वहाँ आदमी मोहन ही था। वो अंधरे कमरे में से हँसता हुआ बाहर आया और कहने लगा: कैसे हो मेरे प्रिय मित्र..? पहचान मुजे में मोहन । बहोत अच्छा लगा तुम्हें देख कर।
सुरेश: मोहन तुम तो बहोत अच्छे थे। और हम दोस्त भी थे। तो फिर इस कदर रवि क्यों गायब किया।
मोहन: दोस्त ..!कैसा दोस्त। तुमने तो दोस्त को मरने की दिए छोड़ दिया । तुमारी वज़ह से मेरी माँ भी मर गई।
मोहन के सुनकर चोक गया और दुखी हुआ..।
मोहन ने आगे कहा: अगर उस दिन तूने मेरा नाम पुलिस के सामने ना लिया होता यो में बच जाता। उस पैसे से में अपनी माँ की दवाई ले सकता था। अपना जीवन सुधार सकता था। मेरे जाने के बाद मेरी माँ भी मर गई। सिर्फ तुमारी वज़ह से।
सुरेश ने कहा: लेकिन मोहन तूमने मुजे क्यों इस बारे में बात नही की.?मुजे पैसे मांगे होते तो में दे देता। में कुछ मदद कर सकता था।
मोहन: में किसी से भीख नही लेना चाहता था। मेने काम खोजने की भी कोशिस की पर कोई काम नही मिला। मेरे पास कोई रास्ता ना बचने पर मैने ऐसा किया।
यहाँ कहकर वो रवि को उसके पास लेके बंदूक उसके माथे पर रख देता है। सुरेश ओर सुनैना डर के मारे चीख पड़ते है। पुलिस के सुन कर चोक जाती है। और घर मे जाने की कोशिस करते है।
मोहन: तुमने मेरे सब कुछ छीन लिया है। अब में तुमारा सब कुछ छीन लुगा।
मोहन गोली चलने जाता है वहाँ पुलिस आ जाती है और उसके हाथ पर गोलि चलाकर उसके हाथ से बंदूक गिरा देती है। मोहन ओर उसके साथी को पुलिस गिरफ्तार कर लेती है। और रवि ओर उसके माता पिता को बचा लेती है।
पुलिस उसे सारा सच्चा पता कर लेती है। मोहन सिर्फ़ बिनासोचे समझे अपने गलत कामो को न देखकर बस सुरेश बदल लेना चाहता था। इस प्रकार उसे वापिस उस जेल में जाना पड़ा। जहा से वो कुछ समय पहले ही आज़ाद हुआ था
सुरेश ओर उसका परिवार घर पोहच गया और खुसी से अपनी ज़िंदगी जीने लगा।
हमारे ज़िन्दगी में अक्सर ऐसे किस्से सुनते है जहाँ सचाई का साथ दो तो किछ अपने ही दुश्मन बन जाते है।
लेकिन बुराई कितनी भी शक्तिशाली हो पर सचाई के सामने नही टिक करती।
भूरा काम भूरा ही होता है चाहे किसी भी परिस्थिति में किया जाए।
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ये कहानी यहाँ पूर्ण होती है। उम्मीद करती हूं आपको पसंद आई होगी।