Mout ka jaadu in Hindi Horror Stories by Shubhanand books and stories PDF | मौत का जादू

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मौत का जादू



इक़बाल ने नफ़ीस की कोठी के अंदर कदम रखा।
अंदर का नज़ारा देखकर वो ठिठककर रुक गया। बैठक के बीचोंबीच साढ़े छह फुटा नफ़ीस ज़मीन पर दरी बिछा कर बैठा हुआ था। उसने पालथी मारकर ध्यान की मुद्रा बना रखी थी, आँखें बंद थीं।
इक़बाल चुपचाप उसके करीब आया और तेजी से पलकें झपका-झपकाकर उसे देखने लगा। नफ़ीस मानो किसी तपस्या में पूरी तरह से तल्लीन था। अचानक इक़बाल अपना मुंह उसके कान के एकदम करीब लाया और धीरे-से बोला-
“मिंया नफ़ीस खान ठेकेदार करोड़पति!”
“क...कौन?” नफ़ीस ने हड़बड़ाकर आँखें खोलीं।
“गुस्ताख को इक़बाल कहते हैं।”
“ओफ्हो! डिस्टर्ब कर दिया। अपुन कित्ता अच्छा ध्यान लगाये बैठे थे।” नफ़ीस ने अपनी लंबी गर्दन ऊंट की तरह घुमाते हुए कहा- “और इक़बाल भाई! आप हैं, कि बिन बुलाए टपक पड़े।”
“हम तो चीज़ ही ऐसी हैं, भाईजान। अब आप बताओ- ये सब क्या ड्रामा है?”
“ड्रामा नहीं! अपुन ध्यान कर रे थे.”
“आप को किस बात की टेंशन है? करोड़ों के मालिक-शालिक हैं आप।”
“अरे भाड़ में गये साले करोड़ों-वरोड़ों।” नफ़ीस के अंदर से जैसे ज्वालामुखी फट पड़ा- “नंगे आये थे, नंगे चले जायेंगे। पीछे रोने वाली भी कोई न होगी।”
“ओह! तो ये बात है- एक अदद घरवाली...”
“अपुन को तो मिलने से रही।” नफ़ीस ने मुंह फुलाते हुए कहा।
“क्या भाईजान! आप तो हार मान कर बैठ गये। एक न एक दिन आपको अदद घरवाली मिल ही जायेगी।”
“कब मिलेगी? पाँव कब्र में लटक जायेंगे तब?”
इक़बाल कुछ बोलता उससे पहले नफ़ीस का फोन बजने लगा।
“नफ़ीस खान बोल रये हैं!” रिसीवर उठाकर नफ़ीस ने उत्तर दिया।
“नफ़ीस बेटा कैसे हो?” दूसरी तरफ से किसी बुजुर्ग की आवाज़ आयी।
“ये अपुन के अब्बाजान कहाँ से ज़िन्दा हो गये?” उसने रिसीवर पर हाथ रखकर इक़बाल से पूछा। इक़बाल ने कंधे उचकाए।
“अपुन एकदम ठीक हैं। आप कैसे हैं? जन्नत में सब ठीक-ठाक है न?”
“हा-हा!” दूसरी तरफ से हँसते हुए आवाज़ आयी- “अभी तो पता नहीं, पर लगता है बहुत जल्दी वहीं रुखसत होने वाला हूँ।”
“आप कौन बोल रये हैं?”
“अरे मैं तुम्हारा चचा- लियाकत खान!”
“ओह! आप हैं? खामखाह डरा दिये। अपुन को लगा- अब्बाजान का भूत है।”
“हाँ! अब हमें भी यहाँ लग रहा है- बरखुरदार, कि तुम्हारे अब्बा हुज़ूर से मिलने का वक्त हो गया है।”
“ऐसा क्यूँ बोल रिये हैं?”
“पता नहीं! तबियत नासाज़ है-काफी दिनों से।”
“ओह! बस इत्ती-सी बात? अपुन यहाँ से दस-बीस डॉक्टर लेकर आते हैं।”
“नहीं भाई, उसकी ज़रूरत नहीं है। डॉक्टर तो इधर भी हैं. हां! अगर हो सके तो मिलने आ जाओ। यहाँ और कोई भी नहीं है।”
“ए लो! ये भी कोई पूछने की बात है, हम तुरंत आते हैं।”
नफ़ीस फोन रखा और तुरंत सूटकेस खोलकर कपड़े रखने लगा।
“अभी के अभी जाओगे क्या?” इक़बाल ने पूछा।
“हाँ! तुम को भी कुछ चड्ढी-वड्ढी पैक करनी हो तो कर लो।”
“अरे! पर मैं...”
“तुम को यहाँ कौन-से पत्थर तोड़ने है। तुम्हारा एक ही तो काम है- झक सुनाने का। वहां जाकर कर लेना।”
“नफ़ीस भाई! आप एक सीक्रेट सर्विस एजेंट की तौहीन कर रहे हो।” इक़बाल अकड़कर बोला।
“अमा क्या तौहीन! तुम भी यहाँ बोर हो रहे हो, इसीलिए तो आज अपुन के घर आये। वरना तो ईद का चाँद बने घूमते-फिरते हो।”
“ऐसा नहीं है।”
“सलमा भाभी भी यहाँ नहीं है। क्या करोगे?”
“हाँ! गढ़ में हुई घटनाओं के बाद से उसका मूड बहुत खराब था, इसलिये अपनी अम्मी-अब्बू से मिलने गयी है, और राजन शोभा के साथ काम से दिल्ली गया है।” (गढ़ की कहानी जानने के लिए पढ़ें- राजन इक़बाल की वापसी)
“फिर क्या? चलो, भौत मज़ा आएगा। सोहनपुर में सबसे बड़े रईस हैं- लियाकत चचा। महल में रहते हैं- पूरे एशो-आराम से।”
“ठीक है! मुफ्त की अय्याशी करने में मेरा क्या जाता है।” इक़बाल ने कहा।
नफ़ीस की कोठी से दोनों इक़बाल के घर गये, उसने अपना सामान लिया फिर वे सीधे एयरपोर्ट पहुंचे। वहां से उन्होंने भोपाल के लिए फ्लाईट पकड़ी।
भोपाल पहुँचकर आगे का सफर उन्होंने बस से किया।
☠☠☠

सोहनपुर को जाने वाला रास्ता बेहद खूबसूरत नजारों से घिरा था। दोनों बहुत खुश थे। सड़क की दोनों तरफ छोटे-बड़े पहाड़ थे। अधिकतर पहाड़ सूखे हुए थे, और सूर्यास्त के वक्त उनका रंग भी आसमान की तरह नारंगी प्रतीत हो रहा था।
एक सुनसान से बस स्टॉप पर उन्हें उतार दिया गया। वहां पर कुछ भी नहीं था, सिवाए एक बोर्ड के, जिस पर ‘सोहनपुर’ लिखा था।
नफ़ीस और इक़बाल के अलावा बस से एक आदमी और उतरा था। वो एक बूढ़ा-सा व्यक्ति था, जो दिखने में वहीँ का लग रहा था। वो समझ गया था कि इक़बाल व नफ़ीस बाहर के हैं।
“मैं तो समझा था- इस जगह कुछ तो घर होंगे, पर यहाँ तो सिर्फ पहाड़ ही पहाड़ दिख रहे हैं। क्या यहाँ लोग पहाड़ों में रहते हैं?” इक़बाल चारों तरफ देखते हुए बोला।
“अरे हाँ! यहाँ तो घर क्या साली एक ईंट भी नहीं दिख रही।” नफ़ीस बोला।
“इसका क्या मतलब है?” इक़बाल आश्चर्य से बोला- “आपको भी नहीं पता?”
“हाँ! अपुन को क्या मालूम? अपुन तो पहली बार आ रे हैं।”
“बता तो ऐसे रहे थे, जैसे चड्ढी पहनकर वहीँ खेले-कूदे हैं!”
“वो तो अपुन के अब्बा-अम्मी बताया करते थे।”
उनकी बातें बूढ़ा वहीं खड़ा सुन रहा था। उसने पूछा-
“तुम लोग पहली बार यहाँ आये हो?”
“नहीं! हमारे भाईजान तो यहीं पैदा हुए थे।” इक़बाल झट-से बोला।
“तुम चुप रहो।” नफ़ीस बोला- “अंकल जी! आपको पता है शहर किधर है?”
“यहाँ से थोड़ा दूर है।”
“फिर बस स्टॉप यहां क्यों है?” इक़बाल ने पूछा।
“अरे! आगे बस जाने लायक रास्ता नहीं है न।”
“नफ़ीस भाई! फोन करो चचाजान को।”
नफ़ीस ने फोन निकाला पर सिग्नल नदारद था।
“ये किस तरह की रियासत में ले आये?” इक़बाल ने गुस्से से नफ़ीस को देखा, फिर पूछा- “अंकल जी! आगे जाने का क्या उपाय है?”
“उपाय क्या? चलो पैदल।”
“इतने सारे सामान के साथ?”
“जवान हो! पीठ पर लादो और चलो मेरे साथ।”
कुछ देर बाद दोनों सामान लादे, बूढ़े के पीछे-पीछे कच्चे रास्ते पर चल रहे थे। अंधेरा होने लगा था। उसने ठीक ही कहा था। वह पहाड़ी रास्ता कच्चा था और बस जाने लायक नहीं था।
करीब ढाई मील चलने के बाद बस्ती दिखाई देने लगी। घरों में जल रहे बल्बों की रौशनी दूर से दिखाई दे रही थी।
नफ़ीस व इक़बाल काफी थक गये थे। सामान लादे-लादे उनकी पीठ दर्द करने लगी थी।
बस्ती के पास पहुँचने पर इक़बाल ने बैग ज़मीन पर पटक दिया और उस पर बैठ कर बोतल से पानी पीने लगा। नफ़ीस भी बैठ गया।
बूढ़ा उन्हें मुस्कराते हुए देखने लगा।
“अंकल!” इक़बाल ने पूछा- “लियाकत खान का महल कहाँ है?”
बूढ़ा चौंका- “तुम लोगों को उससे क्या मतलब?”
“मतलब- हम उन्ही से मिलने आये हैं।” नफ़ीस ने कहा।
“बस सीधे चलते चले जाना। आगे गली पार कर के बस्ती समाप्त हो जायेगी। उसके बाद एक छोटी-सी पहाड़ी है, उसी पर महल है।”
“थैंक यू – अंकल! आपने हमारी बहुत मदद की।”
“हाँ!...” कहते हुए बूढ़ा लड़खड़ाते हुए इक़बाल पर गिर गया।
“अरे! क्या हुआ?” इक़बाल ने उसे उठाते हुए पूछा।
“नशा-वशा कर के घूम रिये लगते हैं।” नफ़ीस ने कमर पर हाथ रखते हुए कहा।
बूढ़े ने खुद को संभाला और खड़ा हो गया।
“आज कुछ ज्यादा पी ली थी।” दोनों का ध्यान अब उसकी बोतल पर गया, जिसमे वे लोग पानी भरा समझ रहे थे, वो असलियत में शराब थी।
“मैं चलता हूँ अब-” बूढ़ा बिना उनकी तरफ ध्यान दिये, बस्ती की तरफ बढ़ गया।
“तुम लोग जंगली जानवरों से सावधान रहना।” जाते-जाते उसने कहा।
बूढ़ा कुछ दूर जाकर फिर गिरा, और फिर उठकर चलने लगा।
“साला पियक्कड़ है।” नफ़ीस बोला।
इक़बाल ने बैग उठाया। “ये जंगली जानवर वाली बात पल्ले नहीं पड़ी।”
नफ़ीस कुछ नहीं बोला। दोनों बस्ती की तरफ चल दिये।
बस्ती में अधिकतर मकान लकड़ी के बने दिख रहे थे। वहां चहल-पहल न के बराबर थी। अधिकतर लोग बूढ़े दिखाई दे रहे थे। वे लोग गली में चलते चले गये। वहां के लोग उन्हें ध्यान से देख रहे थे। दोनों को थोड़ा अजीब लगा।
गली के अंत में, दायीं ओर उन्हें पहाड़ी पर बना विशालकाय महल दिखाई दिया।
पहाड़ी ज्यादा ऊँची नहीं थी। पांच मिनट की चढ़ाई के बाद दोनों महल के ऊँचे लोहे से बने द्वार के सामने थे। महल काफी पुराना था। उसका रंग तो लाल था, पर अधिकतर दीवारें काली हो गयी थीं। महल के आस-पास कोई भी इंसान नज़र नहीं आ रहा था. माहौल में अजीब-सी खामोशी थी, जैसे दूर-दूर तक किसी जीवित प्राणी का अस्तित्व न हो.
उन्हें समझ नहीं आया कि अब क्या किया जाये। वहां कोई कॉल बैल तो थी नहीं। तभी उनकी नज़र एक कोने में लटक रही रस्सी पर गयी। इक़बाल ने उसे खींचा तो कहीं घंटा बजने की आवाज़ आई।
“कमाल है!” नफ़ीस के मुंह से निकला- “अपुन ने ऐसा तो नहीं सोचा था।”
“ये तो एक हज़ार साल पुराना किला लग रहा है। अभी देखना- सैनिक हमारा स्वागत करेंगे।”
अंदर से पदचापों की आवाज़ आने लगी। फिर द्वार में बना छोटा दरवाज़ा खुला। उसमे से अचानक ही एक चेहरा बाहर निकला-
नफ़ीस के मुंह से चीख निकल गयी।
वह चेहरा एकदम कोयले की तरह काला था। आँखें बड़ी-बड़ी और लाल थीं। मोटे-मोटे होंठ कटे हुए थे, शायद किसी धारदार हथियार से। उसके बड़े-बड़े सफ़ेद दाँत अंधेरे में चमक रहे थे।
“क्या है?” वह गरजा।
इक़बाल और नफ़ीस का तो गला सूख गया था।
“कौन हो तुम लोग?” उसने फिर सवाल किया।
“लि...लियाकत खान!” नफ़ीस के मुंह से किसी तरह से आवाज़ निकली।
“हां! यहीं रहते हैं।”
“अपुन उनके भतीजे हैं।”
ये सुनकर वह मुस्कराया- बेहद भद्दी मुस्कान।
“तब तो आप हमारे मेहमान हैं।” वह दरवाज़ा पूरी तरह से खोलकर बाहर आ गया और फिर उसने झट से उनका सामान उठा लिया, इतने आराम से - जैसे उनके अंदर रुई भरी हो।
तीनों अंदर आ गये। अंदर काफी खुली जगह थी। दाहिनी तरफ अस्तबल था, जहाँ घोड़े बंधे दिखाई दे रहे थे। आगे बगीचा था। उसके बाद महल की इमारत थी। वे लोग अंदर एक बड़े से हॉल में पहुँचे।
वहां की भव्यता देखकर दोनों की आँखें फैल गयीं। हॉल में बड़ी-सी डायनिंग टेबल थी, जिस पर एक साथ बीस लोग खाना खा सकते थे। दीवारों पर तरह-तरह की पेंटिंग लगी थीं, तलवारें और ढाल भी सजी हुई थीं। हॉल के अंत में सीढ़ियां थीं।
“आप लोग ऊपर चलिए, मैं ताला डालकर आता हूँ।”
“एक मिनट!” इक़बाल ने टोका- “भाई अपना नाम तो बता दो।”
“ड्रैकुला।”
दोनों ने उसे घूरा।
“मुझे लोग इसी नाम से पुकारते है, शायद मेरी शक्ल के कारण।” कहकर वह मुस्कराया। उसके सफ़ेद दाँत खतरनाक ढंग से चमकने लगे।
“तुमसे मिलकर खौफनाक प्रसन्नता हुई।” इक़बाल ने उसे ध्यान-से देखते हुए कहा।
फिर वह चला गया।
दोनों दीवार पर लगी पेंटिंग देखने लगे. एक पेंटिंग में एक उम्रदराज जोड़ा था- एक वैभवशाली पुरुष और एक खूबसूरत औरत.
