कीमती साड़ी
" माँ ! कहाँ रखी हैं अलमारी की चाबियाँ ? दो ना जल्दी से " दीपू राजधानी एक्सप्रेस की गति से मां के कमरे में चिल्लाती हुए आयी और पूरे कमरे में इधर से उधर लम्बें-लम्बें कदमों से दौड़ने लगी।
"अरे दीपू तू ही देख ना बेटा यहीं कहीं रखी होगी" माँ ने रसोईघर में से ही दीपू को जवाब दिया । माँ अक्सर चाबियाँ इधर उधर रखकर भूल जाया करती थी, आज भी कुछ ऐसा ही हुआ।
"ओहो माँ ! आप भी ना , कुछ भी ध्यान नहीं रहता है आपको, ऐसे चाबियाँ रखकर कौन भूलता है भला ? सही कहते हैं पापा आप ना समय ये पहले ही सठियाती जा रही हो "- किसी जासूस की तरह पूरे कमरे की तलाशी लेते हुए दीपू बड़बड़ा रही थी।
जासूस दीपू की तलाशी कमरे से होते हुए पूरे कमरे में फैलती जा रही थी।सुबह माँ ने एक एक चीज़ को सलीके से लगाने में पूरे दो घण्टे लगाए थे और अलमारी की चाबियों को ढूंढ़ने की अफरातफरी में बस पाँच मिनट में दीपू ने पूरे घर को उलट पुलट कर दिया।
रसोईघर में काम करते हुए माँ की नज़र अचानक चीनी के डब्बे पर रखे चाबियों के गुच्छे पर पड़ी। मां को याद आया कि कल रात चाबियाँ रसोईघर में ही रखकर भूल गयी थी । जल्दी से चाबियाँ उठा मां कमरे की ओर लपकी।
"हे भगवान ! दीपू ये क्या हाल बना दिया है तुमने इस कमरे का, कितना समय लगा था मुझे ये सब जमाने में जानती भी हो ? ये लो चाबियाँ ऐसा कौनसा खज़ाना रखा है इस अलमारी में .." माँ की बात अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि दीपू ने माँ के हाथ से झट से चाबियाँ ले ली ।
"वाह माँ , यू आर ग्रेट ,चलो अब जल्दी जल्दी मुझे अपनी सारी साड़ियाँ दिखा दो" माँ की ओर देखते हुए लॉक खोलने लगी।
"साड़ियाँ ? साड़ी का क्या करना है तुझे " माँ ने यह कहते हुए आश्चर्य से दीपू की ओर देखा।
"ओहो माँ आप भूल गए ना दो दिन बाद हमारे कॉलेज में फैन्सी ड्रेस कॉम्पिटिशन है । उसके लिए ही तो आपकी साड़ी चाहिए" दीपू ने मां को बताया
"अच्छा , तो कोई नई सी साड़ी दिखाती हूँ। वो कैसी रहेगी जो पिछले साल राखी पर तेरे मामा जी ने दिलायी थी,बहुत अच्छी लगेगी तुझपर। तुझे पता है पूरा ज़री का काम है उस पर ,बहुत महँगी साड़ी है वो। तू ना वो ही पहनना ,बहुत अच्छी लगेगी तुझ पर"- कहते हुए माँ ने अपनी सबसे कीमती साड़ी दीपू की गोद मे रख दी।
"नहीं नहीं माँ ये नहीं, मुझे तो वैसी साडी चाहिए जैसी आप पहनती हो, कहते हुए दीपू माँ की साड़ी का पल्लू उंगलियों से रगड़ने लगी।
'ऐसी ? ये तो साधारण सूती साड़ी है बेटा, ये कहाँ अच्छी लगेगी। कितने लोग होंगें वहाँ और फिर तेरी सहेलियाँ ...वो क्या सोचेंगी ..कहते हुए माँ एक बार फिर अलमारी खंगालने लगी
एक क्षण रुक माँ ने दीपू से पूछा" वैसे तेरे कॉम्पिटिशन का विषय क्या है"
" आपके जीवन का आदर्श " और मेरे जीवन का आदर्श तो आप ही हो ना माँ , तो मुझे तो बिल्कुल आपके जैसा ही बनना है ना, आप कहाँ पहनते हो ऐसी भारी साड़ियां, और मेरे लिए आपकी ये सूती साड़ी ही सबसे कीमती है" दीपू ने पीछे से माँ को कसके बाहों में भरते हुए कहा।
ये सब सुनकर माँ की आँखों मे आँसू और होंठो पर मुस्कान का अनूठा संगम था । माँ को आज अपने जीवन का सबसे कीमती तोहफा जो मिल गया।