''अरे बेटी घबरा क्यु रही हो में तुम्हे ये बताने आया हु की पिछली बार स्कूल में जो गाने की प्रतियोगिता हुई थी ना उसमे तुम फर्स्ट आई हो''
इतना सुनते ही संध्या नामकी वो लड़की एकदम खुश हो गई,
उस वक़्त दूर से ही खिड़की के बाहर खड़ा एक छोटा लड़का यानी में उसकी वो हँसी देख रहा था। उस पल, उसी घड़ी मानो उस्की वो उस प्यारी सी मुस्कान पर में अपना दिल हार गया।
उस वक़्त में दशवी कक्षा में पढ़ता था। और वो नवमीं में। उसका ओर मेरा स्कूल का समय भी अलग था। में सुबह जाता और दोपहर में घर आ जाता। वो दोपहर में जाती और शाम को दिन ढलने से पहले लॉट आती।
स्कूल से लौटते वक़्त अक्षर वो मुजे रास्ते मे मिल जाती। में उसे देखता ओर वो शर्माकर नजरे जुकाकर अपनी सहेलियों के साथ चली जाती।
कुछ आगे चलकर शायद वो यही जान ने के लिए एकबार पीछे मुड़कर देखती के में उसे देख रहा हु या नही। में उसी पल उसे देखने के लिए मुड़ता।
एकदूसरे से हमारी नजरें मिलती ओर वो शर्माकर जल्दी से भागने लगती।
रास्ते की इन्ही हर दिन मुलाकातो में मानो उसे भी मुझसे प्यार हो गया।
रास्ते मे दूर से ही वो अपनी सहेलियों से नजरे चुराते मुजे देखती रहती।
जब वो सामने से मेरे एकदम पास से गुजरती। तब उसे छूने के बहाने जान बूझकर में उसके एकदम करीब से गुजरता।
उस पल उसकी उंगलियों को में अपने हाथों से स्पर्श करता।
उस स्पर्श से मानो चारसो चालीस का वोट एक बिजलीवाला झटका सीधा मेरे दिल मे उतर जाता।
दिलका मरीज में उसके प्यार में उस पल एकदम से घायल हो जाता। और मेरा इलाज भी उसके पास ही तो था। उसकी वही प्यारी सी मुस्कान जिस पर में मरता था।
वो कुछ कदम दूर जाकर एकबार पलटकर मेरी ओर देखती।
और अपनी हल्की सी मुस्कान देकर मुड़ जाती।
हमारी बढ़ती मुलाकाते देखकर कोई मनोमन जल रहा था। हमारे बीच कोई ऐसा था जो नही चाहता था की में उसे मिलु।
एकबार रात को में छुपकर उसे मिलने के लिए उसके घर जा पोहचा।
रात के बारा बजे थे। उसके घरवाले सबलोग सो गए थे। सिवाय उसके, वो अभी भी करवटे बदल रही थी। शायद मेरे ख्यालो में खोई वो अभी भी जग रही थी।
दरवाजा खुला था ओर सब गहरी नींद में सो गए थे।
मेने सोचा यही मौका है, उसके साथ बात करने का। में उसे मिलने उसके घर के अंदर जा ही रहा था की मेरे पैरों की आहट से घबराकर वो दरवाजे से वो बाहर आई।
सामने ही मुजे देखकर वो और घबरा गई कोई जाग गया तो ? किसीने उसे यहाँ देख लिया तो ? वैसी ही सवालो से भरी घबराहट में उसने आकर मेरे मुंह पर अपना हाथ रख दिया।
ओर, घबराते हुवे एकदम धीरेसे कहा
''वीरेन तुम यहाँ क्यु आये हो..?''
मेने कहा
''तुमसे मिलने,
उसने उसी घबराहट में धीरे से कहा
''धीरे बोलो.. कोई सुन लेगा''
मेने धीरे से उसके कान में कहा
''सुनो तुमसे बात करने का दिल किया''
उसने मेरा हाथ पकड़ा ओर कहा
''चलो..''
मेने हैरानी से पूछा
''पर बतावो..कहा जाना है ?''
मेरी ओर घुरते हुवे उसने कहा,
''मेने कहा ना चलो..''
मेरा हाथ पकड़े हुवे वो आगे और में उसके पीछे पीछे चलने लगा।
* * *
एक पुराने से मंदिर में आधी रात में चांद रोशनी ओर सफेद शीतल चांदनी के बीच मंदिर के बाहर एक बड़े से पथ्थर पर एकदूसरे की बाहों में बाहे डाले हम बैठे थे।
उसने मेरी ओर देखकर कहा,
''वीरेन, तुम मुझसे वादा करो की तुम मुजे अकेला छोड़कर कही नही जावोगे''
उसका हाथ चूमते हुवे मेने कहा
''संध्या तुम मेरी हो और में तुम्हारा, तुम्हारे बगैर तो में अधूरा हु। भला में तुम्हे छोड़कर क्यु जावु ?''
