Moods of Lockdown - 18 in Hindi Moral Stories by Neelima Sharma books and stories PDF | मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन - 18

Featured Books
Categories
Share

मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन - 18

मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन

कहानी 18

लेखिका दिव्या विजय

बियाबान

उसकी शुरुआत नहीं थी, उसका अंत भी मालूम न था। व जिस पल आया, उसी पल ख़त्म हो गया। तेज़ी से उसने झपट्टा मारा, अपने पंजों में शिकार कसा और उतनी ही तेज़ी से चला गया। उसी के साथ ख़त्म हो गया सब कुछ। क्षणिक तौर पर नहीं, लम्बे अंतराल के लिए। यह अंतराल कितने भी समय के लिए हो सकता था, इ सृष्टि के अंत तक भी। जीवन की गति, उद्दाम चाहनाएँ, छोटी इच्छाएँ, सह सुख, गहरे दुख औ उनका स्वामित्व रखते मनुष्य सब विलीन हो गए थे। संसार अब एक निर्जन द्वीप समान था। होने को यहाँ अब भी सब कुछ था। दुकानें थीं, मकान थे, सिनेमा हॉल थे। मंदिर, मस्जिद, क़िले, पार्क सब जस की तस थे मगर वे सब ख़ाली थे। वहाँ कोई आवाजाही न थी। बच्चों के रोने की आवाज़ें न थी जैसे दुनिया भर के बच्चों की शिकायतें अचानक दूर कर दी गयी हों। लड़ाई-झगड़ा, शोर-शराबा इस तरह ख़त्म हो गए थे कि सब मुहब्बत में डूबे हों। किसी को कहीं पहुँचने की जल्दी नहीं थी। सब थम गया था। इस तरह थमा कि आवाज़, आवाज़ रह गयी और चुप्पी चुप हो गयी। यह भी न हो सका कि आवाज़ चुप्पी में बदल जाए या चुप्पी आवाज़ का सीना तोड़ गरज उठे। और यह सब अचानक हुआ, बग़ैर किसी पूर्व सूचना के। इतना अचानक कि किसी को मोहलत न मिल सकी इस स्थिति पर चर्चा करने की, मीमांसा करने की, और तो और स्थिति से बचने तक की।

सब कुछ एकाएक थम कैसे गया इस बात पर आश्चर्य किया जा सकता था पर कौन था आश्चर्य व्यक्त करने वाला! उसे सुध नहीं थी। उसे तो अभी तक मालूम भी न चला था। वह आज माउथ ऑर्गन का प्रदर्शन करने वाला था। उसने हाल ही में अपने सहपाठी से कामचलाऊ माउथ ऑर्गन बजाना सीखा है। उसने अपने सिरहाने रखे माउथ ऑर्गन को प्यार से देखा।

वह रोज़ की तरह देर से उठा। आधे से अधिक दिन बीत चुका था। आँखें अब भी जल रही थीं। उसके बहुत-से दोस्त दुनिया के दूसरे कोने में रहते हैं। यहाँ रात होती है तब वहाँ दिन उगता है। उनसे जुड़े रहने के लिए वह लगभग रात भर जागता है लेकिन अपने दिन से वह कट जाता है। उसने अंगड़ाई लेकर थकान को झटका। खिड़की तक गया और बाहर से झाँकते पेड़ को फूलों से लदा देख किलक उठा। एक घंटे के भीतर यह पेड़ अभूतपूर्व घटना का दर्जा हासिल करने वाला था। सोचकर उसे गुदगुदी हुई। वह मुड़ा और अपना कैमरा निकाल लाया। वह बाहर की ओर भागा फिर तुरंत उसे कुछ याद आया। एक बजे उसकी होने वाली बीवी मेसेज करने वाली थी। दो बज रहे थे। कोई मेसेज नहीं था। देखकर उसने चैन की साँस ली और बाहर निकल गया। होने वाली बीवी कुछ समय पहले तक उसकी प्रेमिका हुआ करती थी पर बीवी होने से पहले ही अपना यह ओहदा खो चुकी है। ऐसा क्यों हुआ यह सोचने का समय उसके पास नहीं था। सम्बन्धों को वह ज़्यादा तूल नहीं देता। उसके लिए वे इतने ही ज़रूरी हैं जितना स्टोर रूम में पड़ा ऐसा सामान जिसे न फेंका जा सके न इस्तेमाल किया जा सके।

