bhadukada - 34 in Hindi Fiction Stories by vandana A dubey books and stories PDF | भदूकड़ा - 34

Featured Books
Categories
Share

भदूकड़ा - 34

कुन्ती के वाक्य सुमित्रा जी के दिल पर हथौड़े से पड़ रहे थे. जब वे ब्याह के आईं थीं, तब उनकी लम्बाई-चौड़ाई पर भी कई दबी ज़ुबानों से उन्होंने भी ’पहलवान’ जैसा कुछ सुना था. उन्हें कैसा लगा था, ठीक वैसा ही वे अब जानकी के लिये महसूस कर रही थीं.
कुन्ती को लोटता छोड़ , वे रमा के हाथ से थाली ले के आगे बढ़ीं. थकान से भरी ज़रा सी बालिका-वधु अब अपनी सास का प्रलाप सुन रही थी वो भी पिता को दी जाने वाली गालियों सहित. घूंघट के भीतर उसके आंसू बह रहे होंगे, सुमित्रा जी जानती थीं. उन्होंने जल्दी से दूल्हा-दुल्हन की आरती उतार, परछन किया और भीतर ले आईं, ये जानते हुए कि इसका नतीजा बहुत भयंकर हो सकता है.

नई दुल्हन को सहारा दे के जब सुमित्रा जी अन्दर लाईं, तो उसकी दबी-दबी सिसकियां सुनाई दी थीं उन्हें.... रोना रोकने पर जैसी हूक उठती है न, ठीक वैसी ही सिसकी. कैसे कोई इतनी क्रूर बात दूसरे को कह पाता है? सुमित्रा जी ने तो कभी किसी के ईश्वर प्रदत्त रंग-रूप पर कोई विपरीत टिप्पणी नहीं की. असल में उन्हें कोई कुरूप लगता ही नहीं था. उनके मन की यही सुन्दरता तो उन्हें एक अलौकिक चमक देती थी. जबकि वे बहुत सुन्दर थीं. चाहतीं तो अपनी सुन्दरता पर गर्व करतीं, दूसरे की शकलों की हंसी उड़ातीं..... जैसा कुन्ती करती रही है हमेशा. उसे तो सुन्दर हो, तो कुरूप हो तो सबमें कोई न कोई नुक्स मिल ही जाता था. आज भी जिस तरह नववधु का अपमान कर, उसने लोट लगाई, धाड़ें मार के रोई, उसे पहले अपनी शक़्ल याद कर लेनी चाहिये थी. हमेशा अपनी सूरत से खफ़ा रहने वाली कुन्ती कैसे किसी और का अपमान कर सकती है? लेकिन यही तो करती आई है कुन्ती, हमेशा से.

यदि घर की दूसरी महिलाएं, खासतौर से रमा और सुमित्रा जी नई बहू के खाना-पानी का खयाल न रकह्तीं, कुन्ती के आदेश के भरोसे रहतीं, तो बेचारी उस दिन भूखी-प्यासी प्राण त्याग देती, क्योंकि कुन्ती ने तो फिर उस कमरे का रुख ही नहीं किया जहां जानकी बैठी थी. इस नये रिश्ते की शुरुआत ही दरकी हुई नींव से हुई. पहली झलक में ही मन खट्टा हो गया जानकी का. जबकि कुन्ती ने जबरिया मिश्रा जी से दुश्मनी सी मान ली. असल में उसका ये रोना-धोना भी सुनियोजित था.
उसका कोई काम स्वत: होता ही कहां था? हर काम में योजना, षडयंत्र...! कुन्ती चाहती थी कि नई बहू को आते ही दबा लिया जाये, उसके मायके की ग़लतियों का हवाला दे के. ऐसा करने पर उसे हर वक़्त ताने देने का सुनहरा मौका तो मिलेगा ही, बहू भी पलट के जवाब नहीं दे पायेगी. कुन्ती जानती थी, गांव की लड़कियां कम उम्र में ही परिपक्व हो जाती हैं, घर की ज़िम्मेदारियां सम्भालते-सम्भालते. तो नई बहू कोई हीला-हवाली या ना-नुकुर की कोशिश करे, उसके पहले ही उसे दबा लेना चाहिये. अजब शिकारियों जैसा स्वभाव था कुन्ती का. हर किसी के लिये जाल बिछाना........!
कुन्ती और जानकी के गांव के बीच महज पांच किमी की दूरी थी. मिश्रा जी भी स्कूल में शिक्षक थे.
(क्रमशः)