Hone se n hone tak - 15 in Hindi Moral Stories by Sumati Saxena Lal books and stories PDF | होने से न होने तक - 15

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होने से न होने तक - 15

होने से न होने तक

15.

यश आते ही रहते हैं। जौहरी परिवार का भी ऊपर आना जाना बना रहता है। न जाने कब और कैसे यश उनके बच्चों से घुल मिल गए थे। विनीत अपनी मैथ्स की प्राब्लम्स जमा करता रहता है और जब भी यश के पास समय होता है तब अच्छी तरह से उनसे बैठ कर पढ़ता है। कभी कभी तो लगने लगता है जैसे मेरे घर में कक्षाऐं चल रही हां। यश विनीत को और मैं शिवानी को पढ़ाते रहते हैं। बीच बीच में चाय पकौड़ी के दौर भी चलते रहते हैं।

शाम को यश आए थे। उनके आने की आहट पा कर विनीत एक कटोरी में खीर ले आए थे। मैं यश के लिए चाय चढ़ा रही थी। मैंने विनीत से चाय के लिए रुकने को कहा था पर कटोरी मेज़ पर रख कर विनीत फौरन ही चला गया था। बहुत दिन से देख रही हूं कि उन दोनों को अगर कुछ विशेष पढ़ना होता है केवल तभी यश के सामने रुकते हैं। तब भी काम की चीज़ समझ कर फौरन ही चले जाते हैं। आज अचानक ही मेरे मन में आया था कि क्या आण्टी ने बच्चों को यश की मौजूदगी में बैठने के लिए मना किया है। आण्टी की सुबह की अर्थ भरी मुस्कुराहट याद आयी थी। सोच कर अजब संकोच सा लगा था।

अगले दिन सुबह रोज़ के मुकाबले मैं थोड़ा जल्दी ही उठ गयी थी। नौ बजे से पहले ही मुझे तैयार होना है। कपड़े मैंने रात को ही निकाल कर रख लिए हैं। कभी कभी मुझे अनायास ही सब कुछ बहुत अच्छा लगने लगता है। लगता है जैसे ज़िदगी में अनायास ही बीतने वाले समय के साथ मकसद जुड़ गया है। सुबह तैयार हो कर कालेज जाने से लेकर रात को अगले दिन के लिए कपड़े निकालने तक...दिन की कक्षा से लेकर घर आकर अगले दिन के लैक्चर की तैयारी तक। कालेज में नीता,केतकी,मीनाक्षी के साथ बिताया गया समय,घर में शिवानी और विनीत,जौहरी अंकल आण्टी भी। सबसे अधिक यश का अपने घर में आना और उनकी प्रतीक्षा करना और उनके साथ समय बिताना अच्छा लगता है मुझे। अपना घर, अपने मन का रख रखाव,अपनी इच्छा से स्वागत सत्कार। मुझे लगता जैसे जीवन का हर सूत्र एकदम मन चाहे ढंग से अपने हाथों मे आ गया हो।

मानसी चतुर्वेदी समय से आ गयी थीं। रास्ते भर वे बिना रुके बोलती रहीं थीं। उनके पास बातों का भंडार है। कुछ एकदम घरेलू, कुछ बेहद सोच भरी,जिन्हें विद्वतापूर्ण भी कहा जा सकता है,एकदम दार्शनिक बातें। कुछ साहित्य की...कोई पढ़ी हुयी कहानी अपनी बेहद सवेंदनशील व्याख्या के साथ। कुछ बेहद चक्कलस भरी बातें, फूहड़ सी भी। एक ही व्यक्ति में इतना विरोध कैसे हो सकता है सोच कर मुझ को अजीब लगता है पर अब मैं उन बातों को लेकर उस तरह से उनका छिद्रान्वेषण नहीं कर पा रही। कल की घटना के बाद से उनके प्रति मेरी पूरी सोच ही बदल गयी है। मैं उनके लिए अजब सा सम्मान महसूस करने लगी हूं। वैसे भी उनके साथ बात करके मुझे अच्छा लगा था जैसे ज़िदगी में बहुत कुछ नया, एकदम अन्जाना सा समझ आने लगा हो।

कालेज में हम दोनों को बेहद अतंरगता से साथ आता देख कर नीता केतकी और मीनाक्षी ने आश्चर्य से मेरी तरफ देखा था। मानसी जी बगल के कमरे में चली गयी थीं तो मीनाक्षी ने पूछा था,‘‘साथ आए हो तुम दोनो?’’

