कर्म पथ पर
Chapter 30
माधुरी और उसके परिवार के साथ जो कुछ हुआ उसे सुनकर वृंदा को हैमिल्टन पर बहुत क्रोध आया।
"रंजन मैं समझ सकती हूँ कि माधुरी को क्या सहना पड़ा होगा। उस हैमिल्टन की वहशियत को मैंने भी झेला है। उस दिन मेरे भीतर सोई ना जाने कौन सी शक्ति जाग उठी थी कि मैं बच कर भाग निकली थी। अगर मैं हिम्मत हार गई होती तो उसने मुझे मरवा दिया होता।"
"दीदी आप कितनी हिम्मती हैं ये हमें अच्छी तरह मालूम है। आपकी हिम्मत तो हमें भी ताकत देती है।"
वृंदा माधुरी की पीड़ा से द्रवित भी थी और हैमिल्टन के प्रति नफ़रत भी महसूस कर रही थी। वह चाहती थी कि हैमिल्टन का ये जो घिनौना सच सामने आया है उसे जल्द से जल्द लोगों के सामने लाया जाए।
साथ ही रंजन ने जिस तरह से सारा सच बाहर निकाला था, उसके लिए मन ही मन गर्व महसूस कर रही थी। उसने रंजन से कहा,
"तुमने सचमुच काबिले तारीफ काम किया है। मुझे तुम पर बहुत गर्व हो रहा है।"
वृंदा के मुंह से अपनी तारीफ सुनकर रंजन गंभीर हो गया। उसे चुप देखकर वृंदा ने कहा,
"बात क्या है रंजन ? तुम तो गंभीर हो गए। मैं जानती हूँ कि यह काम आसान नहीं था। इसलिए मैं बहुत खुश हूँ।"
रंजन जानता था कि वृंदा जय को बिल्कुल भी पसंद नहीं करती है। वह जय के लिए अच्छी राय नहीं रखती है। सच जानकर हो सकता है कि वह गुस्सा हो जाए। पर वह यह भी अच्छी तरह समझता था कि जिस काम के लिए उसकी तारीफ हो रही है, वह जय के बिना संभव नहीं हो पाता। तारीफ का हकदार वह नहीं जय है।
"क्या हुआ रंजन ? कुछ बोल क्यों नहीं रहे हो ? अच्छा यह बताओ कि तुमने यह काम किया कैसे ?"
अब रंजन से चुप नहीं रहा जा रहा था। वह बोला,
"दीदी जिस काम के लिए आप मेरी तारीफ कर रही हैं वह मैंने नहीं किया। मैं इस तारीफ का हकदार नहीं हूँ।"
वृंदा ने अचरज से पूँछा,
"तो फिर कौन है तारीफ का हकदार ?"
रंजन कुछ झिझकते हुए बोला,
"जयदेव टंडन...."
रंजन ने जो नाम लिया उसे सुनकर वृंदा चौंक गई। उसे विश्वास नहीं हो रहा था।
"क्या नाम लिया तुमने ?"
"जयदेव टंडन..."
इस बार रंजन ने बिना किसी झिझक के साफ साफ कहा।
"मैं जानता हूँ दीदी कि आप जय भाई के लिए अच्छी राय नहीं रखती हैं। सच कहूँ तो पहले मैं भी आपकी तरह ही सोंचता था। इसलिए जब मदन भाई उन्हें मेरे पास यह कह कर लाए थे कि वह हमारे साथ काम करना चाहते हैं तो मुझे उनकी बात पर यकीन नहीं हुआ था। पर मदन भाई के ज़ोर देने पर मैं मान गया।"
जो कुछ रंजन कह रहा था वह वृंदा के लिए अविश्वसनीय था। रंजन उसके अविश्वास को समझ रहा था।
"दीदी जैसे आप अभी मेरी बात पर यकीन नहीं कर पा रही हैं वैसे ही मैं भी मदन भाई की बात पर यकीन नहीं कर पाया था। मुझे लगा था कि एक अमीर घर के बिगड़े लड़के की नई सनक है। जब वास्तव में करने की बारी आएगी तो भाग खड़ा होगा। पर दीदी जय भाई ने तो मुझे बिल्कुल ही गलत साबित कर दिया।"
वृंदा हैरान सी रंजन की बात सुन रही थी।
"सच कहूँ तो यदि जय भाई ना होते तो मेरे लिए कुछ भी पता कर पाना मुमकिन ना होता। जय भाई ने बड़े ही धैर्य और अपनेपन से बात करते हुए माधुरी के माता पिता को इस बात का यकीन दिलाया कि हम उनकी मदद के लिए उनसे सारी बात जानने आए हैं।"
वृंदा अभी भी पूरी तरह यकीन नहीं कर पा रही थी। वह बोली,
"रंजन अगर किसी और ने मुझसे यह सब कहा होता तो मैं उसे डांट कर भगा देती। पर तुम कह रहे हो तो मैं यकीन करने का प्रयास कर रही हूँ।"
"दीदी मैं तो यही कहूँगा कि अब तक आपने जय भाई के लिए जो राय बनाई है उसे बदल दीजिए। वह सचमुच हमारे साथ काम करना चाहते हैं। जय भाई में आए बदलाव को देखकर मैं कह सकता हूँ कि इंसान बदल सकता है।"
वृंदा रंजन की बात पर विचार करने लगी। रंजन उठते हुए बोला,
