आज वृंदा की खुशी का कोई ठिकाना नहीं है। वह उछलती कूदती हुई, आश्रम से बहार निकल के सीधा घर की ओर चली जा रही है। होठों पे एक हसीन गाना गुनगुना रहा है। सुर बैशक अच्छा नहीं है, पर भाव पुरी तरह से भरपूर है।
और बोल है,
हे जी, कैशरीया बालमजी आवो नी,
पधारो मारो घेर।
तभी सुखी धरती पर,
उड़ती डमरी धूल के बीच उछलते कदम एकाएक रुके।
सामने देखा, तो खुदीराम खड़ा है।
एकदम मारवाड़ी आदमी, आज उसकी बड़ी मूंछे किसी डाकू की मूंछ की भाती लंबी और डरावनी लग रही थी। जीनपे कभी वृंदा को प्यार आता था।
मगर आज माहोल कुछ और है। खुदीराम के दाएं हाथने लगभग बारा इंच का खंझर, जो धर रखा है। सूर्ख लाल आंखें और आवाज में तोछडापन।
खुदीराम- ( गुस्सेभरी आवाज में) बाईसा, आपने ये ठीक ना किया, मारे साथ।
मै आपको अपनी बेटी की तरह लाड़ लडा रहा था। और आप है कि, मारे प्यार का फायदा उठा रहे हो। अब मारे को ये बर्दाश्त कोणी।
वृंदा- पर, खुदीराम दादुसा। ( वृंदा खुदीराम के साथ बचपन से खेलकूद बड़ी हुई है। इसी कारण वह उसे प्यार से दादुसा बुलाया करती थी। और खासकर तब जब कोई बात मनवानी हो)
मगर आज वृंदा का कुछ भी करना, कहना खुदीराम के सामने 'बैल के सामने सर पीटना' की समान था। यानी उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।
खुदीराम- अब पर, वर कुछ ना चलेगो मारे सामणे।
बहुत लाड़ लडा लियो बाईसा आपसे। इसलिए आज मारेको हुकम के सामने शरमीन्दो होणो पडो।
अब मारे से प्यार की उम्मीद ना रखीएगा बाईसा।
चलो, आप अब एक शब्द भी मुंह से निकाले बगैर हवेली को चलेगी। और निकाला तो फिर देख लिजीएगा।
वृंदा- पर दादुसा मेरी बात तो सुने।
वृंदा कुछ आगे बोले,
उससे पहले खुदीराम आगे बढ़ा और वृंदा को पकड़कर सिधा गाड़ी में बिठा दिया गया। और ड्राईवर को चलने का इशारा मिला। गाड़ी हवामे बातें करती हुई, हवेली की ओर चल निकली।
गाड़ी से उड़ती धूल ने एक अनजान चहेरा बनाया, फिर थककर वापस जमीन पर आ बैठी।
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रात के तकरीबन ३:०० बज रहे हैं।
सारा खेमा सुन्न पड़ा है। वहां एक व्यक्ति धिरे से ऋषभ के तंबू में झांकता दिखाई पड़ता है। वह बड़े ही ध्यान और एहतियात से तंबू में देख रहा है। फिर इस बात का भी ध्यान है कि, कोई उसे तो नहीं देख रहा।
थोड़ी देर देखकर वह दबे पाव वहां से चल दिया। वह चलते-चलते तंबूओ से दूर एक पतली पगदंडी पकड़कर जंगल की ओर चल निकला। कुछ सफर तय करने पर दिखा, एक बरगद के बड़े से पेड़ के नीचे हल्की सी रोशनी जगमगा रही है। रोशनी देखते ही उसकी आंखें चमकी, साथ ही उसके पेरों ने भी तेजी भरी। मानो वही उसकी मंजिल हो।
जब वह आदमी पेड़ के नजदीक पहुंचा तो देखा। वहां कुछ दस-बारह लोगो का टोला गोल वर्तुल बनाकर बेठा हैं। और आपस में कुछ फुसफुसा रहे हैं।
जब टोले को इस आदमी के वहां पहुंचने की उपस्थिति मालूम हुई। तो उनमें से एक व्यक्ति उस आदमी को देखकर बोल पड़ा, क्यू भई रामा।
कबुतरो के क्या हाल है ?