“ये हैं लियाकत चचा?”
“हाँ! और चाची, उन्हें तो गुज़रे कई साल हो गये.” नफ़ीस उदास स्वर में बोला.
“ओह!”
“कोई भौत ही खतरनाक बीमारी हो गई थी उन्हें.”
“ये तो बहुत बुरा हुआ. चचाजान पर तो बहुत बुरी बीती होगी.”
“पूछो मत! हम लोगों ने कित्ती बार कहा, सोहनपुर छोड़कर शहर आ जाओ पर चचा कबी मानते ही नई.”
“मुश्किल होता है इस उम्र में ज्यादा बदलाव करना.” कहते हुए इक़बाल आगे बढ़ा. नफ़ीस चाची की तस्वीर ध्यान से देख रहा था. उसे कुछ अटपटा लगा. लगा जैसे उनके चेहरे पर जो मुस्कान है अचानक उदासी में बदल गई.
‘ये अबी खुश दिख रहीं थी अबी क्या हुआ...’ नफ़ीस ने सोचा.
तभी अचानक चाची के चेहरे पर फिर मुस्कान आ गई. नफ़ीस बुरी तरह से बौखलाया और इक़बाल के पास पहुँच गया.
“क्या हुआ कूद क्यों रहे हो?”
“कुच्च नई! चलो ऊपर चलते हैं.”
इक़बाल और नफ़ीस ऊपर आ गये।
वहां अंधेरा था।
“ये हर जगह लाईट बंद क्यों है? घर में कोई नहीं है क्या?” इक़बाल चारों तरफ देखते हुए बोला।
“चचाजान तो अकेले ही होंगे, और बीमार हालत में वो साले बाहर कहाँ जायेंगे?” कहते हुए नफ़ीस दीवार पर टटोलकर स्विच ढूंढने लगा।
“आप के चचाजान आप के साले भी हैं?”
“तुम भी क्या बकवास करते हो इक़बाल भाई. उफ़! न जाने ये स्विच है कहाँ!”
उसने अंधेरे में धोखे से इक़बाल की नाक दबा दी।
“भाईजान! ये मेरी नाक है!”
“ओह! तभी अपुन को लगा- बल्ब क्यों नहीं जला।”
“अब जलेगा।” कहकर इक़बाल ने उसके दोनों कान मरोड़ दिये।
“उफ़!” नफ़ीस चिहुंक उठा।
इक़बाल ने आगे बढ़ते हुए महसूस किया कि एक स्टूल रखा हुआ है। स्टूल पर उसे एक माचिस मिल गयी। उसने तीली जलाई, तो कुछ दिखाई दिया। स्टूल पर एक मोमबत्ती थी, उसने उसे जला दिया।
उपर भी वो एक हॉल में थे। वहां कई कमरों के दरवाज़े दिखाई दे रहे थे। दोनों हैरानी-से चारों तरफ देख रहे थे। वहां के ख़ालीपन और सन्नाटे में अजीब-सा महसूस हो रहा था।
तभी रोने की आवाज़ आने लगी।
“इक़बाल भाई!”
“हूँ?”
“भौत मज़ाक हो गया।”
“कौन-सा मज़ाक?”
“ये आवाजें निकालने से अपुन डरने वाले नहीं।” नफ़ीस गर्दन अकड़ाकर बोला।
तभी- गुर्राने की आवाज़ आयी।
“ये तो किसी कुत्ते की आवाज़ लगती है।” इक़बाल बोला तो नफ़ीस ‘ही-ही’ करके हंस दिया।
“खुद को कुत्ता बोल रिये हो।”
तभी दोनों की नज़र हॉल के एक कोने में गयी। वहां दो हरी आँखें चमक रही थी।
वह अंधेरे से बाहर आ गया। वह एक बड़ा-सा काला भेड़िया था, जो नफ़ीस और इक़बाल को दाँत निकालते हुए देख रहा था और धीरे-धीरे गुर्रा रहा था।
“अरे! बाप रे!” नफ़ीस के मुंह से निकला- “भे...भेड़िया!”
इससे पहले कि नफ़ीस भागता, इक़बाल ने उसे रोका।
“घबराइए मत, ये जंजीर से बंधा है। पर भेड़िया? घर के अंदर?”
तभी-ऊपर के हॉल में झूमर की रौशनी फैल गयी।
ड्रैकुला ने स्विच ऑन किया था। वह बोला-
“ये भेड़िया साहब का पालतू है।”
“क्या! भेड़िया पालने का क्या मतलब?” इक़बाल भेड़िये के निकट आया तो वो फिर गुर्राने लगा।
ड्रैकुला ने उसे प्यार-से पुचकारा- “शेरा!”
तो वो पूछ हिलाते हुए बैठ गया।
“कमाल है! भेड़िया शेर बन गया।” इक़बाल हंसा।
“अमा, पर चचाजान हैं कहा?” नफ़ीस ने झुंझलाते हुए पूछा।
“वो तो चले गये।”
“क्या???” दोनों बुरी तरह से चौंके।
“हाँ! कह रहे थे कुछ ज़रुरी काम है।”
“ओह! तुम तो साले डरा दिये। अपुन को लगा... खैर कब आयेंगे?”
“कह गये थे, जल्दी ही आयेंगे और तब तक आप लोगों का ख्याल रखूं।”
“कमाल है! फोन पर तो उनकी तबियत बेहद नासाज़ मालूम हो रही थी।”
“जी! चलिए आपको कमरा दिखा दूँ। आप लोग आराम करिए। मैं खाना बनाता हूँ।”
ड्रैकुला ने उनके लिये एक कमरा खोल दिया और उनका सामान रखकर चला गया।
कमरा शानदार था. वहां सारा फर्नीचर राजसी था. पलंग इतना बड़ा था कि उस पर चार लोग आराम से सो जायें. इतने बड़े पलंग के बाद भी कमरे में इतनी जगह थी कि वहां एक सोफे सेट भी था. सब हल्की भूरी रंगत लिये हुए था. खिड़कियाँ बड़ी-बड़ी थीं और उन पर सुनहरे परदे पड़े हुए थे.
“भाईजान! महल तो शानदार है पर यहां का माहौल कुछ ठीक नहीं लग रहा।” इक़बाल बोला।
“पुराने महलों में ऐसा ही माहौल रहता है।”
“और ऐसे भूत जैसे नौकर और भेड़िये भी रहते हैं?”
तभी भेड़िये के रोने की आवाज़ आने लगी।
“ये लो- साला रोने लगा। ये सब तो अपुन की समझ के बाहर है।”
“मुझे तो वो नौकर तांत्रिक लग रहा है। या कोई बहुरुपिया!”
“होगा, हमारी बला-से। क्या इक़बाल भाई, तुम तो हर वक्त जासूसों की तरह ही सोचते हो। छुट्टी पर हो- मजे करो।”
दोनों खाना खाने के बाद गहरी नींद में डूब गये।
☠☠☠

सुबह आँख खुलने पर नफ़ीस ने ज़ोरदार अंगड़ाई ली. उस ने देखा इक़बाल पलंग से ग़ायब था.
“इक़बाल भाई! गुसलखाने में हो क्या?” उस ने आवाज़ लगाई. पर कोई जवाब नहीं आया.
‘किधर निकल लिये सुबह-सुबह! कहीं डर कर वापस चंदननगर तो नहीं चले गये?’ सोचकर वह ‘हे-हे’ कर के हँसने लगा. पर अचानक उसे अहसास हुआ-
“इसका मतलब तो अपुन साले यहाँ अकेले...” नफ़ीस का दिल बैठने लगा. वह तेजी से उठा और चप्पल पहनकर सीधे दरवाज़े की तरफ बढ़ा.
दरवाज़ा खोलने की कोशिश की तो चौंक पड़ा.
‘ये तो बाहर से बंद है!’
“बचाओ-बचाओ!” नफ़ीस हलक फाड़कर चिल्लाने लगा.
तभी दरवाज़े के दूसरी तरफ आहट हुई. ऐसा लगा जैसे कोई धीरे-धीरे सांकल खोल रहा है. नफ़ीस भयभीत होकर पीछे हटने लगा.
फिर एक झटके से दरवाज़ा खुला.
नफ़ीस उछलकर पलंग पर जा गिरा.
“क्या हुआ?” इक़बाल ने अंदर आते हुए पूछा.
“तु..तुम!”
इक़बाल ने पलकें झपकाते हुए उसे देखा.
“तुम कहाँ चले गये थे सूबा-सूबा”
“अरे! मॉर्निंग वाक के लिये गया था.”
“दरवाजा काये को बंद किये?”
“मुझे डर था कहीं शेरा अंदर न घुस आये.”
“तुम साले अभी हमारा हार्ट अटैक करवा देते.”
इक़बाल हँसने लगा.
“अपुन मज़ाक नई कर रे...”
“अरे क्यों इतना डर रहे हो. देखो मैंने कहा था न यहाँ का माहौल ही कुछ ऐसा है. आप के मन में भी डर बैठ गया है इसलिये इतना ज्यादा रिएक्ट कर गये.”
“अपुन गुसलखाने जा रहे हैं और ख़बरदार यहीं बैठे रहना, कहीं जाना नहीं.” नफ़ीस इक़बाल को चेतावनी देते हुए बाथरूम की तरफ बढ़ गया.
“कहो तो मैं भी अंदर आ जाऊँ?”
नफ़ीस ने भड़ाक से बाथरूम का दरवाज़ा बंद कर लिया.
फ्रेश होने के बाद दोनों नीचे की तरफ चल दिये। शेरा अब उन पर गुर्रा नहीं रहा था। बस टकटकी लगाये देख रहा था।
नीचे पहुँचकर उन्हें मुख्य द्वार खुलने की आवाज़ आयी तो वो बाहर आ गये।
ड्रैकुला घोड़ागाड़ी लेकर अंदर आ रहा था।
“आप लोग उठ गये?” उसने उतरते हुए पूछा।
“हां! पर तुम कहाँ से आ रहे हो?”
“मंदिर गया था। पूजा करने। फिर कुछ खाने-पीने का सामान भी लाना था।”
दोनों को आश्चर्य हुआ, कि ऐसा खतरनाक-सा दिखने वाला इंसान पूजा-पाठ भी करता है।
उसके बाद ड्रैकुला ने दोनों के लिये बेहतरीन नाश्ता बनाया।
इक़बाल फुसफुसाया- “ये दिखने में क्या है, और करने में क्या।”
“सही बोल रे हो। आदमी की साली शक्ल से कुछ पता नहीं चलता।”
“चचा ने कुछ बोला नहीं- कहां जा रहे हैं?” नफ़ीस ने ड्रैकुला से पूछा।
“नहीं!”
“कमाल है- बीमारी की हालत में वो कहाँ चले गये।”
“खैर!” इक़बाल बोला- “वैसे तुम्हारा छोटा-सा शहर काफी सुन्दर दिख रहा है। नफ़ीस भाई, हमें घूमने चलना चाहिए। ड्रैकुला भाई हमारे लिए दो घोड़े तैयार कर दो।”
“मैं ले चलता हूँ न घोड़ागाड़ी में।”
“ठीक है! चलो।”
कुछ देर बाद घोड़ागाड़ी महल की पहाड़ी से नीचे उतरने लगी।
बस्ती में दिन के वक्त भी चहल-पहल न के बराबर थी। वहां का वातावरण बेहद शांत था।
“जगह तो भौत खूबसूरत है। तुम हमें कहाँ ले जाओगे?” नफ़ीस ने पूछा।
ड्रैकुला ने घोड़ों को हांकते हुए जवाब दिया- “बस देखते जाइये।”
इक़बाल ने उसके भाव देखने चाहे, पर उसकी पीठ उनकी तरफ थी। उसके दिमाग में अभी-भी शक का कीड़ा कुलबुला रहा था।
कुछ देर में घोड़ागाड़ी बस्ती पार कर गयी। सामने एक सूखी-सी पहाड़ी दिख रही थी। जब वे लोग पहाड़ी के दूसरी तरफ पहुंचे तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ।
दूसरी तरफ एकदम हरी-भरी वादी थी। हज़ारों पेड़ लहरा रहे थे। चारों तरफ प्रकृति की सुंदरता लरज़ रही थी। इक़बाल और नफ़ीस ने कैमरे से कई फोटो खींचे।
उन्हें उस हरियाली का रहस्य भी मालूम पड़ा। वहां एक छोटी-सी पहाड़ी नदी बह रही थी। घोड़ागाड़ी उसी के किनारे दौड़ रही थी।
नदी के दूसरी तरफ पहाड़ थे।
अचानक-
एक अनोखी घटना घटी।
एक भाला उड़ता हुआ आया और घोड़ागाड़ी में घंस गया। इक़बाल और नफ़ीस सिर्फ एक इंच से बचे थे, वरना वह उनके शरीर में घुस चुका होता।
“या खुदा!” नफ़ीस चीखा।
ड्रैकुला ने तुरंत गाड़ी रोकी। उसने पीछे पलटकर भाला देखा तो उसकी आँखें फैल गयी। फिर सभी ने पहाड़ी की तरफ देखा- जिस तरफ से भाला आया था।
पहाड़ी पर एक काला-सा नंगा व्यक्ति दिखाई दिया। वह कोई आदिवासी लग रहा था।
ड्रैकुला ने दोनों हाथ ऊपर करके उसे कुछ इशारा किया।
“अबे!” नफ़ीस चीखा- “ये सब क्या है?”
“चिंता मत करिये!” ड्रैकुला उसी तरह हाथ हिलाते हुए बोला- “लगता है- कुछ ग़लतफ़हमी हो गयी है।”
इक़बाल बेहद क्रोधित था। उसने तुरंत रिवाल्वर निकाला और पहाड़ी की तरफ फायर कर दिया। गोली शायद आदिवासी के कंधे पर लगी। वह वहीं गिर गया।
“ये क्या किया?” ड्रैकुला चिल्लाया।
“अच्छा! बेटे डकारू, हम पर हमला करने वाले को हम ऐसे ही छोड़ दें?”
“उफ़! आप लोग समझ नहीं रहे। कृपया अब और कुछ न करियेगा। मैं उन्हें समझाकर आता हूँ।” कहकर वो किसी अजीब-सी भाषा में चिल्लाते हुए नदी की तरफ दौड़ने लगा।
पहाड़ पर कुछ और आदिवासी दिखाई देने लगे। वे लोग घायल वाले को संभाल रहे थे।
“साले! ये लोग हैं कौन? और अपुन लोगों के पीछे नंगे होकर क्यों पड़ गये?”
“पागल आदिवासी हैं। क्या पता आदमख़ोर हों?” कहते हुए इक़बाल ने भाले को घोड़ागाड़ी से अलग किया।
ड्रैकुला नदी पार करके पहाड़ के पास पहुँच गया और नीचे से ही उन आदिवासियों से बात करने लगा।
इक़बाल और नफ़ीस बाहर आकर देखने लगे। नफ़ीस तो डरकर गाड़ी के पीछे छिपा हुआ था।
कुछ देर बाद ड्रैकुला वापस आ गया। आदिवासी लोग भी पहाड़ी से ग़ायब हो गये।
“अब बताओ प्यारे डकारू- ये सब क्या चक्कर था?” इक़बाल ने कमर पर हाथ रखकर पूछा- “ये जंगली कहाँ से आ गये?”
