Karm path par - 29 in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | कर्म पथ पर - 29

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कर्म पथ पर - 29




कर्म पथ पर
Chapter 29


अपनी कहानी सुनाते हुए शिवप्रसाद चुप हो गए। कमरे में सन्नाटा छा गया। जय और रंजन भी भावुक हो गए थे।
जय उठ कर शिवप्रसाद के पास आया। उनके कंधे पर हाथ रख कर तसल्ली दी। मालती एक लोटे में पानी और गिलास रख गई थी। रंजन ने शिवप्रसाद को पानी पिलाया।
अपनी भावनाओं पर काबू करने के बाद शिवप्रसाद बोले,
"मजबूरी इंसान से क्या नहीं करा देती है। जय बाबू मैं कायर नहीं हूँ। पर जानता था कि हैमिल्टन की ताकत और पहुँच बहुत अधिक है। उस दिन की रात मेरे लिए सबसे कठिन थी। अगले दिन ग्यारह बजे हम चर्च पहुँच गए।"
जय ने पूँछा,
"शादी के बाद आप लोग माधुरी से नहीं मिले।"
"नहीं.... शादी होते ही हम मेरठ चले आए।"
एक बार फिर सब चुप हो गए। शिवप्रसाद बहुत भावुक थे। वह उमड़ रहे आंसुओं को बड़ी कठिनाई से अपनी पलकों में रोकने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन ऐसा करने में असमर्थ रहे। जय ने एक बार फिर उन्हें संभालने का प्रयास किया।
"जय बाबू आप लोगों से विनती है कि आप अगर मेरी बेटी माधुरी का हालचाल पता कर हमें बता सकें तो बहुत मेहरबानी होगी।"
"निश्चिंत रहें सिंह साहब मैं व्यक्तिगत तौर पर यह काम करने का वादा करता हूँ। बाकी आप लोगों के साथ जो अन्याय हुआ उसे हिंद प्रभात ज़रूर दुनिया के सामने लाएगा।"

कुछ देर जय और रंजन से बात करने के बाद शिवप्रसाद नीचे आ गए।

अगले दिन सुबह ही जय और रंजन लखनऊ के लिए निकल गए। चलते समय उन्होंने संतोषी को आश्वासन दिया कि जल्दी ही माधुरी का समाचार उन्हें देंगे।


जय जब अपने घर पहुँचा तो पाया कि श्यामलाल गार्डन में बैठ कर इंद्र के साथ बातें कर रहे हैं। उसे देखते ही इंद्र ने कहा,
"क्या बात है जय ? आजकल किस काम में व्यस्त रहते हो ? मैं तो सोंच रहा था कि हम और नाटक करेंगे। पर तुम्हारा ध्यान ना जाने कहाँ लग गया।"
जय ने इंद्र की बात का कोई जवाब नहीं किया। वह बिना उससे हाथ मिलाए कुर्सी पर बैठ गया। श्यामलाल ने पूँछा,
"कहाँ चले गए थे ?"
"बताया था ना पापा कि ज़रूरी काम था।"
"क्या काम था ? कहाँ गए थे ? कुछ बताओगे।"
जय जानता था कि घर पहुँचने पर इन सारे सवालों का सामना करना पड़ेगा। इसलिए वह जवाब सोंच कर आया था।
"पापा अभी कुछ दिनों पहले ही मेरा एक नया दोस्त बना है। वह मेरठ का है। उसके घर पर एक उत्सव था। वहीं गया था।"
श्यामलाल ने गंभीर आवाज़ में कहा,
"वो सब ठीक है। पर अब अपने जीवन के बारे में भी सोंचो। सारा जीवन क्या मौज मस्ती में ही गुज़ार दोगे।"
"नहीं पापा... मैं इस विषय में विचार कर रहा हूँ।"
"बहुत कर लिया विचार। अब कुछ करो। पढ़ाई में तो मन लगा नहीं तुम्हारा। अभिनय से नाता जोड़ा था। खुशी हुई कि चलो यही सही। पर अब तुम्हारा मन उसमें भी नहीं लगता है।"
जय चुप रहा। मौका देखकर इंद्र बोला,
"चाचाजी वैसे जय एक अच्छा कलाकार है। बस ना जाने इसका मन इन दिनों कहाँ भटक गया है। पर मैं वापस इसका मन अभिनय की तरफ खींच लूँगा। आप चिंता ना करें।"
"अच्छा होगा कि अब तुम ही इसे सही राह पर ले आओ। वरना मुझे तो इससे कोई आशा नहीं रही है।"
अपनी बात कह कर श्यामलाल उठकर चले गए। जय को अकेला पाकर इंद्र ने कहा,
"चाचाजी तुम्हें लेकर बहुत चिंतित हैं। मेरी मानो तो जिस रास्ते पर तुम भटक कर चले गए हो, उसे छोड़ कर लौट आओ। अभी भी वक्त है। वरना मुश्किल में पड़ जाओगे।"
इंद्र की बात सुनकर जय मुस्कुरा दिया। जवाब देते हुए बोला,
"परेशान ना हो इंद्र। इस बार मैं भटक कर इस राह पर नहीं आया हूँ। यह राह मैंने खुद चुनी है।"
कहकर इंद्र को अकेला छोड़ कर जय अपने कमरे में चला गया। इंद्र उसका जवाब सुनकर आवाक रह गया। उसने कभी भी नहीं सोंचा था कि जिस जय के जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है वह इतनी दृढ़ता के साथ अपनी राह पर डटा रह सकता है।
जय का व्यवहार उसे चौंकाने वाला था। वह समझ गया था कि अब जय के ज़रिए श्यामलाल से पैसे ऐंठने में कठिनाई होगी। उसे कोई बड़ी योजना बनानी पड़ेगी।

