krushna - 5 in Hindi Women Focused by Saroj Prajapati books and stories PDF | कृष्णा भाग-५

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कृष्णा भाग-५

धीरे धीरे समय का पहिया आगे बढ़ता जा रहा था। कृष्णा को नौकरी करते हुए 4 साल हो गए थे और इस बीच अपनी योग्यता के बलबूते परीक्षा पास कर प्रथम श्रेणी अधिकारी नियुक्त हो चुकी थी। रमेश की तबीयत भी अब काफी बेहतर हो गई थी ।
दूर रहने से दीपक की भी बुरी संगति और आदतें छूट गई थी और उसने मोबाइल का कामकाज सीख लिया था ।‌उसमें आए बदलाव और उसकी इच्छा को देख कृष्णा व उसके पिता ने उसका मोबाइल का‌ एक शोरूम शुरू ‌करवा दिया था।‌ रमेश भी उसके साथ शोरूम पर ही बैठते और उस पर पूरी निगाह रखता था। अब सबने उसे घर की जिम्मेदारी देनी शुरू कर दी थी। जिससे कि वह कामों में लगा रहे और उसका ध्यान ना भटके।
संडे का दिन , सभी घर पर थे। दुर्गा भी अपने पति के साथ वहां आई हुई थी । दोपहर खाना खाने के बाद रमेश ने कृष्णा से कहा
" बेटा अब तो तेरा सपना पूरा हो गया है और तू अपने पैरों पर खड़ी हो गई है । दीपक भी अब अपनी जिम्मेदारियां बखूबी संभाल रहा है। बस अब तू मेरी एक इच्छा पूरी कर दे तो मुझे चैन मिले।"
" पापा कौन सी इच्छा! आप मुझे बताओ! मैं जरूर पूरी करूंगी।"
" बेटा तू भी अपना घर बसा ले। मैं जाने से पहले तेरा भी परिवार देखना चाहता हूं।"

"यह क्या कह रहे हो पापा! आप कहां जा रहे हो और क्या यह मेरा परिवार नहीं! मुझे नहीं करनी शादी! मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी!"
"नहीं बेटा ऐसा मत कह! तुझे मेरी कसम। लड़कियों को तो एक ना एक दिन ससुराल जाना ही होता है। हमारी पसंद से नहीं तो अगर तुझे कोई लड़का पसंद है तो बता दे। हम उसी से तेरी शादी कर देंगे। पर तू शादी के लिए हां कर दे। मेरा दिल बेचैन रहता है। लगता है अब ज्यादा दिन नहीं जियूंगा!"

रमेश जी की बात सुन कमलेश बोली "यह क्या कह रहे हो जी आप! कुछ तो सोच समझकर बोला करो! कहीं ना जा रहे हो आप। देखना अभी तो आप अपने पोते पोते, नातियों की शादी भी देखोगे।"

कह कमलेश आंसू पोंछने लगी। उनकी बात सुन सभी की आंखों में आंसू आ गए ।
दुर्गा अपने आंसू पोंछते हुए बोली
"हां कृष्णा तू शादी ‌कर ले। अरे यह‌ सब पहले होता था कि शादी के बाद लड़कियां पराई हो जाती थी ।अब ऐसा कुछ ना है। देखती नहीं है मुझे, हर महीने यहां आई बैठी रहूं !"

"और मैं भी तो इसके साथ-साथ हर महीने अपनी सासू मां व साली साहिबा के हाथों का स्वादिष्ट खाना खाने पहुंच जाता हूं।"

उन दोनों की बातें सुनकर सभी हंसने लगे और माहौल थोड़ा हल्का हो गया।
"इनकी एक रिश्ते की मौसी जो मुंबई रहती थी । अभी दिल्ली शिफ्ट हुई हैं। उनका लड़का भी अफसर है और वह उसके लिए लड़की ढूंढ रहे हैं। अभी पिछले हफ्ते हमारे यहां आई थी तो कह रही थी दुर्गा अपने जैसी लड़की हमारे विनय के लिए भी ला दे। अगर कृष्णा तू हां कहे तो मैं आगे बात चलाऊं!" दुर्गा ने कहा।
"अरे बिटिया यह भी पूछने की बात है भला। तू अगले हफ्ते बुला ले उन लोगों को यहां। ठीक है ना कृष्णा!"
"जैसा आप लोग सही समझो !" कृष्णा ने बेमन से सहमति दे दी ।
उन लोगों के आने से एक दिन पहले दुर्गा अपने मायके आ गई।
उसे आया देख कमलेश बोलूं "अरे दुर्गा तुझे तो कल उन लोगों के साथ आना था। फिर आज कैसे?"
"अरे आज मैं अपनी इस अफसर बहना के लिए आई हूं। इसको ब्यूटी पार्लर में ले जाकर थोड़ा लड़की जैसा बना दूं।"

"क्या मतलब क्या मैं लड़की जैसी नहीं !" कृष्णा मुंह बनाते हुए बोली।
"अरे बहना लड़की तो है। पर बहुत सीधी सादी और आज कल के लड़कों को चाहिए थोड़ी फैशन वाली लड़कियां!"