“वो तो सदियों से जंगल में रहते हैं।”
“अच्छा! और तुम उन लोगों को कैसे जानते हो?”
“ये कहानी लंबी है। महल वापस चलते हैं, यहां रुकना ठीक नहीं है।”
“ये ठीक के रा है। चलो यहां से फ़ौरन।” नफ़ीस घबराते हुए बोला- “वरना अपुन कंवारे के कंवारे ही मर जायेंगे।”
वे लोग वहां से वापस महल चले गये।
महल पहुँचते ही इक़बाल ने बोला- “अब बताओ अपनी लंबी कहानी।”
ड्रैकुला अजीब ढंग से मुस्कराया और बोला- “दरअसल- मैं भी पहले एक आदिवासी था।”
“ओह! वो तो तुम शक्ल से ही लगते हो। फिर तुम जंगल से यहां कैसे टपके?”
“साहब ने मुझे गोद लिया था। मैं बचपन से यही हूँ।”
इक़बाल ने नफ़ीस की तरफ देखा- “भाईजान! आपके चचा ने जंगल में जाकर ज़रूर कुछ मंगल किया होगा।”
“अपुन को क्या पता।” नफ़ीस ने आँखें फैलायीं।
“उस वक़्त जंगल बहुत घना हुआ करता था।” उनकी बातों से बेखबर ड्रैकुला वक़्त में काफी पीछे जा चुका था- “ये शहर और भी छोटा था। हमें जंगल के जीवन में कोई कष्ट नहीं था। जिंदगी आराम से कट रही थी। फिर अचानक हमारे लोग मरने लगे। शायद कोई रोग फैल गया था। खैर उस समय तो हर कोई इसे भगवान का प्रकोप समझता था। एक-एक करके हमारे लोग मरने लगे। मेरे माँ-बाप भी उस रोग की चपेट में आकर चल बसे। एक दिन कुछ लोग आये और मुझे उठाकर एक गुफा में ले गये। वहां पता चला कि हमारे तांत्रिक बाबा ने कहा है कि काली माँ हमसे नाराज़ हैं, इसलिए हम लोग मर रहे हैं। उन्हें खुश करने के लिए हमें जानवरों की बलि चढ़ानी होगी। लोगों ने उसे जानवर दिये। पर साथ में वो तांत्रिक चोरी-छिपे कुछ बच्चे भी उठा लाया। देखते ही देखते मेरे सामने मेरे दो दोस्तों की गर्दन काट दी गयी और फिर मेरी बारी आयी। पर तभी एक धमाका हुआ और तांत्रिक बाबा गिर गये। उनकी छाती से खून निकलने लगा। फिर गुफा में किसी फ़रिश्ते की तरह लियाकत साहब आ गये।”
“पर वो जंगल में करने क्या आये थे?” इक़बाल ने पूछा।
“वो अपने दोस्तों के साथ शिकार पर आये थे। उन्हें गुफा दिखाई दी, तो वहां आ गये। मेरी किस्मत थी जो उन्हें वहां खींच लायी। फिर वो मुझे अपने साथ ले आये, और मुझे अपने बच्चे की तरह पाला।”
“हूँ! पर इस तरह तो तुम अपने लोगों के दुश्मन नहीं बन गये?”
“नहीं! कुछ ही दिन बाद मेरे कबीले के लोग महल आये थे, और बताने लगे कि वो तांत्रिक नरभक्षी था और अपनी भूख मिटाने के लिए सारा ढोंग कर रहा था। उन्होंने साहब को उसे मारने के लिए धन्यवाद दिया।”
“फिर तुम वापस अपने लोगों के बीच क्यों नहीं गये?”
“मैं तो बहुत छोटा था, खुद के लिए क्या फैसला करता? साहब ने मेरे लोगों से कहा कि वो मुझे रखना चाहते हैं, तो मेरे लोगों ने विरोध नहीं किया।”
“बहुत बढ़िया!” इक़बाल ने ताली बजाई। “तुम्हारी राम कहानी सुनकर बहुत अच्छा लगा। अब ये भी बता दो कि तुम्हारे लोगों ने हम लोगों पर जानलेवा हमला क्यों किया?”
“हाँ भाई।” नफ़ीस भी बोला- “अपुन लोग ने उनका क्या बिगाड़ा है?”
“ऐसा नहीं है। जिस व्यक्ति ने आप पर हमला किया, उसे कुछ हो गया था।”
“क्या हो गया था? मिर्गी का दौरा पड़ा था?”
“पता नहीं! बाकी लोगों को भी नहीं पता कि उसने ऐसा क्यों किया। उसे खुद भी नहीं पता।”
“अच्छा?” इक़बाल उठकर टहलने लगा। “फिर उससे उगलवा लेते हैं कि उसने ऐसा क्यों किया।”
“आप लोग इन चक्करों में मत पड़िए।”
“भरोसा करो- हमारा तो जीवन इन्ही चक्करों में कट गया है।”
ड्रैकुला चुप हो गया।
उसके बाद कुछ बात नहीं हुई। उन लोगों ने दोपहर का खाना खाया और सो गये।
☠☠☠

शाम को वो लोग उठे और दो घोड़े लेकर घूमने निकल लिये। ड्रैकुला ने उन्हें जंगल की तरफ न जाने की सलाह दी थी।
वे लोग बस्ती में घुड़सवारी करते हुए निकल गये। वहां के लोग उन्हें उत्सुकता से देख रहे थे।
एक जगह उन्हें वहीं आदमी दिखाई दिया जिसने उन्हें बस स्टॉप से सोहनपुर आने तक मदद की थी.
वह अपने घर के बाहर चारपाई पर बैठा हुक्का पी रहा था.
“कैसे हैं अंकल?” इक़बाल घोड़े की लगाम खींचकर बोला.
वो ध्यान उन्हें से देखते हुए पहचानने की कोशिश करने लगा.
“आप हमें बस स्टॉप पर मिले थे.”
“अच्छा हाँ! कैसे हो? लियाकत साहब कैसे हैं?”
“एकदम बढ़िया!”
“झूठ क्यों बोल रये हो?” नफ़ीस फुसफुसाया.
“आप चुप रहिए.” इक़बाल फिर उस आदमी की तरफ पलटा. “आप तो मिलते होंगे उन से, आपका नाम क्या है वैसे?”
“मैं क्यों मिलूँगा...” कहते हुए वह हंसा. “वैसे नीचे आओ तो एक काम की बात बताता हूँ.”
इक़बाल घोड़े से उतरा और उसकी चारपाई पर आकर बैठ गया.
“हुक्का पियोगे?” उसने पूछा.
“नहीं! शुक्रिया!”
उस ने हुक्के से एक लंबा कश मारा और ढेर सारा धुआँ उगला. इक़बाल ने नाक पर रुमाल लगा लिया.
“हे-हे! तुम शहरी लोग कितने कमजोर होते हो.”
“एकदम सच कह रहे हैं आप. वैसे यहीं काम की बात बताने वाले थे आप?”
“नहीं बच्चे! मैं तो मज़ाक कर रहा था. काम की बात ये है कि ये जो लियाकत है...” कहते हुए उसने अगल-बगल देखा फिर धीमी आवाज़ में बोला, “अब सामान्य नहीं रहा.”
“अच्छा! मतलब क्या है आपका?”
“उसका पेंच ढीला हो चुका है. होना ही था, अकेले रहते-रहते हो जाता है. जब तक उसकी बीवी थी, बढ़िया था उस के बाद धीरे-धीरे पगला गया.”
“ऐसी क्या हरकत की उन्होंने?”
“क्या क्या बताऊँ? बहुत ऊल-जलूल हरकतें और तांत्रिकों की संगत में रहने लगा.”
“तांत्रिक!”
“हाँ! एक बंगाली तांत्रिक दोस्त है उसका. न जाने क्या करवा रहा है उस से. मुझे लगता है अमर होने का मंत्र करवाता होगा.” कहकर वो हँसने लगा. “या अपनी मरी बीवी को ज़िन्दा करा रहा होगा.”
अब वह जोर-जोर से हँसने लगा. इक़बाल उठ गया.
“चलता हूँ.”
वो घोड़े पर चढ़ गया.
“जाओ बच्चों! पर मेरी बात याद रखना! सामान्य इन्सान जंगली जानवर नहीं पालते.” वह संदेह भरी मुस्कान के साथ बोला.
इक़बाल और नफ़ीस आगे बढ़ गये.
“क्या बोल रा था वो शराबी?” नफ़ीस ने पूछा.
इक़बाल ने बताया.
“तुम काये को उस के मुंह लगे. वो पागल है बुड्ढा!”
“पर अगर इस बात में थोड़ी भी सच्चाई हुई तो? आखिर भेड़िये कौन पालता है?”
“ए लो- जंगल बुक में जब भेड़िये इंसान पाल सकते हैं तो इंसान भेड़िये क्यों नहीं?”
इक़बाल ने अचम्भे के साथ नफ़ीस को देखा. “भाई! आज आपने जीवन में पहली बार बुद्धिमानी की बात की है.”
“हे-हे!” नफ़ीस का सीना चौड़ा हो गया.
बस्ती पार करके वो लगभग बस स्टॉप तक पहुँच गये। उन्हें दूर एक व्यक्ति बैग लिए पैदल आता नज़र आया।
“ये तो कोई हमारी तरह गिरता-पड़ता आ रहा है।” नफ़ीस बोला।
“आ रही है।” इक़बाल ध्यान-से देखते हुए बोला।
उसका कहना सही था- वो एक लड़की ही थी। उसने जींस-टी शर्ट पहन रखी थी। उसके पास बड़ा-सा बैग था, जिसे वो किसी तरह से खींचते हुए ला रही थी।
लड़की की नज़र उन पर गयी, तो वो जोर-जोर से हाथ हिलाने लगी।
“नफ़ीस भाई! आपको बुला रही है।”
“क्या बात कर रहे हो?” नफ़ीस का मुंह खुला का खुला रह गया।
वे लोग उसके पास पहुंचे। लड़की बेहद खूबसूरत थी। गोरा रंग, घने काले बाल, तीखे नैन-नक्श। नीले रंग की जींस और काली शर्ट उस पर खूब जंच रही थी। हाथों में लाल रंग के कड़े थे।
उसे देखकर नफ़ीस पलकें झपकाना भूल गया।
“प्लीज़! मेरी मदद करिए।” वो उनसे बोली, “क्या यहां कोई ऑटो, टैक्सी वगैरह मिल सकती है?”
“आप जैसी खूबसूरत लड़की की कौन साला गधा मदद नई करेगा?” नफ़ीस के मुंह से बरबस निकल गया।
“जी?” वो चौंकी।
“कुछ नहीं!” इक़बाल घोड़े से उतरते हुए बोला- “इनकी मज़ाक करने की आदत है। वैसे यहां कोई साधन नहीं मिलेगा। आपको जाना कहाँ है?”
“मुझे लियाकत खान के घर जाना है।”
“अरे बाप रे!” नफ़ीस के मुंह से निकला, फिर वह ‘ही-ही’ करके हँसने लगा।
“लगता है आपके इस लंबे दोस्त के ऊपरी माले में कुछ गड़बड़ है।” लड़की कुछ गुस्से में बोली।
नफ़ीस झट से चुप हो गया। वह सोचने लगा- ‘बेटा नफ़ीस! ये क्या कर रा है तू? लड़की को देखकर पागल हो गया है क्या? खुद को संभाल, क्या पता तेरी किस्मत में इस लड़की का साथ मिलना लिखा हो। तभी अल्लाह ने इसे सीधे चचाजान के घर भेज दिया।’
“सॉरी-जी!” नफ़ीस ने बात संभालते हुए कहा- “अपुन को इसलिए हंसी आ गयी, क्योंकि हम भी उनके घर आये हुए हैं।”
“ओह! इज़ इट?”
“जी हां!” इक़बाल बोला- “हमारे भाईसाहब लियाकत खान के भतीजे हैं।”
“ओह! नाईस टू मीट यू।” उसने दोनों से हाथ मिलाया। नफ़ीस को उसका स्पर्श हुआ तो वो कांपने लगा।
“क्या हुआ आपको?” उसने पूछा।
“कुछ नई। अपुन को थोड़ा सा बुखार है, इसलिए कंपकंपी हो रही है। अ...आप का शुभ नाम?”
“सॉरी! मैंने अभी तक अपना परिचय नहीं दिया। मेरा नाम दिव्या सेठ है। मैं एक डॉक्टर हूँ।”
“मैं इक़बाल हूँ, और ये मेरे दोस्त- नफ़ीस। लगता है- चचा ने आपको बुलाया होगा?” इक़बाल ने पूछा।
“नहीं ऐसा नहीं है। दरअसल वो मेरे पापा के बहुत अच्छे दोस्त हैं। दोनों कॉलेज में साथ थे। पापा अभी अमेरिका गये हुए हैं। उन्हें पता चला कि लियाकत अंकल की तबियत खराब है, तो उन्होंने मुझे बताया और मैं उनको देखने आ गयी। अभी कैसे हैं वो?”
“अभी तक तो अपुन लोग भी उनसे नहीं मिले।” नफ़ीस सर खुजलाते हुए बोला।
“क्या मतलब?”
“हम दोनों के पहुँचने से पहले वो किसी काम से कई निकल गये।”
“अच्छा? पापा तो कह रहे थे- उनकी तबियत बहुत खराब है। कई दिनों से घर में ही आराम कर रहे हैं।”
“यहीं तो अजीब बात है।” इक़बाल सोचते हुए बोला।
“अरे कुछ नई!” नफ़ीस इक़बाल की बात दबाते हुए बोला- “नवाब लोग हैं! छोटी-मोटी बीमारी से उनका आना-जाना थोड़ी न रुक जायेगा। आप आईं भौत अच्छा किया। चचाजान इतने सारे लोगों को देखकर बहुत खुश होंगे। चलिए अपुन आपको उनके महल ले चलते हैं।”
“नफ़ीस भाई!” इक़बाल उसके कान में फुसफुसाया- “कहाँ लाइन मार रहे हो? हिंदू लड़की है। सारे ज़माने से मार खाओगे।”
“तुम पागल हो! प्यार में जात क्या धर्म क्या?”
“डॉक्टर लड़की है। और आप...?”
“अमा, तो अपुन क्या भिखारी हैं?” नफ़ीस को गुस्सा आ गया।
“क्या हुआ? कुछ प्रॉब्लम है?” दिव्या ने उत्सुकता से पूछा।
“कुछ नई! अपुन के रये थे कि सोहनपुर में एक बड़ा हॉस्पिटल बनवाएंगे।”
“गुड! आप क्या बिल्डर हैं?”
“अपुन करोड़पति ठेकेदार हैं!”
“हम्म!” दिव्या सर हिलाते हुए मुस्करायी। “बहुत खूब। अब चले क्या?”
“बिलकुल! आ जाइये।” कहकर नफ़ीस घोड़े की तरफ चल दिया।
जैसे ही नफ़ीस घोड़े पर चढ़ा उसने अपना बैग उसकी तरफ बढ़ा दिया।
“प्लीज़! इसे पकड़ लीजिए।”
फिर दिव्या इक़बाल के साथ उसके घोड़े पर बैठ गयी। नफ़ीस हैरानी से उसे देखता रहा। उसे पूरी उम्मीद थी कि वो उसके साथ बैठेगी।
“बैग भारी है क्या?” उसे यूँ देखते हुए दिव्या बोली- “सॉरी नफ़ीस!”
