Sansthan Upnishad in Hindi Book Reviews by Yashvant Kothari books and stories PDF | संस्थानोपनिषद

Featured Books
Categories
Share

संस्थानोपनिषद

देश का हर नागरिक दिल्लीमुखी है,और दुखी है दुखी आत्माएं सशरीर दिल्ली की ओर कूंच करती रहती हैं

राजधानी के सबसे महत्व पूर्ण इलाके में स्थित इस भवन से देश की महत्व पूर्ण सेवाओं का परिचालन होता है लेकिन यदि भूल से भी आप इस के अंदर के टॉयलेट, बाथरूम्स,में चले जायेंगे तो आप का बीमार होना व् अस्पताल जाना तय है हो सकता है आप को अस्पताल से सीधे निगम बोध घाट जाना पड़े जाना नहिं पड़ेगा क्योंकि आप स्वयम वहां तक चल कर नहीं जा पाएंगे शव वाहन ही आपको गंतव्य तक पंहुचा सकता है खैर !

इसी भवन में मंत्री, राज्य मंत्री, सचिव व पूरे देश को चलाने वाला अमला बैठता है इस भवन के पास में ही संसद भवन है, देश के नीति निर्धारक यहाँ बैठ कर आम आदमी के भाग्य का निर्धारण करते हैं थोडा आगे जायेंगे तो साऊथ ब्लाक व नार्थ ब्लोक,रायसीना हिल्स और राष्ट्रपति भवन है आस पास बड़े बड़े बंगले और पार्टियों के दफ्तर हैं यही है लुटियंस की दिल्ली, राज धानी दिल्ली, नोकर शाहों की दिल्ली,सरकारों कि दिल्ली दिल्ली के केन्द्रीय सचिवालय की फाइलों में असख्य याने एक सो तीस करोड़ लोगो के भाग्य बंद है कभी कभी किसी का भाग्य खुलता भी है

यहीं अपना भाग्य खुलवाने दूर प्रदेश का एक अदना निदेशक आया है,दिल्ली में अदना मगर वैसे पावरफुल,कई लोग कहते हैं की उनकी उम्र का पता लगाना बड़ा मुश्किल है,उनके बा ल सखा सह पाठी सभी, सभी सेवाओं से निव्रत्त हो गए है,लेकिन ये अपने पुराने मेट्रिक प्रमाणपत्र के बल बूते पर अभी सेवा निवृत्ति से काफी दूर है निदेशक के साथ निजी सहायक, ड्राइवर,एक चमचा नुमा प्रोफेसर या प्रोफेसर नुमा चमचा व एक प्रेमिका है ये लोग निदेशक को सँभालने के लिए हर समय साथ रहते हैं कब श्रीमान को किसी प्रकार का अटेक आ जाये, जो मंत्रालय के उच्चधिकारियों से मिलने के बाद अक्सर आ जाता है

निदेशक ने चमचों को बाहर छोड़ा और खुद हनुमान चालीसा का पाठ करते हुए सचिव के कमरे में घुसे, सचिव ने कोई ध्यान नहीं दिया,मन में सोचा –आ जाते है रोज रोज़ कोई न कोई समस्या लेकर, दफ्तर संभलता नहीं यहाँ आकर परेशान करेंगे निदेशक उवाच

सर मैं निदेशक

सचिव ने फिर भी ध्यान नहीं दिया।

निदेशक ने इस बार फिर कहा,

सर ! प्रणाम सर, मैं डायरेक्टर,

इस बार सचिव ने हूँ शब्द उचारा

निदेशक –सर हमारी कुछ फाइल्स पेंडिंग हैं

हाँ तो ?पूरेदेश की फाइलेंआती है

सर निकल जाती तो

निकल जायगी मेरे पास कोई फाइल पेंडिंग नहीं नीचे देखो

जी सर

और सुनो ये कर्मचारी क्यों चिल्ला रहे हैं, तुम से नहीं संभलता है तो क्लोज दी इंस्टिट्यूट एंड ब्रिग दी कीज टू मी यू केन गो

निदेशक फिर भी जमे रहे,सचिव ने फिर कहा –गो टू हेल

निदेशक पसीना पोंछते हुए बाहर आये और सीधे संयुक्त सचिव के कक्ष में घुसे, यहाँ माहोल थोडा दोस्ताना था

संयुक्त सचिव ने पूछा

सर क्या बोले

,निदेशक उवाचगो टू हेल

लेकिन मेरा कक्ष हेल नहीं है, और क्या बोले –क्लोज दी इंस्टिट्यूट ब्रिग दी कीज टू मी

जॉइंट सेक्रेट्री बोले – इट इज अ वे टू कनवे अन हेपीनेस डू नॉट वरी सुनो एक प्रोजेक्ट बनाओ,पांच करोड़ का बाहर जाओ,शाम को पांच बजे तक ले लाओ

निदेशक ने बाहर आकर फिर पसीना पोंछा,तब तक चमचे भी नजदीक आ गये थे

सर अंदर क्या बात हुई ?

शाम तक पांच करोड़ का शोध प्रोजेक्ट बना कर देना है

सर ये कैसे होगा?स्टेनो बोला अंग्रेजी जानने वाला पी ए भी नहीं है निदेशक ने सुना अनसुना किया

वो अपने साथ मास्टर आया था, वो कहाँ है?

