रातभर गिरिधर उधेड़बुन में लगा रहा और बहुत सोचने-समझने के बाद फैसला ले लिया।।
सुबह सो कर उठ कर तैयार हुआ और पहुंच गया हवेली नाश्ता करने!!
ठाकुर साहब ने जैसे ही गिरिधर को देखा, उनकी खुशी का तो जैसे ठिकाना ही नहीं रहा, दौड़ कर गिरिधर को हृदय से लगा लिया और मुंशी जी से बोले___
मुंशी जी सारे गांव में मिठाई बंटवा दी जाए,शाम को ही मंगनी होगी, जल्दी से पंडित जी बुलाकर ब्याह की तिथि पक्की करवाइए!!
हां, मालिक सब हो जाएगा,आप परेशान ना हों, मुंशी जी बोले!!
चलो कालिंदी बिटिया नाश्ता लगाओ, पहले नाश्ता कर लें, फिर सोचते हैं कि क्या करना है।।
लाई बाबूजी , कालिंदी ने आवाज दी।।
ये सब सुनकर लीलावती खुश नहीं हुई, उसे लगा अकेला दामाद है अब सब गिरिधर ही सम्भालेगा, हमें कुछ नहीं मिलेगा।
शाम को सगाई हो गई और पंडित ने महीने भर के भीतर ही ब्याह की तिथि भी निर्धारित कर दी।
बाकी दिन तैयारी में यूं ही बीत गए,सब रिश्तेदारों में न्योते भी पहुंच गये, अमृत राय जी के पास न्योता देने खुद ठाकुर साहब गये।।
बोले,लो भाई हमने तो अपनी बिटिया का ब्याह तय कर दिया है और तुझे न्योता देने आए हैं,मीरा बिटिया कहां है....
ठाकुर साहब,अमृत राय जी से बोले।।
अरे, कालिंदी बिटिया का ब्याह तय हो गया, बहुत अच्छी बात है लेकिन किस से?अमृत राय जी ने पूछा।।
अरे, हमें तो हीरा मिल गया है हीरा..... ठाकुर साहब बोले।।
अरे कहां मिला ?तुझ जैसे कौवे को हीरा.....अमृत राय जी बोले।।
मैं कौआ ही सही लेकिन मेरा होने वाला दामाद तो हीरा है, ठाकुर साहब बोले।।
अब उगलेगा भी !! कि बस पहेलियां ही बुझाता रहेगा,अमृत जी बोले।।
अरे और कौन,अपना गिरिधर, ठाकुर साहब बोले__
इतने में मीरा भी आ गई....
अमृत राय जी बोले,देख बेटा खुशखबरी है....
क्या है पिता जी,मीरा ने पूछा।।
अरे, कालिंदी बिटिया का ब्याह तय हो गया है गिरिधर के साथ...
अमृत राय जी बोले।।
मीरा का चेहरा थोड़ा उतर गया लेकिन फिर भी बोली,वाह... पिता जी कब है? मीरा ने पूछा।।
बस अगले हफ्ते...अमृत राय जी बोले!!
ठीक है पिता जी, मैं खरीदारी शुरू कर देती हूं,मीरा बोली।।
हां, बिटिया सब तैयारी कर लो और शादी में दो-तीन पहले ही आ जाना, ठाकुर साहब बोले।।
अच्छी बात है, चाचा जी,आप निश्चिन्त रहें, मीरा बोली।।
इधर ब्याह की तैयारियां शुरू थी और लीलावती खुश नहीं थी और शम्भूनाथ तो बिल्कुल भी नहीं।।
अमृत राय जी ब्याह में दो-तीन पहले ही आ पहुंचे, मीरा के साथ, मीरा ने घर के अंदर के बहुत से काम सम्भाल लिए,आज मण्डप था,हल्दी और तेल चढ़ने के रस्म होनी थीं, गांव की औरतें ढोलक और मंजीरे के साथ लोकगीत गा रही थी।।
लेकिन मीरा पर तो शम्भू की गंदी नज़र थी,शम्भू आते जाते मीरा को बुरी तरह घूर रहा था लेकिन मीरा ये सब अनदेखा कर रही थीं।।
ठाकुर साहब बोले, मीरा बिटिया आज मेंहदी है तो ऐसा करना, मंदिर वाले बगीचे में बहुत से मेंहदी के पेड़ लगे हैं,जब भी समय मिले तो तोड़ लाना तो समय से पिस जाएगी,चाहो तो साथ में किसी और को भी ले जाना।।
मीरा बोली, ठीक है चाचा जी।।
मीरा अकेली ही मेंहदी लाने पहुंची, उसने इतना मेंहदी तोड़ ली कि एक बड़ी सी गठरी बन गई, मीरा जैसे ही गठरी उठाने वाली थी कि वहां शम्भू आ धमका___
बोला__इतनी मेहनत क्यो कर रही हो,कहो तो हम उठा ले गठरी!!