रामा- ऋषभ ! अरे, बड़ा कबुतर पैर तानकर बड़े आराम से सो रहा है।
और हां। बाकी दौनो कबुतरो का भी यही हाल है।
यह बात सुनकर वह व्यक्ति खड़ा हुआ। जिसने सवाल किया था। उसने रामा को बैठने का हुक्म फ़रमाया। और सब उसकी ओर ध्यान दें इस कारण, गले को बड़े आवाज में खरासा। फिर कहने लगा,
भाईयों सुनो।
आप सब हमारे यहां इकठ्ठे होने का सबब तो जानते ही होंगे। फिर भी मैं एक बार फिर आपको बता देता हूं।
हम यहां इकठ्ठा हुए हैं,
हमारी आजादी के लिए।
हमारे धर्म के लिए,
हमारे डाकू धर्म के लिए।
और आजादी इस थोपे गए, ब्रह्मचर्य से।
मै आपका चुना हुआ सरदार विलाश,
आपको वह सब दुंगा, जिसके लिए आप तरसते आए हैं। आप किसी भी लड़की से शादी कर सकते हो। हम पुजारी का जिवन नहीं जीयेगे। जैसे ऋषभ हमें जीने पर मजबुर कर रहा है।
( तभी उनमें से एक व्यक्ति बोला)
लेकिन ये होगा कैसे ?
ऋषभ एक समझदार और चालाक व्यक्ति हैं। उसे छकाना आसान न होगा।
और कहीं उसे हमारी इन बातों का पता चल गया तो, हमारी खैर नहीं।
( इस बात पर विलाश हंस पडा। फिर कहने लगा)
' इश्क ने हमें नाकारा बना दिया गालिब,
वरना हम भी आदमी थे कुछ काम के।'
यह शेर आज ऋषभ पर एकदम ठीक बेठता है।
आपके सरदार जनाब ऋषभदेव आजकल प्यार में है।
इस बात पर एक और टोले का व्यक्ति बोल उठा। अरे कहीं वो लड़की तो नहीं। जो अक्सर हमारे आश्रम आ-जाया करती है।
अरे बड़ा अच्छा नाम था, क्या नाम था उसका !
तभी विलाश बोल उठा, वृंदा।
हां, वृंदा। यही नाम है उसका।
तो भाईयों प्लान एकदम आसान है।
ऋषभ के हिसाब से हमारा प्लान यह है की,
आज से दो दिन बाद ऋषभ और वृंदा की शादी होगी। तो उस दरमीयान राजभा की हवेली में ना के बराबर लोग होंगे। तो वहां जब शादी हो रही होगी। ठीक उसी वक्त आप लोग वहां चोरी करोंगे। और सारा धन लूट लोगे।
ऋषभ कल आपको ये बताएगा। क्योंकि आज इस बारे में हमारी बात हूई थी। मगर जो नहीं बताएगा। वो ये है कि, जब आप वहां चोरी करोंगे। तब वहां पुलिस आएगी और आप सबको गीरफ्तार कर लेगी। जिससे आप सबसे उसका वास्ता खत्म हो जाएगा। फिर वो हमारे इतने सालों की कमाई हूई दौलत से अपनी जिंदगी आराम से काटेगा।
लेकिन वो ये नहीं जानता कि, मैं विलाश। उसके इस घिनोने काम में उसके साथ नहीं हु। बल्कि अपने साथीयों के साथ हु।
इस बात पर सारे साथी खुश हो गए। और कहने लगे,
जय हो सरदार। जय हो।
( यह एक तरह का उनका नारा था। जिससे आत्मविश्वास बढ़ता था।)
तो हमारा प्लान ये रहेगा। जब वो शादि कर रहा होगा। उस वक्त हम राजभा की हवेली नहीं, बल्कि हमारा इकठ्ठा किया हुआ धन लूटेंगे। जो कहा रखा है, वो मैं जान चुका हु। वहां हवेली पर पुलिस हमारा इंतजार करेगी पर हाथ कुछ नहीं लगेगा।
हां एक चीज जरुर हाथ लगेगी। लेकिन हवेली पर नहीं शादी के मंडप पर।
(एक साथी बोल पड़ा, वो क्या ?)