पेड़ की कुछ तस्वीरें लेने के बाद वह भीतर आया, उन्हें अपलोड किया और रोज़ के कामों में व्यस्त हो गया। वह ख़ुश था कि वह इतना इक्स्क्लूसिव है कि साधारण से साधारण बात को विशिष्टता प्रदान करने में माहिर है। गीत गुनगुनाते हुए उसने नाश्ता बनाना शुरू किया। हाँ, उसका नाश्ता अभी होगा, शाम को किसी समय लंच और आधी रात डिनर। इस बीच मन हुआ तो बाक़ी आवश्यक काम जो अक्सर कई दिनों तक पेंडिंग रहते। कॉलेज कभी जाता, कभी नहीं। उसका समय-बोध गड़बड़ाने लगा था परंतु उसके जीवन में इसकी आवश्यकता भी न थी। उसे याद आया उसकी ज़िंदगी का ‘गोल्डन मोमेंट’ जब उसने पहली दफ़ा सबके सामने गीत गाया था और सबने उसे हाथोंहाथ लिया था। कौन सा था वह गीत? हाँ! एल्विस प्रिसली का ‘वन ब्रोकन हार्ट फ़ॉर सेल’। यह गीत उसने गाढ़े दुख के क्षणों में गाया था। दुख का कारण अब उसे याद न था। याद था वह दिन जब इतनी रोशनी हुई थी कि उसका अँधेरा चमकने लगा। इस गीत के रेस्पॉन्स से उसके अभी तक के जीवन के सारे कॉम्प्लेक्स धुल गए थे। वह अपने आप को नयी दृष्टि से देख पा रहा था।

यह वही दिन था जिसके बाद वह एक सतत परफ़ॉर्मर बन गया था। वह कोई भी काम जीवन जीने के लिए नहीं, परफ़ॉरमेंस की दृष्टि से करने लगा। उसका आदर्श ‘स्वान सॉन्ग’ का बूढ़ा था। वह हर दिन ऐसे जीता जैसे यह उसकी आख़िरी परफ़ॉरमेंस है। अपने हर प्रदर्शन के लिए वह जान लड़ा देता। वह अकेला भी होता तो सोचता, सैकड़ों जोड़ी आँखें उसे देख रही हैं और वह अपनी चाल-ढाल में बदलाव ले आता। कुछ और दिन बीतने के पश्चात यह बदली हुई आदतें उसके व्यवहार में शामिल हो जातीं। वह एक नया कलेवर धारण कर लेता। उसका मानना था इस तरह वह एक बेहतर मनुष्य हो रहा है जबकि पुरानी जान-पहचान वालों को वह पालिश्ड महसूस होता जैसे किसी खुरदरे पत्थर को घिस-घिस कर प्रदर्शन लायक़ बना दिया गया है। इस तरह उस पत्थर का रूखापन तो ख़त्म हो गया किंतु अपनी ही जाति से वह च्युत हो गया। ऐसा वे उसे कहते नहीं थे, बस सोचकर रह जाते। वह उन्हें अपने से अलग और दूर महसूस होता लेकिन उसके सामने दुःख व्यक्त करने का लाभ नहीं था। वह बहुत अधिक व्यस्त था।

उसे दिन भर गिनती करनी होती थी। वह गिनता। एक, दो,तीन..तीस..सौ, दो सौ। उसके बाद वह गिनना छोड़ देता। वह भावविह्वल होकर उन्हें देखता, छूता, कभी-कभी चूम भी लेता। वह सपने में भी गिनती करता। सपने में कभी-कभी उसकी गिनती लाखों तक पहुँच जाती तो वह ख़ुशी में बौरा कर उठ खड़ा होता। वह जाँचता कि क्या सचमुच ऐसा हुआ है। देख कर वह हताश ज़रूर होता लेकिन लम्हे भर के लिए। क्योंकि असलियत सपने से कम मीठी भले ही हो पर मीठी थी। दूसरों की कड़वी ज़िंदगी से अधिक मीठी। उसने अपने इंट्रो में लिखा था वह ‘ऑप्टिमिस्ट’ है और इस बात को साबित करने के लिए वह कठिन से कठिन परिस्थिति में मुस्कुराता रहता। इस कारण मुस्कान उसके चेहरे पर सदा चस्पाँ रहती और वह बाक़ी भाव दिखा पाने, महसूस कर पाने में अक्षम होने लगा था।