"क्या कमी है हमारी कृष्णा में! अफसर है। इतने लोग इसके नीचे काम करे हैं!" कमलेश बोली।

"अरे मां तुम भी बुद्धू रहोगी! वो अफसर नहीं लड़की देखने आ रहे है हैं। तुम्हें पता है हमारे समाज का । गुण तो वह बाद में देखेंगे पहले तो लड़की सुंदर लगनी चाहिए और इसलिए मैं इसे ब्यूटी पार्लर ले जाने आई हूं।"
" मुझे नहीं जाना है किसी पार्लर में। मैं जैसी हूं उन लोगों को मुझे उसी रूप में पसंद करना होगा!"
"पागल हो गई है क्या। आजकल दिखावे का जमाना है। ऐसे ही उनके सामने जाएंगी तो!"
"तो क्या पसंद नहीं करेंगें! लेकिन मैं झूठ के आधार पर कोई रिश्ता नहीं जोड़ना चाहती । मैं जैसी हूं, उनके सामने वैसी ही जाऊंगी।" कह कृष्णा वहां से उठ गई।

उसके जाने के बाद दुर्गा ने अपना माथा पीट लिया।

अगले दिन उसने अपनी मां के साथ चाय नाश्ते की तैयारी करवा दी और उसके बाद वह कृष्णा को देखने उसके कमरे में गई ।
कृष्णा को एक साधारण सा सूट पहने देख वह बोली "अरे कृष्णा ये क्या! कपड़े तो कम से कम ढंग के पहन ले!"

"क्यों, क्या कमी है इन कपड़ों में! मैं अपनी ऑफिस की मीटिंग में इनको ही तो पहन कर जाती हूं।"

"बहना आज ऑफिस नहीं , तेरी जिंदगी की मीटिंग है। जा अपनी बड़ी बहन की इतनी सी बात मान ले। एक अच्छा सा सूट पहन ले। अच्छा चल मैं ही निकाल देती हूं।"
कह उसने अलमारी से एक सुंदर सी सलवार कमीज निकाल दी।
कृष्णा कपड़े पहन जब बाहर आई तो दुर्गा ने उससे प्यार से कहा "चल पार्लर तो ना गई । मैं ही तेरा हल्का फुल्का मेकअप कर देती हूं।"
"ना दीदी मेकअप तो बिल्कुल ना करूंगी। मुझे बिल्कुल पसंद नहीं , यह लीपापोती !"
"अच्छा चल हल्की सी लिपस्टिक तो लगा ले!" कहते हुए दुर्गा ने हल्की गुलाबी रंग की लिपस्टिक लगा, उसके बालों का जूड़ा बना दिया।
इतना सा मेकअप करते ही कृष्णा के सांवले सलोने चेहरे पर रौनक आ गई थी।
थोड़ी सी देर में दुर्गा का पति मेहमानों को लेकर आ गया। उसकी मौसी ने बैठते ही दुर्गा की तारीफ करते हुए उसकी मां से कहा
" आपकी बड़ी बेटी जितनी रूपवान है, उतनी ही गुणवान है। मैंने तो अपनी बहन से कह दिया था कि हमारे विनय के लिए भी अपनी दुर्गा जैसी बहू ढूंढ दे। जब उन्होंने बताया कि दुर्गा की बहन है। जो हमारे विनय की तरह ही अफसर है तो बस जी हमसे तो सब्र ही ना हुआ। पता चलते ही आ गये। अब तो बहु, तू अपनी बहन को बाहर बुला ही दे।"

"हां हां मौसी जी अभी बुलाती हूं।" कह दुर्गा कृष्णा को लेने अंदर चली गई। थोड़ी देर में चाय नाश्ते के साथ दोनों बहने बाहर आई।

कृष्णा पर जैसे ही दुर्गा की मौसी सास कि निगाह गई उनका मुंह बन गया। दुर्गा उनका चेहरा देखते ही सब समझ गई। फिर भी वह मुस्कुराते हुए बोली "मौसी जी मिठाई खाईए और जो पूछना है पूछ लो मेरी बहन से। देख लीजिए अफसर है, फिर भी कितनी सादगी से रहती है।"
"ऐसा है बहू रानी! तेरी चिकनी चुपड़ी बातों में मैं आने वाली नहीं हूं। तुमने तो हमारे साथ धोखा किया है। मैं तो समझती थी, तेरी बहन तेरे जैसी रूपवान होगी लेकिन यह तो....! "

"यह आप क्या कह रहे हो मौसी जी! क्या रूप रंग ही सब कुछ होता है। गुण कुछ नहीं और आपने कब काली गोरी की बात की थी। आपने मेरी जैसी कही थी। मेरी नजर में तो मेरी बहन मुझसे कहीं रूपवान व गुणवान है।"
"ऐसा है बहू! मैंने तुझसे ज्यादा दुनिया देखी है। लोग पहले रंग रूप ही देखते हैं, गुण बाद में!"
"आप एक बार विनय से तो पूछ लो मौसी जी! उन्हें कृष्णा कैसी लगी!"
"उससे क्या पूछना है बहू! वह उसी लड़की को पसंद करेगा। जिसे मैं करूंगी ।" कह वह सब उठ कर चले गए।
उनके जाने के बाद दुर्गा माफी मांगते हुए कृष्णा से बोली "बहना मुझे माफ कर दे। आज मेरे कारण तुझे ‌इतना कुछ सुनने को मिला!"
"दीदी आप परेशान मत हो! मेरे लिए यह कोई नई बात नहीं है। दुनिया पहले भी रूप रंग को देखती थी और आज भी!" कह कृष्णा अंदर चली गई।
क्रमशः
सरोज ✍️