मेरे हॉ कहने पर उसने टोका था,‘‘यह तुमसे कैसे लस लीं ?’’

मैं अचकचा गयी थी। कुछ क्षण जैसे समझ नहीं पायी थी कि अपना जवाब कहॉ से शुरू करुॅ। मैं हॅसती हूं,‘‘बल्कि हम ही लस लिए उनसे।’’

‘‘किस लिए? यह शौक किस लिए चर्राया था आपको?’’केतकी ने तीखी निगाह से मेरी तरफ देखा था। मैं जानती हूं कि वे लोग मानसी जी को ज़रा सा भी पसंद नही करती। उनके साथ ही मैथ और बैट को भी नहीं। मैं जब तक कुछ और कहती तब तक मानसी चतुर्वेदी आ गयी थीं और मेरे बगल के सोफे पर बड़े अनौपचारिक अपनेपन से बैठ गयी थीं। मीनाक्षी को शायद उनका यूं एकदम अपने बीच में बैठना भी अच्छा नहीं लगा था। उसका चेहरा बिगड़ गया था। मैं डर गयी थी। मुझे लगा था कि कहीं मेरे कारण मानसी जी इन लोगों के बीच उपेक्षित या अपमानित महसूस न करें। मैं सतर्क हो गयी थी और मानसी जी के प्रति अतिरिक्त रूप से सभ्य और अपनेपन से भरी सी।

घण्टा बजा था और मानसी चतुर्वेदी उठ कर खड़ी हो गयी थीं। कई और लोग भी उठ गये थे...मीनाक्षी और केतकी भी। स्टाफ रूम में अचानक हलचल लगने लगी थी और थोड़ी ही देर में पूरा कमरा काफी कुछ शॉत और वीरान सा लगने लगा था। कमरे के एक कोने में पड़े सोफे पर नीता और मैं अकेले रह गए थे। मैं नीता से मानसी जी के बारे में ही बात करती रही थी। पिछले दिन का वृतांत मैंने विस्तार से बताया था। यह भी कहा था कि मैं उनसे बहुत अधिक प्रभावित हुयी हूं और उस प्रकरण ने मुझे इंसानी तौर पर बदला है शायद, और एक बेहतर इंसान बनाया है। प्रति दिन के जीवन में अन्याय के विरूद्ध इस प्रकार से खड़ा हुआ जा सकता है यह मैंने पहली बार जाना है।

नीता चुप रही थीं जैसे कुछ सोच रही हों,‘‘हॉ अम्बिका मानसी में यह क्वालिटी है।’’और वह मानसी से जुड़े अनेक और किस्से मुझे बताती रहीं थीं कि कैसे स्टाफ की आया के बीमार होने पर वह उसके साथ तीन दिन तक अस्पताल में पड़ी रही थीं। अपनी पुरानी महरी के बूढ़े हो जाने पर उसे वृद्धावस्था पेंशन दिलाने के लिए कितने दिनों तक दफ्तरों के चक्कर लगाती रहीं थीं। केतकी कक्षा से जल्दी आ गयी थी और हम दोनो की बातें चुपचाप सुनती रही थी।

‘‘पर मानसी की चक्कलस की आदत के पीछे उन्हें कोई पसंद नहीं करता। वर्चू और इविल का बड़ा विचित्र संगम हैं वह। मुसीबत में पड़े व्यक्ति के लिए किसी भी सीमा तक कष्ट उठा सकती हैं वह पर वैसे..’’नीता ने अपनी बात आधी छोड़ दी थी। मेरी तरफ देखा था और अपनी बात पूरी की थी,‘‘बहुत भली हैं मानसी पर यह भी सच है कि उनमें रफ एैजेस हैं। उनका खुरदुरापन।’’नीता क्षण भर के लिये चुप हो गयी थीं फिर उन्होने अपना वाक्य पूरा किया था,‘‘कभी कभी लगने लगता है कि दूसरे की सफलता उससे बर्दाश्त नही होती।’’

