तस्वीर में अवांछित
(कहानी - पंकज सुबीर)
(2)
रंजन उठ कर टीवी चालू करना चाह ही रहा था कि अचानक वही पता नहीं कौन से नाम वाला आ गया ‘‘क्या बात है आज तो घर पर ही हैं।’’ ‘‘हाँ बस ..... आइये ना ’’ कहते हुए रंजन ने उस आदमी को बैठने का इशारा किया। कुर्सी पर बैठने के बाद उस पता नहीं कौन से नाम वाले आदमी ने सामने टेबल पर रखी किताब उठा ली और उसे पलटने लगा। रंजन ग़ौर से उस राधेश्याम, घनश्याम या शायद दिनेश को देखने लगा। अभी दो रोज़ पहले इंदौर के उस कार्यक्रम में रविकांत मिला था, काफी दिनों बाद मुलाकात हुई थी मगर अभी भी उसे वह उतना ही फूहड़ लगा था। मिलते ही बोला ‘‘चलो गुरू आज तुम्हें एक धांसू चुटकुला सुनाते हैं’’ चुटकुले का नाम सुनते ही उसे घबराहट होने लगी क्योंकि चुटकुले का मतलब हंसना और हंसने जैसे फालतू काम तो वो कब का छोड़ चुका है। उसकी अनिच्छा के बाद भी रविकांत ने उसे घेरकर जबरदस्ती पूरा चुटकुला सुना दिया था। एक आदमी जब भी बाहर से आता तो पड़ोस के बच्चों को रोककर पूछता जानते हो ताजमहल कहाँ है, लाल किला कहाँ है या फिर गेटवे आफ इंडिया कहाँ है ? बच्चे बिचारे हर बार अनभिज्ञता से सर हिला देते तो वो हिकारत से कहता जानोगे भी कैसे, हमेशा घर में ही तो रहते हो, बाहर निकलो तो पता चले। एक बार उस आदमी के पूछने से पहले ही बच्चों ने पूछ लिया जानते हो रामलाल कौन है उस आदमी ने सर हिला कर मना किया तो बच्चे बोले जानोगे भी कैसे हमेशा बाहर जो रहते हो कभी घर में रहो तो पता चले। चुटकुला सुनाने के बाद अत्यंत फूहड़ता के साथ देर तक हंसता रहा था रविकांत।
रंजन को लगा वह पड़ोस का जाने कौन से नाम वाला व्यक्ति चोर नज़रों से इधर-उधर देख रहा है। मगर वह तो किताब पढ़ रहा है इधर-उधर कैसे देख सकता है। घर और मोहल्ले की ख़बरें सुनाने वाली स्त्री ने चाय और बिस्कुट लाकर टेबल पर रख दिया, जैसे ही वह जाने के लिए मुड़ी कि रामलाल बोला (राम लाल .......? उस पडोसी का नाम रामलाल कैसे हो सकता है...? रामलाल तो रविकांत के चुटकुले वाले का नाम था ) ‘‘भाभी जी ग़ैस का नंबर मैंने लगा दिया है आज आ जाएगी आपकी टंकी’’। उस स्त्री ने ठिठक कर सुना और जैसे ही रामलाल (फिर रामलाल .......?) का वाक्य समाप्त हुआ वह धीमे से मुस्कुराकर आगे बढ़ गई। रामलाल (...? ) चाय का कप बढ़ाते हुए बोला ‘‘लीजिए ना भाई साहब ’’ पर ये वाक्य तो रंजन को बोलना था .......?
