bhadukada - 36 in Hindi Fiction Stories by vandana A dubey books and stories PDF | भदूकड़ा - 36

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भदूकड़ा - 36

सिर झुकाये, सारी बातें सुनती, समझती जानकी ने बस एक बात कही-

“ बे बड़ीं हैं सो ऐन डांट सकतीं. काम सिखा सकतीं, सब कर सकतीं, बस हमाय ऊपर या हमाय मां-बाप के ऊपर कौनऊ गलत इल्ज़ाम लगाओ, तौ हम बर्दाश्त न कर हैं. काय सें इतै हम अपने मां-बाप की बेइज्जती करबावे नईं आय. उनै जो कछु काने, हमसें कंयं. बस हमई तक रक्खें अपनौ गुस्सा.”
अगले दिन सत्यनारायाण की कथा और सुहागिलें थीं. इस कार्यक्रम के सम्पन्न होने के ठीक अगले ही दिन, कुन्ती जानकी के कमरे में धड़धड़ाती घुसी-

“काय बैन तुम अबै लौ इतै नई दुल्हन बनीं बैठीं? उतै तुमाई चचेरी सासें टुपरा भर रोटी सेंकबे दतीं! तुमें कछु सरम है कै नइयां? जौई सिखाओ का मां-बाप ने?”

अन्तिम वाक्य सुनते ही जानकी कसमसाई, लेकिन कुछ बोली नहीं. बस इअतना पूछा-

“रसोई कितै है अम्मा? पौंचा दो हमें उतै तक.”

जानकी से कोई जवाब न पा कुन्ती का चीखने-चिल्लाने का प्रोग्राम धराशायी हो गया. चिढ़ के बोली-

“ चलीं जाओ सीधे जीना उतर के. उधर सामने वाली छत पे पहुंचो. वहीं रसोई मिल जायेगी आपको” ( कुन्ती जब ज़्यादा गुस्से में होती है तो एकदम खड़ी बोली बोलने लगती है. कई बार तो अंग्रेज़ी के शब्दों का भी भरपूर इस्तेमाल करती है.)

जानकी कुन्ती को वहीं छोड़, तेज़ी से सीढ़ियां उतर गयी. सामने फिर सीढ़ियां दिखीं, तो उन पर चढ़ गयी. जिस अटारी से धुआं निकलता दिखा, उसी में घुस गयी.

अचानक ही अपने सामने जानकी को खड़ा देख, रमा और सुमित्रा जी, दोनों ही चौंक गयीं.

“अरे! जानकी, तुम काय आ गयीं? अबै कछु दिना तुमें कछु नईं करनै. अबै तुमाई खिचड़ी तक तौ भई नइयां. जाओ बैन, तुमाओ कछु काम नइयां.” रमा ने पुचकारते हुए कहा. सुमित्रा जी उठीं, उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरतीं वापस ले जाने को हुईं.

“ चाची, अम्मा ने भेजा है हमें. कह रहीं घर की सब बड़ी जनें रोटी बना रहीं, तौ तुम जा के मदद करौ.”

बिना किसी लाग-लपेट के जानकी ने पूरी बात बता दी.
“आप औरें तौ हमें इतईं बैठ जान दो. कमरा में जैहें तौ अम्मा फिर चिल्ल्याहैं.”

जानकी का “चिल्ल्याहैं” सुन के रमा को ज़ोर से हंसी आ गयी. हंसी इसलिये भी आई कि वो जान गयी थी, ये लड़की कुन्ती की हर उल्टी-सीधी बात को छुपायेगी नहीं, झेलेगी भी नहीं सुमित्रा जी की तरह. मन में कहीं तसल्ली भी हुई सुमित्रा जी और रमा दोनों को ही. शादी का माहौल है, इसलिये अभी रमा कुन्ती की रसोई सम्भाल रही, वरना तो अब सबके अलग-अलग हिस्से हो गये हैं, तो सब अपना-अपना ही घर सम्भालते हैं. सुमित्रा जी की वजह से भी अभी रमा यहीं है. छुट्टियां खत्म होने के पहले ही सुमित्रा जी भी चली जायेंगीं, तब रमा भी अपने घर का रुख़ करेगी. उसके बात जानकी का क्या हाल कुन्ती करेगी और वो कैसे निपटेगी , ये जानकी ही जाने. हां, चिन्ता ज़रूर दोनों के मन में थी कि ज़रा सी लड़की का जीना हराम न कर दे कुन्ती. लेकिन आज के, जानकी के रवैये को देख कर दोनों ही आश्वस्त हो गयी थीं, इसका बाल भी बांका न कर पायेगी कुन्ती. राहत की सांस भी ली, कि कुन्ती को ऐसी ही बहू मिलनी चाहिये थी, जो उसके ग़लत को ग़लत कह सके.(क्रमशः)