“अजी! सॉरी की क्या बात है। ये तो अपुन के लिए कुछ भी नहीं है।”
इक़बाल ने नफ़ीस को चिढ़ाते हुए जीभ दिखाई और घोड़ा आगे बढ़ा दिया। दिव्या ने कस के इक़बाल को पकड़ लिया। नफ़ीस ये देखकर जला-भुना जा रहा था।
“इक़बाल भाई! तुम्हारा सत्यानाश हो!” बैग को किसी तरह घोड़े पर टिकाते हुए वह बड़बड़ाया।
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महल में ड्रैकुला ने सबका स्वागत किया।
“ड्रैकुला डियर!” इक़बाल ने कहा- “ये भी हमारी तरह तुम्हारे साहब की मेहमान हैं। डॉक्टर साहिबा को एक कमरा दे दो।”
ड्रैकुला ने उसका बैग उठाया और ऊपर चल दिया।
“थैंक यू!” दिव्या ने दोनों को प्यारी-सी मुस्कान दी और चली गयी।
“पता नहीं क्या चक्कर है।” इक़बाल ने सोफे पर बैठते हुए कहा।
“क्या बक रे हो?” नफ़ीस अभी-भी उससे चिढ़ा हुआ था।
“नहीं! मैं अभी-भी इंसान हूँ, भाईजान। पर मुझे लग रहा है- आप इस लड़की के चक्कर में ज़रूर गधे बन जायेंगे।”
नफ़ीस इक़बाल को मारने दौड़ा।
इक़बाल झट से कूद कर सोफे के दूसरी तरफ आ गया।
“क्या हुआ? आप तो गधे की जगह पागल सांड बन गये।”
“अभी तुम्हें पीट कर अपुन गधा बनायेंगे।” कहकर नफ़ीस सोफे पर चढ़ गया।
इससे पहले कि नफ़ीस इक़बाल पर छलांग लगाता, ऊपर से चीखने की आवाज़ आयी। दोनों आपसी लड़ाई छोड़कर फुर्ती के साथ सीढ़ियों की तरफ लपके।
ऊपर का नज़ारा देखकर दोनों बौखला गये। शेरा ने दिव्या पर हमला कर दिया था, वो सीढ़ियों की तरफ भाग रही थी। वह लड़खड़ाते हुए गिरने ही वाली थी कि नफ़ीस ने उसे संभाल लिया। इक़बाल ने शेरा के मुंह पर ज़ोरदार लात मार दी। शेरा चीखता हुआ दूर जा गिरा।
ड्रैकुला भागते हुए वहां पहुंचा और उसने तुरंत शेरा को पकड़कर बाँध दिया। शेरा उसके सामने एकदम शांत हो गया। पर बंधने के बाद वो गुर्राते हुए इक़बाल को देखने लगा।
“ये कैसे खुल गया?” इक़बाल ने डांटते हुए ड्रैकुला से पूछा।
“पता नहीं साहब! लगता है, चेन खुल गयी होगी।”
“इसे कहीं और ले जाकर बाँधो वरना मैं इसे गोली मार दूँगा।”
ड्रैकुला भेड़िये को लेकर नीचे चला गया।
दिव्या ने अपना चेहरा नफ़ीस के सीने में छिपा रखा था। वो भय से कांप रही थी।
“तुम ठीक हो न?” इक़बाल ने पूछा।
“ह...हां!” कहकर वो नफ़ीस से अलग हुई। उसे पता नहीं था कि उसके सामिप्य के कारण नफ़ीस के दिल की धड़कन कितनी तेज हो गयी थी।
“ये चचा का भेड़िया है। पता नहीं क्यों पाल रखा है।”
“भ...भला भेड़िया भी कोई पालने की चीज़ है?” दिव्या की आँखों में अभी-भी भय तैर रहा था। “मुझे तो लगा वो मुझे खा जायेगा।”
“अरे उसकी इत्ती हिम्मत।” नफ़ीस छाती फुलाते हुए बोला- “अपुन के होते हुए आपका बाल भी बांका नहीं हो सकता।”
“जी हां!” इक़बाल भी अकड़ा। “देखा मेरी एक किक में वो कहाँ जाकर गिरा?”
“आप दोनों को शायद भगवान ने ही मेरी मदद के लिए भेजा है। बहुत-बहुत शुक्रिया।”
“ज्यादा तकल्लुफ करने से सेहत खराब हो जाती है। आपके चेहरे का तो रंग ही उतर गया।” इक़बाल बोला- “आप आराम करो। फिर खाना-वाना खायेंगे।”
दिव्या अपने कमरे में चली गयी।
उसके जाते ही नफ़ीस इक़बाल पर झपटा।
“इक़बाल भाई! सलमा भाभी के होते हुए आप यहां लाइन क्यों मार रे हो?”
“मैं तो बस आपको सैंडिल की मार से बचाने की कोशिश कर रहा हूँ।”
“तुम अपुन के दोस्त नहीं दुश्मन हो।”
“भाईजान!” इक़बाल मुस्कराया। “देखना कुछ टाइम बाद आप इसका उल्टा बोलोगे।”
उसके बाद दोनों नीचे आ गये।
डिनर के समय दिव्या नीचे पहुंची। ड्रैकुला सबके लिए खाना लगा ही रहा था कि गेट पर कार के हॉर्न की आवाज़ आयी।
“लगता है- साहब आ गये।” ड्रैकुला ने खुश होते हुए कहा और बाहर चला गया। बाकी लोग भी उत्सुकता के साथ बाहर निकले।
ड्रैकुला ने मुख्य द्वार खोला और फिर एक बेहद पुरानी पर शानदार कार महल के अंदर आ गयी।
कार से लियाकत खान उतरा।
लियाकत खान के चेहरे से ही रईसी झलकती थी। उम्र साठ-सत्तर के बीच होगी, किंतु चेहरे पर कांति थी। पीठ एकदम सीधी थी। चेहरा गर्व से ऊँचा उठा हुआ था। चेहरे पर लंबी सफ़ेद मूंछे थी जो कि गालों तक पहुँचती थी। आँखों पर गोल लेंस वाला चश्मा था।
“चचाजान!” नफ़ीस दौड़कर उनसे लिपट गया।
लियाकत ने प्यार से उसकी पीठ थपथपाई। “दिन ब दिन लंबे होते जा रहे हो। कहाँ तक पहुँचने का इरादा है, मिया?”
“इनके ब्रेक तो अब क़ुतुब मीनार की ऊंचाई पर पहुँच कर ही लगेंगे।”
“हा-हा-हा!” लियाकत दिल खोल कर हंसा। “लगता है- तुम इक़बाल हो।”
“लगता है मेरे चर्चे बहुत दूर-दूर तक फैले हैं। लेकिन सोहनपुर तक पहुंचे कैसे? यहां तो रिक्शा या ऑटो भी नहीं चलते।”
“नफ़ीस ने जिक्र किया था।” लियाकत ने उससे गले मिलते हुए कहा- “सही कहा था- बहुत शरारती हो।”
“भाईजान के सामने कुछ भी नहीं हूँ।” इक़बाल ने कहा तो सब हंस दिये।
नफ़ीस मुंह फुलाकर बड़बड़ाया- “अपुन कब शरारत करते हैं?”
“हेल्लो अंकल!” दिव्या चहकते हुए आगे आयी।
“अरे! तुम? तुम कब आयीं? माशाल्ला! कितनी बड़ी हो गयी हो।”
“आज ही! आपकी पापा से बात हुई थी न, तो उन्होंने मुझे आपकी तबियत के बारे में बताया. मैंने सोचा आपके हालचाल लेने आ जाती हूँ। लेकिन अंकल आप तो एकदम फिट लग रहे हो।”
लियाकत हंस दिया। फिर उसके चेहरे पर गंभीरता आ गयी। वो बोला-
“बच्चों! चलो अंदर चलकर बात करते हैं।”
सभी अंदर आ गये। ड्रैकुला भी कार से लियाकत का सामान निकालकर अंदर आ गया।
खाना पहले से ही लगा हुआ था। सभी ने खाना शुरू किया। नफ़ीस ने उत्सुकता के साथ पूछा-
“अपुन को तो मालूम था- आप एकदम तंदरुस्त होंगे। पर आप चले कहाँ गये थे?”
लियाकत ने ध्यान-से नफ़ीस को देखा। उसके चेहरे पर गंभीरता थी। कुछ सोचने के बाद वो बोला-
“हमारी तबियत वाकई काफी खराब थी। कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या हुआ। बुखार उतर ही नहीं रहा था। लगातार खांसी आ रही थी, खून निकल रहा था। डॉक्टरों को दिखाया पर कोई दवा असर नहीं कर रही थी। फिर कुछ दिन पहले अनोखे व डरावने सपने आने लगे। रात को बार-बार नींद खुल जाती थी। लगता था- कोई हमारे आस-पास है। किसी अनोखी शक्ति का अहसास हो रहा था, जो हमारी दुश्मन बनी बैठी थी।”
“अरे बाप रे!” नफ़ीस की आँखें फैल गयी। “ये सब क्या चक्कर है?”
“यहीं पता करने हम अपने एक खास दोस्त से मिलने गये थे। वो बंगाल से है और भूत-प्रेत जादू-टोना के बारे में काफी कुछ जानता है।”
“ओह गॉड! मुझे तो ये सब सुनकर भी डर लग रहा है।” दिव्या बोली।
“आप इन सब चीजों पर यकीन करते हैं?” इक़बाल ने पूछा।
“यकीन तो नहीं करता था बेटे-” लियाकत ने कहा, “पर हमारे साथ जो हो रहा था और उसके बाद हमारे दोस्त की मदद से जिस तरह हम ठीक हो गया, हमें यकीन करना पड़ा।”
“उन्होंने क्या किया?” दिव्या ने पूछा।
“उसने हमें बताया कि ऐसा हो सकता है कि हमारे ऊपर भूत-प्रेत का साया हो, इसलिए उसने हमें एक ‘रक्षा कवच’ पहनने के लिए दिया। उसे पहनने के बाद से हमें काफी फर्क लगा। हम उसी के घर सो गये। दूसरे दिन सो कर उठे तो तबियत भी एकदम दुरुस्त हो गयी।”
“ओह!” दिव्या के मुंह से निकला।
“दिव्या जी!” इक़बाल बोला- “देख लो इस तरह लोगों का इलाज़ होने लगा तो आपकी दुकान कैसे चलेगी?”
“ऐसी चीज़ों का तो हमारे पास भी कोई इलाज़ नहीं है।”
“अब छोड़ो इन बातों को।” लियाकत अचानक मुस्कराते हुए बोला- “तुम लोग यहां आये, तुम्हें देखकर तो हमारी तबियत और भी अच्छी हो गयी।”
“फिर भी मैं कल आपका चैक-अप करूंगी।” दिव्या सख्त स्वर में बोली।
“हा-हा! अरे बाबा कर लेना। पर हम कहना चाह रहे थे कि अब तुम लोग कुछ दिन यहीं रुककर छुट्टी मनाओ। यहाँ घूमने फिरने की बहुत अच्छी जगह हैं। तुम लोग शहर की भाग-दौड़ में रहने वाले लोग हो, यहाँ तुम्हें सुकून मिलेगा.”
इक़बाल सोच रहा था कि उन लोगों को आदिवासी के हमले की बात बताये या नहीं, फिर वो ये सोचकर चुप रहा कि उससे लियाकत नाहक ही परेशान हो जायेगा।
भोजन समाप्ति के बाद सभी अपने-अपने कमरों की तरफ बढ़ गये।
दिव्या ने कमरे में पहुँचकर नाइट ड्रेस पहनी और फिर शीशे के सामने बैठकर अपने बालों को संवारने लगी। सामने काफी बड़ा और पुश्तैनी सिंगारदान था। उसमे कुछ दराज़ें भी थी। दिव्या ने सोचा अपना कुछ रोज-मर्रा का सामान उसमे रख ले। उसने बैग से सामान निकाल लिया और दराज़ खोला।
दराज़ खोलते ही उसके कंठ से चीख निकल गयी और वह तुरंत कमरे से बाहर भागी।
शेरा उसके शोर से उठ गया और जोर-जोर से भौंकने लगा।
इक़बाल और नफ़ीस तुरंत अपने कमरे से बाहर आये। दिव्या तुरंत इक़बाल से लिपट गई।
“वो...वो...”
“क्या हुआ?”
“वो...वहां...” उसने कमरे की तरफ इशारा किया।
“क्या है वहां?” नफ़ीस ने पूछा।
“वहां...उफ़! मैं पागल हूँ जाऊँगी. वहां दराज़ में हाथ हैं।”
“कैसे हाथ?” इक़बाल ने पूछा पर दिव्या कुछ बोलने की हालत में नहीं थी. वह नफ़ीस के साथ उसके कमरे की तरफ बढ़ गया। दिव्या ने अंदर आने का साहस नहीं किया।
तब तक शोर-शराबा सुनकर लियाकत और ड्रैकुला भी ऊपर आ गये।
“यहां तो कुछ नहीं है।” इक़बाल ने खुले हुए दराज़ को देखा। फिर एक-एक करके सारे दराज़ चैक करे। सिंगारदान के आगे-पीछे हर तरफ देखा।
दिव्या बेहद घबराई हुई थी। वह किसी तरह सहमते हुए अंदर आयी। लियाकत के चेहरे पर उलझन थी। ड्रैकुला बेचैन-सा खड़ा था।
“पर मैंने खुद देखा था। उसके अंदर दो कटे हुए हाथ पड़े थे।”
“हाथ?” लियाकत के चेहरे पर ख़ौफ़ के बादल छा गये।
“डॉक्टर साहिबा!” इक़बाल बोला- “ऐसा हो जाता है कभी-कभी। आज आप पर शेरा ने हमला किया था। फिर आपने भूत-प्रेत की बातें सुनी। ज़रूर कुछ वहम हुआ होगा।”
“नहीं! मुझे वहम वगैरह कभी नहीं होता।”
“स...साहब!” ड्रैकुला भय से कांप रहा था। “मुझे तो ये किसी भूत का मायाजाल लग रहा है।”
“अमा डकारुराम!” इक़बाल ने हाथ नाचते हुए कहा- “हमने बड़े-बड़े भागते भूतों की लंगोट पकड़ी है। देख लेंगे- इसमें कितना दम है।”
“इक़बाल बेटे!” लियाकत ने कहा- “इन हालातों में हमें इस बात को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिये। कोई तो है जो हमारे पीछे पड़ा है। पर तुम लोग हमारी वजह से किसी मुसीबत में न पड़ जाओ। तुम लोग वापस चले जाओ।”
“अजी! आपको भूत-वूत के साथ छोड़कर अपुन कहीं नहीं जाने वाले।” नफ़ीस तुरंत बोला।
“बिलकुल!” इक़बाल बोला- “अब तो इसकी लंगोट उतार कर ही वापस जायेंगे। पर दिव्या जी आपका इन ख़तरों में रहना ठीक नहीं है।”
“मैं डरी ज़रूर हूँ।” दिव्या के चेहरे पर दृढ़ भाव थे। “पर भागने वालों में से नहीं हूँ।”
“अरे वाह! ये सुनकर भयानक प्रसन्नता हुई।”
“अपुन को भी आप बहुत अच्छी लगीं।” नफ़ीस के मुंह से निकल गया।
“क्या मतलब?”