वो ऋषभदेव एक खुखार चोर जिसने कई सारी चोरीया की है और साथ में खून भी।
और ये खबर पुलिस को देंगे हम।
इससे वहां हमारा दुश्मन गीरफ्तार होगा। हमारा धन हमारे पास, और साथ ही हम भी फूर हो जाएंगे। इस चिरोली से।
अब बताओ किसी को किसी तरह की परेशानी ?
इस बात पर सब बोल उठे, नहीं सरदार।
विलाश- तो उठाओ अपने पास पड़े प्याले।
चलो हो जाए, एक जाम आजादी के नाम।
इस बात पर वहां पड़े ग्लाश सबने उठा लिए और अपने हाथको प्याले के साथ हवामे उठा दिये।
फिर सब बोल उठे, हां। एक जाम आजादी के नाम।
विलाश, ये जाम जिंदगी के नाम।
और फिर एक साथ सबने प्यालो को मुंह से लगाया। और एक ही सांस में घटक गये। सारी की सारी शराब।
फिर तो सोती रात के साथ मशाल से चमकती आंखों ने खूब मजे किए। और तब तक किए, जबतक जामने उन्हें बैहोशी के आलम में सुला न दिया।
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तरू, राजविरभा सब परेशान,
राजभा के कमरे के बहार खड़े हैं। क्योंकि खुदीराम वृंदा को लेकर जैसे ही आया। तब से राजभा और वृंदा उस कमरे में जो घुसे है, अब तक बहार नहीं आए।
तरू- राजवीर बेटा देखना अंदर क्या हो रहा है ?
मुझे तो बहुत डर लग रहा है। तु तो जानता है, अपने बाबुसा का गुस्सा। कहीं कुछ कर न दे।
राजवीर- मासा, आप कैसी बात कर रही है। कमरा अंदर से बंद है। मुझे कैसे पता चलेगा, अंदर क्या हो रहा है। आप चींता ना करें। सब ठीक होगा।
तभी कमरे का दरवाजा खुला और वृंदा खुशी के मारे चहचहाते हुए बहार आयी।
मासा, बाबुसा मान गए। अब तो आप शादी की तैयारी करो। कल मेरी शादी है।
मै ये खुशखबरी मीत को बताकर आती हुं।
ये सुनकर सब अवाक रह गए। किसी के दीमाग पर कुछ न आया। कोई सवाल पुछे की,
क्या कहा वृंदा तुमने ?
जरा फिर से दोहराना।
उससे पहले वो जा चुकी थी। उसकी ये तेजी, उसके प्यार की हद बता रही थी। की वो ऋषभ से किस तरह प्यार करती थी।
जब वृंदा से जवाब न मीला। तो सब राजभा की तरफ मुड़े। पहली बात तो ये की, राजभा शादी के लिए हां। केसे कर सकता है ?
तरु धिरेसे राजभा की तरफ आगे बढ़ी और कहने लगी। ये सब क्या है ?
राजभा, तुम चींता मत करो। मै सब संभाल लुंगा।
तरु, क्या संभालोगे तुम ?
और कल के कल शादी ?
राजभा- ये शादी नहीं होगी। मै होने नहीं दुंगा।
उसे तो मैं फांसी पर चढ़ाऊंगा। इस बार नहीं छोडुगा उसे।
तरु, क्या कह रहे हो तुम। इस बार नहीं छोडुगा से, क्या मतलब है आपका ?
और तुम्हारा ऐसा करने से,
वृंदा के ऊपर क्या असर पड़ेगा जानते हो तुम ?