सर वो तो अपने ससुराल मिलने गया है

उससे बात कराओ मेरी

निदेशक ने आदेश उचारा पी ए ने मोबाईल मिलाया –निदेशक दहाड़े –तुम कहाँ रोते फिर रहे हो, यहाँ मैं तुम्हारी डी पी सी की कोशिश में लगा हूँ और तुम ससुराल में गुलछर्रे उड़ा रहे हों तुरंत आओ एक प्रोजेक्ट बनाना है साली फ्री हो तो ले ते आना

बिना बात सुने निदेशक ने फोन रख दिया, सही प्रशासन का कायदा सामने वाले की सुनो ही मत

भागता दोड़ता मास्टर आ पहुंचा पास के एक खा ली पड़े कमरे में डेरा जमाया गया एक लेपटोप, एक टाइपिस्ट की मदद से प्रोजेक्ट बनने लगा स्टाफ की सेलरी,फर्निचर ,उपकरण,केमिकल आदि का तीन वर्ष का प्रोजेक्ट पांच करोड़ का हो गया

सर मेरी साली ने भी डिग्री ले ली है ,उसे इस में फिट कर देंगे मास्टर बोला

शटअ प,शहर बसा नहि और भिखमंगे आने लग गए, अरे वज्र मूर्ख ये प्रोजेक्ट ही साहब की साली के लिए है लेकिन अगर सब ठीक रहा तो इस साल तुम्हारी पदोन्नति पक्की मास्टर ने सरे आम चरण स्पर्श किये निदेशक ने गर्दन अकड़ा कर अन्य चमचों की तरफ देखा आकाश से पुष्प वर्षा हुई,चमचों ने साधू साधू उचारा

मास्टर का प्रोजेक्ट लेकर निदेशक संयुक्त सचिव के चेमबर में हनुमान चालीसा व् गायत्री मन्त्र का पाठ करते करते घुसा, संयुक्त सचिव फोन पर घरवाली का प्रवचन सुन रहे थे, डायरेक्टर बैठ गए, संयुक्त सचिव ने कोई ध्यान नहीं दिया मोबाइल बंद करने के बाद उन्होंने फेस बुक व् ट्विटर का ताज़ा जायजा लिया बिना बोले निदेशक से कागज लिए एक सरसरी निगाह डाली और उवाचे

तुम से कोई भी का म ढंग से नहीं होता, दुनिया भर की स्पेलिंग मिस्टेक्स हैं, ग्राम् र का तो भगवान ही मालिक है, उपर से इसे सचिव को भेजना है, तुम एसा करो मेरे पी एस से इसे ठीक करा लो फिर मैं कुछ करता हूँ

सर,एक निवेदन था,

जल्दी बोलो

वो विश्व स्वस्थ्य संगठन की फेलोशिप का मामला था,

तो ?

सर मेरा नंबर लग जाता

वो तो सचिव खुद देखते हैं

हाँ,सर मगर आप फरमा देते तो

हूँ !तुम जाओ प्रोजेक्ट पी एस से बनवा लो फिर देखेंगे और सुनो उसे कुछ दे दिला देना

डायरेक्टर ने बा हर आकर अपने चमचे मास्टर को निजी सचिव के पास भेजा प्रोजेक्ट की डेंटिंग पेंटिंग की गयी इस खर्च को मास्टर के टी ए डी ए में एडजस्ट किया गया

राजधानी से निपट कर समूह ने एक होटल में रात्रि चर्या का आनंद लिया और सडक मार्ग से अपने शहर की और रवाना हुए

रस्ते में में खाने पीने का सब इंतजाम मास्टर ने किया, उसे नींद में भी पदोन्नति दिखने लगी थी कभी न कभी तो सूरज उगेगा इसी आशा के साथ वो जी रहा था।

लौट के निदेशक घर को आये

लौट के निदेशक अपनी संस्था में वापस आये, यहाँ पर वे राजा थे और बाकि सब प्रजा वे दाता थे बाकि सब याचक राजधानी से इतनी दूर की कहीं से कोई खबर नहि आती यह एक चिकित्सा शिक्षा व भारतीय विज्ञान का संसथान था, निदेशक का पद तकनिकी था मगर वेतन भत्ते व् उपर की कमाई के पू रे साधन थे और यह बात सर कार जानती थी मंत्रालय की सेवा पूजा में कोई कोर कसर होने पर पू रे स्टाफ की परेड हो जाती थी ऐसे पुराने किस्से संसथान के वातावरण में तैरते रहते थे जाने वाला निदेशक आने वाले निदेशक को सब गोपनीय जानकारी दे देता था,कब किसको कहाँ केसे निहाल करना है ये काम बड़ी शांति और शालीनता के साथ किये जाते थे कभी कभी गलती हो जाने पर भारी कीमत चुकानी पड़ती थी

ऐसा ही एक किस्सा बहुत मशहूर था, केंद्र सरकार का एक छोटा अफसर दौरे पर आया, खूब सेवा पूजा तो की गई,मगर अफसर पत्नी या जो कोई भी वो थी नाराज हो गई, वापसी की गिफ्ट भी नहीं ली, कुछ दिनों के बाद सरकार ने निदेशक का चार्ज अपने एक सलाहकार को दे दिया अब मक्खन के डिब्बे सलाहकार तक नियमित पहुचने लग गए हटाये गए निदेशक को मंत्रालय में भाषण लिखने के काम में लगा दिया,एक बार मंत्रीजी के भाषण में गंभीर गलती के कारण निलंबन को प्राप्त हुए और अभी भी पेंशन के लिए मंत्रालय भवन के बा हर चाय –पकोड़े के ठेले पर दिख जाते हैं, सुबह से शाम तक एक नमस्ते को तरसते हैं बेचारे

सन्स्थान बहुत अच्छा था, आपसी भाई चारा भी खूब था जो लोग सुबह जल्दी आ जाते वे लंच के बाद चले जाते जो सुबह जल्दी अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने जाते थे वे जल्दी नहीं आ सकते थे वे लंच के बाद आते और सायंकालीन सभा अटेंड कर के ही घर जाते सरकारी का म काज का सीधा नियम था,निदेशक बताये वो काम कर दो, प्रशाशनिक अधिकारी को नमस्ते करो और जाओ कुछ नेता टाइप कर्मचारियों को स्पष्ट सन्देश था की आपके नहीं आने से संस्था का काम सुचारू रूप से चलता है,

कृपया संसथान के काम काज को डिस्टर्ब न करे आप के वेतन भत्ते आपके खाते में नियमित चले जायेंगे,नेता लोगो की हालत ये थी की यदि किसी का स्थानान्तरण कमरा नम्बर २५ से कमरा नम्बर २६ या २७ में कर दिया जाता तो हड़ताल हो जाती थी कोई निदेशक यह रिस्क नहीं लेता था हर बाबु को एक पढ़े लिखे चपरासी की जरूरत होती थी जो उसकी टेबल का का म देखे इसी प्रकार हर विभागाध्यक्ष को एक चमचे अध्यापक की तलाश रहती थी जो उसकी क्लास ले, विभाग काम देखे और वे छुट्टे सांड की तरह निदेशक की पुंगी बजा कर उस पद को हस्तगत करने के प्रयास जारी रख सके आपस में जूतम पैजार के मामले कम ही हो ते थे क्योकि सब के अपने अपने निजी का म धंधे थे जो ओटो चलाने से लेकर क्लिनिक चलाने तक विस्तरित थे