उस दिन जब वो राघव को कम्प्यूटर पर कार्य करते हुए देख रहा था तो उसने देखा कि राघव ने एक तस्वीर में से एक भरा-पूरा चेहरा हटा कर वहाँ दूसरा चेहरा रख दिया है। आश्चर्यचकित रह गया था वह ये देख कर, ऐसा भी कर सकता है कम्प्यूटर ? राघव ने जवाब दिया था ‘‘हाँ इसमें क्या बड़ी बात है इस चेहरे को सेलेक्ट करके डीलिट करो और दूसरे चेहरे को कहीं से कॉपी करके लाओ और पेस्ट कर दो यहाँ पर, बन गया काम ’’। सेलेक्ट, डीलिट, कापी, पेस्ट अंग्रेजी के इन चार अक्षरों में उलझ कर रह गया था वह। कितना आसाान काम है। ‘‘क्या कम्प्यूटर में कुछ भी सेलेक्ट करके डीलिट किया जा सकता है ?’’
‘‘हाँ यही तो फर्क़ है कम्प्यूटर और ज़िंदगी में कि यहां आप वांछित को कापी पेस्ट करके ला सकते हैं और अवांछित को सेलेक्ट करके डीलिट कर सकते हैं’’ दार्शनिक की तरह उत्तर दिया था राघव ने।
घर लौट कर आने के बाद उसने सारे पुराने फोटो निकाल कर छांटना शुरू कर दिया था। किस-किस में से किस-किस को हटाना है और उसकी जगह पर किस-किस को लाना है। माँ अक्सर कहती हैं ‘‘इस फोटो में सब हैं बस तेरी इन्दौर वाली चाची ही नहीं हैं आतीं भी कैसे ? जब फोटो खिंच रहा था तब बुखार में पड़ी थी बिचारी’’। अब इन्दौर वाली चाची के बग़ैर तस्वीर अधूरी रह गई। ऐसे ही किसी न किसी के बग़ैर हमेशा अधूरी रह जाती है तस्वीर। ये तस्वीर की नियति ही है शायद कि वो हमेशा अधूरी ही रह जाती है, कुछ न कुछ, कोई न कोई छूट ही जाता है हमेशा, और उसकी जगह आ जाता है कोई न कोई ऐसा जिसे नहीं आना था। कभी इन्दौर वाली चाची छूट जाती हैं तो कभी झांसी वाली बुआ। कुछ फोटो में तो वह स्वयं भी नहीं है, पता चला कि उसके इंतज़ार में दस पन्द्रह मिनट रूके भी रहे थे सब, मगर वो जाने कहाँ खेल रहा था। बहुत ढूँढने के बाद भी नहीं मिला तो अख़िरकार खिंच गया फोटो। फोटो खिंचवाने वाले भी आख़िर कब तक बैठे रहते एक ही मुद्रा में ? आज जब उन तस्वीरों को देखता है तो नीचे दरी पर बैठे हुए सब नज़र आते हैं, बस वही नहीं होता है।
कितना मुश्किल होता है मुक़म्मल होना, कितना ही प्रयास करो कुछ न कुछ तो छूटता ही है। सारी तस्वीरों को ले जाकर राघव को दे आया था वो और समझा भी आया था कि कहाँ-कहाँ से किस-किस को हटाना है और किस-किस को बढ़ाना है। उस दिन के बाद से थोड़ा निश्चिंत है वो, कि कम से कम कुछ तस्वीरें तो अब उसके पास भी ऐसी होंगी जो मुक़म्मल होंगी। कहीं कुछ भी नहीं छूटा होगा, और कहीं कुछ भी अवांछित नहीं होगा। एक तस्वीर में बैठी हुई अपरिचित महिला जिसे माँ अपनी पूरी स्मरण शक्ति लगाने के बाद भी स्मृत नहीं कर पाई हैं, उसके स्थान पर इंदिरा गांधी को बैठाने का कह आया था राघव से। सही भी है कोई अपरिचित बैठा है तो उससे अच्छा तो इंदिरा गांधी को ही बैठा लो।