“म...मतलब आपकी हिम्मत देखकर।”
“हमें अपने दोस्त को बुलाना होगा।” लियाकत बोला- “इस महल में कुछ तो है, जो सिर्फ और सिर्फ हमारा बुरा चाहता है।”
उसके बाद दिव्या को दूसरा कमरा दिया गया। फिर सब सो गये। रात को फिर कोई और घटना नहीं घटी।
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अगले दिन लियाकत ने अपने बंगाली दोस्त को फोन किया और वो दोपहर तक महल में आ गया।
उसका नाम आनंद दास था। उसकी उम्र पैंतीस के आस-पास रही होगी। चेहरा सांवला था, शरीर कुछ मोटा था।
वह सबसे मिला। इक़बाल ने उससे हाथ मिलाते हुए कहा- “बाबू मुशाय आपका स्वागत है।”
“धन्यवाद!” वह मुस्कराया।
“तो आप भूत भगाने के सारे औज़ार ले आये?” इक़बाल ने उसके बड़े से बैग की तरफ इशारा किया।
वह सिर्फ मुस्करा दिया। कुछ बोला नहीं।
फिर उसने ड्रैकुला से नीम्बू लाने को कहा।
“मैं चैक करना चाहता हूँ कि वाकई महल में कोई अज्ञात शक्ति है कि नहीं।” उसने लियाकत से कहा।
इक़बाल कुछ बोलना चाहता था, पर लियाकत ने उसे चुप रहने का इशारा किया। नफ़ीस और दिव्या सब कुछ ध्यान-से देख रहे थे।
आनंद ने महल के कई कमरों में कपड़े में नीम्बू बाँधकर रखवा दिये।
उसने जब शेरा को देखा तो पूछा-
“ये कुत्ता है?”
“नहीं! ये भेड़िया है।” लियाकत बोला।
“क्या?” वह चौंका।
“हाँ! हम लोग भी जानना चाहते थे अंकल।” दिव्या बोली- “आपने इसे क्यों पाल रखा है? पता है- इसने मेरे ऊपर हमला भी किया था।”
“ओह! ऐसा क्या? वैसे तो ये शांत रहता है। हमें तो ये जंगल में मिला था। छोटा-सा प्यारा-सा कुत्ते के बच्चे जैसा ही लग रहा था, तो हम इसे अपने साथ ले आये।”
“आपको जंगली चीज़ें उठाकर लाने का पुराना शौक मालूम पड़ता है।” इक़बाल ड्रैकुला की तरफ देखते हुए बोला।
लियाकत मुस्करा दिया। ड्रैकुला गुस्से-से इक़बाल को देख रहा था।
“क्या भेड़िया आज-कल रो भी रहा है?” आनंद ने पूछा।
“हुंह!” इक़बाल ने मुंह बनाया- “अब आप कहेंगे भेड़िया रोता है, क्योंकि उसे भूत दिखता होगा।”
आनंद हंसा- “मुझे पता चल रहा है- तुम्हें इन सब चीज़ों पर विश्वास नहीं है, पर कभी-कभी कुछ चीज़ें समझना मुश्किल होता है। हमारे नज़रअंदाज़ करने से उनका अस्तित्व समाप्त नहीं हो जाता। आप लोग शहरों में रहते हैं। वहां के शोर-शराबे और भीड़-भाड़ में इन्हें समझना मुश्किल ही होता है। पर ये एक बेहद शांत जगह है। आस-पास जंगल भी है, और महल बेहद पुराना है। ऐसी जगहों पर अक्सर ऐसी घटनाएँ होती रहती हैं।”
इक़बाल ने कुछ नहीं कहा।
“हां! तो क्या ये आज-कल कुछ ज्यादा रो रहा है?” आनंद ने लियाकत और ड्रैकुला की तरफ देखा।
“हां दास! हमें ऐसा लग रहा है और जैसा दिव्या बेटी ने बोला, हमें आश्चर्य हुआ, क्योंकि आज से पहले इसने कभी किसी इंसान पर हमला नहीं किया।”
“हूँ! यानि ज़रूरत से ज्यादा आक्रामक भी हो रहा है।” कहकर उसने पास जाकर शेरा को देखा।
शेरा भी सर उठाकर उसे देखने लगा।
आनंद पैनी नज़रों से उसे देख रहा था। शेरा धीरे-धीरे गुर्राने लगा। उसकी आँखों से मानो अंगारे निकलने लगे।
आनंद धीरे-से मुस्कराया। शेरा गुर्राते हुए उस पर झपट पड़ा। आनंद तुरंत पीछे हट गया। चैन से बंधे होने के कारण शेरा उसे कोई नुक्सान नहीं पहुंचा सका। वह जोर-जोर से भौंकने लगा।
“शेरा! शांत!” लियाकत चिल्लाया।
पर वह चुप नहीं हुआ।
“लगता है- मैं पसंद नहीं आया।” आनंद बोला और नीचे की तरफ चल दिया।
बाकी लोग भी उसके पीछे-पीछे आ गये। उनके जाने के बाद ही शेरा शांत हुआ।
नीचे आने के बाद आनंद ने सबसे पहले लियाकत के कमरे में रखे नीम्बू को चैक किया।
उसने अपनी जेब से चाकू निकाला और उस नीम्बू को काट दिया। कटे हुए नीम्बू के अंदर लाल रंग दिख रहा था।
“ओह गॉड!” दिव्या का दिल दहल उठा।
“मुझे पता था- ये पक्का भूत-प्रेत का चक्कर है।” ड्रैकुला बोला।
लियाकत के चेहरे पर ख़ौफ़ था।
“मैंने लाल रस वाले नीम्बू पहली बार देखे हैं।” इक़बाल नाटकीय आश्चर्य व्यक्त करते हुए बोला- “किस मंडी में मिलते हैं?”
“मिस्टर इक़बाल!” आनंद पहली बार तनिक गुस्से में बोला- “ये सबूत है- महल का प्रेतग्रस्त यानि हौन्टेड होने का।”
“मुझे तो शक है।”
“किस चीज़ पर?”
“नीम्बू और चाकू दोनों पर।” इक़बाल ने उल्लुओं की तरह पलकें झपकाई।
“तुम कहना क्या चाहते हो?” आनंद ने आँखें फैलायीं।
“मेरे साथ सभी लोग किचन में आ जाओ।” कहते हुए इक़बाल किचन की तरफ बढ़ गया।
“मालूम नहीं इक़बाल भाई कौन-सी खिचड़ी पका रे हैं।” नफ़ीस दिव्या के कान में बोला।
“चख कर देख लेंगे।” वह बोली।
सभी लोग इक़बाल के पीछे-पीछे किचन में पहुँच गये।
इक़बाल ने एक नीम्बू लिया और किचन में रखे एक चाकू से काट दिया। फिर उसने हल्दी ली और नीम्बू के अंदर लगा दी। फिर उसने चाकू पर थोड़ा साबुन का घोल डाला और फिर नीम्बू के दो और टुकड़े कर दिये। देखते ही देखते नीम्बू के अंदर लाल रंग दिखने लगा। सभी अचंभित रह गये।
“वाह क्या बात है।” नफ़ीस ताली बजाते हुए बोला- “तुमने तो जादू-शादू कर दिया।”
“हुंह!” आनंद के चेहरे पर उपहास भरी मुस्कान आ गयी। “इतना विज्ञान मुझे भी पता है। ऐसा करने से लाल रंग होता है।”
“आपने निम्बू में हल्दी के घोल का इंजेक्शन पहले से लगाया होगा.”
“हा-हा! मैंने नीम्बू और चाकू आप लोगों से ही लिए थे, अपने घर से नहीं लाया था।”
“इक़बाल बेटे!” लियाकत बोला- “आनंद दास हमारे पुराने मित्र हैं। इन पर शक करना बंद करो। ये जो भी कर रहे हैं, हमारी दोस्ती की ख़ातिर कर रहे हैं। माफ करना दास! इक़बाल एक जासूस है, शक करना तो इसकी फितरत में है।”
“कोई बात नहीं, खान साहब! इसमें कोई बुरी बात नहीं है। मुझे तो आदत है, अधिकतर लोग जिनसे मैं मिलता हूँ, आपकी तरह इन सब चीज़ों पर यकीन नहीं करते। सबका अपना-अपना नज़रिया है। पर मैं इतना बता सकता हूँ, कि महल में निश्चित ही किसी अज्ञात शक्ति का वास है। और वो आप पर हावी हुई है। उस पर काबू पाने के लिए, जानना होगा कि वो कौन है।”
“ये जानने के लिए तो मैं भी बहुत उत्सुक हूँ।” लियाकत ने कहा।
“सॉरी बाबू मुशाय!” इक़बाल बोला- “हम भी आपके साथ हैं। चचाजान के पीछे जो कोई भी है, चाहे वो भूत-प्रेत क्यों न हो, हम उससे निपटने के लिए तैयार हैं।”
लियाकत वापस बैठक की तरफ सब लोगों को ले आया। सभी ने बैठने के लिए सोफे, कुर्सी आदि ले लिए।
“डॉक्टर साहिबा!” इक़बाल दिव्या से बोला- “अभी भी टाइम है। आप फ़रार हो सकती हो।”
“मैंने कहा न- मैं भागने वालों में से नहीं हूँ।”
“भूत-प्रेत का मामला है। डर नहीं लग रहा?”
“क्या तुम इनमें विश्वास करते हो?” दिव्या ने आँखें मटकाकर पूछा।
“हां! बिलकुल करना पड़ रहा है। तुम्हारे कमरे में कटे हुए हाथ जो मिले थे।”
“उफ़!” दिव्या याद करके सिहर उठी। “यू आर सो मीन! तुम मुझे डराने की कोशिश कर रहे हो!”
“ठीक समझी!” इक़बाल ढिठाई के साथ बोला.
“डरेगा मेरा ठेंगा।” उसने अंगूठा दिखाया।
नफ़ीस दूसरे सोफे पर बैठकर उन्हें घूर रहा था। उसने चुपके से इक़बाल को मुक्का दिखाया। इक़बाल ने उसे जीभ निकालकर चिढ़ा दिया।
आनंद और लियाकत इस बीच कुछ बात कर रहे थे। आनंद ने पूछा-
“कोई तो आपका दुश्मन होगा? जो शायद जादू-टोना करके आपसे बदला ले रहा है।”
लियाकत सोचते हुए छत की तरफ देख रहा था। वह बोला- “पता नहीं! इतनी लंबी जिंदगी में कितने दुश्मन बने और दोस्त। क्या पता कौन किस बात का बदला ले रहा हो?”
“चचाजान!” नफ़ीस बोला- “आपने तो बहुत शिकार-विकार किये हैं, जंगल में...जानवरों के, शैतानों के...”
“शैतान?” लियाकत ने उसे घूरकर देखा।
“इंसान की चमड़ी में शैतान?” इक़बाल बोला।
दोनों लियाकत को तांत्रिक की याद दिलाना चाह रहे थे, जिसका ज़िक्र ड्रैकुला ने अपनी कहानी में किया था।
“तांत्रिक बाबा!” उनका मतलब समझते हुए ड्रैकुला बोला।
“हाँ!” लियाकत याद करते हुए बोला- “कई साल पहले एक शैतान तांत्रिक को मैंने मारा था।”
“कौन-सा तांत्रिक? कब और कहाँ?” आनंद की भवें तन गयीं।
“कई साल पहले की बात है। हमें ज्यादा कुछ याद नहीं। हम जंगल में शिकार करने गये थे। फिर उस तांत्रिक का हमने क़त्ल कर दिया, क्योंकि वो बच्चों की बलि दे रहा था।”
“ये महत्वपूर्ण है। डीटेल में बताइए।”
“बहुत मुश्किल है। करीब चालीस साल पुरानी बात होगी।”
“उसका इलाज़ है मेरे पास।” कहकर आनंद ने अपने बैग से एक घड़ी निकाल ली। “मैं आपको सम्मोहित करूँगा। उस अवस्था में आपका सब्कांशियस माइंड सक्रिय हो जायेगा। और आपके दिमाग में छुपी उस समय की हरेक बात आप बता पाएंगे।”
“हम तैयार हैं।”
“आराम से सोफे पर लेट जाइए।”
उसके बाद आनंद ने लियाकत की आँखों के सामने घड़ी हिलानी चालू कर दी।
“घड़ी को ध्यान-से देखते रहिये।”
आनंद ने कहा, लियाकत उसकी बात का अनुसरण करता रहा।
सभी उत्सुकता से देख रहे थे। कुछ देर बाद-
“अब आपकी आँखें थक गयी हैं। अपनी आँखें बंद करिए। जब मैं चुटकी बजाऊंगा तब आप जाग जाना।”
लियाकत ने आँखें बंद कर लीं।
“अब आप उस जंगल में हैं, चालीस साल पहले जहाँ आप शिकार करने गये थे। इस रात आपने उस शैतान तांत्रिक का क़त्ल किया था। अब मैं चुटकी बजाऊंगा और आप शुरू से बताएँगे कि उस रात क्या हुआ था।”
आनंद ने चुटकी बजाई।
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उन दिनों हमें शिकार का बेहद शौक था। उस वक़्त सोहनपुर का सीकर जंगल काफी घना हुआ करता था और इसमें एक से एक ख़ूँख़ार जानवर हुआ करते थे।
अपने भाई और अन्य दोस्तों के साथ हम अक्सर शिकार के लिए जाया करते थे. उस दिन भी हम लोग घोड़ों पर जंगल में निकले हुए थे। एक हिरन के पीछे-पीछे हम काफी दूर निकल गये और अपने दल से अलग हो गये। हिरन की किस्मत अच्छी थी, वो हमें नहीं मिला।
हम वापस लौटने लगे, पर अचानक ही एक अजीब से शोर ने हमें आकर्षित किया। आवाज़ का पीछा करते हुए हम एक गुफा के पास पहुँच गये। ऐसे घने जंगल में गुफा में से रौशनी आती दिखी तो हमें जिज्ञासा हुई। हालाँकि हमें पता था, कि जंगल में आदिवासी रहते हैं, पर उन लोगों की अलग बस्ती हुआ करती है। इस तरह एक कोने में गुफा में कौन-क्या कर रहा है, हम जानना चाहते थे।
हमने घोड़े को खड़ा किया और दबे पाँव गुफा में प्रविष्ट हो गये।
गुफा के अंदर का दृश्य देखकर हमारे रोंगटे खड़े हो गये।
अंदर आग जल रही थी। आग के उपर कंकालों के सर लटके हुए थे, और एक तांत्रिक और उसके कुछ साथी दिख रहे थे। वहां कुछ बच्चे भी थे।
“कितने बच्चे थे? ध्यान-से देखिये।” आनंद ने पूछा।
दो बच्चे ज़मीन पर पड़े हैं। उफ़! वो...वो...उनके सर कटे हुए हैं। एक बच्चा जीवित है और बैठा हुआ। दूसरा बच्चा खड़ा है, तांत्रिक ने उसे पकड़ रखा है। उसके हाथ में एक गंडासा है। वह निश्चित ही उसकी गर्दन काटने वाला है।
हमने तुरंत अपनी राइफल संभाली और तांत्रिक पर निशाना ताना, और चिल्लाये- “रुक जाओ!”