लगभग सभी अपनी पत्नियों,सालियों प्रेमिकाओं के नाम से चल रही फर्मों के का म में व्यस्त रहते थे छोटे कर्म चारी हाजरी भर कर गैस सिलिंडर बे चने, चाय बेचने, ठेले चलाने,लंच में घरेलू सामान बेचने से लगाकर जमीन जायदाद के धंधों में व्य्स्त थे प्रोफेसर नामक प्राणी कक्षा के अलावा सर्वत्र पाया जाता था पांच प्रोफेसरों को एक साथ देख कर डायरेक्टर की घिग्घी बन्ध जाती थी वो मान लेता था की ये लोग मेरे खिलाफ षड्यंत्र कर रहे हैं सुदूर प्रान्त की एक छोटी जगह पर बसा यह संसथान केंद्र सरकार के लिए आराम गाह की तरह ही था

वैसे तो संस्था के निदेशक दिल्ली में चूहा बन कर जाते थे मगर यहाँ संसथान में वे बब्बर शेर की तरह दहाड़ते थे, जिसे एक महिला सफाई कर्मचारी कुकरभुसवाड कहती थी अपने डर को मिटाने के लिए निदेशक कभी कभी किसी सियार को मार कर अपने कक्ष के बाहर टांग देते थे, ताकि जंगल के अन्य जानवर खोफ खाए निदेशक यूनियन से डरते थे, इस लफड़े को पुचकारने के लिए उन्होंने चमचों की एक पूरी सैना पाल रखी थी जिसका का म पठन पाठन शोध का न होकर निदेशक को बचाना होता था, निदेशक ने इनको सर्वाधिकार दे रखे थे वैसे भी क्लास लेने का काम नए रंग रूटों का था,जिन्हें प्यार से बंधुआ या नरेगा मजदूर कहा जाता था।

यह खबर या अफवाह फेक –न्यूज़ बड़ी तेजी से फैली की निदेशक दिल्ली से लौट आये हैं आग की तरह फैले इस समाचार को सुनते ही प्रशासनिक अधिकारी, लेखा अधिकारी, विभागाध्यक्ष, चमचे यूनियन बाज़ सब निदेशक कक्ष की और दौड़ पड़े निदेशक का कक्ष किसी नव विवाहिता की छटा देने लगा,सब अपने अपने काम की ताज़ा स्थिती की जानकारी चाहते थे निदेशक ने किसी को भी निराश नहीं किया हर एक को बे टा देने कि ही बात की गुड़ न सही गुलगुले सी बात तो करो सरकार की बेटी बचाओ,बेटी पढाओ की कोई बात नहीं हुई अध्यापकों को डी पि सी की गाजर दी, कर्म चारी नेताओं को डी ए का नजराना पेश किया अधिकारि यों को कुछ गोपनीय कागज दिए नयी शाषी निकाय बन ने की सू चना मात्र से आधे अंगूर खट्टे हो गए

नए शोध प्रोजेक्ट की रपट मंत्रालय द्वारा रिजेक्ट कर दिए जाने की गाज एक विभागाध्यक्ष पर पड़ी जिसने तुरंत इसको अपने मातहत की और रपटा दी एक आसन्न वृद्ध प्रोफेसर जिसकी सेवा निवृत्ति नजदीक थी ने अपने पद्मश्री के कागज के बारे में पूछा निदेशक का जवाब सीधा और सपाट था –पहले मुझे और सचिव को मिल जाने दीजिये फिर देखेंगे बुढा खिसिया कर चुप बैठ गया कार्य वाहक निदेशक ने उनकी अनुपस्थिति में लिये गए निर्णयों से अवगत करने की कोशिश की तो सक्त लहजे में निदेशक ने मना कर दिया –मुझे सब पता है, आपसे विभाग तो संभलता नहीं संसथान क्या चलाएंगे?

एक चमचा बोल उठा –सर आपके स्थायीकरण का मसला सुलझा क्या ?

उसका क्या है,चल रहा है, जन्म दिनांक के बारे में कुछ भ्रम है, जिसे सरकार देख रही है

और सुनाओ क्या चल रहा है ?निदेशक ने बात बदल दी

अब वातावरण की गंभीरता खतम हो गयी थी हा हा हु हु का दौर शुरू हो चुका था,कुछ लोग चले गए थे,कुछ चाय की आस में बैठे थे जो बैठे थे वे संसथान में केवल बैठने ही आते थे चाय के लिए निदेशक ने प्रशासनिक अधिकारी की ओर देखा,अधिकारी ने इंटर कोम पर चाय के आदेश दिए, कोफ़ी का बिल लिया,कुल चाय बीस थी मगर बिल तीस कोफ़ी का आया जिसे बिना किसी हील हुज्जत के पास कर दिया गया ताकि आगे भी चाय मिलती रहे

सब कुछ ठीक ठाक ही था की अनभ्र वज्र पात की तरह एक महिला कर्मचारी ने सीन में प्रवेश किया कक्ष में बिजली सी चमकी क्योकि इस महिला का प्रकट होना खतरे से खा ली नहीं था

कहने को वह चतुर्थ श्रेणी अधिकारी थी बाकि सबकुछ फाइव स्टार था वैसे भी वे रोज़ आने की तकलीफ नहीं उठाती थी लेकिन भवानी जिस दिन आती थी उस दिन किसी की न किसी की बलि अवश्य लेती थी,निदेशक ने मन में सोचा आज किसका नंबर है?

