Kisi ne Nahi Suna - 9 in Hindi Moral Stories by Pradeep Shrivastava books and stories PDF | किसी ने नहीं सुना - 9

Featured Books
Categories
Share

किसी ने नहीं सुना - 9

किसी ने नहीं सुना

-प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 9

मैं आज तक उसके हद भूल जाने की बात का अर्थ नहीं समझा कि क्या वह मेरे हाथ उठाने पर मुझ पर हाथ उठाने को कह रही थी या जैसे मैं संजना के साथ रिश्ते जी रहा था वैसा ही कुछ करने को कह रही थी। खैर उस दिन के बाद उसने बेडरूम में आना उसकी साफ-सफाई तक बंद कर दी। बच्चे भी नहीं आते मेरे पास। एक बदलाव और हुआ सैलरी के दिन आते ही उसने पिचहत्तर प्रतिशत हिस्सा पूरी दबंगई के साथ लेना शुरू कर दिया। सच यह था कि उसके इस रौद्र रूप से कई बार मैं अंदर ही अंदर डर जाता था। अब ऑफ़िस से घर आने में कतराने लगा था। ज़्यादा से ज़्यादा समय बाहर बिताता। संजना के साथ। मेरी सैलरी का बड़ा हिस्सा संजना के ऊपर खर्च होने लगा। इससे घर पर रकम कम पहुंचने लगी।

एक बार नीला ने पूछा मैंने ध्यान नहीं दिया। अगली बार जब फिर मैंने सैलरी कम दी तो नीला भड़कते हुए बोली अगली बार एक पैसा भी कम दिया तो सीधे ऑफ़िस पहुंच जाऊंगी। इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी मुझे यकीन था कि वह बहुत शर्मीली और संकोची है। ऑफ़िस नहीं आएगी। मगर मेरा यह आकलन गलत निकला। अगली बार जब मैंने फिर सैलरी कम दी तो उसने एक शब्द नहीं बोला, घूर कर जलती हुई एक नजर मुझ पर डाली, पैर पटकती हुई अलमारी के पास जाकर पैसे रखे फिर पलटकर एक और जलती नजर डाली और चली गई। मैं फिर खो गया संजना में। उसको मैं उस वक़्त एक क्षण भी भूल नहीं पाता था। उस दिन भी रात में सोने से पहले एक बजे तक मैंने संजना से बातें कीं। सारी बातें अश्लीलता की एक से बढ़कर एक इबारतें थीं। अगले दिन मैं संजना में ही खोया ऑफ़िस में था कि नीला का फ़ोन आया ‘मैं ऑफ़िस के गेट पर हूं। तुरंत आओ नहीं तो मैं अंदर आ जाऊंगी।’

मैं एकदम घबरा गया। और करीब-करीब दौड़ता हुआ गेट पर पहुंचा। जबसे उसने मेरा हाथ पकड़ा था मैं उसकी दृढ़ता से वाकिफ़ हो गया था। उसके पास पहुंचते ही मैं सबसे पहले उसे लेकर ऑफ़िस से कुछ दूर गया फिर बहुत ही नम्रतापूर्वक पूछा,

‘क्या बात है घर पर सब ठीक तो है न ?’

मेरी ओढ़ी हुई नम्रता को उसने घृणापूर्वक साइड दिखाते हुए कहा,

‘ये घर की याद कहां से आ गई तुम्हें। तुम्हारा जो घर है तुम उसकी चिंता करो।’

‘यहां किस लिए आ गई हो ?’

