ek lost enginear ki dastan in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | एक लॉस्ट इंजीनियर की दास्तान

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एक लॉस्ट इंजीनियर की दास्तान

एक लॉस्ट इंजीनियर की दास्तान...!!

मैं बहुत खुश था क्योंकि मेरा सिलेक्शन आर्मी ट्रेनिंग कैंपस लैंसडाउन में हुआ था, वैसे भी मुझे पहाड़ी इलाका बहुत पसंद हैं और फिर अगर लैंसडाउन जैसी जगह हो तो फिर मेरी तो जैसे लॉटरी ही लग गई थी।‌
उत्तराखंड की पहाड़ियों में बसा लैंसडाउन जो अंग्रेजों की मनपसंद जगहों में से एक थीं, पहले वहां का नाम कालूडाण्डा था फिर उसका नाम भारत के वायसराय लॉर्ड लैंसडाउन पर लैंसडाउन पड़ गया।।
हां,तो मैंने आर्मी कैंप ज्वाइन कर लिया था और अंदर ही अंदर बहुत खुशी भी मिल रही थी कि आखिर मुझे इतनी अच्छी जगह ट्रेनिंग के लिए मिली थी।।
बहुत ही खूबसूरत जगह थीं लेकिन उसे घूमने के लिए समय की कमी थी,सारा दिन ट्रेनिंग में ही चला जाता था लेकिन फिर भी समय निकाल कर कभी कभी मैं थोड़ा बहुत घूम ही लेता था, अंग्रेजों के पुराने बंगले जो कि अब जर्जर हो चुके थे वहां जाना मुझे बहुत पसंद था, पता नहीं उनमें टूटे फ़ूटे बंगलों और गिरिजाघर में ऐसा क्या आकर्षण था जिससे मैं प्रभावित हो उठता था।।
एक तो समय नहीं मिलता था और जब कभी समय मिलता तो मैं लाइब्रेरी में जा बैठता, मैंने पहले कभी बताया नहीं लेकिन मेरी पसंदीदा जगहों में से एक जगह ये भी है क्योंकि मुझे लगता है कि क़िताबें सबसे अच्छी दोस्त होतीं हैं जब भी बोरियत लगे तो इनसे रूबरू होकर देखिए कितना सुकून मिलता है।।
इसी तरह एक दिन मैं यूं ही बोर हो रहा था तब सोचा चलो लाइब्रेरी ही होकर आता हूं, लाइब्रेरी में जाते ही मैं पढ़ने के लिए किताबें खोज रहा था,मेरी नज़र ऊपर एक किताब पर पड़ी, मैंने स्टूल पर चढ़कर उस किताब को निकाला लेकिन साथ में एक और किताब भी गिर पड़ी,तब मैंने उस किताब को उठा लिया।।
पलटकर देखा तो किसी की डायरी लगी, मैंने उसके पन्ने पलटकर देखें तो वो किसी एरिक पौल की डायरी थीं, मैंने दोनों किताबें इस्यू करवाने के लिए अपने हस्ताक्षर करके लाइब्रेरी कार्ड जमा किया और लाइब्रेरियन से पूछा कि आप बता सकते हैं कि ये डायरी यहां कैसे आई क्योंकि ये तो किसी की निजी डायरी हैं।।
तब लाइब्रेरियन बोला, मैं ये निश्चित तो नहीं कह सकता लेकिन इस लाइब्रेरी में काम करते करते मेरी उम्र बीत चुकीं हैं, ना जाने कितने सालों से मैं यहां काम रहा हूं, मुझे तो सिर्फ़ ये पता है कि यहां जो भी अंग्रेज रहें, उनके मर जाने के बाद अगर कोई उनके सामान पर अधिकार जताने नहीं आता था तो उनके सामान को सरकारी दफ्तर में जमा करवा दिया जाता था और उनकी लाइब्रेरी की किताबों को सार्वजनिक पुस्तकालय में जमा करवा दिया जाता था, उनमें से होगी ये डायरी किसी अंग्रेज अफसर की, मैं आपको बस इतनी ही जानकारी दे सकता हूं।।