निदेशक कक्ष तुरंत फुरंत खा ली होगया, किसी को जाने के लिए कहने की जरूरत ही नहीं पड़ी

रमाजी ने बिना अनुमति के आसन ग्रहण किया,चेहरे के हा व भाव बता रहे थे की कुछ अघटित घट चु का है रमा जी ने एक मोहक मुस्कान फेंकी और शुरू हो गई –

डायरेक्टर सर आप जब भी दिल्ली जाते हैं पीछे से सब लफड़े फ़ैल जाते हैं, सब अनुशस न हीन हो जाते है, कोई किसी की नहिं सुनता सब मन मर्जी का करने लग जाते हैं निदेशक वर्माजी जानते थे बात कुछ और है उन्होंने प्रेम से रमाजी की और निहारा, रमाजी के क्लेव्ज के दर्शन जरूरत से ज्यादा हो रहे थे वे अमृत पान करते रहें

रमाजी उवाच – सर,वो नई मास्टरनी साली अपने आप को समझती क्या है?मुझ से पूछती है –तू सर के घ र क्यों गयी ?वो होती कौन है मुझसे ये सब पूछने वाली ?ड्यूटी के बाद मैं कहीं भी जाऊ,उसे क्या,मगर नहिं पूरी दुनिया में मुझे व् आपको बदनाम करती फिरेगी निदेशक ने हकलाते हुए पूछा

आखिर माज़रा क्या है ? सराकारी का म से बंगले पर आना जाना पड़ता है

वहीं तो

लेकिन बस वो तो मेरे पीछे पड़ी रहती है

मगर तभी चपरासी दोड़ता हुआ आया, बदहवासी में बोला

सर मेने इनको रोकने की बहुत कोशिश की मगर ये आ गई याने अब कक्ष में डायरेक्टर, रमाजी और नई मास्टरनी याने मिस शर्मा भी घुस आई थी स्थिति अत्यंत भयंकर व् विस्फोटक थी दोनों भद्र महिलाओं ने एक दुसरे के स्वर्णिम इतिहास व् विकृत भूगोल की विस्त्रत जानकारी देना शुरू कर दिया था निदेशक किम कर्तय विमूढ़ हो गए चैम्बर के बहर भीड़ हो गई थी भीड़ मज़े ले रही थी रमाजी ने क्रोध में कहा –

तुम रोज़ रोज़ वहां क्यों जाती हो?

मैं सर के अंडर में थीसिस लिख रही हूँ जाना पड़ता है,

मुझे सब पता है एक थीसिस तो पहले ही बाहर आ चुकी है, स्कूल भी जाने लगी है

तुम्हे इस से क्या मतलब है तू बा हर तो निकल

तू भी बाहर मिलना मुझे, साली का झोंटा पकड कर बरामदे में घसिटूगी

निदेशक शांत भाव से खड़े थे, द्रोपदियां ही एक दूसरे के ची र हरण में व्यस्त थी, फिर अस्तव्यस्त हुई

प्रशासनिक अधिकारी ने आकर मामले को संभा लने का असफल प्रयास किया एक दू सरे पर चिल्लाती रमाजी व् मिस शर्मा चली गई लेकिन जाते जाते एक समिति बनाने का पूरा मसाला दे गई, सो एक वृद्ध महिला प्रोफेसर की अध्यक्षता में एक जाँच समिति का गठन कर दिया गया समिति को तीन माह में रपट देनी थी,लेकिन मामला निदेशक कक्ष का होने के कारण यह रपट कभी नहीं आई महिला प्रोफेसर यथा समय रिटायर हो गई, रपट भी अपने साथ ही ले गई यूनियन ने कुछ दिन हल्ला मचाया लेकिन यूनियन अध्यक्ष के एक मित्र की मृत्यु के कारण वे अनुकम्पा नियुक्ति में व्यस्त होगये निदेशक के चरित्र और आचरण की चर्चा गोण हो गई

इन झंझटों के चलते निदेश्क कई दिनों से अस्पताल का राउंड नहि ले सके थे, क्लास भी नहिं ली थी वे चाहते तो किसी को भी भेज देते मगर महीने में एक क्लास तो बनती है ताकि शिक्षाशात्री का तमगा लगा रहे पी जी के स्कोलर्स से सम्पर्क बना रहे, जासूस लोग आकर मिलते रहे वे कक्षा में व्याख्यान देने चले गए।

संस्थान का अधूरा राउंड

यह संसथान इस महानगर के अंतिम छोर पर एक पुराने किले में बना हुआ है पुराने कर्म चारी बताते हैं की पहले यहाँ पर राजाओं के घोड़े, हाथी आदि बंधते थे आज़ादी के बाद जब सरकारों ने ये किले महल ले लिए तो उपयोग करने के नाम पर कोई न कोई संसथान खोलने का कर्म कांड होने लगा इसी क्रम में केंद्र ने यह संसथान खोला था वैसे बाहरी दुनिया में इस सन्सथा की बड़ी इज्जत थी यहाँ पर प्रवेश नोकरी की गारंटी होता है इसके अलावा यहाँ पर घुसने के बाद छात्र या छात्रा कुछ बन कर ही निकलता था प्रवेश में बडी मारामारी थी मगर मेरिट के नाम से सब चलता था

परिसर राजा के महल की तरह लम्बा चोडा था एक सिरे पर मंदिर था दूसरे कोने पर यु जी होस्टल, तीसरे कोने पर कन्या छात्रावास जिसमें युवतियां रहती थी परिसर के एक अँधेरे कोने में लव पॉइंट था, जहाँ लड़के लड़कियां चूमा चाटी कर मन बहलाते थे, बाद में परिसर के पास में बने एक होटल पर भी यदा कदा कृपा कर दी जाती थी होस्टल का एक कोना बदनाम भी था इसे सुसाइड पॉइंट कहते थे परिसर में रात्रि चर्या के माकूल इंतजाम थे बीच की जगह में प्रशासनिक खंड, बैंक,बड़ा सा आडीटोरियम, लेक्चर थियेटर भी थे,मगर अधिकांश शिक्षक अपने चैम्बर में बैठ कर ही पि जी की क्लास लेने का नाटक पूरा कर देते थे यु जी की क्लास में पीजी छात्र को भेज कर खाना पूर्ति कर दी जाती थी डिप्लोमा आदि की क्लास की नोटंकी भी चलती रहती थी क्योकि इस क्लास के पैसे वेतन के अलावा मिलते थे परिसर में लॉन थे, कई पुराने पैड थे कुछ पुराने क्वार्टर भी थे,मगर एक रा त को इन पुराने मकानों का मलबा एक छोटे अफसर के मका न में काम में आगया,किसी को पता भी नहीं चला आज तक इस मलबे की खोज जारी है