मुस्कुराते हुए वह आसमान बुनता, फूलों को रचता, स्वाद लिखता। वह मनुष्यों को आकृति से नहीं, आवाज़ों से पहचानता था। बाद में उनकी आवाज़ें भी विलीन हो गयीं। अब उसकी दिनचर्या में शामिल थी तस्वीरें और शब्द। इन्हीं के ज़रिए पिछले कुछ सालों में उसने इतने लोग इकट्ठा कर लिए उसने कभी अपने आप को अकेला महसूस नहीं किया। अकेले रहकर भी हज़ारों लोगों का परिवार एक क्लिक में समा गया। कौन-सा रिश्ता था जो उसे नहीं मिला! माँ-बाप, बेटा-बेटी, बहन-भाई, गुरु-शिष्य, प्रेमिका सब उसे यहीं मिलते। रिश्ते प्री-डिफ़ाइंड थे, नाम बदलते जाते। सब सुविधानुसार था। इस तरह वह किसी भी इमोशनल बैगेज से मुक्त रहता।

नाश्ते में आज उसने फ़्रेंच पैनकेक बनाए हैं। कल वह यू ट्यूब पर इसकी रेसिपी देखता रहा था। उसे फ़ीडबैक मिला है विदेशी खाना लोगों को अधिक पसंद है। कम-अज़-कम देखने में। ख़ुद को एलिट दिखाने का भी अपना मज़ा है। हाँ, ज़रूरत के अनुसार वह अपने गाँव-लोक का रूख करने से भी नहीं चूकता। दोनों के ही अपने-अपने दर्शक हैं। उसका काम है दोनों को बाँध कर रखना। इसलिए वह सबके स्वाद की चीज़ें प्रस्तुत करता है। अलग-अलग कोण से तस्वीरें खींचने में नाश्ता ठंडा हो चला था। उसने किसी तरह नाश्ता निगला और आज की योजना बनाने लगा।

प्लान करने से पहले ही उसे ख़याल आया कि क्यों न पहले वह पास की दुकान तक जाकर केक बनाने का सामान ले आए। आज उसके एक दोस्त का जन्मदिन है जो अब इस दुनिया में नहीं रहा। उस से मिले बरसों बीत चुके थे जब उसकी मृत्यु की ख़बर आयी। नोटिफ़िकेशन ने याद दिलाया आज उसका जन्मदिन है तो उसने इसे यादग़ार रूप देने की ठान ली। स्कूटर चालू नहीं हुआ तो देखा पेट्रोल की टंकी ख़ाली है। इन सब कामों में वह इस तरह के झंझट भरे काम अक्सर भूल जाता है। उसने झट बग़ल में रहने वाले गोपाल के घर की घंटी बजा दी। दो-तीन बार घंटी बजाने के बाद भी कोई बाहर नहीं आया तो उसने दरवाज़े से कान सटा दिया। टीवी पर कोई रिएलिटी शो चल रहा था। आह! बेचारा गोपाल। यह भी कोई ज़िंदगी है! टूटी टाँग के साथ, बीवी की पसंद के सीरियल देखते रहो। उसकी पोस्ट से उसे मालूम चला था और उसने फूलों के गुच्छे के साथ गेट वेल सून लिख दिया था। उसने बेक़रार होकर उसके पीले खटारा स्कूटर को देखा। क्लर्क की नौकरी में वह इस से अधिक नहीं जुटा सकता। वह दौड़ कर बोतल और नली ले आया। थोड़ा ज़ोर लगाकर टूटी सीट को ऊपर उठाया और एक सिरा पेट्रोल टैंक में डाल, दूसरे सिरे पर मुँह लगाकर पेट्रोल खींच कर बोतल में डाल दिया। जितनी देर में बोतल भरी वह एकटक सड़क को देखता रहा। सड़क उसे आम दिनों से कुछ अलग लगी पर क्या अलग था, समझ नहीं पाया।