‘सैलरी के लिए, जितनी सैलरी मुझे चाहिए वह तुम दो महीने से कहने के बाद भी नहीं दे रहे हो। और मैंने कहा था कि मैं ऑफ़िस आकर ले लूंगी। क्योंकि मैं अपना अपने बच्चों का हिस्सा किसी और पर नहीं लुटाने दूंगी।’

उसकी बात सुनकर मैं घबरा गया। चेहरे पर पसीने के आने का अहसास मैंने साफ महसूस किया। उस वक़्त गुस्से से ज़्यादा मैं उससे डरा हुआ था। मैंने बात संभालने की गरज से कहा,

‘ठीक है अगले महीने पूरे मिल जाएंगे।’

‘अगले महीने नहीं जितने रुपए अब तक कम दिए हैं मुझे वह सारे के सारे आज ही चाहिए। शाम को यदि मुझे पैसे नहीं मिले तो मैं कल यहां गेट पर आकर फ़ोन नहीं करूंगी। बल्कि सीधे अंदर आकर उस छिनार संजना को सबके सामने चप्पलों से मारूंगी फिर तुमसे हिसाब लूंगी सबके सामने समझे।’

इतना कह कर नीला ने सुर्ख और सूजी हुई आंखों से मुझे घूरा और पलटकर पैदल ही चल दी। मैं खड़ा उसे देखता रहा। उसके तेवर से मैं पसीने-पसीने हो गया था। जिस तरह उसने संजना को गाली देकर कहा था कि आज पैसे न मिलने पर वह कल आकर पीटेगी उसे, उससे यह साफ था कि वह जो कह रही है वह निसंदेह कर डालेगी। काफी समय से उसकी एक से एक गालियां सुनकर मैं हैरान रह जाता कि यह मेरी वही नीला है जो मध्यकालीन श्रृंगार रस के कवि विद्यापति की रचनाएं सस्वर गाकर रिकॉर्ड कर चुकी है। उनकी अधिकांश रचनाएं उसे जुबानी याद हैं। जो महादेवी वर्मा को अपनी प्रिय लेखिका बताती है। और उनकी भी तमाम रचनाएं याद कर रखी हैं। अवसर आने पर सुनाती भी है।

हालांकि संजना के मेरे जीवन में आने के बाद यह अवसर कभी नहीं आया। मैं सोचता आखिर यह इतनी गालियां कहां से जान गई। और सिर्फ़ जानती ही नहीं इस तरह बेधड़क देती है कि लगता है ऐसे गाली-गलौज के माहौल में ही पली बढ़ी है। फिर सोचा नहीं समाज में घर-बाहर जो भी है अस्तित्व में वह सब जानते हैं। बस संस्कार के चलते वही चीजें प्रमुखता से सामने आती हैं जो संस्कार में मिलती हैं। बाकी एक तरह से सुसुप्त अवस्था में रहती हैं जो अनुकूल वक़्त पर ही उभरती हैं। तो क्या मैं जो कर रहा हूं वह इस स्तर का है कि नीला जैसी औरत में गाली-गलौज जैसी जो चीजें सुसुप्तावस्था में थीं उसके लिए अनुकूल स्थिति पैदा हो गई, और उसके मुंह से धड़ाधड़ गालियां निकल रही हैं। जिसके लिए सिर्फ़ मैं जिम्मेदार हूं।

ऐसी तमाम उथल-पुथल लिए मैं नीला को आगे टेम्पो पर बैठकर जाने तक देखता रहा। इसके बाद मैं भी वापस अपनी सीट पर पहुंचा। लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद मैं बाकी समय कोई काम नहीं कर सका। बस फाइल खोले बैठा रहा। इस बीच संजना कई बार आई और चुुहुलबाजी कर के चली गई।

छुट्टी के बाद हम दोनों फिर मिले। कहीं घूमने जाने का प्लान हम सवेरे ही बना चुके थे। लेकिन अब मैं नहीं जाना चाहता था। मेरी चिंता नीला की धमकी को लेकर थी। शाम को घर पहुंचते ही अगर उसे पैसे नहीं दिए तो कल वह ऑफ़िस आक़र आफत कर देगी। घूमने जाने से मना किया तो संजना पीछे पड़ गई। जब मैंने उसे सब बताया तो वो भी चिंता में पड़ गई। फिर कुछ देर चुप रहने के बाद बोली ’चलो पहले कहीं कुछ खाते-पीते हैं। फिर सोचते हैं कुछ।’