तांत्रिक ने चौंककर हमे देखा, पर वह रुका नहीं। उसने तेजी-से गंडासा घुमाया। हमने तुरंत फायर कर दिया। गोली उसके सीने में लगी और वो एक तरफ गिर गया।
उसको मरता देख उसके साथी भागने लगे। हमने उन्हें रोकना चाहा पर रोक न सके।
उसके बाद हम आग के पास पहुंचे। अंदर गुफा का दृश्य बहुत ही भयावह था। चारों तरफ कंकाल और इंसान के शरीर के टुकड़े पड़े थे। कुछ देर बाद वहां एक आदिवासी आया। उसने हमें बताया कि ये तांत्रिक उनके बच्चों को धोखे से उठा लाया था।
“फिर क्या हुआ?” आनंद ने पूछा।
एक बच्चा तो बेहोश हो गया था। हमने दूसरे बच्चे से बात की। वह बहुत डरा हुआ था।
“आपका मतलब ड्रैकुला? जिसे आप लेकर आये थे।” इक़बाल बोल पड़ा।
हां वहीं। उसने हमे बताया कि उसके माँ-बाप अब जीवित नहीं हैं। हमारा दिल करुणा से भर गया. हमने फैसला किया कि हम उसे अपने साथ ले चलेंगे।
“खान साहब!” आनंद के चेहरे पर रहस्मयी भाव थे। “जरा ध्यान-से याद करिये। क्या ये वहीं बच्चा है, जिसकी बलि चढ़ने वाली थी?”
हाँ! वहीं था।
“पर आपने कहा कि एक बच्चा बेहोश हो गया था। ज़रूर वो बच्चा बेहोश हुआ होगा जिसकी बलि चढ़ने वाली थी।”
लियाकत शांत हो गया। उसके चेहरे पर उलझन भरे भाव आ गये।
“याद करिये- वह बच्चा जिससे आपने बात की, बलि चढ़ते वक़्त, वहीं शांति से बैठा था?”
ह...हाँ!
“क्या उसे तांत्रिक के साथियों ने पकड़ रखा था, जब दूसरे बच्चे की बलि चढ़ रही थी?”
नहीं! वह बच्चा आग के पास शांति से बैठा था। उसके चेहरे पर मुस्कान थी।
“ऐसा कैसे हो सकता है?” दिव्या बोली- “वो बच्चा तो अपने सामने बलि चढ़ते देखकर, डर से कांप रहा होता।”
“आप बच्चे को ध्यान से देखिये।” आनंद अवचेतन लियाकत से बोला- “वो कैसा दिख रहा है? उसने क्या पहना हुआ है? कोई माला? तावीज? अंगूठी? साथ में तांत्रिक को भी याद करिये। हाँ! खान साहब आप कर सकते हो...ये सबकुछ आप अभी देख सकते हो। देखिये उन लोगों को...”
जिस बच्चे से हमने बात की, उसने गले में रुद्राक्ष की माला पहन रखी है। और...अरे! ये...ये... उस मरे हुए तांत्रिक के गले में भी वैसी-ही माला है।
“वो मारा पापड़ वाले को!” इक़बाल के मुंह से निकला- “मुझे तो नहीं लगता जंगली लोग ऐसी माला पहनते होंगे। क्यूँ डकारुराम? अबे!... कहाँ गया?”
ड्रैकुला अपनी जगह से नदारद था।
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“निश्चित ही- वह कोई और नहीं बल्कि तांत्रिक का बेटा रहा होगा।” आनंद चीखा- “खान साहब उसे आदिवासी बच्चा समझ कर उठा लाए। पकड़ो उसे...”
“या खुदा!” सम्मोहित अवस्था में लियाकत बोला- “इस बच्चे की शक्ल तो तांत्रिक से मिल रही है।”
इक़बाल तुरंत बाहर की तरफ लपका। उसके हाथ में रिवाल्वर आ गया था।
“यानि साला ड्रैकुला ही सब कुछ कर रिया था?” आश्चर्य के सागर में गोते लगाता हुआ नफ़ीस भी उसके साथ भागा।
“मुझे तो शुरू से ही उस पर शक था।” इक़बाल ने कहा।
“ये तो भौत कमीना निकला।”
दोनों बाहर आ गये। मुख्य द्वार अभी-भी बंद था।
“यहां तो ताला पड़ा है।” इक़बाल बोला- “ज़ाहिर है- भागते वक़्त ड्रैकुला चाबी नहीं ले सका होगा। इसका मतलब अंदर ही कहीं छिप गया है।”
“किया पता? कूद गया हो बाहर? जंगली ही तो है।”
“लगता तो नहीं है, इतनी ऊँची महल की दीवारें कूदना मुश्किल है। अंदर ही ढूंढते हैं।”
वे लोग बगीचे से होते हुए अस्तबल में पहुंचे। फिर महल के चारों तरफ घूम-घूमकर उसे ढूंढने लगे। पर ड्रैकुला कहीं नज़र नहीं आया।
“कहाँ ग़ायब हो गया?” इक़बाल सर खुजाते हुए बोला।
“भाई वो तांत्रिक-वन्त्रिक का बच्चा है। जादू से ग़ायब हो गया होगा।”
“मुझे तो लग रहा है- वो अंदर ही छिप गया है।”
दोनों वापस अंदर पहुंचे।
“क्या हुआ?” आनंद और दिव्या ने एक साथ पूछा।
“पता नहीं कहाँ ग़ायब है! बाहर तो नहीं गया लगता है, क्योंकि ताला पड़ा है। चलो सब अंदर ढूंढते हैं।”
लियाकत को आनंद सम्मोहन से बाहर ले आया था। वह उलझन भरी नज़रों से सबको देख रहा था।
इक़बाल और आनंद ड्रैकुला को ढूंढने ऊपर चले गये।
नफ़ीस तुरंत दिव्या से बोला- “आप डरना नहीं। वो साला तांत्रिक की औलाद हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा।”
“मैं कहाँ डर रहीं हूँ?” दिव्या सपाट स्वर में बोली- “चलो उसे दूसरे कमरों में ढूंढते हैं।”
“अपुन के पास तो रिवाल्वर भी नहीं है।” नफ़ीस बुदबुदाया। फिर उसे दीवार पर टंगी तलवार दिखाई दी। उसने झट से तलवार ढाल से खींच ली।
“अरे वाह!” दिव्या उसे देखकर मुस्करायी- “आप तो पूरे योद्धा लग रहे हैं। जलालुद्दीन अकबर!”
नफ़ीस ‘हे-हे’ करते हुए शरमाने लगा।
“चलिए अब-” दिव्या उसका हाथ खींचते हुए एक कमरे की तरफ बढ़ गयी।
लियाकत लड़खड़ाता हुआ खड़ा हो गया, और उनके पीछे आ गया।
“नफ़ीस बेटे! क्या हो रहा है?” उसने बेचैनी से पूछा।
“चचाजान! आपने आस्तीन के सांप को पाल रखा था। वो तांत्रिक का बेटा था। और अब आपसे अपने बाप की मौत का बदला-शदला ले रहा था।”
“हां!... कुछ याद आ रहा है। अभी जैसे सपने में सबकुछ देखा था।”
“हां जी! आपने सम्मोहन में सबकुछ देख लिया, जोकि आप इत्ते साल पहले असलियत में नहीं देख पाए थे।”
“नहीं! ऐसा कैसे हो सकता है?” लियाकत अचंभित था- “हमने उसे अपने बेटे की तरह पाला था।”
“अभी उसे बकरे की तरह काटने का वक़्त आ गया है, चचाजान।” कहकर नफ़ीस किचन की तरफ बढ़ गया। दिव्या पहले ही उधर जा चुकी थी।
ड्रैकुला उन्हें कही भी नहीं दिखाई दिया।
तभी-
एकदम से जोरों की हवाएँ चलने लगी। ऐसा लगने लगा आंधी आ गयी है। तेज हवा से महल की खुली खिड़कियाँ जोरों से खड़खड़ाने लगी।
और फिर अचानक नफ़ीस कई फिट दूर उछलकर किचन के एक कोने में गिरा।
“नफ़ीस!” दिव्या चीखी।
“ओह! ये किया हो रा है?” नफ़ीस कराहते हुए बोला।
अभी वह उठने की कोशिश कर ही रहा था, कि फिर से एक बार उसे जोरों का झटका लगा और वह उछलता हुआ किचन से बाहर- बैठक में पड़े सोफे से टकराया।
नफ़ीस के मुंह से चीख निकल गयी।
इक़बाल और आनंद दौड़ते हुए नीचे आ गये। नफ़ीस ज़मीन पर पड़ा कराह रहा था।
“क्या हुआ?” इक़बाल चिल्लाया।
“प...पता नहीं!” दिव्या हड़बड़ाते हुए बोली- “ऐसा लग रहा है- कोई इन्हें उछालकर फेंक रहा है।”
इससे पहले कि इक़बाल नफ़ीस को उठाने कि कोशिश करता, नफ़ीस का शरीर उछलकर डाइनिंग टेबल पर जाकर गिरा।
इक़बाल दौड़ा और उछलकर टेबल पर चढ़ गया। फिर उसने नफ़ीस को पकड़ लिया।
“ठीक तो हो आप?”
“अमा...” नफ़ीस हांफ रहा था- “कहाँ के ठीक हैं? दो-चार हड्डियाँ ज़रूर टूट गयी लगती हैं।”
“देखता हूँ- अभी कैसे उछलते हो?” इक़बाल उसके ऊपर चढ़ गया।
कुछ देर तक वे ऐसे ही रहे, पर कुछ हुआ नहीं।
आनंद के चेहरे पर ख़ौफ़ था। वह जल्दी-से अपने बैग से कुछ निकालने लगा।
“ये सब क्या हो रहा है?” दिव्या ने उससे पूछा।
आनंद ने बैग से कुछ लकडियाँ निकाल लीं और फिर उन्हें बैठक के बीच में लगाते हुए बोला- “ये मौत का जादू है। ब्लैक मैजिक! और बहुत ही शक्तिशाली तरह का। खान साहब कहाँ है?”
“प...पता नहीं! अभी तो हम लोगों के पीछे-पीछे घूम रहे थे।”
“इक़बाल भाई!” नफ़ीस बोला- “अपुन को छोड़ो चचा को देखो कहाँ गये।”
“हां! उसकी दुश्मनी उनसे है, और क्योंकि आप उनके भतीजे हैं इसलिए वो आप पर भी हमला कर रहा है।” आनंद बोला।
इक़बाल तुरंत दौड़ते हुए लियाकत के कमरे में पहुंचा। पर लियाकत वहां नहीं था। फिर वह नीचे के दूसरे कमरों में देखने लगा।
अचानक- बैठक से चीखने की आवाज़ आयी।
इक़बाल दौड़कर वापस पहुंचा।
वहां का नज़ारा देखकर वह दंग रह गया।
दिव्या के बाल बिखरे हुए थे और आँखों में अत्यधिक क्रोध था। उसके हाथ में तलवार थी। आनंद एक कोने में गिरा हुआ था, जैसे किसी ने उसे धकेला हो।
दिव्या तलवार लेकर नफ़ीस की तरफ बढ़ रही थी। उसके होठों पर कुटिल मुस्कान थी।
“इसे पकड़ो इक़बाल!” आनंद उठने की कोशिश करते हुए बोला।
नफ़ीस स्तब्ध-सा टेबल पर पड़ा दिव्या के इस भयानक रूप को देख रहा था।
“दिव्या! होश में आओ।” इक़बाल उसके सामने आया। पर दिव्या ने तुरंत तलवार घुमा दी।
अगर इक़बाल ठीक वक़्त पर हटता नहीं तो उसका हाथ कट जाता।
फिर दिव्या ने दौड़ते हुए नफ़ीस पर हमला कर दिया। उसने तलवार उसकी गर्दन की तरफ घुमाई। नफ़ीस ‘अरे बाप रे’ बोलता हुआ तुरंत टेबल से एक तरफ लुढ़क गया।
आनंद दिव्या के सामने पहुंचा। उसके हाथ में छोटी-सी बोतल थी, जिसमें गंगाजल था।
दिव्या उसे ख़ूँख़ार नज़रों से देखने लगी। उसके कंठ से गुर्राहट निकल रही थी। वो आनंद पर हमला करने के लिए आगे बढ़ी, पर तभी आनंद ने गंगाजल उस पर छिड़क दिया।
दिव्या चीखते हुए एक तरफ गिर गयी। ज़मीन पर गिरकर वह बुरी तरह से तड़पने लगी।
आनंद वापस अपने सामान के पास पंहुचा। उसने लकड़ियों को एक तसले में रखा और उन पर मिट्टी का तेल डालकर जला लिया।
दिव्या सामान्य होने लगी। उसे जैसे अभी होश आया। वह रोने लगी।
“क...क्या हुआ था मुझे?” उसने इक़बाल की तरफ देखा।
इक़बाल ने आगे बढ़कर उसे उठाया।
“हम लोगों के ऊपर काला जादू किया जा रहा है। तुम अपना होश खो बैठी थी, और हम पर हमला कर रहीं थी।”
“क्या?” वह चौंकी- “म...मेरे अंदर किसी की आत्मा आ गयी थी क्या?”
“पता नहीं!” कहकर इक़बाल आनंद के पास पंहुचा। “आप क्या कर रहे हैं?”
“इस जादू को काटने की कोशिश।” आनंद के चेहरे पर दृढ़-संकल्प था। वह आग में कुछ अलग-अलग तरह के पाउडर डालने लगा।
“आखिर ये सब कर कौन रहा है? ड्रैकुला तो यहां है नहीं।”
“काला जादू करने के लिए उसे यहां होने की ज़रूरत नहीं है। वह कहीं से भी ऐसा कर सकता है।” फिर आनंद कोई मंत्र पढ़ने लगा।
अचानक- नफ़ीस चीख उठा। इक़बाल उसके पास पहुंचा।
“क्या हुआ?”
“प...पता नहीं! पेट में भौत दर्द हो रहा है।” नफ़ीस पीड़ा से छटपटाने लगा।
“उफ़! क्या हो रहा है।” इक़बाल बेबसी से बोला.
फिर नफ़ीस का बदन जोरों से कापने लगा और उसके मुंह से झाग निकलने लगी।
दिव्या उसके पास पहुंची। “इसे तो कन्वल्जन (convulsion) हो रहे हैं।” फिर वह दौड़कर ऊपर गयी और अपने कमरे से मेडिकल किट ले आयी। उसने नफ़ीस को diazepam का इंजेक्शन दिया। नफ़ीस का शरीर धीरे-धीरे शांत हो गया।
उसने उसकी नब्ज़ टटोली, माथा छुआ।
“इसको तो बहुत तेज़ बुखार है।” दिव्या ने कहा।
“अचानक कैसे?” इक़बाल हैरान था।
दिव्या उसे कोई और दवा देने लगी, आनंद आग में तेल डालते हुए बोला-
“सब ठीक हो जायेगा। ये सब जादू का असर है।”
तभी-
घंटे की आवाज़ आने लगी।
यानि- मुख्य द्वार पर कोई था।
“मैं देखता हूँ। तुम यहीं रुको।” दिव्या को बोलकर इक़बाल ने अपना रिवाल्वर लिया और चल दिया।
“ध्यान-से इक़बाल।” आनंद दास ने कहा- “ये कोई चाल हो सकती है। जादू का हिस्सा भी हो सकता है। सावधानी से जाना।”
इक़बाल ने सहमति में सर हिलाया और बाहर की तरफ बढ़ गया।
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इक़बाल मुख्य द्वार पर पहुंचा। अंधेरा होने लगा था। इतना सबकुछ महल में हो चुका था, पर बाहर आकर ऐसा लग रहा था कि बाकी के शहर को इन सबसे कोई मतलब नहीं था।
घंटा एक बार फिर बजा। कोई तो था जिसका सब्र टूट रहा था।
इक़बाल ने सावधानी से छोटा दरवाज़ा खोला।
सामने खड़े शख्श को देखकर वह सकपका गया।
वह भयानक इंसान था। चेहरा एकदम काला था, ठीक ड्रैकुला की तरह। उसके बाल लंबे थे, दाढ़ी बढ़ी हुई थी। आँखें लाल थीं। शरीर पर सिर्फ एक लंगोट थी। गले में कई तरह की मालाएँ थी।
उसने बिना कुछ कहे अंदर आना चाहा, तो इक़बाल ने उसे रोक लिया।
“अबे कौन है तू, मरघट के भूत! कहाँ घुसा आ रहा है?”