हम दोनों एकदूसरे में पूरी तरह खोये हुवे एकदूसरे से बातें कर रहे थे की तभी अचानक हाइवे की और से एक गाड़ी का प्रकाश एकदम से हमारी ओर आता दिखा..
ठीक से देखा तो पता चला की वो एक जीप एकदम से हमारी और आ रही थी ओर उसमे...,
ओपन जीप, उसमे कुछ खतरनाक गुंडे, सबके हाथो मे धारदार हथियार ये नज़ारा देखकर हमदोनो काफी हदतक घबरा गए।
गाड़ी आकर एकदम हमारे सामने आकर रुकी.. इंजिन बंध हुवा ओर उसमे से कुछ गुंडे नीचे की ओर अपनी अपनी तलवारे लिए कूदे.. और फीर वो हमारी और आने लगे
ये सब देखकर एकदम से घबरा कर हम लोग अपनी जगह से खड़े हो गए। और डर के मारे पीछे पीछे जाने लगे। ये क्या हो रहा था ? कोन थे ये लोग ये तो हम भी नही जानते थे ?
चार चार खतरनाक गुंडे, हर एक हाथमे तलवार जैसे धारदार हथियार उनसे अकेले लड़ पाना बहोत मुश्किल था।
एक ही रास्ता था
मेने संध्या का जोर से हाथ पकड़ा और उसकी ओर देखा।
"भागो संध्या.."
ओर हम साथ साथ भागने लगे.. वो लोग हमारे पीछे पड़े।
गाँव के बाहर कच्चे पक्के रास्ते पर भागते भागते हमलोग गाँव के अंदर आ गए और सामने ही एक बहुत बड़ी दीवार थीं। हमलोग रुक गए पीछे मुड़कर देखा तो गुंडे हमारे सामने थे। अब उनसे बच पाना मुश्किल था।
अचानक ही एक लड़की की आवाज कानो पड़ी।
''वीर, वीर तुम ठीक तो हो ना..?''
''सामने माया खड़ी थी..वही माया जिससे में प्यार करता था। अभी दो दिन पहले ही हमारी कार का हमारा एक्सीडेंट हुवा था।
मेने उसकी ओर गुस्से भरी निगाहों से देखा वो समझ गई की मुजे मेरा अतीत याद आ गया है.. मुजे वो सबकुछ याद आ गया जो में सात साल पहले में भूल गया था।
उस वक़्त अपने प्यार अपनी संध्या को बचाने के लिए मेरे सामने एक ही रास्ता था उन गुंडो से एकेले लड़ना जो मेरे बस की बात नहीं थीं।
संध्या को अपने पीछे छुपाकर मेंने उन गुंडो पर हमला कर दिया।
में एक सिपाही का बेटा था। इसीलिए लड़ना अच्छी तरह से जानता था।
वो खतरनाक हथियार वाले चार ओर में अकेला फिर भी घुसे लातो से में उन सब पर टूट पड़ा।
उन्ही हाथापाई में उन में से एक की देशी बन्दूक मेरे हाथ आ गई में चलना भी जानता था।
हवा में दो फायर किए की वो लोग घबरा गए मेने उन सबको पीछे हटने को कहा।
"चलो..चलो सबलोग पीछे हटो ओर अपने अपने हथियार नीचे फेंको.."
उन सब ने अपनी अपनी तलवारें नीचे फेंकी बन्दूक से मेने उन सबको डरते हुवे पीछे किया।
अब बाजी मेरे हाथ मे थी अब उनसे बच सकते थे पर..
तभी पिछेसे संध्या के गले पर किसीने चाकू रख दिया।
संध्या के मुह से एक आह..सुनाई दी मेने पीछे मुड़कर देखा तो
वो ओर कोई नही मास्टरजी की बेटी माया थी। उसने मेरी ओर मुस्कुराते हुवे कहा
''वीरेन वो बन्दूक फेंकेगा या इस संध्या को जान से मार दु..''
बन्दूक फेंकने के अलावा मेरे पास ओर कोई रास्ता नही था मैने माया को विनंती करते हुवे कहा
"माया.. माया.. में तुम्हारे सामने हाथ जोड़ता हु..संध्या को कुछ नही करना.."
माया ने गुस्से में चिल्लाकर कहा
''बन्दूक फेंक नीचे..''
मेने बन्दूक नीचे फेंक दी..
तभी मौके की तलास में रहे वो गुंडे मुझपर टूट पड़े
माया ने उन सबको चेतावनी दी
''सुनो ये मरना नही चाहिए अगर ये मर गया तो में तुम सबको मार दूंगी''
तभी मेरा स्कूल का दोस्त भवानी वह आ गया दूर से ही मेने उसे संध्या को बचाने के लिए आंख के इशारे में कहा
क्रमशः