"चलता हूँ दीदी। आप माधुरी की कहानी पर एक अच्छी सी रिपोर्ट तैयार कीजिए। हैमिल्टन के चेहरे पर पड़ा नकाब हटाना ज़रूरी है।"
रंजन चला गया। वृंदा उसी तरह से बैठी उस बात पर भरोसा करने का प्रयास कर रही थी जो रंजन ने उसे बताई थी।
वृंदा ने अभी अभी माधुरी की रिपोर्ट लिख कर खत्म की थी। रिपोर्ट पर दोबारा एक नज़र डालने के बाद उसे पूरा आश्वासन हो गया कि इसके छपते ही हैमिल्टन पागल हो उठेगा। वह हैमिल्टन को अपनी कलम के ज़रिए कड़ी चोट पहुँचाना चाहती थी। यह रिपोर्ट उसके अहंकार को गहरी चोट देने वाली थी।
वह भुवनदा के लौटने की प्रतीक्षा करने लगी। ताकि उन्हें एक बार रिपोर्ट दिखा सके। तभी बंसी ने आकर बताया कि मदन आया है। वह उठ कर आंगन में आई तो मदन चारपाई पर बैठा था। वह भी एक मोढ़ा खींच कर पास में बैठ गई।
मदन ने पूँछा,
"रंजन ने बताया कि वह हैमिल्टन के खिलाफ एक बहुत तगड़ी कहानी लेकर आया है। अब तो तुम उस हैमिल्टन को अच्छा सबक सिखा सकती हो।"
वृंदा ने खुश होकर कहा,
"मैंने भी ऐसी रिपोर्ट तैयार की है कि वह हिल जाएगा।"
"पर वह घायल शेर है। एक बार मात खा चुका है। इस बार की हार बर्दाश्त नहीं कर सकेगा। पहले से ज्यादा खतरनाक हो जाएगा।"
वृंदा ने कहा,
"यही तो मैं चाहती थी। उसे ऐसी चोट पहुँचाऊँ कि बिलबिला उठे। ऐसे में अपनी बुद्धि खोकर वह कोई ना कोई गलती ज़रूर करेगा। हमें उसका ही फायदा उठाना है।"
"हाँ पर याद रखना कि हमें भी जोश में होश नहीं खोना है।"
वृंदा ने सर हिला कर उसे आश्वस्त किया। उसने मदन की तरफ शिकायत भरी नज़र डाल कर कहा,
"एक बात बताओ। तुम उसे रंजन के पास क्यों ले गए थे ?"
मदन समझ गया कि वृंदा किसके बारे में बात कर रही है पर अंजान बनते हुए बोला,
"किसकी बात कर रही हो तुम ?"
वृंदा ने उसी तरह शिकायती लहज़े में कहा,
"बनो मत.... तुम जानते हो कि मैं किसकी बात कर रही हूँ।"
"हाँ मैं जानता हूँ कि तुम किसकी बात कर रही हो। पर फिर भी मैं चाहूँगा कि तुम उसका नाम लो।"
वृंदा ने कुछ गुस्से में कहा,
"तुम जानते हो कि मैं उसे पसंद नहीं करती।"
मदन ने भी कुछ गुस्से से कहा,
"तुम अब जय के साथ ज्यादती कर रही हो। तुम्हें पता है कि जिस रिपोर्ट के दम पर तुम हैमिल्टन को घेरने की कोशिश कर रही हो उसके लिए असली मेहनत जय ने की है।"
मदन की बात सुनकर वृंदा चुप हो गई। मदन को भी अपने लहज़े पर पछतावा हुआ। उसने कुछ नर्मी से कहा,
"वृंदा तुमने जय के लिए अपने मन में जो छवि बना ली है उसे बदलने की कोशिश नहीं कर रही हो। जय पहले जो कुछ भी किया उसमें उसका कोई दोष नहीं है। उसकी परवरिश जिस माहौल में हुई है वहाँ अपने स्वार्थ के लिए अंग्रेजों की चाटुकारी करना ही सबसे बड़ी समझदारी माना जाता है।"
"तो फिर मैं अगर उसे नापसंद करती हूँ तो इसमें गलत क्या है ?"
"गलत ये है कि तुम उसमें आए बदलाव को अनदेखा कर उसके लिए अपनी राय बदलने को तैयार नहीं हो। जय बदल गया है। वह भी अब उसी राह पर चलना चाहता है जिस पर हम चल रहे हैं।"
वृंदा पर उसकी बात का असर हुआ था। मदन ने कहा,
"ज़रा सोंच कर देखो वृंदा। हम लोग साधारण परिवार में पैदा हुए। हमने वही पीड़ा झेली है जो देश के तमाम साधारण लोगों की है। इसलिए हम उन लोगों के विरोध में आए हैं जो इसके ज़िम्मेदार हैं। पर जय तो मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुआ है। उसने कभी वह तकलीफें नहीं झेलीं। फिर भी आज वो हमारे साथ है। हमें उसके इस फैसले का सम्मान करना चाहिए।"
मदन की कही बात वृंदा को समझ आ गई थी। वह सोंच रही थी कि बात तो सही है। पर फिर भी उसके मन में कुछ था जो उसे जय पर यकीन करने से रोक रहा था। वह इसका कारण नहीं समझ पा रही थी।