चाय पीकर और कुछ इधर-उधर की बातें करने के बाद रामलाल उठ कर चला गया। रंजन को लगा कि जाते-जाते उसने एक ठंडी और निराशा भरी सांस भी छोड़ी थी। रंजन उस जाते हुए रामलाल की पीठ को देखता रहा, ये सोचकर कि शायद वह मुड़कर देखेगा लेकिन रामलाल समझदार था वह बिना मुड़े ही ओझल हो गया। उसके जाते ही कमरे में पुन शांति छा गई। रंजन फिर अपने हाथ में पकड़ी पुस्तक का छूटा हुआ सिरा पकड़ने का प्रयास करने लगा। पुस्तक में रंजन का ध्यान कुछ ही देर में भंग हो गया। कमरे के टीवी के चालू हो जाने के कारण। रंजन ने देखा कि उन एक या शायद दो बच्चों में से बड़ी वाली लड़की कमरे में पड़े दीवान पर गाव का सहरा लेकर अधलेटी है, हाथ में रिमोट कंट्रोल है और कुछ लापरवाही सी मुद्रा में टीवी पर आ रही फिल्म देख रही है।
रंजन का ध्यान भी किताब से हटकर टीवी पर केंद्रित हो गया। कोई नई फिल्म वहाँ चल रही थी। हीरोइन शादी शुदा है उसका पति कहीं बाहर गया है ओर वो अपने कॉलेज के ज़माने के मित्र से मिलने उसके फ्लैट पर आई हुई है। वो हट्टा-कट्टा मित्र हीरोइन से बात करने के बजाय शारिरिक क्रियाएँ अधिक कर रहा है। रंजन का मन भी फिल्म से जुड़ गया। हीरोइन का मन अभी भी मर्यादा और पतिव्रता जैसी बातों में कुछ उलझा है हालांकि वह उस मित्र का कुछ विशेष प्रतिरोध नहीं कर रही है। उस मित्र ने मर्यादा के प्रश्न में उलझी हीरोइन के शरीर से कुछ अत्यंत जरूरी वस्त्रों को छोड़कर सब कुछ उतार दिया है। दोनों बेडरूम में पलंग पर पहुंच गए हैं जहाँ मित्र पुरुष हो गया है और हीरोइन अभी भी अपने पति को लेकर प्रश्नों में उलझी हुई है। वात्स्यायन द्वारा वर्णित क्रियाकलापों का सजीव चित्रण प्रारंभ होते ही पृष्ठभूमि में एक गीत गूंजना भी शुरू हो गया है ‘‘भीगे होंठ तेरे, प्यासा मन मेरा, लगे अब्र सा, मुझे तन तेरा ........ ’’ ‘‘पापा ये अब्र क्या होता है ? ’’ फिल्म के दृष्य में उलझे रंजन को ये सवाल अचानक आकर लगा। उसने टीवी से नज़र घुमाई तो देखा लड़की सवालिया नज़रों से उसकी ओर देख रही है। ‘‘अरे ये भी तो है यहीं पर मुझे तो ध्यान ही नहीं रहा’’ मन ही मन सोचते हुए रंजन ने कहा ‘‘चलो बंद करो ये टीवी, मुझे पढ़ना है’’ रंजन की तेज़ आवाज़ सुनकर अंदर से स्त्री भी कमरे में आ गई ‘‘क्या हुआ ? ’’। ‘‘मुझे मर्डर देखना है’’ लड़की ने विरोधात्मक स्वर में कहा। ‘‘कितनी बार तो देख चुकी हो ना ? सीडी तो लाकर दे दी है तुम्हें । कल लगाकर देख लेना, अभी पापा को पढ़ने दो ’’ स्त्री ने निर्णयात्यक अंदाज में झिड़का। रंजन ने हैरत के साथ स्त्री को देखा, इस फिल्म की सीडी इस स्त्री ने लाकर लड़की को दी है ? ऐसी फिल्म की ? मगर स्त्री के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे, उसने लड़की के हाथ से रिमोट लिया और टीवी बंद कर दिया लगभग नग्न अवस्था में लिपटे मित्र और हीरोइन का दृष्य एक झटके के साथ बुझ गया। लड़की जो पूरे मन से उस दृष्य में डूबी हुई थी, भुनभुनाती हुई अंदर चली गई।