“तुम कौन हो?” उसने उल्टा सवाल किया।
“मैं? मैं भूतनाथ हूँ! तुझे क्या काम है?” कहकर इक़बाल ने उस पर रिवाल्वर तान दी।
उसने आश्चर्य से इक़बाल को देखा।
“बोल भाई! बोलती क्यों बंद हो गयी?”
“लियाकत कहाँ है?”
“सब्जी खरीदने गये हैं।”
“मज़ाक मत करो।” वह बोला फिर एकदम से चौंक उठा। “तु...तुम कहीं इक़बाल तो नहीं?”
“लगता है अब मैं वाकई बहुत प्रसिद्ध हो गया हूँ। हे-हे!” इक़बाल सर खुजाने लगा।
“इक़बाल बेटे!...”
“अबे! बेटा होगा तेरा बाप। मैं तेरे जैसे काले हब्शी का बेटा कैसे हो सकता हूँ?”
“नफ़ीस कहाँ है? वो ठीक तो है?”
“हैं?” इक़बाल का मुंह खुला रह गया- “माना हम तो बहुत फेमस टाइप के जासूस हैं। पर तुम नफ़ीस को कैसे जानते हो?”
“हमें अंदर आने दो।”
“तुम हो कौन?”
“हम लियाकत खान हैं, बेटे।”
“क...क्या?” इक़बाल के मुंह से चीख निकल गयी। फिर उसे आनंद की बात याद आयी- ‘ये कोई चाल हो सकती है। जादू का हिस्सा भी हो सकता है।’
“देख मरघट के भूत- मुझ से चालाकी की तो गोली मार दूँगा।”
“ह...हम सच बोल रहे हैं।”
“अबे चल!” कहकर इक़बाल उसे एक तरफ खींचकर ले गया और अस्तबल से रस्सी लेकर उसके हाथ बाँध दिये। उसने काफी अनुरोध किया पर इक़बाल ने उसकी एक न सुनी।
वो उसको लेकर महल की तरफ बढ़ गया। अभी वो कुछ ही कदम आगे बढ़ा था, कि उसे महल की छत पर एक साया दिखा।
“कौन है ऊपर?” इक़बाल ने चिल्लाकर पूछा।
“अरे! इक़बाल बेटे! ये हम हैं।” वह लियाकत की आवाज़ थी।
“आप छत पर क्या कर रहे हैं? हम लोग आपको नीचे ढ़ूँढ़ रहे थे।”
“हम तो उस संपोले ड्रैकुला को ढ़ूँढ़ रहे थे। पर ये कौन है?”
“पता नहीं! खुद को लियाकत बता रहा है।”
“क...क्या?” लियाकत चौंका- “लगता है ये ड्रैकुला से मिला हुआ है।”
“कमीने!” वह लियाकत को देखकर चीखा- “हम तुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे।”
“चुपचाप अंदर चल।” इक़बाल ने उसे धकेला।
“हम भी नीचे आ रहे हैं।” छत पर से लियाकत ने कहा।
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“नफ़ीस की तबियत बहुत खराब है।” दिव्या नफ़ीस को देखते हुए चिंतित स्वर में बोली। उसे बैड पर लेटाकर गर्म कम्बल ओढ़ा दिया था। “इसका बुखार उतर ही नहीं रहा।” दिव्या उसके माथे पर गीला कपड़ा रख रही थी।
इक़बाल क्रोध से कांपने लगा। वह वापस बैठक में पहुंचा। वहां आनंद अभी-भी मंत्र पढ़ रहा था। लियाकत सीढ़ियों से उतर कर नीचे आ रहा था।
इक़बाल ने उस काले आदमी का गला पकड़ लिया।
“बता- ड्रैकुला कहाँ है? और तेरी क्या चाल है जो तू खुद को लियाकत बोल रहा है?”
“ह...हम सच कह रहे हैं।”
“इससे सच हम बुलवाएंगे।” लियाकत उसके सामने आकर बोला। उसका चेहरा क्रोध से लाल हो गया था। उसने अलमारी से एक कोड़ा निकाल लिया।
इक़बाल पीछे हट गया। लियाकत का कोड़ा हवा में लहराया और उसके नंगे बदन पर पड़ा।
वह चीख उठा, कोड़े ने उसकी काली खाल पर लाल धारियां बना दीं।
“इक़बाल...समझो...ये लोग धोखेबाज़ हैं।” काला आदमी इक़बाल को आशा भरी निगाहों से देखते हुए बोला- “ये...बहुत बड़ी...”
उसके शब्द अधूरे रह गये। लियाकत ने एक बार फिर बेरहमी से कोड़ा उसके ऊपर घुमाया। ‘सड़ाक’ आवाज़ करते हुए कोड़ा उसकी खाल खींचता चला गया।
इक़बाल को प्यास लगी थी। उसने मेज़ पर रखी पानी की बोतल उठाई और पीता चला गया। फिर पानी के घूँट भरते हुए वह सोच में डूब गया।
फिर वह आगे बढ़ा और आनंद दास और उसकी जलाई आग के पास आ गया। आनंद आँखें बंद करके मंत्र पढ़ने में लीन था।
इक़बाल ने उसे देखा फिर बोतल का बचा हुआ पानी आग में डाल दिया। आग बुझ गयी। बुझने की आवाज़ सुनकर आनंद ने चौंकते हुए आँखें खोल दीं।
“ये...ये क्या किया तुमने?” वह अविश्वास के साथ चिल्लाया।
“क्या फायदा?” इक़बाल बुझे मन से बोला।
“मतलब? तुम पागल तो नहीं हो गये?”
“नहीं! पर नफ़ीस की तबियत पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा। वो मर रहा है। फिर क्या फायदा आपके इस जादू का?”
“बेवकूफ़ लड़के!” वह बुरी तरह से क्रोधित था- “मेरे जादू से उसका मौत का जादू कट रहा था। इसलिए हम सब लोग अभी तक ठीक-ठाक हैं।”
“मेरे ख्याल से हमें जादू करने वाले को ढूंढने में ध्यान लगाना चाहिए। तभी हम लोग बच पाएंगे।”
“तो तुम जाकर क्यों नहीं ढूंढते ड्रैकुला को? तब तक मैं कम से कम जादू को रोक तो सकता हूँ।”
“ठीक है! फिर जला लेना आग। पहले इन महाशय से निपट लेते हैं- जो खुद को लियाकत बोल रहा है। शायद इससे हम उस तक पहुँच सके और जादू को रोक दें।”
आनंद कुछ नहीं बोला। उसके चेहरे पर नाराज़गी थी।
“चिंता मत करो इक़बाल।” लियाकत बोला- “ये अभी सबकुछ उगलेगा।”
“बस करिये चचा!” इक़बाल ने उसको कोड़ा घुमाने से रोका। “इससे अब बात करते हैं। पिटाई तो हो ही गयी इसकी।”
“बोल! किस फिराक में आया है तू?” लियाकत गरजा- “तू ज़रूर ड्रैकुला का साथी होगा।”
वह कुछ नहीं बोला। वह पीड़ा से छटपटा रहा था।
“मुझे समझ नहीं आ रहा- ये अगर उससे मिला हुआ है तो इस तरह खुद को फंसवाने क्यों आया?” इक़बाल बोला।
“ये तो ये खुद ही जानता होगा।” आनंद बोला- “सोच रहा होगा- हमें बेवकूफ़ बना लेगा। इक़बाल! इसके चक्कर में मत पड़ो।”
तभी दिव्या बैठक में आ गयी।
“इक़बाल!” उसने आवाज़ दी।
“क्या हुआ?” इक़बाल पलटा। उसे यूँ खड़ा देखकर वह आशंकित हो उठा. “क...क्या हुआ नफ़ीस को?”
“कुछ नहीं! उसकी तबियत अब ठीक हो रही है।”
“ओह!” इक़बाल ने गहरी सांस छोड़ी। “तुमने तो डरा ही दिया।”
“शुक्र है खुदा का।” लियाकत खुशी के साथ बोला।
“हूँ! लगता है ड्रैकुला साला जादू करते-करते थक गया।” इक़बाल मुस्कराया।
“बता कहाँ छिपा है ड्रैकुला?” आनंद काले इंसान पर चीखा।
“तुम लोग जिंदा नहीं बचोगे।” वह भयानक ढंग से गुर्राया।
“वाह! ये तो अभी-भी हमें धमकी दे रहा है।” इक़बाल ने कहा- “लेकिन मुझे एक सवाल आपसे पूछना है।” उसका इशारा लियाकत की तरफ था।
“हमसे?”
“जी! अगर आप बुरा न माने तभी। महत्वपूर्ण सवाल है।”
“बिलकुल पूछो।”
“आप बांये हाथ से हंटर क्यों चला रहे थे?”
“क्या?” लियाकत की भंवे तन गयी।
“जी! यहीं सवाल है मेरा।”
“हर वक़्त मज़ाक अच्छा नहीं लगता इक़बाल बेटे।”
“मेरा दोस्त अंदर मर रहा है और... क्या आपको मेरी शक्ल से लग रहा है- मैं मज़ाक कर रहा हूँ?” इक़बाल के चेहरे पर गंभीरता थी।
लियाकत कुछ क्षण उसे घूरते रहे, फिर बोले- “इस सवाल की वजह?”
“क्या वजह जाने बिना आप जवाब नहीं देंगे?”
“ऐसी कोई बात नहीं है।” लियाकत टहलते हुए बोला- “तुम जानना ही चाहते हो तो बात मामूली सी है- हम दोनों हाथों से काम कर लेते हैं।”
“ओह! यानि- ambidextrous! काफी कम लोग होते हैं ऐसे। बुरा न माने तो आप एक बार दांये हाथ से हंटर घुमाकर मारिये न इसे।”
“इक़बाल!” लियाकत गुस्से-से बोला- “तुम हमारे पीछे क्यों पड़ गये हो?”
“ओह! स...सॉरी चचा! चलो आपके पीछे नहीं पड़ता।” इक़बाल एकदम से आनंद की तरफ घूम गया। “बाबू मुशाय! थोड़ी देर आपके पीछे पड़ जाता हूँ।”
आनंद उसे घूर रहा था। इक़बाल गुनगुनाने लगा-
“इस प्यार से मेरी तरफ न देखो, प्यार हो जायेगा।
जो प्यार हो गया तो सिर कटके, बौल बन जायेगा।”
इससे पहले कि आनंद कुछ बोलता, इक़बाल ने कहा-
“बस एक सवाल है, गुस्सा मत हो यार।”
“पूछे बगैर तुम कहाँ मानोगे! बोलो-”
“दास साब! आपके बैग में महल का नक्शा और लियाकत चचा की फोटो क्यों हैं?”
“तु...तुमने मेरा बैग चैक किया?” आनंद झुन्झलाया।
“अमा! इतना गुस्सा क्यों हो रहे हो? इस तरह तो लड़कियाँ अपना बैग चैक करवाने पर गुस्सा होती हैं। है न दिव्या?”
“करेक्ट!” दिव्या दिलचस्पी के साथ बोली।
“फिर आप क्यों गधे की तरह बिदक रहे हैं? मोहब्बत के साथ सवाल का जवाब दे दीजिए।”
“हुंह!” आनंद ने बुरा-सा मुंह बनाया। “वो सब तो एक बार खान साहब ने ही दिये थे। महल का रेनोवेशन करवाना था।”
“ओह! ऐसा?” इक़बाल लियाकत की तरफ पलटा।
“आनंद सही बोल रहा है।” लियाकत ने कहा।
“ये सब झूठ है। इन्होंने साज़िश रचने के लिए ये सब चुराए होंगे।” ज़मीन पर पड़े-पड़े काला इंसान बोला।
“भाई! मरघट के भूत!” इक़बाल दया के साथ बोला- “तू चुप रह न। वरना चचाजान बांये और दांये, दोनों हाथों से तेरे ऊपर कोड़े बरसाएंगे।”
दिव्या को हंसी आ गयी।
“और आपके फोटो आनंद के पास क्यों है?” इक़बाल लियाकत की तरफ बढ़ा। “ये भी आप जानते होंगे?”
“वो हमारे ज़मीन के कागज़ात वगैरह में...कहीं तो, किसी फॉर्म में फोटो लगने थे।”
“हां! हो सकता है। चलो मान लिया मैं आप लोगों से फ़िजूल के सवाल ही पूछ रहा हूँ। खासकर उन लोगों से जो हमारे अपने हैं। सवाल तो ड्रैकुला से पूछने चाहिए, इस मरघट के भूत से पूछने चाहिए...”
“वहीं तो-” आनंद दास तुरंत बोला।
“पर एक आखिरी सवाल का जवाब आपको देना होगा बाबू मुशाय।”
“वो भी पूछ लो-” उसने गहरी साँस छोड़ी।
“आपके तंत्र-मंत्र रुकते ही नफ़ीस की तबियत कैसे दुरुस्त हो गयी? यानि- Dechallenge positive! सही कहा न डॉक्टर साहिबा?”
“एक्सेलैंट! तुम्हें कैसे पता ये मेडिकल टर्म?” दिव्या प्रसंषा के साथ बोली.
“शुभानंद भाई ने एक बार बातों-बातों में बताया था.” इक़बाल आँख मारते हुए बोला.