वह दुकान पहुँचा तो दुकान बंद थी। क्या आज छुट्टी है? यह दुकान तो मंगलवार को बंद रहती है। उसने मोबाइल निकाला। आज शनिवार है यानी कल भी छुट्टी। सोच कर मन प्रसन्न हो उठा। फिर उसे याद आया परसों से उसकी लम्बी छुट्टियाँ शुरू हो रही हैं। वह और प्रसन्न हो उठा। इस बार भी वह घर नहीं जाएगा। वह यहीं रहने वाला है। उसे बहुत सारे काम करने है। काम की याद और उस से मिलने वाली ख़ुशी उसे फिर गुदगुदा गया। कॉलेज में भले ही है, कमाता-धमाता भी नहीं पर बड़े-बड़े लोगों को वह नसीब नहीं जो उसे हासिल है। उसके सहपाठी से लेकर शिक्षक तक, सब उसे ईर्ष्या युक्त सम्मान से देखते हैं। सोचते हुए वह उन दिनों की स्मृतियों तक पहुँच गया जब उसे कोई नहीं जानता था किंतु अब, अब उसका नाम है। वह गर्व से भर उठा। हालाँकि उसके परिवार वालों की दृष्टि में यह कोई उपलब्धि नहीं थी किंतु वह संतुष्ट था। आख़िर उसके पिताजी को कितने लोग जानते थे। जीवन बीतते-बीतते यही कोई पचास-सौ। और उसे! कोई हिसाब है क्या? कोयल के कूकने की आवाज़ आयी तो वह अपने ख़यालों से निकल आया।

“बलदेव, कहाँ हो? सो रहे हो क्या?” उसने चिरपरिचित लहज़े में आवाज़ लगायी पर उत्तर नहीं मिला। आज क्या वह भी अभी तक सो रहा है! कमाल है! वह सड़क पर टहलने लगा। सड़क पर दो कुत्ते थे। वे आपस में झगड़ रहे थे। थोड़ी देर उन्हें देखने के बाद उसने एक वीडियो बनाया और कैप्शन सोचा, ‘मनुष्यों से प्रेरणा लेते कुत्ते।’ सुपरहिट! हँसते हुए वह और आगे निकल गया। ख़ाली सड़क पर दूर-दूर तक सूखे पत्ते गिरे थे। वह इंतज़ार में था कि शायद थोड़ी देर में दुकान खुल जाए। चर्र-मर्र की आवाज़ से वातावरण भीग गया। उसे यह आवाज़ सुंदर लगी। वह तेज़ी से उन पर चलने लगा, लगभग भागते हुए। कोई होता तो स्लो मोशन वीडियो बनवा लेता। सड़क का जहाँ अंत हुआ, वहाँ चींटियों की लम्बी क़तार थी लेकिन आटा नहीं था। लगता है खाने की कमी की वजह से चींटियाँ स्थान बदल रही हैं। लेकिन किसी ने आटा क्यों नहीं डाला? वह जब भी यहाँ आता तब यह स्थान आटे और उसमें लथपथ चींटियों से सराबोर रहता था। अगली दफ़ा आएगा तो आटा लेता आएगा और इनके जीवन पर कुछ लिखेगा।

वह वापस दुकान तक पहुँचा लेकिन वह अब भी बंद थी। सर झटक कर वह लौट चला। उसके पास जो उपलब्ध है, उसी से वह कमाल कर दिखाएगा। वापसी में वह जॉर्ज के घर रुक गया । उस से कहना है, साइकिल लेता आए। कुछ तस्वीरें उसकी साइकिल के संग खिंचवानी है। वर्ल्ड बाइसिकल डे आने वाला है। बाद में तो जॉर्ज घर चला जाएगा। इस उम्र में आकर भी घर से उसका मोह नहीं छूटता। बार-बार घर भागता है। उसे ख़ुद घर गए कितने वर्ष बीत गए! उसने याद करने की कोशिश की पर याद नहीं आया।

