Huf Print - 5 in Hindi Moral Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | हूफ प्रिंट - 5

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हूफ प्रिंट - 5

हूफ प्रिंट

Chapter 5

मानस की कहानी सुनकर आकाशदीप लोंच में पड़ गया। जो कुछ मानस ने बताया था वह कत्ल के लिए एक सॉलिड मोटिव था।

"मानस तुमने जो कहा वह तुम्हारे विरुद्ध जा सकता है। तुम कत्ल वाली जगह थे। मिलिंद तुम्हें ब्लैकमेल कर रहा था। इतनी बड़ी रकम की मांग कर रही था। यह काफी होगा कत्ल का इल्ज़ाम साबित करने के लिए।"

"पर आकाशदीप मुझ पर यकीन करो मैंने मिलिंद को नहीं मारा।"

"अच्छा ये बताओ कि जब मिलिंद ने एक करोड़ की मांग की तो तुमने क्या किया ? फिर तुमको इस बात का यकीन कैसे हो गया कि उसके पास कॉपी मौजूद है।"

आकाशदीप का सवाल सुनकर मानस कुछ सोंचते हुए बोला,

"मैं सच बताऊँ मिलिंद ने जब कहा कि उसके पास कॉपी है तो मैं घबरा गया। मुझे डर सताने लगा कि अगर उसने वह कॉपी मीडिया को दे दी तो क्या होगा। अपनी परेशानी में मैंने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया कि उससे कहूँ कि वह कॉपी दिखाए।"

"हम्म... तुमने उससे कहा क्या ?"

"मैंने उसे समझाया कि एक करोड़ कोई छोटी रकम नहीं है। इंतज़ाम करने में समय लगेगा। मेरी कल इंगेजमेंट है। इसलिए वह कुछ मोहलत दे दे।"

"वह मान गया ?"

"मेरे बहुत कहने पर उसने कहा कि एक हफ्ते में मैं एक करोड़ का बंदोबस्त कर दूँ और उससे कॉपी ले लूँ।"

"तुमने उससे ये नहीं कहा कि इस बार भी व धोखा नहीं देगा इसकी क्या गारंटी है।"

"मैंने बताया कि उस समय मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था। मैं उसकी बात सुनकर बहुत परेशान हो गया था।"

आकाशदीप कुछ देर तक विचार में डूबा रहा। मानस के लिए एक एक पल कठिन हो रहा था। उसने कहा,

"क्या तुम्हें मुझ पर यकीन नहीं है। तुम तो मुझे तीन साल से जानते हो।"

आकाशदीप ने उसे कुछ क्षणों तक घूर कर कहा,

"अभी अभी तुमने जो कुछ बताया उसके बाद तो मैं दावे से नहीं कह सकता कि मैं तुम्हें जानता हूँ।"

उसका जवाब सुनकर मानस को निराशा हुई। वह जानता था कि उसे इस मुसीबत से केवल आकाशदीप ही बचा सकता है।

"तो तुम मेरा केस नहीं लड़ोगे ?"

"मैंने ऐसा नहीं कहा। सिर्फ यह बताया कि किसी इंसान को पूरी तरह से नहीं जाना जा सकता है। हाँ एक बात मैं तुम्हारे बारे में कह सकता हूँ कि तुमने मिलिंद को नहीं मारा होगा।"

मानस को यह सुनकर तसल्ली हुई। आकाशदीप ने आगे कहा,

"सच कहूँ तो केस कमज़ोर है। सबकुछ तुम्हारे खिलाफ है।"

"तो फिर तुम यह केस कैसे लड़ोगे।"

"इस यकीन पर कि तुमने खून नहीं किया है। बात यह उठती है कि तुमने मिलिंद को नहीं मारा है तो और कौन हो सकता है जो मिलिंद की हत्या कर सकता है। सबसे बड़ा सवाल कि कत्ल करने के लिए उसके पास मोटिव क्या हो सकता है।"

मानस बहुत परेशान था। वह किसी भी बिंदु पर नहीं सोंच पा रहा था। उसकी परेशानी देखकर आकाशदीप ने कहा,

"मानस अब ज़रूरत है कि तुम अपने आपको शांत कर सही तरह से सोंचो। मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत पड़ेगी।"

आकाशदीप ने उससे वकालतनामे पर दस्तखत लिए। चलते हुए उससे बोला,

"चलता हूँ मानस। आगे की कार्यवाही करनी है। पर तुम भी अपने आप को कानूनी लड़ाई के लिए तैयार कर लो।"

आकाशदीप चला गया। उसके जाने के बाद मानस आँखें मूंद कर लेट गया। पर उसके मन में हलचल मची हुई थी।

वह बहुत खुश था कि अब श्वेता के साथ शादी करके सुख से रहेगा। अब तक उसका मन बहुत भटका था। लेकिन वह अब सिर्फ श्वेता के साथ ही अपनी पूरी जिंदगी बिताना चाहता था। इधर उधर भटकने से उसका मन ऊब चुका था।

उसके कमरे के दरवाज़े पर दस्तक हुई। उसने आँख खोल कर देखा। दरवाज़े पर उसके पापा किशनचंद खड़े थे। वह उठ कर खड़ा हो गया।

"आइए पापा...."

