पापा वो रहे (दानी की कहानी )
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दानी जब कहानी सुनाने बैठतीं तब या तो अपने ज़माने की या फिर कोई पौराणिक कथा सुनाने लगतीं ,जिससे बच्चे अब तक बोर हो चुके थे | इसलिए जब चॉयस की बात आती तो सबकी एक ही राय होती कि
दानी अपनी ही कहानी सुनाएँ| दानी भी खूब मज़े लेकर अपने बीते दिनों में पहुँच जातीं |
यह तबकी बात है जब दानी लगभग पाँच वर्ष की रही होंगी | उन दिनों उनके पिता दिल्ली में सरकारी नौकरी करते थे ,दानी उनके पास रहतीं व वहीं एक मॉन्टेसरी स्कूल में पढ़तीं थीं |
वहाँ उनके साथ दादी भी रहतीं जो वहीं पर बनी रहतीं और दानी शनिवार को एक दिन अपनी मम्मी से मिल आतीं |
लगभग हर शनिवार को वो अपने पापा के साथ मेरठ अपनी माँ के पास जातीं और सोमवार की सुबह पापा और वह सुबह की गाड़ी या बस से दिल्ली आ जाते |
उस दिन वह अपने पापा के साथ ट्रेन से मेरठ जा रही थीं | उन दिनों दिल्ली से उत्तर प्रदेश के आसपास के इलाकों में लोकल ट्रेन्स चलती थीं |
उस शनीवार को उनके पापा का हाफ़ डे था इसलिए वो अपने पापा के साथ लगभग शाम के चार बजे कि गाड़ी से जाने के लिए स्टेशन पहुँच गए थे |
कुछ जल्दबाज़ी के कारण उनके पापा दानी के लिए खाने के लिए कुछ फल लेने चले गए |
उन्हें आराम से कंपार्टमेंट में बैठाकरउनके पापा ने कहा था ;
"बेटा ! घबराना नहीं ,मैं तुम्हारे लिए कुछ फ्रूट्स लेकर आता हूँ ---"उन्होंने अपना बैग दानी के पास रखा और पड़ौस में घूँघट किए हुए बैठी एक महिला से कहा ;
"बहन जी ,बच्ची बैठी है ,ज़रा इसका ध्यान रखिएगा ---प्लीज़ ---" शायद उस महिला के पति या जो कोई भी उनके साथ था वॉशरूम गए थे |
"बेटा ! अभी काफ़ीसमय है गाड़ी चलने में ---मैं पाँच -दस मिनिट में आ जाऊँगा--"उन्होंने फिर से दानी को आश्वस्त किया |
दानी बड़ी बोल्ड थीं ,सब उन पर भरोसा करते थे |
दानी के पापा के ट्रेन से उतरने के कुछ ही देर में गाड़ी हिलने लगी | कुछ सेकेंड्स तो दानी चुप बैठी रहीं पर जब कई बार गाड़ी हिली तो वो घबरा गईं |
जब वो उठकर जाने लगीं उनकी पास वाली महिला ने उनसे कुछ नहीं कहा और वो आराम से गेट पर जाकर पहले तो इधर-उधर देखती रहीं पर जब उनके पापा दिखाई नहीं दिए तो नीचे उतर पड़ीं |
उन दिनों गाड़ी की सीढ़ियां भी बहुत ऊँचीहोती थीं ,उन्होंने नीचे झाँककर देखा और घबराईं पर संभलते हुए ,पापा वाला बैग किसी तरह संभालने की कोशिश में घसीटते हुए नीचे उतर ही गईं |
प्लेटफ़ॉर्मलगभग खाली था और उनके पापा अभी तक कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे|
छोटी बच्ची दानी बहुत थक गईं थीं ,स्मोकिंग वाली फ्रॉक ,जूते -मोजे पहने वो सबको दिखाई दे रहीं थीं कि किसी अच्छे घर का बच्चा है लेकिन बैग घसीटते हुए उनकी आँखों में आँसू भर आए थे |
धीरे-धीरे भीड़ ने उन्हें घेर लिया था और अब वो हिचक-हिचककर रोने लगीं थीं |
सब उनसे कुछ-कुछ पूछ रहे थे लेकिन उनके आँसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे |
वो रोते-रोते आँसुओं भरी आँखों से देख रही थीं ,गाड़ी तो अभी प्लेटफ़ॉर्म पर ही थी ,वो तो घबराकर उतरी थीं जब गाड़ी हिलने लगी थी |
अब क्या करें ? उनके अनुपात में बैग भी बहुत भारी था जिसकी स्ट्रिप्स को वो घसीट रहीं थीं |
भीड़ बढ़ती जा रही थी और उनका रोना भी | पहले तो प्लेटफ़ॉर्म पर कुछेक लोग ही दिखाई दे रहे थे लेकिन उनका रोना देखकर काफ़ी लोग एकत्रित हो गए थे |
अचानक उनकी नज़र भीड़ के बीच में एक चेहरे पर पड़ी जो झाँकने की कोशिश में था |
"पापा---" दानी चिल्लाईं | उन्होंने भीड़ में एक चेहरे की ओर इशारा किया |
भीड़ ने जगह बना दी और उनके पापा उनके पास पहुँच गए |
अब तो दानी ने जो बुक्का फाड़कर रोना शुरू किया ,पापा को उन्हें चुप करना मुश्किल हो गया |
"नीचे क्यों आई गुड्डी ? मैंने कहा था न अभी आता हूँ ---"पापा ने उनसे पूछा |
"पर ---गाड़ी चलने लगी थी न ---मैं डरगई थी --"पापा से चिपटकर दानी ने कहा |
"कहाँ चली गाड़ी ? देखो ,वो खड़ी है ---"
"हाँ .पापा ,सच में चलने लगी थी ---"
:साब ! वो पटरी बदल रही थी न गाड़ी सो बच्चा है घबरा गई ---" किसी ने कहा |
भीड़ छंटने लगी थी .उनके पापा ने एक हाथ में उन्हें उठाया , फलों का थैला पकड़ा , कंधे पर बैग टाँगा और फिर से उसी कम्पार्टमेंट में चढ़ गए |
घूँघट वाली महिला बड़े आराम से पीठ पीछे करके कुछ खा रही थी ,उसका पति तब तक आ चुका था |
उनके पापा ने दानी के आँसू पोंछे ,रुमाल गीला करके चेहरा पोंछा फिर उन्हें फल खिलाने लगे |
अब दानी आश्वस्त थीं |
डॉ.प्रणव भारती