chand lamho ki takraar in Hindi Love Stories by Gal Divya books and stories PDF | चंद लम्हों की टकरार

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चंद लम्हों की टकरार


चंद लम्हों की टकरार

पूरे 4 साल.....
हा, चार साल बाद उसे मिल रही थी और वो भी एक्सीडेंटली। उसे देख दो पल के लिए तो लगा जैसे सब थम सा गया था। सोक, हैप्पीनेस, सेड़नेस पता नहीं कोनसा इमोशन जागा था। कुछ अलग सा लगा था। सायद पुरानी यादों का असर था। उसमे भी तो था, हर ईमोसन आेर वो भी ओवरलोडेड.....
लेकीन पता तो है, एसे नहीं चलता। तो खुद को संभाला, समेटा और उसके सामने खड़ा कर दिया मुस्कुराते चहरे के साथ....
लेकिन उसके चहरे से अभी वो सोकिंग वाला रियेक्सन निकला नहीं था। वो ऐसा ही है बिलकुल नहीं बदला उसे खुद को संभाल ने में थोड़ा ज्यादा वक़्त लगता है।
फिर मेरा हेल्लो सुनके हि उसे होश आया, आेर मेरे हेल्लो का जवाब दिए बिना ही एक सवाल कर डाला..... तुम यहां कैसे? हम भी अपना हक जताते हुए कह दिए ये शहर थोड़ा हमारा भी है, बेसक हम यहां बचपन से नहीं रहते फिर भी ये शहर अंजान तो नहीं, इस शहर की हर गली से वाकिफ है हम, हर सड़क पर मेरे पैरो के निशान आज भी है। चाहे मानो या ना मानो ये शहर थोड़ा मेरा भी है।
तब जा के उसके चहरे पर मुस्कान आई, आेर बोला तुम बिल्कुल नहीं बदली वैसी की वैसी ही पगलिसी फिल्मी सी है। तो हम ने भी कह दिया आेर बदल ना चाहता भी को है।हम खुद को एसे ही पसंद है।
आप हमारी छोड़ो अपनी बताओ, केसे हो?...ठीक तो हो ना?....याद करते हो मुझे?... चलो छोड़ो ये इमोसन संभलें गा नहीं। वैसे भी पुरानी यादों को कुरेदना नहीं चाहती।
चलो ये बताओ क्या किया इन चार साल में, कुछ आगे बठे या वहीं के वहीं हो। टुविल से फार्विल तक पहुंचे या नहीं, गर्लफ्रेंड बनाई या फिर सीधे शादी????
मेरा ये बकवास सुन वो बोल उठा, ओय मेरी एक्सप्रेस गाड़ी अपनी जबान को थोड़ा ब्रेक तो लगा, थोड़ी सास तो ले आेर मुझे जवाब तो देने दे। दो पल के लिए तो लगा कुछ नहीं बदला।
हमारे रिलेशन को चार साल के ब्रेक का कोय असर हि नहीं, मानो कुछ बदला हि नहि, वो ही अनडस्टेंडिग, वो ही कंफर्ट आेर वहीं प्यार था....लेकिन जल्द ही ये गलतफेंमी भी दुर हो गई। वो अचानक उसे 4साल का ब्रेक याद आ गया वो जीजक ने लगा, उसकी जिजक को फिर से दूर करने का टाइम नहीं था मेरे पास। मेरी ट्रीन का समय हो गया था।
मैने कहा अच्छा लगा तुमसे मिल कर लेकिन अब टाइम नहीं है मेरे पास आज जा रही हूं अपने सपनो की नगरी, आखरी बार अलविदा कहने आयि थी तेरी आेर मेरी यादों को ताजा करने आयि थी, लेकिन यादे कुछ ज्यादा ही ताजी हो गई.....
जिन सपनों को पूरा करने के पागलपन के कारण तुमने छोड़ा था, वो सपने मुक्मल हो रहे है। चलो छोड़ो मेरी ट्रेन चली जाएगी, में चलती हूं, दुवाओ में याद रख ना।
पता नहीं क्यों आखो में नमी क्यु आ गई। ये आसु वो देख ना ले इस लिए उसे मूड कर देख भी नहीं पाई।
आज इस बात को भी 2साल गुजर गए है। फिर से एसी हि चंद लम्हों की टकरार की खवाहिश हो रही है। बस यूंही चंद लम्हों की टकरार.......