किशनचंद अंदर आकर कुर्सी पर बैठ गए। मानस भी बिस्तर के किनारे पर बैठ गया। कुछ देर तक किशनचंद कुछ नहीं बोले। उनके चेहरे से साफ झलक रहा था कि वह मानसिक रूप से बहुत दुखी थे।

करीब एक मिनट तक चुप रहने के बाद किशनचंद बोले,

"मीडिया वालों ने परेशान कर रखा है। अपने बंगले के बाहर देर तक जमा रहे। बड़ी मुश्किल से गए। अभी कैलाश का फोन आया था। बहुत परेशान था। मीडिया वाले उसके घर भी पहुँच गए। उससे तरह तरह के सवाल कर रहे थे। श्वेता भी बहुत दुखी है।"

मानस कुछ नहीं बोला। उसे अपराधबोध हो रहा था। उसके कारण सभी परेशान हो रहे थे। किशनचंद ने आगे कहा,

"बेटा इज्ज़त हासिल करने के लिए बहुत मेहनत व धैर्य की आवश्यकता होती है। लेकिन उसे मिट्टी में मिलते समय नहीं लगता है। इसलिए ही कहता था कि संभल कर चलो।"

मानस नज़रें झुकाए बैठा था। उसके पापा ने कई बार उसे समझाया था कि तुम अपने चाल चलन पर नियंत्रण रखो। अब वह उन्हें कैसे बताता कि उसकी एक भूल ही गले का फंदा बन गई है।

किशनचंद ने आगे कहा,

"पर अब जो हुआ उसे तो बदल नहीं सकते हैं। आगे क्या करना है बताओ ? आकाशदीप अच्छा वकील है। पर तजुर्बा कम है उसके पास। मैं सोंच रहा था कि संजीव रानाडे से बात करूँ। उसके पास बहुत तजुर्बा है।"

"पापा आकाशदीप के पास तजुर्बा भले ही कम हो पर वह काबिल वकील है। वो केस आसानी से हैंडल कर लेगा। अगर ऐसा ना होता तो वह साफ साफ बता देता।"

"ठीक है फिर। अब हम लोग और कुछ तो कर नहीं सकते हैं। करना तो वकील को ही है।"

मानस को अपने पापा की परेशानी तकलीफ़ दे रही थी। वह बोला,

"पापा आप परेशान ना हों ? सब ठीक हो जाएगा।"

"बेटा औलाद पर आंच आती है तो कोई बाप आराम से नहीं रह सकता है। पर परेशान होकर भी काम नहीं चलेगा। हमें अपने आप को हर स्थिति के लिए तैयार करना होगा। तुम भी निराश मत हो। मैं हूँ तुम्हारे साथ।"

मानस उठ कर अपने पापा के सीने से लग गया। उसी समय मनीषा भी आ गई। उसने भी मानस को हग करते हुए तसल्ली दी।

जाते हुए किशनचंद बोले,

"हो सके तो श्वेता से बात कर उसे तसल्ली दे देना।"

अपने पापा से आश्वासन पाकर मानस को कुछ तसल्ली हुई।

मानस ने तय कर लिया कि वह पूरी हिम्मत के साथ यह लड़ाई लड़ेगा। उससे एक भूल हुई थी। पर उसने मिलिंद की हत्या नहीं की है।

वह आकाशदीप को अपना पूरा सहयोग देगा। पर पहले वह श्वेता से बात करना चाहता था। उसने श्वेता को वीडियो कॉल किया। वह चाहता था कि श्वेता उसके चेहरे को देख यह समझ सके कि उसने हत्या नहीं की है।

श्वेता ने कॉल उठाई। मानस ने देखा कि उसकी आँखें सूजी हुई हैं। वह समझ गया कि कॉल उठाने से पहले वह रो रही थी।

मानस ने कहा,

"आई एम सॉरी श्वेता। मैं तुम्हें खुशियां देना चाहता था। पर मेरी वजह से तुम्हारी आँखों में आंसू हैं। पर मैं तुम्हें एक बात कह सकता हूँ कि इस मामले में मैंने कुछ गलत नहीं किया है। मैंने बीते समय में कुछ गलतियां ज़रूर की थीं। पर मैंने मिलिंद को नहीं मारा है।"

"आई ट्रस्ट यू मानस...बट दुनिया वाले..."

कहते हुए श्वेता फिर रो पड़ी।

"श्वेता प्लीज़ रो मत। हमारे ऊपर मुश्किल समय आया है। हम हिम्मत से ही उसका सामना कर सकते हैं। आने वाले दिन और भी कठिन होंगे। मुझे तुम्हारे हौसले की ज़रूरत होगी। इसलिए अपने पर काबू रखो। एक बार हम जब इस बुरे समय से बाहर आ जाएंगे तो सब अपने आप चुप हो जाएंगे। बोलो मेरा साथ दोगी ना।"

"हाँ...."

"ठीक है.... तुम अपना खयाल रखना और अंकल को भी संभालना। मैं फोन रखता हूँ। मुझे बहुत सी तैयारी करनी है। बस एक बार मुस्कुरा दो।"

श्वेता ने मुस्कुराने की कोशिश की। पर मानस जानता था कि यह कोशिश उसके लिए कष्टकारी है। पर अभी वह कुछ भी नहीं कर सकता था।

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