शापित
आशीष दलाल
(२)
पूरे वाकये को आज अचानक ही याद करते हुए अपने हाथ में थाम रखे चाय के कप पर नमन की पकड़ मजबूत हो गई. चंद ही पलों में हथेली पर उभर आई पसीनें की बूंदों की वजह से कप नमन के हाथ से फिसलकर दूर जा गिरा.
‘आज फिर से कप तोड़ दिया?’ आखिर हो क्या गया है तुझे?’ कप के टूटने की आवाज सुनकर सुनंदा नमन के कमरे में दौड़ी चली आई.
नमन ने जैसे सुनंदा की उपस्थिति महसूस ही न की. उसकी सूनी आंखें कमरे की खिड़की से बाहर दूर कुछ खोज रही थी.
‘बेटा, जानती हूं रोहित को तुझसे बहुत ही लगाव था और उसके प्रयासों की बदौलत ही तेरे पापा के जाने के बाद तू एम बी ए कर अच्छी नौकरी पा सका. लेकिन अब जो हो चुका है उसे भूलकर आगे बढ़ने में ही भलाई है. मरने वालों के पीछे दुखी होने से मृतात्मा दुखी होती है.’ सुनंदा का हाथ कंधे पर पाकर नमन की तंद्रा भंग हुई.
‘ये कैसे हो सकता है मम्मी? अभी तो बहुत सारा हिसाब किताब बाकी था.’ नमन के मुख से अचानक ही निकल गया.
‘कैसा हिसाब?’ नमन की बात सुनकर सुनंदा चौंक गई.
‘अं ... कुछ नहीं.... बस ऐसे.’ नमन की जैसे तन्द्रा टूटी और उसने बात को समेटते हुए जवाब दिया.
‘रोहित रोड एक्सीडेंट में मारा क्या गया तू तो जैसे पगला ही गया. तुझसे मजबूत मन वाली तो तेरी नीता आंटी है. इस घटना के दो महीनों के बाद ही हिम्मतकर नौकरी भी कर रही है और चिंटू को भी सम्हाल रही है.’ सुनंदा ने नमन को ताना मारते हुए कहा और वहां से जाने को हुई. तभी डोरबेल की आवाज सुनकर दरवाजा खोलने चली गई.
‘मौसी जी, चिंटू दूध पीने के लिए जिद कर रहा है. घर में दूध नहीं है और आज दूधवाला अभी तक नहीं आया.’ सुनंदा के दरवाजा खोलते ही नीता पूरे हक से घर में दाखिल होते हुए बोली.
‘क्यों बच्चे को रुला रही है. चल, देती हूं . अभी ही गर्म कर रखा है दूध.’ सुनंदा ने नीता ने थाम रखा गिलास लेते हुए कहा.
नीता सुनंदा के पीछे रसोई में चल दी. उसके पीछे चलता हुआ आठ वर्षीय चिंटू इधर उधर नजरें करते हुए नमन को कमरे में पाकर अन्दर उसके पास चला गया.
‘भैया, मुझे जादू दिखाओ न ! वो हाथ से अंगूठा अलग करने वाला जादू.’
‘आ गया मेरे शेर.’ नमन ने हाथ आगे बढ़ाकर चिंटू को अपनी गोद में ले लिया.
‘चल चिंटू. दूध पीने के बाद नहा धोकर आना. तुझे तो आज स्कूल नहीं जाना है पर मुझे ऑफिस के लिए देर हो रही है. तुझे नहलाए बिना जाऊंगी तो तेरी दादी दस बातें सुनाएंगी मुझे.’ तभी नीता ने चिंटू को आवाज लगाई.
‘नहीं, मम्मी मैं यहीं भैया के साथ खेलूंगा.’ चिंटू ने मना करते हुए कहा.
‘अभी जाओ चिंटू. नहाकर वापस आना. तब तक मैं भी नहा लूंगा. फिर हम दोनों अपनी अपनी मम्मी के ऑफिस जाने के बाद खूब खेलेंगे.’ नमन ने उसे अपनी गोद से उतारकर समझाते हुए कहा और वह दौड़कर अपनी मम्मी के पास चला गया. नीता ने मुस्कुराकर नमन की तरफ देखा और चिंटू को लेकर घर से बाहर निकल गई.
‘क्यों तुझे आज भी ऑफिस नहीं जाना है ? कल भी नहीं गया था.’ नीता और चिंटू के जाने के बाद दरवाजा बंद कर वापस अन्दर आते हुए सुनंदा ने नमन को घूरा.
‘नहीं मम्मी. मन नहीं है. वैसे भी कल रविवार की छुट्टी है तो अब सोमवार से ही जाऊंगा.’ नमन ने अपनी जगह से खड़े होते हुए जवाब दिया.