जय थका हुआ था। वह अपने कमरे में आ गया। कपड़े बदल कर वह आराम करने के लिए लेट गया। उसके पापा ने उससे जो बात कही थी वह उसके बारे में सोंच रहा था।
उसने तो अपने जीवन की दिशा तय कर ली थी। लेकिन यह दिशा उसे उस राह पर ले जाने वाली थी जो श्यामलाल को बिल्कुल भी पसंद नहीं आती। अब उसके पास दो ही विकल्प थे। वह अपनी चुनी राह को छोड़कर अपने पापा के सुझाए रास्ते पर चले। या जो राह उसने चुनी है उस पर चले। चाहें जितनी मुश्किलें आएं वह राह से ना भटके।
अपनी चुनी हुई राह को वह किसी कीमत पर नहीं छोड़ना चाहता था। बड़ी कठिनाई से तो उसने अपने लिए एक लक्ष्य चुना था। अब उससे भटकने का मतलब था कि अपनी अलग पहचान बनाने की बात भूलकर सदा के लिए अपने पापा की छाया के नीचे रहना।
हालांकि अब तक वह यही करता आया था। उसका अब तक का जीवन श्यामलाल टंडन के बेटे के तौर पर ही गुज़रा था। तभी तो वृंदा उसे रईसज़ादा कह कर बुलाती थी। पर वृंदा के प्यार ने ही उसे अपनी पहचान बनाने के लिए प्रेरित किया था।
अपनी राह पर चलने के लिए आवश्यक था कि वह अपने पापा से कुछ भी ना छिपाए। उन्हें अपने निर्णय के बारे में बता दे। फिर चाहें उसे घर ही क्यों ना छोड़ना पड़े।
जय ने तय कर लिया कि वह अपने निर्णय के बारे में पापा को सब कुछ साफ़ साफ़ बता देगा।


पिछले कुछ दिनों से श्यामलाल जय को लेकर बहुत चिंतित थे। वह समझ नहीं पा रहे थे कि अचानक इस लड़के को हो क्या गया है। पहले भले ही वह केवल उनकी दौलत खर्च करने का ही काम करता था। किंतु उन्हें तसल्ली थी कि वह कुछ ऐसा नहीं कर रहा है जो उनके लिए किसी तरह की कठिनाई पैदा करे।
पर उस नाटक के मंचन के बाद से ही वह महसूस कर रहे थे कि जय का व्यवहार कुछ अजीब सा हो गया है। अब वह पहले की तरह क्लब में नहीं जाता था, दोस्तों के साथ पार्टी नहीं करता था। पहले इंद्र के साथ नाटक करने में दिलचस्पी लेता था। पर अब उससे भी उसका मन उचट गया था।
यह लक्षण उन्हें ठीक नहीं लग रहे थे। क्योंकी अब वह गुपचुप ना जाने क्या करता था। कई नए लोगों से मिलने लगा था। उसकी गतिविधियां उन्हें संदेहास्पद लग रही थीं। आज भी उसने अपने बाहर जाने का जो कारण बताया था उस पर उन्हें यकीन नहीं हुआ था। पर उन्होंने कुछ नहीं कहा।
इंद्र ने घुमा फिरा कर उन्हें कुछ बताने की कोशिश की थी। उसके अनुसार जय के इस विचित्र बर्ताव का कारण वृंदा हो सकती थी।
श्यामलाल को लगा कि यदि यह बात सही है तो उनके लिए बहुत चिंता की बात है। अगर जय भटक कर वृंदा की राह पर चला गया तो उन्होंने अब तक जो इज्जत कमाई थी, वह मिट्टी में मिल जाएगी।
श्यामलाल ने भी तय किया कि वह जय से साफ बात करेंगे।