मैं उनको धन्यवाद देकर, वहां से चला आया।।
रात का खाना खाकर, मैं ने सोचा जरा देखूं तो उस डायरी में ऐसा क्या लिखा है,शायद कुछ ऐसी जानकारी मिल जाए जो मेरे लिए अनमोल हो।।
मैंने वो डायरी पढ़ना शुरू किया___
डायरी पढ़कर ऐसा लगा कि उस अंग्रेज अफसर को हिन्दी का बहुत ही गहरा ज्ञान था, हिन्दी के एक एक अक्षर मोती जैसे थे और लिखावट तो इतनी सुन्दर थी कि जैसे किसी हिन्दी के महाज्ञानी की हो, ताज्जुब वाली बात थी कि एक अंग्रेज को हिन्दी का इतना बारीकी ज्ञान।।
सन् १९४६,चैत्र मास__
मैं एरिक पौल, मैंने बहुत बड़ा अपराध किया है जो कि अक्षम्य है और आज मैं ये अपना अपराध स्वीकार करके इस पाप से मुक्त होना चाहता हूं।।
मेरे पिताजी बहुत साल पहले भारत में एक सरकारी अफ़सर बनकर आए थे, कुछ सालों नौकरी करने के बाद, यही किसी अंग्रेज इंजीनियर की बेटी से उन्हें प्यार हो गया फिर उन्होंने उससे विवाह कर लिया, फिर मैं पैदा हुआ, मेरी पढ़ाई भी यही भारत में हुई लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए मुझे फिर इंग्लैंड भेज दिया गया क्योंकि मेरे नानाजी मुझे खुद की तरह एक इंजीनियर बनाना चाहते थे और कुछ सालों बाद मैं बहुत बड़ा रेलवे इंजीनियर बनकर भारत वापस आ गया क्योंकि मेरे माता-पिता चाहते थे कि अब मैं उनके साथ भारत में ही आकर रहूं।।
मुझे एक बहुत ही सुंदर रेलवे स्टेशन में नौकरी भी मिल गई और मैं उस जगह चला गया और मेरे पिता आर्मी से रिटायर होकर लैंसडाउन में ही एक सुंदर सा बनवाकर वहीं बस गए, मैं कभी कभी उनके पास छुट्टियों में जाता था।।
पिताजी के पड़ोस में एक परिवार और रहने आया उनकी एक बेटी थी जिसका नाम कैथरीन था,वो बहुत ही खूबसूरत थी, मुझे उसे एक ही नजर में प्यार हो गया, मैंने ये बात अपने घर में बताई और घरवालों ने इस बात से खुश होकर मेरा विवाह कैथरीन के साथ तय कर दिया, हमारी सगाई भी हो गई।
शादी से पहले एक रात कैथरीन ने मुझे मिलने के लिए बुलाया, मैं उस रात बेहद खुश था लेकिन कैथरीन से बात करने के बाद मेरी खुशी ग़म में बदल गई,वो बोली मैं किसी और को चाहती हूं लेकिन वो एक भारतीय हैं इसी डर से आज तक अपने घरवालों से मैं ये बात कह ना सकीं लेकिन अगर तुम ये बात उनसे कहो तो मेरी शादी उससे हो सकती है और फिर अगर मैं तुमसे शादी कर भी लेती हूं तो मैं तुमसे कभी भी प्यार नहीं कर पाऊंगी।।
मैंने उसकी ये बात सुनी और अंदर ही अंदर अपमान से जल गया कि कैथरीन ने मुझे अस्वीकार कर दिया, फिर इस बात से अपमानित होकर मैंने उससे बदला लेने का मन बना लिया।।