मीरा बोली, मुझे किसी की जरूरत नहीं है,मैं अकेले उठा सकती हूं।।
तभी शम्भू ने मीरा का हाथ पकड़ना चाहा, लेकिन मीरा हाथ छुड़ाकर गांव की ओर भागी,शम्भू भी मीरा के पीछे पीछे भागा,अब मीरा ने बचाओ... बचाओ...की आवाज लगाई, तभी वहां से गुजर रहे गिरिधर ने देखा और शम्भू को पकड़ कर दो-तीन थप्पड़ लगाए
और बोला__खबरदार.... अगर अगली बार से ऐसी कोई भी गंदी हरकत की, ठाकुर साहब से कह कर गांव से निकलवा दूंगा।।
शम्भूनाथ जाते हुए बोला..देख लूंगा तुझे...।।
हां.. हां...देख लेना, बहुत देखे हैं तेरे जैसे, गिरिधर बोला।।
मीरा ने अपने हाथ जोड़कर गिरिधर को धन्यवाद बोला।।
गिरिधर बोला,मैं आपको हवेली छोड़ दूं।।
मीरा बोली, नहीं मैं चली जाऊंगी लेकिन मेंहदी की पोटली मंदिर में रह गई है,अगर आप किसी से हवेली तक भिजवा दें तो....
आप चिंता ना करें, पहुंच जाएगी गिरिधर बोला।।
लेकिन सुनिए,इस विषय में किसी को कुछ ना पता चले नहीं तो बिना मतलब बखेड़ा हो जाएगा, मीरा बोली।
ठीक है आप इस विषय में ज्यादा ना सोचें मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा,गिरिधर बोला।।
जी, बहुत बहुत धन्यवाद,मीरा बोली।।
और मीरा हवेली आकर ब्याह के कामों में ब्यस्त हो गई और अगले दिन कालिंदी और गिरिधर का ब्याह बड़े ही धूमधाम से हो गया और ठाकुर साहब गिरिधर को हवेली में रहने के लिए मना लिया।
सबका जीवन ऐसे ही चल रहा था, गिरिधर पहले की तरह ही खेतों में काम कर रहा था, कालिंदी पहले की तरह गाय का दूध दोहती बस अंतर इतना था की अब कालिंदी और गिरिधर पति-पत्नी थे, गिरिधर के लिए वो पहले की ही खेतों में खाना ले जाती, दोनों ने कभी भी हवेली का मालिक या मालकिन बनने की इच्छा नहीं की, ठाकुर साहब भी खूब खुश रहते।
लेकिन शम्भूनाथ को ये सब मंजूर नहीं था, वो ठाकुर साहब से हमेशा पैसे मांगता रहता कोई ना कोई अपना कर्ज मांगने हमेशा दरवाजे पर खड़ा रहता, ठाकुर साहब ने तंग आकर इस विषय में लीलावती से बात करनी चाही लेकिन उल्टा जवाब ही मिला कि जब इस हवेली में अनाथों को सहारा मिल सकता है तो वो तो तुम्हारा भांजा है,क्या तुम्हारे धन पर शम्भू का कोई हक नहीं है।।
अब ठाकुर साहब चिंतित हो उठे,उन्हे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें फिर मुंशी जी ने सुझाव दिया कि आप सारी चाबियों की जिम्मेदारी गिरिधर भइया को सौंप दीजिए जो कुछ लेना-देना होगा गिरिधर भइया कर लेंगे इससे आपकी बहन से आपकी बुराई नहीं होगी और चाबियां गिरिधर भइया के हाथ में देख शायद शम्भू भइया उनके जैसे नेक बनने की कोशिश करें।