“जॉर्ज, जॉर्ज!” उसकी एक आवाज़ पर भाग आने वाला, दो साल छोटा जॉर्ज, कई बार पुकारने पर भी आज बाहर नहीं निकला। आह! क्या हो गया है सबको। आज क्या सभी सो रहे हैं! भीतर जाकर देखे? उसने घड़ी देखी। माउथ ऑर्गन बजाने का समय हो चला है। अभी लौटना चाहिए।

आते ही उसने शर्ट बदली। बैठने की जगह ठीक की, खिड़की के पास। इस तरह कि पीछे किताबों की शेल्फ़ और उसकी बनायी चीज़ें दीखती रहें। ये कोना उसने ख़ास ऐसे ही मौक़ों के लिए तैयार किया है। लैपटॉप खोला। उसकी उँगलियाँ गिनने के लिए कसमसा रही थीं। एक निश्चित संख्या सोचकर उसने स्वयं से शर्त लगायी थी। वह सोच रहा था आज कौन जीतेगा। हँसी, दिल या अँगूठा। वह हमेशा दिल की ओर हसरत से देखता था लेकिन बाज़ी कोई और जीत ले जाता था। आज क्या होगा? वह जल्दी से लॉग इन करना चाह रहा था। नेट्वर्क स्लो था। उसकी साँसें फूलने लगी थीं, आँखों की पुतलियाँ घूम रही थीं और..और अंत में नेट्वर्क स्थिर हो गया था और वह लॉग इन कर गया था। किंतु, किंतु एक भी नोटिफ़िकेशन नहीं था। उसे अपनी आँखों पर विश्वास न हुआ। यह कैसे सम्भव था। अवश्य कुछ गड़बड़ हुई है। वह तो था रात का तारा, दिन का सूरज, धरती का केंद्र-बिंदु। क्या यह किसी का षड्यंत्र है? किसी ने उसका अकाउंट हैक कर लिया है या सभी उसके ख़िलाफ़ हो गए हैं। उसके शत्रुओं की कमी तो नहीं। ईर्ष्या करते हैं कितने लोग उससे। क्या उसका स्टारडम इतनी आसानी से छिन जाएगा! कहीं यह सरकार की साज़िश तो नहीं। वह इसी दिन से डरता था जब किसी दिन यह ख़त्म हो जाएगा। यही तो उसके जीवन का आधार था। वह शिकायत करेगा, रिपोर्ट करेगा। वह कुछ भी कर गुज़रेगा। उसे वापस चाहिए, सब। इन सबके बग़ैर उसका संसार सूना हो जाएगा!

उसने तय किया वह माउथऑर्गन बजाएगा। सुरीली धुन सुनकर लोग लौट आएँगे। इतनी देर कौन दूर रह सका है। वह सबको लौटा लाएगा। उसने माउथऑर्गन होंठों से लगाया, फूँक मारी और एक फूँक के बाद सैकड़ों बार हवा उसके छेदों से हो गुज़रती रही। इतने मनोयोग से उसने कभी कुछ नहीं किया था। यहाँ तक कि एक पल के लिए वह यह देखना भी भूल गया कि कितनी जोड़ी आँखें उसे देख रही हैं। उसकी आँखें मुँद गयी थीं और क्षण मात्र के लिए सुरलहरी के स्पंदन का तादात्म्य हृदय की धड़कन के साथ उसने महसूस किया। वह आनंद से भर उठा। आनंद ऐसा तीव्र था कि उसे अपना प्रदर्शन वहीं रोक देना पड़ा। इस बार उसने स्वयं को पीछे छोड़ दिया है। उसे यक़ीन था कि यह वीडियो वायरल हो जाएगा। वह अपने मित्रों को कहेगा कि इसे शेयर करें और वह स्टार हो जाएगा। वह आने वाले चमकते दिनों के सुख को पीने लगा।

