Kisi ne Nahi Suna - 8 in Hindi Moral Stories by Pradeep Shrivastava books and stories PDF | किसी ने नहीं सुना - 8

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किसी ने नहीं सुना - 8

किसी ने नहीं सुना

-प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 8

सुबह का माहौल बहुत तनावपूर्ण रहा। सूजा चेहरा, सूजी आंखें लिए नीला ने सारा काम किया। मुझ पर गुस्सा दिखाते हुए बच्चों पर चीखती चिल्लाती रही। मैंने कुछ कोशिश की तो मुझसे भी लड़ गई। मैं बिना चाय नाश्ता किए, लंच लिए बिना ही ऑफिस आ गया। एक तरफ मेरे चेहरे पर जहां तनाव गुस्से की लकीरें हल्की, गाढ़ी हो रही थीं। वहीं संजना खिलखिलाती हुई मिली। चेहरा ऐसा ताज़गीभरा लग रहा था मानो कोई बेहद भाग्यशाली नई नवेली दुल्हन पति के साथ ढेर सारा स्वर्गिक आनंद लूटने के बाद पूरी रात सुख की गहरी नींद सोई हो। और सुबह तरोताजा होकर आई हो। मुझे देखते ही चहकते हुए पूछा,

‘कैसे हो राजा जी ?’

मैंने उखड़े हुए मन से कहा,

‘ठीक हूं।’

‘तो चेहरे पर हवाइयां क्यों उड़ रही हैं ?’

‘कुछ नहीं यार बस ऐसे ही तबियत कुछ ठीक नहीं है।’

‘तबियत ठीक नहीं है। या बीवी से झगड़ा कर के आए हो।’

‘छोड़ो यार काम करने दो बहुत काम पेंडिंग पड़ा हुआ है।’

‘ठीक है काम करो जब मूड ठीक हो जाए तो बताना। कुछ ज़रूरी बातें करनी हैं।’

इतना कहकर संजना जाने को मुड़ी तो मैंने रेस्ट लेने की गरज से सिर कुर्सी पर पीछे टिका दिया। आँखें बंद करने ही जा रहा था कि वह बिजली की फुर्ती से पलटी और सीधे मेरे होठों पर किस कर बोली,

‘अब मूड सही हो जाएगा। ठीक से काम करोगे। लंच साथ करेंगे।’

इससे पहले कि मैं कुछ बोलता उसने बड़ी अश्लीलतापूर्ण ढ़ंग से आंख मारी और चली गई। यह देख कर बड़ी राहत मिली कि आस-पास कोई नहीं था। अचानक मुझे होठों का ध्यान आया कि कहीं उसकी लिपस्टिक तो नहीं लग गई। बाथरूम में देखा तो शक सही निकला। उस वक़्त गुस्सा बहुत आया लेकिन उससे कुछ कहने की हिम्मत न जुटा सका। आखिर मैं उसके कहने पर एल.ओ.सी. क्रॉस कर चुका था।

लंच का वक़्त आते-आते भूख से आंतें कुलबुलाने लगी थीं। मैं रेस्टोरेंट जाने के इरादे से उठा ही था कि संजना आ धमकी लंच बॉक्स लिए हुए। मैंने कहा,

‘मैं लेकर नहीं आया हूं कम पड़ जाएगा।’

लेकिन वह अड़ी रही और साथ ही लंच करना पड़ा। उसका बनाया पराठा-सब्जी मुझे बिल्कुल भी अच्छे नहीं लगे थे। जबकि उसने कहा कि उसके लिए भी वह बडे़ प्यार से बना कर ले आई है। मैंने उसके खाने की झूठी तारीफ कर दी कि अच्छा बना है। लंच के आधे घंटे तक उसने यही बताया कि देर से पहुंचने के कारण सबने बड़ी हाय-तौबा मचाई लेकिन उसने किसी की परवाह नहीं की। और सबको चुप करा दिया। बरसों बाद कल वह खूब चैन की नींद सोई थी। इसके लिए उसने मेरा धन्यवाद करते हुए रिक्वेस्ट की यह वादा करने की कि मैं उसका साथ अब कभी न छोडूंगा। मुझसे वादा कराने के बाद ही वह मानी। उसकी निश्चिंतता उसकी खुशी देखकर मेरे दिमाग में आया कि यह सच बोल रही है कि यह बरसों बाद कल चैन की नींद सोई है। इसकी चैन भरी इस नींद की कीमत उधर नीला ने चुकाई। रातभर तड़पी और सोफे पर पड़ी रही। और मैं भी तभी से तनाव में जी रहा हूं। मगर मेरा यह सारा तर्क-वितर्क तब धरा का धरा रह जाता जब संजना शुरू हो जाती। जैसे ही वह अपने प्यार की बयार चलाती मैं वैसे ही उड़ जाता।