उस दिन जब राघव का फ़ोन आया था कि आकर अपने फोटो ग्राफ़्स की फाइनल सेटिंग को देख लो, तो शाम को बड़ी उत्सुकता के साथ पहुंचा था वो। कम्प्यूटर के मानीटर की स्क्रीन पर राघव ने उसे वो सारे फोटो एक-एक करके दिखाने शुरू किये थे। सारी की सारी मुकम्मल तस्वीरें । जहाँ जो-जो अवांछित था उसके स्थान पर कोई न कोई वांछित चेहरा लगा हुआ था। बड़ी हैरत के साथ देख रहा था रंजन उन तस्वीरों को। उसके पूछने पर कि यहाँ जो पहले से बैठा हुआ था वो कहाँ गया ? राघव ने धीरे से वांछित चेहरे पर माउस से क्लिक किया और उसे खींचा। खींचते ही वो चेहरा हटा और उसके नीचे से वही नज़र आने लगा ‘‘अवांछित ’’ ‘‘अरे ये तो यहीं है। ’’ उसने आश्चर्य के साथ कहा था। ‘‘हाँ और रहेगा भी क्योंकि शरीर तो उसी का उपयोग किया है केवल चेहरा ही बदल दिया है, पुराने चेहरे के ऊपर ये नया चेहरा पेस्ट कर दिया है’’ ठंडे स्वर में कहा था राघव ने। ‘‘ये पूरी तरह से नहीं हट सकता ? ’’ रंजन ने पूछा था। ‘‘हट सकता है लेकिन वह बहुत मुश्किल प्रक्रिया है, इसी मुद्रा में उस दूसरे वाले की भी तस्वीर होना चाहिए जो आमतौर पर थोड़ा कठिन होता है। इसीलिए हम किसी को भी पूरी तरह से नहीं हटाते केवल चेहरा ही लगाकर और उसे शरीर के साथ मेच करके काम चला लेते हैं । ये इतनी सफाई से होता है कि किसी को पता भी नहीं चलता। पूरी तरह से हटा देने के मुकाबले काफी आसान है केवल चेहरा बदल देना’’ राधव ने थोड़ी लापरवाही के साथ उत्तर दिया था। कुछ निराश हो गया था रंजन अवांछित तो अब भी वहीं का वहीं है। शरीर तो उसी का है जिस पर जयपुर वाले फूफाजी का चेहरा लाकर लगा दिया गया है। हो सकता है किसी दिन रंजन किसी को ये अलबम दिखा रहा हो ओर जैसे ही वह इस फोटो पर उंगली रखकर कहे कि ये हैं हमारे जयपुर वाले फूफाजी और वैसे ही ये अवांछित हाथों से चेहरे को हटाते हुए बोले ‘‘जी नहीं ये मैं हूँ ......मैं ’’ । और इसी तरह एक एक करके चेहरों से ढंके हुए सारे के सारे अवांछित अपने ऊपर लगे चेहरों को हटा कर हाथ में ले लें और ज़ोर-ज़ोर से चीखने लगें ‘‘ये मैं हूँ, ये मैं हूँ, ये मैं हूँ ’’। सोचते ही सोचते रंजन के माथे पर पसीना चुहचुहा आया था। ‘‘ठीक है ? फाइनल कर दूँ इन सबको ? ’’ राघव ने अवांछित के ऊपर लगाए चेहरे को अपनी स्थान पर वापस सेट करते हुए पूछा था। ‘‘नहीं यार रहने दे’’ कहते हुए रंजन टेबल पर फ़ैली अपनी तस्वीरों को समटेने लगा था। ‘‘क्यों ? क्या हो गया ? ’’ हैरानी के साथ उसकी तरफ देखने हुए पूछा था राघव ने। ‘‘नहीं कुछ नहीं, सॉरी यार तुझे फ़िज़ूल ही परेशान किया।’’ कहते हुए अपनी तस्वीरें समेट कर राघव को उसी प्रकार हैरत की अवस्था में छोड़ कर चला आया था वो वहाँ से।
क्रमश...