ठाकुर साहब बोले, आपने बिल्कुल ठीक कहा मुंशी जी।।
अगले दिन ठाकुर साहब ने पूरे गांव वालों के सामने हवेली की चाबियां गिरिधर को सौप दी अब तो शम्भू और भी आग-बबूला हो गया।।
अब तो उसने ठान ली गिरिधर से बदला लेने की,इसी बीच कालिंदी ने खुशखबरी सुनाई कुछ दिनों में कालिंदी एक प्यारी सी बच्ची की मां बन गई जिसका नाम उन्होंने महुआ रखा,अब तो कालिंदी को पल भर की फुरसत ना मिलती, ऐसे ही कालिंदी की बेटी तीन साल की हो गई, गिरिधर तो अपनी बेटी से प्राणों से भी ज्यादा प्यार करता था, महुआ जब देखो तब गिरिधर के पीछे बाबूजी... बाबूजी.... करते पड़ी रहती, गिरिधर बड़ी मुश्किल से छिपते-छिपाते खेतों में जा पाता, दोनों पति-पत्नी में सामंजस्य और प्यार अभी भी पहले की तरह ही बना हुआ था।
एक दिन दरवाजे पर फिर से शम्भू के लेनदार आ गये, ठाकुर साहब हवेली पर नहीं थे,वो लोग दो तीन लोग थे उन्होंने शम्भू को आवाज लगानी शुरू कर दी, गिरिधर बाहर आया उसने सुना और फ़ौरन मुंशी जी को खबर भिजवाई, मुंशी जी आए और बोले ये तो लाखों का कर्जा हो गया है,अब क्या करें,उन लोगों ने धमकी दी है कि अगर कर्जा ना चुकाया तो हम अदालत तक जायेंगे,अंदर जाकर गिरिधर ने सब हाल कालिंदी को कह सुनाया।।
कालिंदी अपने सारे गहने ले आई जो उसकी मां ने उसको दिए थे, बोली इन्हे गिरवी रख दो जब पैसा होगा तो छुड़ा लेगे लेकिन बाबूजी की इज्जत पर दाग नहीं लगना चाहिए, मुंशीजी फौरन गये और गहनों को गिरवी रख जो रकम मिली उसे लेनदारों को दे दी और इस बात की खबर बहुत दिनों बाद ठाकुर साहब तक पहुंची, साहूकार ने बता दी जिसने गहने गिरवी रखे थे।
अब तो ठाकुर साहब ने मुंशीजी की खबर ली और सारा माजरा पूछा, मुंशीजी ने डर के मारे सब उगल दिया।।
ठाकुर साहब ने उसी वक्त शम्भू से कहा कि इस हवेली में तुम अब और नहीं रह सकते, लीलावती और शम्भू उसी समय हवेली छोड़कर चले गये।।
शम्भू मन ही मन कुढ़ रहा था, उसे अब गिरिधर से बदला चाहिए था।।
एक दिन कालिंदी, महुआ और गिरिधर मंदिर जा रहे थे, बहुत से लठैतो ने उन्हें घेर लिया, गिरिधर पर लाठियां चलानी शुरू कर दी, कालिंदी ने देखा कि कोई लाठी से गिरिधर पर पीछे से वार कर रहा है तो वो गिरिधर को धक्का देकर सामने आ गई और लाठी कालिंदी के माथे पर जा लगी,वो वहीं बेहोश हो गई उसके सर से लगातार खून बह रहा था,इसी बीच गांववाले भी गिरिधर को बचाने आ गये,लठैत तो भाग गये लेकिन कालिंदी की हालत बहुत ही नाजुक थी, महुआ मां.... मां....करके रोए जा रही थी___
क्रमशः__
सरोज वर्मा___