़े हो गए सिवाय कावेरी वो मानो अपनी ही बहन से जलने लगी
* * *
कावेरी वीरा को पसंद करती थी। ओर वीरा उसकी बहन सरस्वती को अपना दिल दे बैठा था।
सरस्वती के उस गाने के बाद मानो सरस्वती पूरे शहर में छा गई एक तो ठाकुर साहब की बेटी थी। ऊपर से इतना अच्छा गाती थी। एक ही दिन में मानो उसकी किस्मत बदल गई.. वो उस प्रतियोगिता में भी पहले क्रमांक पे आई
जो कावेरी सालो से पाना चाहती थी वो सब सरस्वती ने एक ही दिन में पा लिया।
उसके पीछे उसकी आवाज का वो जादु था जो हर किसको पल में अपना बना लेता था। ओर वो जादु वीरा पर भी बस चल ही गया।
सरस्वती की खास सहेली मोहिनी भी चोरीछुपे वीरा को प्यार करती थी। पर कावेरी के डर से उससे अक्षर दूर ही रहती थी।
एकबार वीरा अकेले में मोहिनी से मिला और चुपके से उसके हाथों में एक खत पकड़ाकर चला गया। पहले तो उसे लगा की वीरा ने उसके लिए खत लिखा पर उसने पढ़कर देखा तो वो खत सरस्वती के लिए था।
वीरा ने लिखा था,
उसमे लिखा था की
"सरो, तुम्हारा गाना सुना..सच कहु तो मुजे बहुत अच्छा लगा में उसी वक़्त तुम्हारी आवाज का दीवाना हो गया..
सच बतावु तो उसी पल से तुम मेरे दिल मे बस गई में तुमसे प्यार करता हु..बहोत प्यार करता हु।
अपने दिल की बात कहने और तुम्हारे दिल की बात जानने के लिए में ये खत लिख रहा हु..
तुम्हारे दिल की बात मतलब क्या तुम भी मुझसे प्यार करती हो..?
अपना जवाब तुम खुद आकर बताना
- तुम्हारा वीरा..''
उस वक़्त मोहिनी का तो मानो दिल ही टूट गया जिसे उसने प्यार किया वो किसी ओर से प्यार करता है। ये बात को स्वीकार कर पाना शायद हर किसी के बस की बात नही है पर सरस्वती के लिए मोहिनी ने उस पल ही मानो अपना प्यार कुरबान किया। आखिर वो उसकी दोस्त जो थी। उसने वो खत जाके सीधा सरस्वती को दे दिया।
सरस्वती सीधीसादी घरेलु लड़की थी उसे ये प्यार ब्यार के चक्करो में बिल्कुल नही पड़ना था। इसीलिए उसने वीरा के इस प्यार के लिए मना कर दिया।
इधर कावेरी को ये भनक लगते देर नही हुई की वीर सरस्वती को प्यार करने लगा है। उसे लगा की उसकी ही बहन उसकी कामियाबी के साथ साथ उसकी खुशिया भी छिनने लगी।
अपने पिता के सात आठ आदमियो को उसने कुछ पैसे दिए और कहा की जावो जाकर उस सरस्वती को जान से मार दो। हा उसने ऐसा ही कहा.. अपने वीरा को पाने के लिए वो खुद की बहन को जान से मारने को भी तैयार हो गई..
शामको सरस्वती ओर मोहिनी स्कूल से वापस लौट रही थी तब ही एक गाड़ी आई उसमे से चाकू निकालकर दो आदमी आये उसने कपड़े से अपना चहेरा छुपाया हुवा था। इसीलिए उसे सरस्वती पहचान तो नही पाई पर फिरभी उसे यह भनक तो लग ही गई की वो उसके घर में से ही कोई है।
पल में ही उन लोगो ने सरस्वती ओर मोहिनी पर चप्पू से हमला कर दिया। मोहिनी को वही जख्मी हालत में छोड़कर, वो लोग सरस्वती कंधे पर उठाकर आगे खड़ी अपनी गाड़ी तक ले गए.. गाड़ी का दरवाजा खोला उसमे उसे पटककर गाड़ी का दरवाजा बंधकर के वो लोग वहाँ से पल में ही बहुत दूर निकल गए
मोहिनी दौड़ती हुई घर आई और सारी बाते ठाकुर साहेब को बताई ठाकुर साहब खुद अपने आदमी लेकर सरस्वती को बचाने के लिए निकल पड़े..
इस बात की जान वीरा को पहले ही हो गई.. जब वो लोग सरस्वती को उठाकर जा रहे थे वीरा ने उन लोगो को दूर से ही देख लिया..
अपनी सरस्वती को बचाने के लिए वीरा ने बाइक से उस गाड़ी का पीछा किया..
कुछ देर बाद वो एक फार्महाउस पहोचा जहाँ वही गाड़ी को देखकर वीरा को यकीन हो गया की सरस्वती यही पर है..
छुपते छुपते बचते बचते वो धीरेधीरे उस फार्महाउस के नजदीक गया एक पेड़ के पीछे खड़े रहकर छुपकर उसने दखा की
फार्महाउस के दरवाजे के बहार कुछ खतरनाक हथियारवाले लोग इधर उधर घूम रहे थे..
सरस्वती को बचाने के लिए उन सब से भिड़ना होगा।
वो लड़ना जानता था इसीलिए उसे जैसे ही मौका मिला अपनी जगह से चुपके से निकलकर वो एक एक कर के बिना आवाज किए एक एक हथियार धारी को मारने लगा
धीरे धीरे सब नीचे ढेर हो गए अब वो फार्महाउस के दरवाजे की ओर जानेवाला था की अचानक पिछे से उसपर किसीने बड़ी बंधूक रख दी..
उसने पीछे मुड़कर देखा तो एक छह फुट हाइटवाला गुंडा उसकी और बंधूक ताने खड़ा था।
उसे देखकर पहले तो वीर ने अपने हाथ खड़े कर दिये.. फिर धीरे से उसके हाथ से बंधूक छीनकर उसी बंधूक से उसपर दो वार किये.. वो गिर गया फिर वीर ने अंदर जाकर उन लोगो की कैद में रस्सी से बंधी सरस्वती को आजाद किया ओर उसे बहार लेकर आया इतने में ठाकुर साहब अपने आदमियो के साथ अपनी गाड़ी लेकर वहाँ आ गए..
ठाकुर साहब को देखकर ही सरस्वती रोते हुए दौड़कर अपने पिता से लिपट गई..
ठाकुर साहब ने वीरा की बहादुरी देखी.. और उससे काफी प्रभावित भी हुए
वीरा ने अपनी जान की परवाह किये बगैर सरस्वती को बचाया ये देखकर ठाकुर साहब इस बात पर बेहद खुश हुए और उन्होंने वीरा से कहा।
''वीरा, तुम्हारी बहादुरी के बारे में तुम्हारे पिता से अक्षर सुना करता था। आज देख भी लिया की तुम सच मे किसी विरपुरुष से कम नही हो। आज अपनी जान की परवाह किये बगैर तुमने मेरी बेटी की जान बचाई..सच बतावु तो आज तुम्हारी इस बहादुरी को देखकर में वाकई में बहुत खुश हु। मांगो वीरा तुम्हे क्या चाहिए..''
वीर ने बड़ी विनम्रता से कहा,
मेने जो कुछ भी किया अपना फर्ज समझकर किया फिर भी ठाकुर साहब अगर आप कुछ देना ही चाहते है तो बस अपना आआशीर्वाद दीजिए..
वीरा ने ठाकुर साहब के पैर छुए...
* * *
क्रमशः