Pata Ek Khoye Hue Khajane Ka in Hindi Adventure Stories by harshad solanki books and stories PDF | पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 2

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पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 2

"क्या बात है? तुम्हारी पापा के साथ बात हो रही थी तब मैं वहीँ बैठी हुई थी! तुम्हारी बात सुनकर पापा गभरा गए थे. ऐसी क्या बात हो गई?"
"ओह! जेसिका. अच्छा हुआ जो तुमने मेसेज छोड़ा. अब फ्री हो तो रूबरू ही थोड़ी बात करते हैं ." इतना टाइप करते ही उसने सेंड बटन दबा दिया.
थोड़ी देर तक जवाब का इन्तेजार किया. पर कोई रिप्लाय न पा कर वह सोने चला. डायरी की ही गुत्थी में उल्जा वह करवटे बदल रहा था, तभी मोबाइल की रिंग बज उठी. उसने स्क्रीन पर नजर डाली. फोन जेसिका का था. फ़टाफ़ट से उसने मोबाइल रिसीव किया.
राजू: "हेल्लो जेसिका! क्या बता रही थी? क्या मेरी बात सुनकर अंकल सचमुच गभरा गए थे?"
जेसिका: "जी हाँ, पर बात क्या है?"
राजू ने डायरी वाली और वह रहस्यमय सफर वाली बात जेसिका को बता दी. वह भी सोच में पड़ गई.
जेसिका: "पापा ने भी ऐसे कोई सफर की बात का जिक्र हम लोगों से कभी किया नहीं. पर जिस प्रकार से तुम्हारी बात सुनकर पापा गभरा गए थे उससे एक बात तो तै है की पापा ऐसे किसी सफर के बारें में कुछ न कुछ जानते अवश्य हैं."
राजू: "फिर सवाल यह उठता है की वें इस बात को छिपा क्यूँ रहे हैं ?"
जेसिका के मन में भी इस रहस्यमय सफर को लेकर बड़ी खलबली मच गई थी. दोनों इस रहस्य को सुल्जाने के लिए थोड़ी देर तक बातें करते रहे. पर यह रहस्य जस का तस रहा.
"अच्छा, तो मैं कल मम्मी से कुछ पता लगाने की कोशिश करूंगी. सायद उसे कुछ पता हो!" कहते हुए जेसिका ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया.
उस रात जेसिका ने अपनी छोटी बहन याना को भी इस रहस्यमय सफर से अवगत किया. पर जैसी उम्मीद थी, उसे भी इस सफर के बारें में कुछ पता नहीं था.
दूसरे दिन जब कृष्णा अंकल अपने व्यवसाय पर चले गए, तब जेसिका ने मौका देखकर अपनी मम्मी से इस बात का जिक्र किया. और राजू को मिली हुई पुरानी डायरी, वह रहस्यमय समुद्री सफर और पापा का इस सफर के बारें में सुनकर गभरा जाना; सारा घटनाक्रम कह सुनाया. और जानना चाहा की यदि वह उस रहस्यमय सफर के बारें में कुछ जानती हो!
जेसिका की मम्मी ने दिमाग पर जोर डाला. और कुछ याद करने की कोशिश की. पर आखिर उसने भी वहीँ बात दोहराई की उसे भी इस सफर के बारें में कुछ नहीं पता. कुछ देर बाद अचानक उसे जैसे कुछ याद आया हो, उसने जेसिका को आवाज़ लगाई.
"अरे हाँ, जेसिका! एक बात है!"
"जब कभी तुम्हारे पापा किसी पार्टी में से ड्रिंक का ओवरडोज़ लेकर लौटते हैं, तब वह कई बार नशे की हालत में बहुत कुछ अनापसनाप बकते हैं. जो मेरी तो कुछ समझ में नहीं आता, पर कई बार वह किसी विनु और जगा नाम के अजनबी आदमियों से रोते हुए बहुत माफी मांगता है. और अपने को कायर बताता है. कहता है: "हम सब कायर थे इसलिए तुम दोनों को वहां मरने के लिए छोड़ कर भाग निकले. हमें माफ़ कर दो. फिर छोटे बच्चे की भांति रोने लगता है. पर मैं सुबह इस सन्दर्भ में कोई जिक्र करती हूँ तो वें अनजान बनकर बात को ताल जाते हैं."