राजभा, कुछ नहीं होगा उसे। क्योंकि वो मेरी बेटी है। और इस बात पर मुझे उस पर गर्व है।
इतना कहकर राजभा वापस अपने कमरे में चला गया। जबकि तरु कयी सारे सवालों में घिर गयी। मानो कोई जाल ऊपर आ पड़ा है, और नीकलना काफी मुश्किल।
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ऋषभ नहाकर अभी अपनी लूंगी बांध ही रहा था, की उसके तंबू में वृंदा घुस आयी।
ओह, मीत। तुम जानते नहीं हो क्या हुआ है!
अगर सुनोगे तो कानों पर विश्वास नहीं होगा।
कहते हुए, उसने ऋषभ की दोनों बाजुओं को अपने हाथों से पकड़ा और गोल धुमाने लगी। इससे ऋषभ के हाथ में पकड़ी हुई लूंगी। जो अभी तक पुरी तरह बंधी नहीं थी। वो छुट गयी।
इससे उनके पैर एक-दूसरे में उलझे और दौनो धडामसे जमीन पर आ गीरे।
लेकिन एक-दुसरे की बाहों में। ऋषभ का एक हाथ वृंदा के सर पर था, तो दूसरा कमर पर। शायद कहीं वृंदा को चोट न लग जाए। उसी खयाल से ये, उसने किया होगा।
गीरने के बाद दोनों ने एक दूसरे को देखा। फिर जोर से हंसने लगे।
ऋषभ- वृंदा तुम सचमे पागल हो।
वृंदा- हां, वो तो मैं हूं। तुम्हारे प्यार में।
ऋषभ- ये ज्यादा फिल्मी हो रहा है।
वृंदा- तो ठीक है। ये सुनो, ये बिलकुल भी फिल्मी नहीं है। बाबुसा जो है, वो....।
ऋषभ- हां, क्या बाबुसा ?
वृंदा- हां तो बाबुसा,( फिर एक ही सांस में बोल पड़ी) हमारी शादी के लिए मान गए।
ऋषभ- क्या सच में ?
वृंदा- हां मीत हां। बाबुसा मान गए हैं। और जैसा हमने तय किया था। शादी कल ही होगी।
ऋषभ- मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा की, हमारी शादी हो रही है। और वो भी कल।
कहते हुए, उसने वृंदा को गले लगा लिया।
वृंदा- तो ठीक है। अब मैं चलती हूं। बहोत सारे काम बाकी है। अब कल मीलेगे। सीधे शादी के मंडप में।
अलवीदा, मीत पटेल।
और ये आखरी शब्द कुछ अलग ही लहजे के थे।
ऋषभ को अजीब भी लगा। मगर इतनी खुशी की बातो ने सब भुला दिया।
तो ठीक है। जाने-ए-तमन्ना कल दीदार होता है आपका। कहकर ऋषभ ने वृंदा को विदा दी।
और देखता रहा उसे, जबतक वो उसकी द्रष्टी के पार न हो गयी। और फिर शादी के सपनों ने और कामों ने उसे उलझा दिया।
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आज की सुबह चीरोली के हर एक शक्स के लिए। एक उम्मीद, एक सपना लेकर आयी है। हरेक के दिमाग में एक योजना है।
तरू अपनी बेटी की शादी और बिदाई का सपना लिए है।
तो राजभा शादी के फेरो के बिचोबिच ऋषभ को गीरफ्तार करवाने की फिराक में है।
ऋषभ अपनी शादी और वृंदा को शादी के जोड़े में देखने के सपने देख रहा है।
जब की उसकी टोली के लोग। उसका लूटा सोना लुटने की फिराक में हैं।
विलाश, ऋषभ को तैयार कर रहा है। मगर दिमाग में टोली का सरदार बनने की आशा उछाल मार रही है।
पुलिस को हर जगह से फोन जा चुका है। वो भी गुनाहगारो को पकड़ने के लिए तैयार बैठी है।
जगह, चीरोली का पवीत्र महादेव का मंदिर।