परिसर के चारो तरफ रस्ते थे, कोई कभी भी कहीं से भी प्रवेश कर सकता था वापस भी जा सकता था सरकार की बायोमेट्रिक हाजरी का कोई असर नहीं था आउट डोर व् इनडोर भी थे सरकार के कागजों में यहाँ पर पांच सो बेड थे,मगर वास्तव में इनडोर खा ली ही पड़ा रहता था कभी दिल्ली से या काउन्सिल का शेक्षणिक निरिक्षण होता तो आस पास के मंदिरों से बीमार, बूढ़े, ला चर अपाहिज भिखारी लोगो को लाकर इनडोर का कोटा पूरा किया जाता था मान्यता के लिए जो निरिक्षण होते थे उन को संभालने करने के लिए एक पूरी टीम अलग से का म करती थी संसथान मे हरियाली थी, स्टाफ था, वेतन भत्ते थे प्रोजेक्ट थे बा हरी दुनिया में इज्जत थी, मगर इस छोटे संसथान में राजनीती बड़ी थी कब निदेशक का तख्ता पलट हो जाये, कब दिल्ली की सरकार किसी अन्य को चार्ज दे दे किसी को कोई पता नहिं रहता था मगर उपरी शांति, ट्रांसफर नहीं हो सकता था इसलिए एक जमीनी भाई चारा था तुभी खा मुझे भी खाने दे बा हर दुकाने थी जो स्टाफ के सदस्यों के परिजनों की थी इस कारण सब एक दू सरे के हितों की रक्षा करते थे

परिसर काफी बड़ा था,सरकार का लोक निर्माण विभाग इसकी देख रेख करता था बजट के लिए हर फूल दिल्ली मुखी था दिल्ली किसी को निराश नहीं करती थी, बस हर का म की कीमत लेती थी

इसी शानदार संसथान के राउंड पर डायरेक्टर सर, अपने अमले के साथ निकल पड़े है अमले में प्रशासनिक अधिकारी, पि ए, संपदा अधिकारी,एक दो विभागाध्यक्ष,एक दो चतुर्थ श्रेणी अधिकारी,यूनियन के नेता शामिल हैं, जहाँ से भी यह लवाजमा गुजरता, तीज की सवारी की छटा देता था लोगो को गणगौर व् तीज की सवारी की या द् आती थी आगे आगे निशान के हाथी की तरह पि ए और उसके पीछे सवारी कुछ के हाथ में नोट बुक भी थी साहब का हुक्म हो तो तुरंत लिख ले मगर साहब इतने मूर्ख न थे वे अभी अभी दिल्ली से डाट फटकार खा कर आये थे हिसाब बराबर करना था संसथान का राउंड एक आवश्यक कर्म कांड की तरह सम्पन्न होता था

सबसे पहला शिकार सफाई व्यवस्था का मामला था कूड़े के ढेर देख कर डायरेक्टर को डायरेक्टरी चढ़ गई, मन में सोचा मैं भी झाड़ू हाथ में लेकर फोटो खिंचवा लूँ, मगर तुरंत समझ में आ गया की लोग बेवकूफ समझेंगे, ये तो मंत्रियों के चोचले हैं, यह समझ में आते ही वो दहाड़े

सफाई क्यों नहींहुई?

सर सफाई का काम ठेके पर दिया था

तो ?

ठेकेदार भाग गया

अपना स्टाफ क्या करता है? बड़ी अजीब बात है अपना स्टाफ हजारों रूपये वेतन लेता है और का म नहीं करता,यहीं स्टाफ बाद में ठेकेदार के पास कम पैसे में पूरा काम करता है क्यों भाई?क्यों

साथ के चमचों ने चुप रहने में ही भलाई समझी

मुझे कल तक पूरा परिसर साफ सुथरा चाहिए पि ए सब नोट करो

जी सर

और देखो कचरे का निस्तारण भी नियमों के अनुसार ही होना चाहिए,नहीं तो ये पर्यावरण वाले एन जी ओ वाले गर्दन पकड़ते देर नहीं करते

जी सर

समवेत स्वर में कोरस गूंजा सब समझ गए सर का मूड ऑफ़ हो गया है अब कुछ न कुछ जरूर होगा

पूरा अमला विभागों की और मुड गया पहला विभाग विपक्ष के रूप में कुख्यात सक्सेना जी का था सक्सेना जी नियम से अपना क्लिनिक बंद कर के एक बजे बाद आते थे,यह बात निदेशक को पता थी इसी कारण वे यहाँ इस समय आगये थे ताकि कोई कुकर भुसायी नहीं हो,वैसे भी विभाग में सब का म काज ठीक था फिर भी वे पूछ बैठे

सक्सेना क्लिनिक से नहीं आया उसकी क्लास कब है,हाजरी रजिस्टर लाओ, इतने प्रश्नों के बाद नव नियुक्त बंधुआ अध्यापक का हार्ट फेल होने की पूरी सम्भावना थी सो मोर्चा महिला तकनीशियन पार्वती बाई ने संभाला

डायरेक्टर सर, हेड सर नियमित समय से आ जाते हैं

क्लास भी लेते हैं

मगर यह सब तुम क्यों बता रही हों उसे बोलना समय पर आये, मुझ से चैम्बर में मिले,वे जानते थे पार्वती बाई के मुहं लगने पर मुहं की खानी पड सकती है, पार्वती बाई का इतिहास व् भूगोल बड़ा ख़राब था एक पूर्व मंत्री की कृपा द्रष्टि के कारण वे यहाँ जमी हुई थी कोई माई का लाल पार्वती बाई को कमरा नम्बर तीन से चार में स्थानान्तरित करने की हिम्मत नहीं रखता था संसथान इकलोता था,अन्य शहर भेजने का तो सवाल ही नहि उठता था

निदेशक ने पी ए से कहा

नोट करो सक्स्सेना जी नहीं मिले उनको मेमो दो बायो मेट्रिक हाजरी शुरू करो

मेमो पर कोन साइन करेगा सर?