जेसिका के दिमाग को जैसे बिजली का करंट लगा! "एक और रहस्य! जरूर कोई राज़ की बात तो है!" सोच में पड़ती हुई जेसिका अपने आप ही बुदबुदाई. इस का ताग तो अवश्य लगाना ही पड़ेगा!
तुरंत जेसिका ने राजू को फोन मिलाया. और विनु और जगा नाम के दो अजनबियों और उसकी मौत के बारें में सूचित किया. यह सुन, राजू का भेजा भी चक्कर्गिनी की भांति घूम गया. दोनों ने इस गुत्थी के तार मिलाने की कोशिश की,. पर दोनों ने महसूस किया की इसमें अभी भी बहुत कुछ मिसिंग है.
"अंकल तो सायद कुछ न बताएँगे. इसलिए अब तो संकरचाचा, हरीचाचा या लखन अंकल से ही इस बारें में कुछ पता लगाने की कोशिश करनी पड़ेगी." राजू बोला.
"हाँ, सायद वे कुछ बताएं! तुम उससे मिलकर कोई इन्फार्मेशन निकालने की कोशिश करो." जेसिका ने कहा.
घर की मरम्मत में एक हफ्ता निकल गया. इस दौरान राज़ के बारें में आगे कोई प्रगति न हो सकी. पर राजू का दिमाग इस रहस्य के बारें में बहुत कुछ सोचता रहा. दरम्यान उसने एक योजना बनाई. उसने अपने पापा की याद में एक छोटी सी पार्टी ""मेमरीज़ विथ पापा"" का आयोजन किया. और अपने पापा के करीबी दोस्तों को निमंत्रण दे दिया.
कुछ दिन बाद वह दिन भी आ पहुंचा. उसके पापा के फेवरेट बीच पर ही उसने टेबल खुरसियाँ लगा दी थी. राजू ने शराब की बोतलें भी अपने पापा के पसंद की ही ला रखी थी. पार्टी में ज्यादा तड़कभड़क तो नहीं थी; मगर मंचिंग में गोल्डन चिकन फ्राई; जो हसमुख को पसंद थी; ऑर्डर देकर बनवा ली थी. राजू अपने पापा के साथ कई बार पार्टियों में सरीक होता था. वह बड़ों के सामने ड्रिंक तो नहीं करता था पर अपने लिए कोल्ड ड्रिंक मंगवा लेता था. वह अपने पापा और उसके दोस्तों की लिमिटेशन के बारें में भी सब कुछ जानता था. किसके लिए कितने पेग ओवर हो जायेंगे; उसे पता था.
रात्रि नौ बजे लखन अंकल, संकरचाचा, हरीचाचा आ पहुंचे. कृष्णा अंकल UK में होने की वजह से अनुपस्थित थे. राजू अपने हाथों से शराब के पेग बना बना कर सर्व करता जा रहा था. और सब हसमुख के साथ की यादों को शेर कर रहे थे.
जैसे ही राजू को पता चला की अब इन लोगों पर नशा हावी है. ज्यादा सोचने समझने की हालत नहीं रह गई है. हो सकता है वे नशे की हालत में कोई राज़ खोल दें! इस उम्मीद में उसने मूल बात छेड़ी.
राजू ने लखन अंकल को सॉफ्ट टारगेट के रूप में चुना. क्यूंकि वह लखन अंकल के भावुक स्वभाव से भलीभांति परिचित था. उसने धीरे से लखन अंकल को पूछा:
"अंकल, आप भी उस सफर में शामिल थे न! जिसमे जगा और विनु अंकल की डेथ हो गई थी?" राजू ने पुरानी यादों को छेदते हुए पूछा.
यह सुनते ही लखन को जैसे बिजली का जोरदार झटका लगा. वह कुर्सी में से उछला. उनसे अपना संतुलन बनाए न रखा जा सका और दाहिनी बाजू लुड़क पड़ा. उसके बाएं पैर की ठोकर टेबल में ऐसे लगी की प्लास्टिक का टेबल उछल कर संकरचाचा की और बढ़ा. टेबल को यूँ अपना ग्रास करने बढ़ता देख, उससे बचने के चक्कर में संकरचाचा खुद हांफता चीखता कटे पेड़ की तरह मुंहफाड़े गिर पड़ा. शराब के गिलास सब इधर उधर बिखर गए. चिकन फ्राई की डिसें मिट्टी में मिल गई.
यह हालत देखकर हरीचाचा चिल्ला उठे: "ये लख्खू भी साला दो पेग ज्यादा क्या चढ़ लेता है, मुर्गा बनकर आसमान में उड़ चलता है. साले ने पार्टी में पंकचर कर दिया. और भेजे की हवा निकाल दी."
