आरे मिनि कि याद् आ रहि हे क्या...?
सन्तोष का मिनि नाजाने अब कैसे होगि..
मिनि कि हातों से बानाये हुए मोमोस्, एग् अमलेट् को सन्तोष तो अभि तक् भुला नेहि पाया है...
जब् कुछ इस् तरहा के मस्तियां, दोस्तों के बातैं सुनने को मिलता हे तो वो कुछ समय के लिये बरफ् के उस सेहेर को खिचा चला जाता है...जाहां पर वो पेहलि नजर मे हि प्यार कर बैठा था..वो भि मिनि से..बरफ से टक्कर देने वालि मिनि कि वो गैरे मुहँ, जो ऊन से बुने हुए रेड् कलर के क्याप् के अन्दर से बहत हि क्युट् लग रहि थि...जिसे देख के कोइ भि प्यार मे पड साकता है..और सन्तोष तो हामारा रोमिओ था...जो कि वो बरफिले मेहफिल् मे आपनि जुलिएट् को ढुडं लिया था...
दोस्तों के साथ् यादैं बनाने का ये दुसरा हि दिन् था...अप्रेल् का महिना हे लेकिन् टेम्प्रेचर को देखके तो डिसेम्बर याद आ गया था हमको...शुभा शुभा हम लोग् निकल पडे चागुंलेक् घुमने के लिये..लेकिन हामारे लिये ये ठंड को संभालना आसान नेहि था.. मन तो करता था कुछ गरम खाने के साथ् साथ् गरम गरम पिने को मिल जाए..हमरे साथ् रेहने वाले ड्राइभर भया भि कमाल् के थे.. जिस् रास्ते पे हम चालके भि नेहि जा सक्ते वाहां वो गाडि ऐसे चला रहे थे जैसे कोइ कंपिटिसन लगा हो..चालो जो भि हो वो तो तब हमारे लिये भगबान थे...हमारा जिना मरना सब कुछ हनके हाथमे था उसके साथ् खाना पिना भि...ड्राइभर भयाने हमको ले कर छोड दिया पहाड़ के उपर एक दुकान मे..जाहां खाने को ,गरम गरम मोमो के साथ् अमलेट् मिल रहा था अर् उसके साथ् कुछ गरम कपडे भि मिल गये..हम सब तो आपने आपने काम मे लग गये थे लेकिन् सन्तोष का कुछ पता नेहिं था.. वो तो कहिं खो गया था.. क्यों की वहि तो सुरु हुआ था मिनि और सन्तोष का ये प्यार भरा सफर... वैसे तो उस लडकि का नाम् मिनि नेहिं था.. लेकिन् पता नेहि उस लडकि को देखते हि कैसे सन्तोष के मनमे ये नाम् आ गया...हम लोग फटो लेने मे बिजि थें..अचानक् सन्तोष हामारे पास् दौड़ते हुए आया अर बोलने लगा..
सन्तोष-वो लडकि को थोडा देखो तो..कैसे लग रहि हे...
हम् थोडा मुसकुराते हुए बोलें हां ठिक् ठाक्, पर हुआ क्या...
बस् उसके बाद् उसका पागलपन् सुरु हो गया...हम लोगों कि बात् खतम हुइ हि नेहिं वो आपना काहानी बताने लग गया...हम लोगों को उसके ये हरकत का तो आदत् था पर फिर भि बार बार उसका पागलपन देखने मे मजा हि अलग था...
सन्तोष-वो मेरा मिनि है...वो मुझे देखके मुस्कुराइ तो मैं भि थोडा मुस्कुरादिया..देखो तो वो कैसे सर्मारहि हे..
बस सन्तोष का इसि बात् को लेकर सुरु हो गया सन्तोष-मिनि कि लैब ष्टोरी..हम भि बोतने लगे.. देख भाइ तेरि सादि मे तो कोइ नेहि आ पाएगा.. ना तो तुमांहारे लिये दुलहे वाले गाडि मिलेगा तो तुंहे इसि बैल पे बैठके आना हे...और् तु आपनि सादि के खाने मे मिनि के हातों से बने मोमो और् थोडा अमलेट् दे देना हम खुस हो जाएंगे..हमारे बात् सुनते हि सन्तोष का खुसि का ठिकाना नेहिं था.. मानो जैसे सन्तोष मिनि से सादि करलिया...
वैसे तो केहेने को सन्तोष बहत आच्छा फोटो क्लिक् करता है..खुद से उठाइ गयि फटो मे सांटोग्राफी लिखना उसको खुब पसन्द है..पर क्यामेरा के लेन्स के बदले कब वो आपनि दिल के लेन्स मे मिनि को क्यापचर कर लिया वो खुद हि नेहिं जानता... पर हां ये पेहलि बार सन्तोष को प्यार नेहिं हुआ था...पर फर्क सिर्फ इतना था के इस बार दिल कि बात बस दिल मे हि रहे गया...
चांगुलेक् जाते वक्त और् बाहांसे लौटते वक्त सायद वो दो बार हि मिनिको देखो होगा..तेकिन पुरे ट्रिप मे सन्तोष-मिनि कि लैब ष्टोरी किसि फिल्म से कम नेहिं थि...
सायद् वो ट्रिप् को अब दो साल् हो चुका है लेकिन् आज भि अगर मिनि कि नाम कहिं सुनने को मिलता हे तो सन्तोष सर्माना नेहिं छोडता...आज भि वो इसि उमिद मे ग्यांगटक के सारे फोटो को ध्यान से देखता हे, कब कोइ फोटो मे अगर मिनि दिखयाए...आज भि वो बरफ के पहाड़, नीला पानि को देखके मिनि को याद करता है...।