“म...मेरे ख्याल से मेरे मन्त्रों से ही उसकी जान बची है। तुम्हारे आग बुझाने से पहले तक मौत का जादू पूरी तरह से कट गया होगा। वरना नफ़ीस अब तक मर चुका होता।”
“क्या लगता है डॉक्टर साहिबा?” इक़बाल दिव्या की तरफ मुड़ा। “तुम तो लगातार नफ़ीस के पास थीं।”
“उसकी हालत बहुत खराब थी। बुखार कम ही नहीं हो रहा था। हार्ट रेट भी बढ़ रहा था। पर अचानक ही वो सामान्य हो गया।”
“मुझे लगता है- ठीक उस वक़्त जब मैंने इनकी आग बुझाई थी। इससे तो मुझे ये लगता है, आनंद बाबू कि आप ही नफ़ीस पर जादू कर रहे थे।”
“क्या बक रहे हो!” आनंद चीखा।
“ओफ्हो!” इक़बाल ने अपने माथे पर हथेली मारी। “मैं तो इतने सालों से कह-कहकर थक गया हूँ। यार! मैं बकरा नहीं इंसान हूँ।”
“इक़बाल बेटे!” लियाकत ने कहा- “ये क्या बेवकूफाना हरकत है? तुम हम सबका समय खराब कर रहे हो।”
काला इंसान अब मुस्करा रहा था। वह बोला- “शाबाश इक़बाल! हमें पता था तुम्हारे जैसा होनहार जासूस सब समझ जायेगा।”
“सब तो नहीं समझा हूँ। अब आप ही लोग खुल के बता सकते हो कि तांत्रिक का असली बेटा है कौन? आप या आप?” उसने बारी-बारी से लियाकत और आनंद कि तरफ इशारा किया।
अगले ही पल लियाकत ने दोनों हाथ इक़बाल की तरफ दिखाए।
इक़बाल उछलकर दूर जा गिरा। दिव्या चीख उठी।
“लगता है- तुम सबको खत्म करना पड़ेगा।” लियाकत खतरनाक स्वर में बोला- “हमारी दुश्मनी तो सिर्फ लियाकत खान से थी, पर अब तुम ऐसा चाहते हो तो यहीं सही।”
“भाई!” आनंद लियाकत से बोला- “ये खतरनाक है। इसे तुरंत खत्म कर दो।”
इक़बाल उठने की कोशिश कर रहा था। लियाकत ने दोबारा हाथ फैलाये। पर तभी दिव्या ने टेबल पर रखा पेपर वेट उठाकर उस पर मार दिया।
लियाकत इसके लिए बिलकुल तैयार नहीं था। पेपर वेट उसके माथे पर आकर लगा। उसके मुंह से कराह निकल गयी।
आनंद गुस्से में दिव्या की तरफ बढ़ा, पर वह अंदर वाले कमरे की तरफ भाग गयी। वह उसके पीछे दौड़ा।
इधर काले इंसान ने मौके का फायदा उठाया। उसने तुरंत लियाकत का पाँव खींच लिया। वह लड़खड़ाते हुए नीचे आ गिरा। वह उसके सीने पर सवार हो गया और उसकी धुनाई चालू कर दी।
इक़बाल जल्दी-से उठा और अपना रिवाल्वर ढूंढने लगा।
दूसरी तरफ आनंद जब दिव्या के पीछे कमरे में पहुंचा तो उसने नफ़ीस को अपने सामने खड़ा पाया। वह ठिठक कर रुक गया.
दिव्या उसके पीछे छुपी हुई थी। नफ़ीस कमज़ोर दिख रहा था, पर उसकी आँखों में दृढ़ निश्चय था। जबड़ा कसा हुआ था। मुठ्ठियाँ तनी हुई थीं।
“भौत पिटेगा तू।” कहते हुए वह आनंद पर झपट पड़ा।
दोनों बिगड़े हुए सांडो की भांति आपस में भिड़ गये। आनंद ने उसे धकेलने की कोशिश की, पर नफ़ीस में न जाने कहाँ से इतनी शक्ति आ गयी थी। उसने कसकर आनंद को कन्धों से पकड़ा और फिर घुमाकर एक तरफ फेंक दिया।
“बहुत उछाल-उछालकर फैंका था न अपुन को।” नफ़ीस बोल रहा था। उसने गिरे हुए आनंद को उठाया और जोरों से मुंह पर मुक्का मार दिया। वह लुढ़कता हुआ वापस बैठक में आ गिरा।
तभी महल में भेड़िये का शोर होने लगा।
इक़बाल ने देखा- शेरा दौड़ता हुआ सीढ़ियों से चला आ रहा था।
“अबे! इसे किसने खोल दिया?” इक़बाल चिल्लाया।
पल भर में वो नीचे पहुँच गया और आते ही उसने ज़मीन पर गिरे आनंद दास पर हमला कर दिया।
“बचाओ! नहीं!” वह चीख पड़ा। शेरा उसे बुरी तरह से नोच रहा था।
अगले ही पल-
ड्रैकुला सीढ़ियों से उतरता नज़र आया।
“अमा! डकारुराम! तुम कहाँ से टपके? हमने तुम्हें दूरबीन लेकर कहाँ-कहाँ नहीं ढूंढा। कहाँ छिपे हुए थे?”
“साहब! मैं तो ऊपर ही छिपा था।” वह मुस्कराया। “इस महल में ही पला बढ़ा हूँ। एक-एक कोना जानता हूँ।”
“बहुत खूब! अरे- पर इसे तो रोक यार।” इक़बाल ने शेरा की तरफ इशारा किया। “ये इसे जिंदा चबा जायेगा।”
“ये हमारा दुश्मन है। इसका यहीं हाल होना चाहिए।”
“कुछ तो दया कर। अभी तो हमने इससे इसकी राम कहानी भी नहीं सुनी।”
इक़बाल के आग्रह पर ड्रैकुला ने आगे बढ़कर शेरा को रोक लिया। आनंद बुरी तरह से लहुलुहान हो गया था।
“कमीना!” ड्रैकुला धिक्कार के साथ बोला और उसकी कमर में एक ठोकर जड़ दी।
नफ़ीस और दिव्या भी बैठक में आ गये थे।
इक़बाल ने लियाकत के हाथ बाँध दिये। उसकी हालत भी खराब थी। काले इंसान ने उसे बुरी तरह से पीटा था।
“आप हाथों से ही जादू करते हो न?” इक़बाल ने पूछा- “या पैर भी बांधने पड़ेंगे?”
“अगर हमें अपना शरीर वापस न चाहिए होता तो हम इसके टुकड़े-टुकड़े कर देते।” काला इंसान बोला।
सभी हैरान थे।
“ये साला चक्कर क्या है?” नफ़ीस बोला।
“मुझे तो लगा लियाकत चचा के मेकअप में कोई और है।” इक़बाल बोला।
“मेकअप नहीं बेटे।” काला इंसान बोला- “इसने तो हमारा शरीर ही हथिया लिया है। इसने जादू से हमारी आत्मा इसके शरीर में और अपनी आत्मा हमारे शरीर में पहुंचा दी है।”
“क्या?” दिव्या भय से सिहर उठी।
सभी हैरान थे।
“हमारी तबियत खराब थी। अजीब-अजीब से ख़्वाब आ रहे थे।” काला इंसान बोल रहा था- “हमें लगा कुछ तो गड़बड़ है। इसलिए हम जंगल में गये। हमें उम्मीद थी कि जंगल के लोगों से हमें तंत्र-मंत्र आदि से बचने का कुछ उपाय मिल जायेगा। वहां हमारे पुराने दोस्त जो हैं। पर जंगल में पहुँचते ही हम बेहोश हो गये। फिर जब होश आया तो खुद को इन लोगों की कैद में पाया। ये दोनों उस तांत्रिक के बेटे हैं जिसे हमने मारकर ड्रैकुला को बचाया था।”
“ओह!” नफ़ीस बोला- “अपुन लोगों को तो इन नकली चचा ने कुछ और ही कहानी बताई थी। सम्मोहन वगैरह का नाटक करके ड्रैकुला को ही तांत्रिक की औलाद साबित कर दिया था।”
“बहुत धूर्त हैं ये लोग। बदले की आग में कुछ भी कर गुजरने को तैयार। इन्होंने फिर काला जादू करके मेरा शरीर हथिया लिया। इस छोटे वाले ने...इसका नाम है- मेघदूत। इसने ही हमारी आत्मा को इसके भाई यानि मृत्युंजय के शरीर में पहुंचा दिया। इनका प्लान था कि ये यहां आकर हमारी सारी प्रॉपर्टी हथिया लेते। फिर इन्हें पता चला कि तुम लोग सोहनपुर आये हुए हो। तो इन्होंने तुम लोगों पर नज़र रखना चालू कर दिया। मुझे इन्होंने बताया कि इन लोगों ने तुम पर हमला करवाया था, शायद किसी आदिवासी को सम्मोहित करके।”
“हां! ये सच है।” इक़बाल ने कहा।
“इनको पता था कि मेरा एकमात्र रिश्तेदार नफ़ीस है, तो मेरे मरने के बाद सबकुछ उसका हो जाता इसलिए ये लोग उसकी जान के भी दुश्मन बने हुए थे। शुक्र है नफ़ीस बेटे तुम ठीक हो।”
“अपुन का क्या बिगाड़ेंगे ये कीड़े। हम एकदम ठीक है। दिव्या जी ने हमारा पूरा ख्याल रखा।”
दिव्या मुस्कराते हुए बोली- “डॉक्टर का यही काम होता है।”
“आज किसी तरह से हम इनकी कैद से निकल आये और महल पहुंचे।”
“मानना पड़ेगा।” इक़बाल बोला- “मुझे तो जादू-टोने में विश्वास ही नहीं था। पर ये लोग तो खतरनाक चीज़ हैं। इनको तो स्पेशल जेल में रखना पड़ेगा वरना वहां से भी छू-छा करके ग़ायब हो जायेंगे।”
“तुम हमें कहीं भी रख लो। लियाकत खान! एक दिन हम अपने पिता का बदला तुमसे ज़रूर लेंगे।” लियाकत का शरीर धारण करे मृत्युंजय बोला।
“साले!” नफ़ीस भड़क उठा- “तुम्हारी खाल में भूंसा...” फिर रुककर बोला- “यार अच्छा नहीं लग रहा। ये हमारे चचा के शरीर में है, इसको मार भी नहीं सकता।”
“वो भी सही करवा देते हैं।” कहकर इक़बाल ने रिवाल्वर जख़्मी हालत में पड़े आनंद दास यानि मेघदूत की कनपटी पे टिका दी। “मिस्टर दास उर्फ मेघदूत! कृपा करके अपने भाई को वापस उसके गंदे शरीर में पहुंचा दो। और कोई उल्टा-पुल्टा मंत्र मत पढ़ना वरना गोली तो खाओगे ही, उसके बाद शेरा भी तुम्हें नोंच-नोंच के खायेगा।”
“मैं तैयार हूँ।” शेरा को चेन से पकड़े ड्रैकुला बोला- “इसने कुछ गड़बड़ की तो...”
उसके बाद मेघदूत ने सीधे बैठ के मंत्र पढ़ना चालू कर दिया। लियाकत और मृत्युंजय लेट गये थे। उसने बैग से कोई पदार्थ निकालकर दोनों के ऊपर डाल दिया। कुछ ही देर में दोनों के शरीर जोरों से कांपने लगे।
दिव्या सहम कर नफ़ीस से सट गयी। सभी हैरानी से देख रहे थे।
फिर दोनों के शरीर शांत हो गये। दोनों के दिल की धड़कने रुक चुकी थीं, पर कुछ ही पल बाद, दोनों में फिर से जान आ गयी और उन्होंने आँखें खोल दी।
“चचाजान! सही शरीर में हो न?” इक़बाल ने पूछा।
“ह...हां!” लियाकत अपने शरीर में वापस आ चुका था। वह उठकर बैठ गया और अपने शरीर को खुशी के साथ देखने लगा। मृत्युंजय अपने शरीर में पहुँच चुका था और खतरनाक ढंग से उन्हें घूर रहा था।
इक़बाल ने लियाकत के हाथ खोले और मृत्युंजय के हाथ पैर दोनों बांध दिये।
“आपके ससुराल वाले आते ही होंगे। मैंने फोन कर दिया है।” इक़बाल ने उससे कहा।
“उफ़! आख़िरकार सबकुछ ठीक हुआ।” लियाकत बोला- “शुक्र है कि तुम लोग यहां थे, वरना पता नहीं क्या होता।”
कुछ देर बाद पुलिस आ गयी और दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया।
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सुबह हो गयी थी। रात के हंगामे के बाद सभी थकान से चकनाचूर हो गये थे। वे लोग देर से सोकर उठे।
ड्रैकुला ने सबके लिए उम्दा नाश्ता बनाया।
नाश्ते के बाद लियाकत इक़बाल, नफ़ीस और दिव्या को अपनी कार में सोहनपुर घुमाने लेकर गया।
वापस आकर दिव्या वापस जाने की तैयारी करने लगी। वह अपना सामान लेकर बैठक में पहुँची।
“बेटी!” लियाकत ने कहा- “इतनी भी क्या जल्दी है वापस जाने की?”
“हां-हां!” नफ़ीस भी बोला- “कुछ दिन और रुकिए न। अपुन लोग खूब मजा करेंगे।”
“रुकती पर... क्या करूँ नौकरी पर वापस जाना है। मेरे पेशेंटस् मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे।” वह मुस्करायी। “यहाँ के दोनों पेशेंट तो अब ठीक हो चुके हैं।”
लियाकत हंस दिये।
“आपको ग़लतफ़हमी हुई है।” इक़बाल झट से बोला- “एक ही ठीक हुए हैं। दूसरा तो अभी तक आपका पेशेंट बना हुआ है।”
नफ़ीस अदा-से शरमाने लगा। दिव्या को हंसी आ गयी।
“आप बहुत स्वीट हैं मिस्टर नफ़ीस। और इक़बाल! आपके जैसा बहादुर इंसान मैंने पहले कभी नहीं देखा।”
इक़बाल ने गर्व से छाती फुला ली।
“अपुन ने भी उस साले आनंद दास को पीटा था।” नफ़ीस शिकायती स्वर में बोला।
“आप भी कम नहीं हैं। वो तो मुझे मारने दौड़ रहा था। आप ही ने तो बचाया।”
“अपुन तो आपकी हमेशा रक्षा-वक्षा करने को तैयार हैं।”
“थैंक्यू नफ़ीस। आप बहुत अच्छे हो। पर मेरी रक्षा करने वाला मेरे पापा ने आलरेडी ढ़ूँढ़ लिया है।”
नफ़ीस को जैसे लकवा मार गया।
“सही में?” इक़बाल ने खुशी से उसका हाथ मिलाया- “बहुत-बहुत बधाई हो डॉक्टर साहिबा!”
“थैंक्यू।”
लियाकत ने भी उसे आशीर्वाद दिया।
फिर इक़बाल और नफ़ीस कार से उसे बस स्टॉप छोड़ आये।
वापस लौटते वक़्त नफ़ीस मुंह फुलाए बैठा था। उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे उसका सबकुछ लुट गया हो.
“क्या हुआ भाईजान? ऐसी शक्ल क्यों बना रखी है?” इक़बाल ने स्पीड कम करते हुए पूछा।
“अपुन से बात मत करो।”
“अरे! मैंने क्या किया? मैंने तो पहले ही आपको बोला था- उसके बारे में मत सोचो। फिर भी आज मैंने कोशिश की आपकी बात बढ़ाने के लिए। पर... क्या कर सकते हैं?”
“चलकर उसकी मंगनी तुड़वा देते हैं।” नफ़ीस उत्साह के साथ बोला.
इक़बाल ने मुंह बनाते हुए उसे देखा और कहा, “ऐसा न हो कि मंगनी कि जगह आपके हाथ-पाँव टूट जाएं।”
“ऐसा हो जाता है। अपुन ने कई फ़िल्मो में देखा है।”
“आप पगला गये हो।”
“नहीं! ट्राई करते हैं। चलो कल उसके शहर चल के पूछताछ करते हैं।”
“मुझे बख्शो। एक काम करें?”
“क्या?”
“जंगल चलते हैं। वहां आदिवासियों में आपके लायक कोई न कोई अदद घरवाली अवश्य मिल जायेगी।”
नफ़ीस उस पर टूट पड़ा।
“अरे! एक्सीडेंट हो जायेगा।” इक़बाल बुरी तरह से बौखलाया. उसके हाथ से स्टियरिंग छूट गया था।
“हो जाने दो।” नफ़ीस उसका गला दबाते हुए बड़बड़ा रहा था- “अपुन के साथ साले तुम भी कंवारे ही मरोगे।”
इक़बाल गला फाड़कर चिल्लाया- “बचाओ-बचाओ! मुझे इस जन्म-जात कुंवारे से कोई बचाओ।”
कार सड़क पर सांप कि भांति लहरा रही थी.

समाप्त

आपकी अमूल्य राय के इंतज़ार में-
शुभानन्द
anadisubhanand@gmail.com