समय, फेरो के मुहूर्त से पंद्रह मिनट पीछे चल रहा है।
मंदिर रंगीन फूलों से सजा हुआ है। जबकि मंडप गैदे के फूलों से सजकर एकदम पीला पड़ा है। पंडित अपने मंत्रो से वातावरण में सुगम मीलन की बाणी पखेर रहा है।
अतीथी कुछ ज्यादा नहीं बुलाए गए हैं। मगर जो भी है सब परीचीत है। विलाश ऋषभ का उत्साह बढ़ाने के लिए। उसके ठीक बगल में बैठा है। जबकि कुछ साथी, सामने बैठक व्यवस्था का ध्यान रख रहे हैं।
लड़की वालों की ओर से वैसे कुछ ज्यादा लोग नहीं है।
मगर जो है, वो खुश हैं।
ऋषभने आज दुल्हा बनने में कोई कमी ना रखी है। बैंगनी मोजडी में सोने की भरावट कर डीजाइन बनवाई है। सफेद शेरवानी में नीचे की तरफ फूलों की की भरावट। जिसमें रंग हिरो से जड़ा है। तो दोनों कांधों पर शेर के मुख की आकृति बनाई गई है। जो सोने की जरी से बनवाई है। जीसमे आंखें लाल हीरो की बनवाई है।
कुर्ते कि बाई ओर यानी ठीक दिल पर मोर की आकृति का ब्रोच लगाया है। जो बिलकुल वैसा ही है। जैसा वृंदा और पांखी के पास था। नीचे बैंगनी धोती है। जिसकी बोर्डर सफेद दोरो से सुसज्जित है। तो सरपर एक सुनहरी मारवाड़ी पघड़ी उसे एक राजकुमार का दर्जा दे रही है।
वो मंडप में बैठा फुले नहीं समा रहा है। खुशी का कोई ठिकाना नहीं। क्योंकि उसे सबसे खूबसूरत और मनपसंद लड़की मीलने वाली थी। जो उसे इतना प्यार करती थी। जीतना कोई नहीं कर सकता।
और फिर वो सोचने लगा। अगर मैं इतना खुश हु। तो वृंदा कितनी खुश होगी। वो तो पागल हो रही होगी।
तभी उसके खयालो में एक आवाजने खलल की,
वो पंडित था।
उसने कहा, वधु को बुलाइए।
फेरो का मुहूर्त हो रहा है।
ये सुनकर तरू वृंदा को लेने कमरे में चल दी।
ऋषभ ये सोचने लगा कि,
आज मेरी वृंदा कैसी लग रही होगी ?
उसने क्या पहना होगा ?
तभी तरू वहां दौड़ती हुई आई और कहने लगी। वृंदा के बाबा, देखो वृंदा कमरे में नहीं है।
राजभा, क्या मतलब कमरे में नहीं है। वही होगी, आसपास देखो वोसरुम में होगी।
तरू- नहीं है। मैंने सब जगह देख लिया है।
ये सुन ऋषभ कुछ समझ ही नहीं पा रहा था। वह खड़ा होकर सीधा कमरे की तरफ भागा। जिसमें वृंदा थी। उसके साथ बाकी सबभी उसके पीछे हो लिए।
अंदर कमरे में देखा, तो सामान बिखरा पड़ा है। तैयार होने के लिए रखा गया। आयना भी टुटा पड़ा है। और साथ में जमीन पर कुछ खून सना पड़ा है।
ये बाक्या किसी जोर-जपटी का इशारा दे रहा था। ऊपर से पीछे का दरवाजा खुला पड़ा था। जो कह रहा था। जो भी गया है, यही से गया है।
ऋषभ दरवाजा खोल पीछे भागा। मगर कुछ ना हाथ लगा। वो निराश होकर वहीं अपने पैरों पर गीर पड़ा। सारे सपने विखर गये। कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
तभी उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा। जिसके हाथ पर सिर्फ एक कडा दिखाई पड़ा। जिस पर दो हंसो की आकृति बनी हुई थी।
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- जारी