एक होटल में कुछ खाने-पीने के बाद मैंने राहत महसूस की। तमाम बातचीत के बीच मुझे असमंजस में फंसा देख संजना ने कहा, ‘सुनो... आज तुम उसे पैसा देकर पहले किसी तरह मामले को शांत करो। फिर सोचते हैं कि इसका परमानेंट सॉल्यूशन क्या होगा।’

‘लेकिन मेरे पास अभी पैसे हैं ही नहीं, सब खत्म हो चुके हैं।’

‘कोई बात नहीं मैं अपने पास से देती हूं। सैलरी मिले तो दे देना।’

फिर संजना ने ए.टी.एम. से पैसे निकाल कर दिए।

घर पहुंचकर मैंने पैसे नीला के सामने पटक दिए। मेरे मन में आया कि कहूं कि दोबारा ऑफ़िस आने की कोशिश मत करना। लेकिन हिम्मत न कर सका। हां गुस्से में मैंने चाय-नाश्ता, खाना-पीना कुछ नहीं किया। संजना के साथ ही इतना खा-पी लिया था कि ज़रूरत ही नहीं रह गई थी। मैं बेड पर अकेले लेटे-लेटे सोने की कोशिश करने लगा जिससे दिनभर के तनाव से मुक्ति मिल सके। लेकिन दिन से ही नीला की हरकत कुछ इस तरह दिलो-दिमाग पर हावी हो गई कि रात दो बज गए लेकिन नींद नहीं आई।

कभी नीला की धमकी भरी बातें बेचैन करतीं तो कभी संजना का परमानेंट सॉल्यूशन वाला डॉयलाग। मैंने उस दिन उस वक़्त पहली बार महसूस किया कि मैं दो औरतों के बीच पिस रहा हूं। इसके लिए पूरी तरह से ज़िम्मेदार भी मैं हूं। मगर कोई रास्ता तो होगा कि इस पिसने की पीड़ा से बाहर आ सकूं। यह बात आते ही दिमाग में आया कि इन दो पाटों को अलग करना ही मुक्ति दे सकता है। लेकिन कैसे हो यह समझ नहीं पा रहा था। पहली बार उस दिन दिमाग में आया कि नीला को छोड़ दूं क्या, अलग हो जाऊं उससे हमेशा के लिए, दे दूं तलाक उसे। इसके अलावा तो परमानेंट सॉल्यूशन और कुछ हो नहीं सकता। कहीं संजना भी यही तो नहीं कहना चाह रही थी।

इस बिंदू पर आते ही मुझे लगने लगा कि इसके अलावा मुक्ति का और कोई रास्ता है नहीं। अब तलाक चाहिए ही, रही बात बच्चों कि तो उन्हें भी उसी के साथ दे दूंगा। जैसे चाहेगी पाल लेगी। दे दूूंगा गुजारा भत्ता। यह मकान भी उसी को दे दूंगा। कोई दूसरा मकान किसी तरह ले लूंगा। संजना के साथ शादी करने के बाद उसकी सैलरी मेरी आधी सैलरी के आधार पर इतना लोन तो बैंक से मिल ही जाएगा कि कोई एक ठीक-ठाक मकान ले लूं।

उस वक़्त संजना को लेकर दिवानगी के चलते मेरे दिमाग में यह नहीं आया कि नीला अकेले बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, लड़की की शादी की जिम्मेदारी कैसे निभा पाएगी। दोनों बच्चे मैंने पैदा किए हैं वह अकेले क्यों ज़िम्मेदारी उठाए। यह बात भी दिमाग में न आई कि संजना जब मेरे साथ आएगी तो उसका बेटा भी साथ होगा। उसे मैं कैसे स्वीकार कर पाऊंगा।

*****