प्रशासनिक अधिकारी ने पूछा

तुम कर देना

सर मुझे क्यों मरवाते हो, आप तो दो साल रहेंगे वो तो बाद में दस साल तक छाती पर मूंग ग दलेंगे हो सकता है डायरेक्टर बन जाये

सर कच्ची नौकरी में पक्की रि स्क नहीं लेनी चाहिए –चमचा उवाच

इस तरह डरने से प्रशासन नहीं चलता शर्माजी बनाओ मेमो मैं दस्त खत कर दूंगा

जी सर अधिकारी ने अपनी बला टलती देख कर राहत की साँस ली

लवाजमा भाषा विभाग की और बढा, इस विभाग के पास केवल एक काम था राजभाषा दिवस, अधिकारी को फालतू समझ उनसे कोई भी काम लेने कि स्थायी परम्परा थी अनुवाद एक नियमित काम था कक्ष में निदेशक के घुसतें ही राजभाषा विभाग को ओक्सिजन मिल गयी अधिकारी ने आंकड़ों का ऐसासा माया जा ल फेलाया की निदेशक एंड कम्पनी चारों खाने चित्त हो गयी मोका मुनासिब देख कर अधिकारी ने एयर कंडीशनर की मांग रख दी, जिसे लेखा अधिकारी ने ही यह कह कर टर्न डाउन कर दिया की आपकी वेतन श्रंखला में ए सी नहीं मिल सकता है राजभाषा अधी कारी ने प्रति प्रश्न दाग दिया

आपके केसे लगा?आपकी वेतन श्रंखला तो मेरे से भी कम है, निदेशक समझ गए मामला पटरी से उतरने वाला है सो तुरंत पुस्तकालय की और बढ़ गए पुस्तकलय पुराना था, ढेरो किताबे थी, जर्नल्स थे, पुराणी दुर्लभ पांडुलिपियाँ थी, मगर पाठक नहिं थे,खा ली पड़ा वाचनालय पूरी व्यवस्था का मुहं चिढ़ा रहा था निदेशक अंदर बने बाथरूम को दे खने घुस गए, अंदर से पारदर्शी प्रशासन स्पष्ट दिख रहा था झाले लगे हुए थे, पॉट गंदे पड़े थे, पानी नहि आ रहा था नैपकिन इधर उधर बिखरे पड़े थे

निदेशक चिल्ला येये सब क्या है?

सफाई वाले नहीं आते सर क्या करे

आप लिख कर दीजिये

उ ससे क्या हो जायगा –एक मुहफट बोल पड़ा यहाँ ही नहिं पूरे संसथान के टॉयलेट्स का यहीं हा ल है

निदेशक उवाच

पि ए नोट करो मेमो बनाओ नहीं माने तो ससपेंड कर दो

सर सस्पेंड करने की पॉवर आपको नहीं है,

पॉवर क्या होती है? तुम कागज लाओ मंन्त्रालय को मैं जवाब दे दूंगा

कोई कुछ नहीं बोला बारात आगे खिसकी,भवानी की कृपा हुई,तभी एक बाबु दौड़ता हुआ आयाऔर प्रशासनिक अधिका री से कुछ कहा, अधिकारी ने निदेशक को बताया

सर मंत्रालय से फेक्स आया है –संसदीय लोक लेखा समिति की विजिट फिक्स हो गयी है जानकारी मिलते ही पूरी टीम कक्ष नंबर एक में आगई निदेशक ने फेक्स को दो तीन बार पढ़ा पानी पिया, अपना रक्तचाप ठीक किया और बोल पड़े

वहां दिल्ली में क्या समस्या है जो समिति यहाँ आ रही है?

कोई कुछ नहिं बोला

पिछले बरस भी तो कमेटी आई थी

सर वो राज भाषा कमेटी थी इस बार वाली कमेटी ज्यादा पावरफुल है, बजट, ग्रांट व् अनियमितताओं की जाँच यहीं कमेटी करती है

ठीक है ठीक है,यहाँ कोई घपला नहीं है, यह तो पीड़ित मानवता की सेवा शिक्षा व् प्रबंधन का मंदिर है, यहाँ काहे की अनियमितता ?

ठीक है विभागाध्यक्षों का उपवेशन आहूत करो,सभी अधिकारियों को भी मीटिंग में बुला लेना कल ग्यारह बजे

यह कह कर निदेशक ने सामान्य कामकाज शुरू किया तभी डीन अकेडमिक ने प्रवेश किया व्,बोला

सर सुना है कमेटी आ रही है

हाँ आरही है, तुम अपने कागज –पत्र ठीक कर लो नहीं तो हो सकता है बलि का बकरा तुम को ही बना दिया जाये, वैसे भी पिछली प्रवेश परीक्षा में तुम सब मॉल अकेले ही डकार गए थे

नहीं सर, सब को बाँटने के बाद बचा खुचा मेरे हिस्से में आया था

मुझे सब पता है, ऑडिट वाले मेमो बना कर ले गए थे

डीन का सर नीचे हो गया,वो चुपचाप चलते बने निदेशक के चेहरे पर कुटिल मुस्कान तैर गई मन में बोले

साले,सबके सब चोर,बेईमान उठाई गिरे दिखायेंगे ऐसेसे जैसे सत्यवादी हरीश चन्द्र की औलाद हो

लेकिन मेरा का म सबको बचाना है, इसीलिए बैठा हूँ यहाँ पर बेटी की डिग्री हो जाये, बहु की डाक्टरेट बस फिर सब छोड़ छाड़ कर गंगा जी चला जाऊंगा,लेकिन तब तक?