यह सिलसिला जब एक बार शुरू हुआ तो फिर वह चलता ही चला गया। हम दोनों के संबंध अब ऑफ़िस के अलावा बाकी जगहों में भी चर्चा का विषय बन गए। हालत यह थी कि जो भी मुझे टोकता वही मेरा दुश्मन बन जाता। मैं उससे संबंध विच्छेद कर लेता। नीला से संबंध तनाव की सीमा तक पहुंच गए थे। कोई दिन ऐसा नहीं बीतता जिस दिन तीखी नोंक-झोंक न होती। बच्चे भी मुझसे कटे-कटे अपनी मां के ही साथ चिपके रहते।

बहुत बाद में मेरे ध्यान में आया कि नीला की आंखें अब स्थाई रूप से सूजी रहने लगी हैं। आज मैं यह सोच कर ही सिहर उठता हूं कि कैसे उसने वह अनगिनत रातें काटी होंगी, तड़पती हुई अकेले ही। क्योंकि मेरा रहना तो न रहने के ही बराबर था। उसके हिस्से का हंसने बोलने का सारा समय सारी बातें तो संजना छीन लेती थी। उसके हिस्से का तन का सुख भी वही छीन लेती थी।

मुझे अच्छी तरह याद है कि मैंने उससे उस एक बरस में एक बार भी रात या दिन कभी भी संबंध नहीं बनाए। क्योंकि संजना के तन का मैं इतना प्यासा था कि उसके सिवा मुझे कुछ दिखता ही नहीं था। उसके साथ महीने में जितनी बार संबंध बनाता था पत्नी नीला से तो कभी उतनी बार नहीं बनाया सिवाय शादी के कुछ महीनों बाद।

मेरा रोम-रोम आज कांप उठता है यह सोचकर कि नीला ने कैसे इतने लंबे समय तक इतना तनाव झेला। कैसे वह फिर भी पूरे घर को पहले ही की तरह चलाती रही। मेरी वजह से गुस्से, अपमानजनक बातों को सहती, सुनती रही। और अपने तन की भूख पर इतना नियंत्रण कि कभी इस दौरान भूलकर भी तन की भूख के चलते नहीं आई। बल्कि गुस्सा, प्रतिरोध दर्ज कराने के लिए जान बूझकर ऐसे कपड़े इस ढंग से पहनती कि जैसे कोई पर्दानशीं बहू अपने ससुर के साथ हो। बच्चों पर शुरू में तो बड़ा गुस्सा दिखाती रही लेकिन बाद में शांत रहकर उनसे अतिशय प्यार जताने लगी। मैं सैलरी देता तो हाथ न लगाती तो मैं अपने खर्च के लिए पैसे निकालकर बाकी उसकी अलमारी में रखने लगा। तनावपूर्ण यह माहौल जब एक बरस के करीब पहुंचा तो एक दिन नीला ने बच्चों को अलगकर तमाम बातें कहने के साथ यह कहा,

‘तुम्हारी हरकतों से घर तबाह हो गया है। बच्चे बड़े हो गए हैं, मैं नहीं चाहती कि तुम्हारी बुरी बातें मेरे बच्चों का भी भविष्य बरबाद करें। मैं अपनी आंखों के सामने यह सब बर्दाश्त नहीं कर सकती। इसलिए मैं बच्चों को लेकर अलग रहूंगी। तुम खुश रहो उस डायन के साथ।’

इसके बाद नीला की कई और तीखी बातों ने माहौल बिगाड़ दिया। तीखी नोंक-झोंक हुई। शादी के बाद मैंने पहली बार उस पर हाथ उठाया। मगर उसने मुझे हैरत में डालते हुए पूरी मज़बूती से बीच में ही मेरा हाथ पकड़ कर चीखते हुए कहा,

‘होश में रहो बता दे रही हूं। हद से आगे निकल चुके हो। अब मैं बर्दाश्त नहीं करूंगी।’

फिर उसने संजना को एक से बढकर एक गालियां देते हुए साफ कहा ‘आइंदा फिर हाथ उठाने की कोशिश की तो मैं सीधे पुलिस में जाऊंगी। क्योंकि अब इज़्ज़त मान-मर्यादा या लोग क्या कहेंगे इन बातों का तो कोई मतलब रहा नहीं। तुम्हारी कीर्ति पताका कॉलोनी का बच्चा-बच्चा जान चुका है। और आज के बाद तुम मेरे बच्चों की तरफ भी आंख उठाकर नहीं देखोगे। नहीं तो मैं भी अपनी हद भूल जाऊंगी।’

*****