‘‘अरे’’मेरे मुह से अचानक निकला था।

नीता एकदम से अचकचा गयीं थीं जैसे मानसी जी के लिये वैसा बोल कर उसने सही न किया हो,‘‘हो सकता है मैं ग़लत हूं। पर हॉ....।पर मानसी में रफ ऐजेस हैं।और’’

केतकी ने नीता की बात आधे में काट दी थी,‘‘रफ एैजेस?’’वह घूर कर हम दोनो की तरफ देखती है,‘‘उनके किनारे ही नहीं वह पूरी की पूरी रफ हैं। एकदम झाण झंकार,कांटे ही कॉटे। पता नहीं चतुर्वेदी साहब ने कैसे उनसे मोहब्बत और फिर शादी की।’’केतकी ने मॅुह बिगाड़ा था,‘‘लकी लेडी।’’

‘‘कुछ तो देखा ही होगा चतुर्वेदी साहब ने उनमें।’’मैं ने अपनी टिप्पणी दी थी और पिछले दिन की घटना किसी चलचित्र की रील की तरह मेरी आखों के आगे घूम गयी थी।

मीनाक्षी और मानसी चतुर्वेदी क्लास से आ गए थे और मैं और नीता अपने क्लास में जाने के लिए उठ खड़े हुए थे। मीनाक्षी हम लोगों से बात करना चाह रही है पर उसे सुबह से मौका ही नहीं मिला है। पहले मानसी जी पास में आ कर बैठ गयीं, फिर मीनाक्षी स्वयं क्लास लेने चली गयी और अब मुझे जाना है। मैं और नीता जाने लगे तो उसने चपल निगाहों से हम दोनों की तरफ देखा था,‘‘जल्दी से आओ यार बहुत बातें करनी हैं।’’

थोड़ी दूर पर खड़ी मानसी चतुर्वेदी कनखियों से मीनाक्षी की तरफ देख कर मुस्कुरायीं थीं। मीनाक्षी की उनकी तरफ पीठ है।

मैं जानती हूं कि कल मीनाक्षी किसी लड़के से मिलने वाली थी उसी के किस्से सुनाने होंगे उसे। वैसे वह बहुत ख़ुश लग रही है। सब कुछ विस्तार से जानने की उत्सुकता मेरे मन में भी है किन्तु फिर भी मुझे डर लगा था कि कहीं वह पीछे पीछे मेरे क्लास में न पहुंच जाए। इस तरह से लैक्चर छोड़ देना मुझ को अच्छा नहीं लगता। पर मीनाक्षी कुछ भी कर सकती है। तब मैं विद्यालय में नयी ही आयी थी। बी.ए.टू का क्लास ले रही थी। बड़े जोश से टापिक शुरू किया ही था कि किसी ने दरवाज़ा भड़भड़ाया था। खोला तो सामने मीनाक्षी खड़ी हॅस रही थी,‘‘चलो कुछ काम है।’’ मैंने लड़कियों की तरफ देखा था,‘‘आप लोग चुपचाप लाइब्रेरी में चली जाईए या जहॉ भी जाना हो पर शोर मत करिएगा।’’ मीनाक्षी ने विद्यार्थियों को आदेश दिया था। मैं बाहर निकल आई थी। कारण पूछा तो मीनाक्षी बाहर की तरफ देखते हुए बड़े ही अल्हड़ बचपने से हॅसी थी,‘‘अरे यार इतना भीगा भीगा मौसम हो रहा है और तुम क्लास ले रही हो। कैन्टीन से चाय और चाट मॅगायी है।’’ वह हॅसती रही थी। मीनाक्षी के कमरे में पहुॅचे तो वहॉ छोटी मोटी पार्टी ही चल रही थी। मैं सारे समय परेशान होती रही थी। मैं डरती रही थी कि कही लड़कियॉ न देख लें। मुझे यह भी लगता रहा था कि कहीं प्रिंसिपल डाक्टर दीपा वर्मा ही घूमती टहलती इधर न आ जाए। नीता और केतकी का फ्री पीरियड है यह पर मैं और मीनाक्षी दोनो ही अपना क्लास छोड़ कर यहॉ इस तरह बैठे हैं। ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था फिर भी मुझे ख़राब सा लगता रहा था। ऐसे बिना किसी कारण के क्लास छोड़ देना मुझे अच्छा नहीं लगा था। इतने बुरे मौसम में लड़कियॉ कालेज आऐं और टीचर्स क्लास न लें। पर उस समय मैं कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं थी। सो तो मैं आज भी नहीं हूं। वैसे भी मीनाक्षी ने इतने प्यार से बुलाया था मैं क्या कहती।