उन्होंने शीतल जल का सेवन किया,और अपना माथा फाइलों के महा समुद्र में डुबो दिया

मीटिंग का आयोजन

जैसा की सरकार में नियम है किसी भी महत्वपूर्ण काम के लिए मीटिंग बुला ली जाती है अब तक यह अफवाह या समाचार जो भी आप कहना चाहे संसथान के पेड़ों पर बैठी चिड़ियाओं को भी मालूम हो गया था की संसथान में संसदीय लोकलेखा समिति आ रही हैं इस के अध्यक्ष भू त पूर्व वित्त मंत्री है तथा कई अन्य संसद सदस्य भी आ रहे हैं सब से बड़ी समस्या आने वाली कमेटी के आवास,भोजन, यातायात व् प्रोटोकोल की थी महिला सांसदों की भी व्यवस्था की जानी थी समिति के अध्यक्ष याने पूर्व वित्त मंत्री को ज्यादा तव्वजो दी जानी थी, उनके नाराज़ हो जाने पर किसी के भी उपर गाज गिर सकती थी माहोल तनाव पूर्ण मगर निदेशक के कंट्रोल में था सभी विभाग के अध्यक्ष तथा अधिकारी पहली रो में विराजमान थे साइड में निदेशक के पी ऐ,बाबु थे चपरासी मुस्तेद खड़े थे

निदेशक उवाचसंसद की लोक लेखा समिति दौरे पर आरही हैं, अपने अपने विभागों को सुसज्जित करे डिप्टी साहब आप नयी वार्षिक रिपोर्ट छपवाले,उसी में ऑडिट रिपोर्ट भी हो

लेकिन सर डिप्टी बीच में बोल पड़े –पिछला भुगतान नहीं होने से प्रेस वाले ने कुछ भी छापने से मना कर दिया है

पिछला भुगतान क्यों नहीं हुआ ?निदेशक के इस प्रश्न का जवाब लेखाधिकारी ने दिया –सर,फ़ाइल् पर ऑडिट ने पेरा बना दिया था सो भुगतान रोकना पड़ा

लेकिन यह का म तो अर्जेंट है,होना ही हैं

सर आप चिंता न करे,हम को ई रास्ता निकाल लेंगे एक अन्य अधिकारी बोल पड़े

क्या रास्ता होगा?निदेशक ने पूछा

सर एकल टेंडर ले लेंगे,थोडा खर्च ज्यादा होगा, सब हो जायगा सर लेखाधिकारी बोल पड़े

शर्माजी आप वार्षिक रिपोर्ट व् ऑडिट रिपोर्ट को तेयार कर छपवाने की व्यवस्था देखो,कागज़ बढ़िया लो, कवर शानदार हो समिति देख कर ही खुश हो जा ये निदेशक ने निर्णय दिया

प्रोटोकोल के लिए श्री मति राघवन समिति के अध्यक्ष के लिए प्रोटोकोल अफसर रहेंगी

सर ! मुझे किसी महिला सांसद के साथ रख दे

नहीं यह संभव नहीं है

सर पिछली बार भि मुझे बड़ी परेशानी आई थी

ये वैसे नहीं हैं

आप को क्या पता ?

बाकि के सदस्यों के लिए कनिष्ठ अध्यापक लगाये जायंगे, जिसकी सूचि आपको यथा समय मिल जायगी आवास व भोजन तथा भ्रमण आदि की व्यवस्था प्रशास न से जुड़े लोग करेंगे

इस काम के लिए जिन्हें अग्रिम राशी की आवश्यकता हो वे नोट प्रस्तुत करे हर का म शालीनता के साथ हो, संसथान की प्रतिष्ठा का प्रश्न है, किसी भी प्रकार की कोताही का परिणाम निलम्बन या बर्खास्तगी हो सकता है

चलिए साहब चाय मंगवाइये

माहौल को कुछ हल्का फुल्का करते हुए निदेशक बोले

चाय के बाद निदेशक अपनी स्टाफ कार में सायंकालीन आचमन के लिए चले गए

अध्यापक अपने अपने विभाग में जाकर गपशप करने लगे।

संसथान छोटा था,मगर राजनीति बड़ी होती थी स्टाफ रूम ऐसी बड़ी जगहों पर नहीं पाया जाता, किसी भी विभाग के कक्ष में बतकही,आलोचना, का सम्मेलन हो जाता था आज लोगबाग़ डीन अकेडमिक के कक्ष में जम गए थे डीन कभी एक दिन के लिए डायरेक्टर रह चुके थे चमड़े के सिक्के चला ने के चक्कर में निलंबन को प्राप्त होते होते बचे बचे इसलिए की सरकार ने एक सचिव को बचाना जरूरी समझा,ये सचिव के साथ बच गए

संसदीय समिति का आना ही एक तूफ़ान था, फिर लोक लेखा समिति के तो जलवे ही अलग हो ते हैं कुछ उनको अपनी समस्याओं का ज्ञापन देना चाहते थे कुछ लोग डीपी सी, प्रोमोशन के गीत गाना चाहते थे,मगर परमिशन कैसे ले? निदेशक स्पष्ट मना कर चुके थे सभी प्रोफेसर बन्दुक किसी दू सरे के कन्धों पर रखना चाहते थे, इधर जरूरी कामकाज निपटाना था एक शानदार वार्षिक रिपोर्ट की जरूरत थी, ऑडिट रिपोर्ट भी छपनी थी छपे तो तब जब पाण्डुलिपि बने,पाण्डुलिपि तब बने जब कोई लिखे,यही सब से बड़ी मुशकिल थी आखिर अतिरिक्त निदेशक ने हल खोजा,राज भाषा विभाग के अधिका री को लिखने का आदेश मिला राजभाषा अधिकारी ने अंग्रेजी नहीं जानने का बहाना बनाया जिसे तुरंत यह कह कर मनाया गया की सहायक निदेशक का पद आ सकता है लेखा विभाग ने ऑडिट रपट की कॉपी बनाई,और छपने को मेटर दे दिया गया कवर शानदार जानदार बनाया गया इस दिव्य व भव्य का म केलिए बजट काफी ज्यादा रखा गया बहुत ही महंगा कागज लगाया गया रंगीन छपाई से समिति को गुमराह करने की कोशिश थी संसथान की साफ सफाई पर विशेष ध्यान दिया वैसे भी पु रे देश में सफाई अभियान चल रहा था जाले साफ किया गए वाश रूम्स को चमकाया गया जिस कांफ्रेंस हॉल में मीटिंग होनी थी,उसकी रंगाई पुताई कराई गयी ए सी ठीक कराये गए वाटर कूलर चालू हुए नए गमले लाये गए टूटी हुई कुर्सियां हटाई गयी खर्चा ज्यादा हुआ,मगर चिंता न को

