कई बार कुछ किताबें हम खरीद तो लेते हैं मगर हर बार पढ़ने की बारी आने पर उनका वरीयता क्रम बाद में खरीदी गयी पुस्तकों के मामले पिछड़ता जाता है। ऐसा हम जानबूझ कर नहीं करते बल्कि अनायास ही हमें उसके मुकाबले बाद में खरीदी गयी किताबें ज़्यादा महत्त्वपूर्ण...ज़्यादा रोचक...ज़्यादा ज़रूरी लगने लगती हैं। मगर ये कतई आवश्यक नहीं होता कि निर्णय लेते वक्त हम हमेशा सही ही हों। ऐसा इस बार भी मेरे साथ हुआ जब मैंने लगभग 8 या 9 महीने पहले खरीदी हुई ट्विंकल खन्ना की लिखी हुई किताब "लक्ष्मी प्रसाद की अमर दास्तान" को हर बार अपने वरीयता क्रम में पीछे खिसकाते हुए, खुद ही पढ़ने के मामले में टालमटोल कर दी।
अब जब इसे पढ़ने के इरादे से जब मैंने इसके पन्ने पलटने शुरू किए तभी अंदेशा हो गया कि मैं एक बढ़िया किताब को पढ़ने से अब तक चूक गया। मगर कहते हैं ना कि देर आए..दुरस्त आए तो यही सही। इस किताब में कुल चार कहानियाँ हैं और कमाल ये कि चारों की चारों ही ज़बरदस्त। पहली कहानी लक्ष्मी नाम की गांव में रहने वाली एक लड़की की है जो अपने गांव और आसपास के इलाकों में स्त्रियों की, उनके जन्म से ले कर बुढ़ापे तक की, खास कर के लड़कियों की, कभी जन्म के नाम पर तो कभी दहेज के नाम पर होने वाली दुर्दशा से व्यथित है। उन्हें कभी शिक्षा में भेदभाव सहना पड़ता है तो कभी दिन रात अपने घर और ससुराल में काम के नाम पर खटना पड़ता है। इस सब के बावजूद भी उन्हें अपमान..प्रताड़ना सहते हुए दिन रात घर और समाज का भेदभाव भरा व्यवहार सहना पड़ता है। ऐसे में एक दिन वो ऐसा उपाय सोचती है लड़कियों को जन्म से ही आत्मनिर्भर करने का कि स्त्री हो या पुरुष, किसी को भी उनके जन्म...उसके वजूद से दिक्कत ना हो।
दूसरी कहानी है नोनी आपा और बिन्नी नाम की दो बूढ़ी हो चुकी बहनों की, उनकी मस्ती...उनके फैशन...उनके सैंस ऑफ ह्यूमर की..उनकी बिंदास जीवनशैली की। पूरी कहानी में पाठकों को मुस्कुराने के अनेक मौके मिलते हैं जैसे:
• नोनी आपा द्वारा कान में सुनने की मशीन लगाना भूल जाने के बावजूद सब कुछ ध्यान से सुनने का प्रयास करना।
*66-67 साल की उम्र में उन्हें फ्लर्टिंग के प्रयास करते देखना।
*उनका पेंटिंग, कसीदाकारी, गीत-संगीत, बेकिंग, लाफ्टर और योगा जैसे शौक सीखने और उन्हें पूरा करने का असफल होने के बावजूद प्रयास करना..करते रहना।
इन दोनों की तमाम चुहलबाज़ियों के बीच योगा टीचर के रूप में अधेड़ विवादित आनंद जी का आगमन एक सुखद झोंके के रूप में होता है और शनै: शनै: नोनी आपा और उनके बीच आपसी संवेदना के ज़रिए, बिना किसी से कुछ कहे एक लगाव..एक मोह सा पैदा होने लगता है। मगर क्या यह सब ज़माने को मंज़ूर हो पाता है?
तीसरी कहानी बिंदास जीवन जी रही एलीज़ा थॉमस नाम की एक क्रिश्चियन लड़की की है जिसके पिता चाहते हैं कि वह उनकी बिरादरी के ही किसी मलयाली क्रिश्चियन लड़के से शादी करे। मगर स्वभाव से ही विद्रोही एलिज़ा बार- बार कपड़े बदलने की तर्ज़ पर अपनी मर्ज़ी से एक के बाद 5 विवाह करती है मगर दुर्भाग्यवश कोई भी उसका विवाह सफल नहीं हो पाता।
चौथी कहानी सबसे महत्त्वपूर्ण कहानी है देवास जिले के बबलू केवट नाम के व्यक्ति की जो बाद में दुनिया भर में ग्रामीण महिलाओं को सस्ते दामों पर सैनेट्री पैड बनाने की मशीनों सुलभ करवाने वाला अविष्कारक बना और 'पैड मैन' के नाम से भी मशहूर हुआ।
इसमें कहानी है उसके अपने घर और फिर समस्त ग्रामीण स्त्रियों की मासिक धर्म के दौरान होने वाली परेशानियों एवं साफ सफाई की दिक्कतों की से दुखी एवं द्रवित होने की, जिसने उसे सहज और सस्ते दामों पर सैनिट्री पैड बनाने के लिए प्रेरित किया और इस दौरान शर्मिंदगी और ज़िल्लत के चलते उसकी अपनी बीवी और बहन द्वारा ही उसका बहिष्कार एवं त्याग कर दिया गया। ग्राम पंचायत द्वारा उसे इसी ज़ुनून के चलते गांव से निकाल तक दिया गया। इस सब के बावजूद भी उसने हिम्मत नहीं हारी और आज नतीजा सबके सामने है।
ये काल्पनिक कहानी 'अरुणाचलम मुरुगनाथन' और उसकी कम कीमत पर सैनिटरी पैड बनाने की मशीन के अविष्कार पर आधारित है। कहानी के सारे किरदार, जगहें और किस्से लेखिका की अपनी कल्पनाशक्ति की उपज हैं। इसी कहानी पर बाद में टिवंकल खन्ना के पति अक्षय कुमार ने "पैड मैन" के नाम से एक फ़िल्म भी बनाई जो काफी सफल रही।
मूलतः अंग्रेज़ी में लिखी गयी इस किताब के हिंदी अनुवाद के लिए सुशील चंद्र तिवारी जी को बहुत बहुत बधाई।
230 पृष्ठीय इस संग्रहणीय कहानी संकलन के पेपरबैक संस्करण को छापा है जगरनॉट बुक्स ने और इसका मूल्य रखा गया है ₹250-/ जो कि मुझे थोड़ा ज़्यादा लगा। आने वाले भविष्य के लिए लेखिका एवं प्रकाशक को बहुत बहुत शुभकामनाएं।