मीनाक्षी बहुत ख़ुश लग रही है। वह अल्मारी के पास खड़ी हुयी धीमें स्वर में नीता से कुछ बात कर रही है। मैं उसके पास जा कर रुक गयी थी। मैंने धीमें से उसके कन्धे पर हाथ रखा था, ‘‘क्लास से आ कर बात करते हैं मीनाक्षी। आज यश आऐंगे लेने सो मेरा देर से ही जाने का प्रोग्राम है। आराम से बात करेंगे। ओ.के?’’

‘‘ओ.के.’’मीनाक्षी हॅसी थी और मैं हाथ हिला कर क्लास लेने चली गयी थी। वापिस आई तो मुझे देख कर मानसी जी ने अपना सामान समेटना शुरू कर दिया था,‘‘घर चला जाए अम्बिका?’’ उन्होने पूछा था।

मानसी जी मेरी प्रतीक्षा कर रही होंगी यह मैंने सोचा ही नहीं था। मेरा कहीं और जाने का कार्यक्रम है यह कहने में मुझे समय लगा था। बहुत संकोच के साथ मैंने बताया था कि मैं आज कहीं और जा रही हूं।

मानसी अपना सामान समेटती रही थीं,‘‘तुम तो बड़े धोखेबाज़ निकले दोस्त,पहले दिन ही दगा दे गऐ।’’ वे हॅसने लगी थीं। साथ में मैं भी। वे जाने लगीं तो मैं ने ही रोका था,‘‘कल मैं आपका इंतज़ार करुंगी मानसी जी।’’

लगा था वे एकदम ख़ुश हो गयी हैं,‘‘ठीक नौ बजे’’वे हॅसी थी।

‘‘ठीक है।’’ मैंने सिर हिलाया था।

उनके जाने के बाद केतकी ने मेरी तरफ नाराज़ निगाहो से देखा था,‘‘अब आपका क्या मानसी चतुर्वेदी के साथ रोज़ आने का इरादा है?’’

मैं कुछ न बोल कर केवल हॅसती रहती हूं।

‘‘अकेले आने में डर लगने लगा क्या?’’मीनाक्षी ने पूछा था।

‘‘नहीं इनका सत्संग का इरादा है।’’ केतकी ने अपनी टिप्पणी दी थी।

मैं चुप रही थी। कैसे कहती उन लोगों से कि मानसी जी का साथ मुझे सच में अच्छा लग रहा है। ज़िदगी में बहुत से लोग मिले हैं...कोई अच्छा लगता है, कोई बहुत ज़्यादा अच्छा लगता है...कोई कम या कोई बुरा भी। पर इस कालेज में आने के बाद पहली बार ऐसा हो रहा है कि मुझे कुछ लोगो के लिए मन में आदर जन्मा है...जैसे कौशल्या दी के लिए, जैसे मानसी जी के लिए। पर साथ के ही कुछ लोग हैं जो कौशल्या दी से ऊबते है। कुछ मानसी जी से चिढ़ते हैं। पर मुझे इन विरोधों के बीच ही अपने रिश्तों के सही समीकरण बनाने हैं।

Sumati Saxena Lal.

Sumati1944@gmail.co