‘बड़ा जिद्दी है. अपनी मन की ही करता रहता है.’ बड़बड़ाते हुए सुनंदा ने फिर से एक कप चाय बनाई और उसे नमन को देकर वापस अपने काम में जुट गई.
चाय पीकर नमन अपनी जगह से उठकर बाथरूम में चला गया. जब तक वह नहा धोकर बाहर निकला सुनंदा घर के कामकाज निपटाकर ऑफिस जाने को तैयार हो रही थी. नमन ने पूजाघर में जाकर भगवान की तस्वीर के सामने हाथ जोड़े और वापस अपने कमरे में आकर खिड़की के पास बैठ गया. रोहित की अचानक रोड दुर्घटना में हुई असमय मृत्यु के दो महीने बीतने पर भी उसकी याद रह रहकर उसके मन को कचोट रही थी. बचपन में रोहित के द्वारा किए गए दुर्व्यवहार के बारें में थोड़ी समझ आने पर जब नमन को उसके पीछे की काली सच्चाई समझ आई तब से ही वह उस घटना को समय असमय याद कर बेचैन हो उठता. अपनी देह का उपभोग किसी पुरूष के द्वारा करने के छलावे से दहकती बदले की आग से उसके मन में वह अजीब सी गर्मी महसूस करने लगता. जब जब वह घटना उसके मन पर हावी होती तब तब वह पहले स्कूल / कॉलेज में छुट्टी मार लेता और फिर नौकरी लगने पर ऑफिस से यदाकदा छुट्टी ले लेता. रोहित की मृत्यु के बाद दो महीनों में वह लगभग दस दिनों की छुट्टी ले चुका था.
आज भी सुबह सुबह वही घटना आंखों के आगे तैरने से उसका मन ऑफिस जाने को न हुआ. सुबह से वह अपने आपको एक ऐसे पंछी की तरह महसूस कर रहा था जिसके पास उड़ने को आसमान तो था लेकिन पिंजरे की सलाखे उसे हंस हंसकर एक कैदी होने का अहसास दिलाकर बेचैन कर रही थी. अपने संग बचपन में दो तीन बार हुई इस तरह की घटना ने उसके पुख्त होते उसके पुरूष मन को छलनी कर दिया था. किशोर अवस्था पारकर कई दफा उसका मन रोहित द्वारा किए गए दुर्व्यवहार के बारें में बातकर उसने बदला लेने को हो उठता लेकिन फिर अगले ही पल न जाने कौन सी ईश्वरीय शक्ति उसे रोक देती. बढ़ती उम्र के संग देह उसका कार्य करना नहीं चूकती. जब भी वह दोस्तों के संग फिल्म देखने जाता तो फिल्म में दर्शायें जाने वाले हीरो हिरोइन के रोमांटिक और प्रणय दृश्यों को देखकर वह अपने संग हुई घटना को यादकर विचलित हो उठता. उसके इस तरह के असहज व्यवहार से कई दफा दोस्तों के बीच वह हंसी का पात्र भी बना. वह समझ नहीं पा रहा था कि जिन्दगी में घटित हुई दुर्घटना से बार बार वह असहज क्यों हो उठता है. क्यों उसके मन में अपराध की भावना घर करने लगती है. फिर धीरे धीरे अपने मन से अपनी लड़ाई खुद ही लड़ते हुए उसने अपने दोस्तों का दायरा सीमित कर दिया और सामाजिक उत्सवों में अपनी सहभागिता भी कम कर दी. अपने शरीर और मन पर हुए घावों को वह किसी से भी व्यक्त नहीं कर सकता था.
बचपन से लेकर अब तक वह कई दफा अपने शरीर को लेकर तरह तरह की अनुभूतियों से गुजर चुका था. किशोर से युवा होते हुए उसके शरीर में होते परिवर्तन और मन में उठती हुई अनुभूतियों को लेकर वह हमेशा से उलझन में ही रहता. जिन्दगी में जिस व्यक्ति पर निश्चल भाव से उसने विश्वास रखा था उसने ही उसकी मासूमियत का गला घोंटकर उसे छलकर जिन्दगी भर न भरने वाला एक घाव मन को दे दिया था.
इन्सान जब किसी के द्वारा किसी भी तरह से छला जाता है और अपनी पीड़ा किसी से भी कहने की स्थिति में नहीं होता है तो वह एक अजीब सी कशमकश वाली परिस्थिति में जिन्दगी गुजारने को मजबूर हो जाता है. कुछ ऐसा ही नमन के साथ भी हो रहा था.
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