मैंने उसकी बात उसके परिवार तक नहीं पहुंचाई और उससे विवाह कर लिया लेकिन वो इस बात को लेकर मुझसे इतनी नाराज हुई कि मुझे स्वीकार ही नहीं कर पाई,वो मेरे साथ होते हुए भी मेरे साथ ना होती, मैंने उसका तन तो छू लिया था लेकिन उसके मन को कभी भी नहीं छू पाया,समय के साथ-साथ उसके दिल का जख्म भरने के वजाय गहरा होता जा रहा था।‌।
रेलवे कालोनी का वो बंगला जहां नए शादीशुदा जोड़े की हंसी गूंजनी चाहिए थीं वहां मनहूसियत सी छाई रहती, इतना सुन्दर बाग-बगीचे वाला घर था लेकिन उस घर की शोभा यानि की कैथरीन उदास दिखाई देती।।
फिर एक दिन आफिस में एक नवयुवक खलासी की नौकरी मांगने आया, मैंने उसे रख लिया, उसने एक रोज कहा साहब ये सब रेलवे का काम मैं ठीक से नहीं कर पाता, कहीं कोई बाग फुलवारी वाली जगह हो तो मैं उसकी देखभाल ठीक से कर दूंगा।।
मैंने कहा ठीक है, हमारे यहां पानी बहुत दूर से भरकर लाना पड़ता है और पेड़ पौधों को भी सींचना पड़ता है जिससे कि घर में जो भी नौकर रखता हूं, वहां काम करने से मना कर देता है अगर तुम्हें कोई एतराज़ ना हो तो तुम मेरे घर में काम कर सकते हो।।
उसने मेरे घर में काम करना मंजूर कर लिया,उसका नाम सुनील था, उसके आने से कैथरीन भी खुश रहने लगी थीं, मैं यहां दफ़्तर आता और वो वहां घर पर काम करता लेकिन एक दिन मेरे कुछ जरूरी कागजात घर पर छूट गये, मैं उन्हें लेने घर पहुंचा लेकिन मुझे कुछ आवाजें आई, मैंने छुपकर देखा तो कैथरीन,सुनील की बांहों में थीं और उनकी बातों से पता चला कि सुनील और कोई नहीं वो ही उसका भारतीय प्रेमी था,अब मुझे सारा माजरा समझ आ गया कि कैथरीन अब क्यो खुश रहने लगी थी।।
मैंने उस समय कुछ नहीं कह और वापस लौट गया लेकिन एक दो दिन बाद रात में सुनील को आफिस बुलाया और उसकी चाय में जहर मिलाकर उसे मारकर उसकी लाश को रेलवे ट्रैक पर फेंक दिया और एक दो दिन बाद रात में सोते समय कैथरीन का गला घोंटकर उसकी लाश को छत से लटका कर आत्महत्या करार दे दिया।।
मैंने ये हत्यायें कर तो दी लेकिन बाद में बहुत आत्मग्लानि महसूस हुई,इसका पश्चाताप करने के लिए मैंने नौकरी छोड़ दी, मैं वहां का लास्ट अंग्रेज इंजीनियर था, उसके बाद देश आजाद होने की खबरें आने लगी और भारतीयों को भी बड़े बड़े पदों पर रखा जाने लगा और मैं अपने माता-पिता के पास लैंसडाउन लौट गया सालों तक खुद को अपराधबोध महसूस करता रहा, फिर भारत देश आजाद होने जा रहा था तो मेरे माता-पिता इंग्लैंड लौट गए, उन्होंने मुझसे भी कहा और मैं नहीं गया लेकिन आज मुझसे अपना वो अपराध सहन नहीं हो रहा है इसलिए इस डायरी में अपना अपराध लिखकर मैं किसी पहाड़ से कूदकर अपनी जान दे दूंगा, मेरे मरने के बाद ये डायरी किसी पुस्तकालय को दान दें दी जाए।।
सुनील और कैथरीन का अपराधी__
एरिक पौल !!
मन बहुत खराब सा हो गया उस लॉस्ट इंजीनियर की दास्तां पढ़कर...!!

समाप्त___
सरोज वर्मा__
सर्वाधिकार सुरक्षित__