उसकी दृष्टि फिर स्क्रीन पर थी। वह स्तब्ध था। उसने उलट-पलट कर, रिफ़्रेश कर, लॉग आउट-लॉग इन कर देखा पर कहीं कुछ न बदला। सन्नाटा हर ओर से टपक रहा था। उस सन्नाटे को टपकता नल, फड़फड़ाते पन्ने, सरसराती पत्तियाँ, चहचहाती चिड़ियाँ तक न तोड़ सकीं। यह सन्नाटा उसे बींधने लगा। उसकी देह ऐंठने लगी। वह भूल गया कि वह परफ़ॉर्मर है…ट्वेंटी फ़ोर बाई सेवन। उसके चेहरे के भाव बिगड़ गए थे। उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही है। वह अपनी पोस्ट लाइक करने लगा। इस से कुछ न हुआ तो वह एक-एक कर हर व्यक्ति तस्वीर को क्लिक करने लगा। वर्षों से जिनके यहाँ नहीं गया था उनके यहाँ जाकर लाइक खटकाने लगा। साम-दाम-दंड-भेद, कुछ नहीं छोड़ने वाला वह।

किंतु ऐसा हो क्यों रहा है? वह किसी से बात करना चाहता था। इनबॉक्स में जाकर उसने कितने लोगों को संदेश भेजा पर चारों ओर शून्य पसरा था। एक हरी बत्ती के लिए वह तरस रहा था। उसने ब्लॉक्ड लोगों को अनब्लॉक कर उन्हें पोक करना शुरू किया। ऐसे वे चौंक उठेंगे और उस से बात करेंगे। इतने पर भी कोई न बोला तो उसने जाने-अनजाने लोगों को कॉल करना शुरू किया। घंटी की अपरिचित आवाज़ उसके कानों में बजती और रुक जाती। शाम गहराने के साथ उसकी परेशानी भी गहराने लगी थी। बाहर निर्जन संसार था, भीतर सूना मन था। बाहर दूर तक अंधकार पसरा था जिस पर वह ध्यान न दे सका।

उसे नहीं मालूम था कि वहाँ हर ओर शव हैं। यह संसार अनंत मरघट में बदल गया है। वह सब वापस पाकर रहेगा। इसके लिए चाहे उसे यहाँ उपस्थित हर व्यक्ति तक क्यों न जाना पड़े। पाँच हज़ार, दस..पंद्रह..पचास हज़ार, पाँच लाख या इस से भी ज़्यादा। यह सब खोना आसान थोड़े ही है भले ही इसके लिए मर जाना पड़े। उस नीरवता में क्लिक की आवाज़ गूँजती रही।

लेखिका परिचय

समकालीन लेखन में कथा-साहित्य का चर्चित व समर्थ हस्ताक्षर। बचपन अलवर में बीता। भाषा अध्यापिका माँ व कवि नाना के सान्निध्य में लेखन का माहौल मिला। बायोटेक्नोलॉजी से स्नातक, सेल्स एंड मार्केटिंग में एम.बी.ए., ड्रामेटिक्स से स्नातकोत्तर। आठ वर्ष बैंकॉक प्रवास के बाद अब जयपुर निवास। भोगवाचक प्रेम के बरअक्स प्रेम की प्रौढ़ कहानियों के लिए ख्याति प्राप्त पहला कहानी संग्रह 'अलगोज़े की धुन पर'। दूसरी पुस्तक ‘सगबग मन’ भारतीय ज्ञानपीठ’ से प्रकाशित। हिन्दी साहित्य की मूर्धन्य पत्रिकाओं कथादेश, हंस, नया ज्ञानोदय आदि में कहानी लेखन। प्रतिष्ठित समाचार पत्रों और अग्रणी वेबसाइट्स के लिए सृजनात्मक लेखन। अंधा युग, नटी बिनोदिनी, किंग लियर आदि नाटकों में अभिनय। रेडियो नाटकों में स्वर अभिनय व लेखन। मैन्यूस्क्रिप्ट कॉन्टेस्ट, मुंबई लिट-ओ-फ़ेस्ट 2017 से सम्मानित। सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन, वॉयस ओवर आर्टिस्ट।