राजू ने लखन अंकल और संकरचाचा को उठाकर बैठाया. उनका हालचाल पूछा. कपड़े से मिट्टी साफ़ की. फिर मामले को संभालने की कोशिश करते हुए हरीचाचा को शांत करवाने लगा. टेबल ठीक करके उसने नए पेग बनाए.
"अंकल, आप उस बात से इतने गभराते क्यूँ हो? अब तो उस बात को इतने साल गुजर गए! वह तो एक दुर्घटना थी; पापा ने एकबार मुझे बताया था." राजू ने लखन अंकल की और देखते हुए उसी बात को आगे बढ़ाया.
फिर चिकन फ्राई की दिश बनाने लगा.
हरीचाचा और संकर्चाचा ने भी सुना. पर राजू किस बात की बात कर रहा है वह उन्हें समझ में सायद न आया; इसलिए वें अचरज से उन दोनों की और देखने लगे.
पर राजू की बात सुनते ही लखन अंकल जोर जोर से रोने लगे:
"हाय रे मेरे दोस्त जगला...! विनिया...! हमने थोड़ी सी, बस इत्ती सी ही तुम्हारी मदद की होती तो तुम लोग भी आज यहाँ, मेरे पास, इधर बैठकर पेग लगा रहे होते... जब से तुम बिछड़े हो तब से यहाँ, (अपने ह्रदय पर हाथ रखते हुए) इस कलेजे में आग लगी हुई है! क्या करूँ? कैसे बुझाऊ इस आग को!?" वह रोने लगता है.
लखन अंकल बहुत भावुक हो उठे. उन्हें रोता देख और विनु एवं जगा का नाम लेते देख हरीचाचा और संकरचाचा को भी बात समझ में आ गई. वें भी बहुत अफसोस प्रगट करते हुए रोने लगे.
राजू भी अपने पापा, विनु और जगा अंकल को याद करते हुए संताप करने लगा. भावुक होकर वह भी सभी से बारी बारी से लिपटा. और सब को आश्वासन दिया.
थोड़ी देर बाद राजू स्वयं शांत हुआ और सभी को दिलासा देते हुए शांत करवाने लगा. कहने लगा:
"शायद यहीं नियति को मंजूर था. आप लोगों ने भी वहीँ किया जो उस वक्त उचित था." असल घटना से परिचित न होने पर भी राजू ने जैसे सब कुछ जानता हो वैसे तुक्का लगाया.
राजू की बात का अच्छा प्रभाव पड़ा. उनकी बात सुनकर सब के मन को आराम मिला. वे शांत हुए. और नाक से सिस्याते हुए सब ने अपनी अपनी कुर्सी में ठीक से स्थान ग्रहण किया.
राजू ने फिर से पेग बनाकर सब को आग्रह करते हुए सर्व किए. फिर बोला:
"एक बार पापा बहुत दुखी हो रहे थे तब मैंने आग्रह किया तो उसने यह बात बताई थी. पर फिर पापा बहुत इमोशनल हो गए इसलिए पूरी बात बता न पाए. उस दिन पापा की हालत देखते हुए मैंने भी उसे ज्यादा कुछ न पूछा. और उसे आराम करने दिया. पर फिर मेरी स्कूल शुरू हो गई और मैं होस्टल चला गया. इसलिए फिर कभी पूरी बात जानने का मौका ही न मिला." राजू ने तुक्का लगाया.
"मैं तुम को पूरी बात बताता हूँ. बेटा आज तुम्हारी बात सुनकर मेरे कलेजे को ठंडक मिली है." कहते हुए लखन अंकल ने हरीचाचा और संकरचाचा की और देखा.
"संकरचाचा हाँ में सर हिलाते हुए बोले. "हाँ... हाँ... बताओ. हम भी कब तक इस बोझ को उठाये फिरते रहेंगे! दिल को हलका हो जाने दो आज तो.
लखन अंकल ने शराब का गिलास उठाते हुए घडी में देखा. रात्रि के बारह बजने को हुए थे. उसने शुरू किया.
क्रमशः
क्या हसमुख और उनके दोस्त कोई सफर पर गए थे? और गए थे तो सफर का हाल क्या हुआ? जगलो और विनु कौन हैं? और उनके साथ क्या हुआ? जानने के लिए पढ़ते रहिए.