जिस सरकारी होटल में ठहरने के इतजाम थे,उनको अलग ऊपर से कह्ल्वा दिया गया लंच डिनर व् रात्रि चर्या के लिए कुछ विशेष लोगों की ड्यूटी लगाई गई सब इंतजाम चाकचोबंद किये गए मगर होनी को कौन टाल सकता है,अर्थात कोई नहीं

समिति के आने से एक दिन पहले विभाग के आला अधिकारी दिल्ली से मुआइना करने पधारे संयुक्त सचिव के एस्कॉर्ट में विशेष सचिव ने विभागों का दौरा किया,एक विभाग में सब अनुपस्थित थे,सचिव ने निदेशक की और प्रश्नवाचक निगाहों से देखा,निदेशक ने संयुक्त सचिव के कान में बताया की इस विभाग के मुखिया मंत्री के रिश्तेदार हैं,शेष लोगों को होटल में ड्यूटी के लिए भेजा हैं,संयुक्त सचिव ने यह जानकारी विशिष्ट सचिव के कान में डाल दी ऐसे मामलों में प्रोटोकोल का पूरा ध्यान रखा जाता है,यह जानकर सचिव खुश हुए

मीटिंगों के कई दौर के बाद आखिर वो दिन आ हि गया जब संसदीय कमिटी का दौरा था मीटिंगों में चाय पानी और बजट के अलावा कोई मुद्दा नहीं होता था हर समिति को और ज्यादा बजट की आवशकता थी वार्षिक प्रतिवेदन व् ऑडिट रिपोर्ट की शानदार छपाई के किये जानदार बजट लिया गया समिति अधक्ष ने इसी बजट मे से अपने लिए एक सूट निकल लिया यातायात समिति का मामला थोडा गडबड था क्योंकि महंगी कारे मोटर गेराज से आनी थी,मगर लेखा अधिकारी ने इस समस्या का बहुत ही अच्छा समाधान निकाला,उन्होंने मोटर गेराज में अनुबंधित फर्म से गाड़ियाँ ली,अनुबंधित कम्पनी ने न्योछावर चढ़ाई,पत्रावली पर प्रसाद का प्रभाव बना रहा आवास भोजन समिति ने भी अपनी इच्छाएं पूरी की जिस सरकारी होटल में इंतजाम थे उसके कुछ खाने व् ठहरने के कूपन सभी को मिले और इस तरह ईमानदारी की रक्षा हुई

समिति आई,आधे सदस्य शहर देखने चले गए, अध्यक्ष ,सचिव व् समिति के बाकी लोगों ने का म देखा निदेशक,व अधिकारीयों को डाट पिलाई,खा ली पद क्यों नहिं भरे जा रहे हैं ?कुछ लोगों को सरप्ल स करने की सिफारिश मा न ली गयी,निदेशक को कुछ कांटे निका लने का अवसर मिला ये कांटे काफी समय से चुभ रहे थे वार्षिक रिपोर्ट व् ऑडिट रिपोर्ट को संसद में रखने के आदेश देकर समिति के अध्यक्ष व सचिव राज्यपाल,मुख्या मंत्री से मिलने चले गए निदेशक ने राहत की साँस ली

मगर दू सरे दिन बिलों को लेकर मामला उलझ गया निदेशक की चहेती महिला मित्र ने खाने का एक लम्बा बिल नॉन वेज व् हार्ड ड्रिंक का प्रस्तुत किया,इसे पास करना खतरे से खा ली नहीं था,अब क्या किया जाये समिति के सदस्य ने रात्रि चर्या के क्रम में यह सब किया था बिल काफी भा री थे निदेशक व लेखा शाखा के दिमाग चकरा गए यह खाना समिति के ही किसी सदस्य ने खाया है या रात्रि चर्या में का म आया होगा समिति खुश होकर गइ है यह तो ठीक मगर यह भा री बिल

निदेशक के कक्ष में एक गोपनीय उपवेशन का आयोजन क्या गया,जिसमे निदेशक,महिला मित्र टीचर,व लेखा अधिकारी थे

सर!ये बीयर,व्हिस्की के बिल कैसे पास करूँ?

हूँ

और ये भा री नॉनवेज के बिल अधिकारी ने अपनी मज़बूरी बताई

तो क्या सब मैं खा गयी महिला ने क्रोध में कहा

आपने खाया ये कोई नहीं कह रहा निदेशक ने बात संभाली,मगर इन बिलों को पास करना खतरे से खा ली नहीं

ये सब देखना मेरा का म नहीं है,मैंने तो तन व मन से संसथान और आपकी सेवा कि है,धन देना आपका का म है, पिछली बार भी मुझे ही वहा रा त गुजारनी पड़ी थी केवल आपकी खातिर

ठीक है,कोइ रास्ता निकालेंगे निदेशक ने फिर ठन्डे छीटें दिए

महिला प्रोफेसर सदन से वाक आउट कर गयीं अब बचे निदेशक व लेखा अधिकारी दोनों ने मिलकर तय किया की जो ठेकेदार संसथान की मरम्मत का का म करता है,उसको इन बिलों के भुगतान की जिम्मेदारी दी जाय, वो चूं भी न कर सकेगा और संसथान प्रशासन पर आंच भी नहि आयगी बात हम दोनों के बीच ही रहेगी निदेशक ने ठेकेदार को सीधा फोन कर कहा की –

लोक लेखा समिति के होटल के बिलों का भुगतान कर मुझे सूचित करो

ठेकेदार ने भा री बिल का रोना रोया,मगर का म हो गया कुछ दिनों के अन्तराल के बाद ठेकेदार को पु रे भवन में मार्बल उखाड कर ग्रेनाइट लगाने का ठेका दे दिया गया,जिसकी अनुशंषा मंत्रालय ने दे दी क्योंकि लोकलेखा समिति खुश थी,मंत्री खु श थे,संसद खुश थी संसथान के अधिकारी,कर्मचारी,छात्र भी खुश थे ठेकेदार को तो खुश होना ही था, ठेकेदार पत्नी भी चाहती थी की ऐसी समितियां रोज़ रोज़ क्यों नहीं आती लेकिन लेखा समिति को तो पूरा देश देखना पड़ता हैं भाई साहब

समिति के जाने की ख़ुशी में संस्थान में दो दिन का अघोषित अवकाश हुआ,फिर शनिवार व रविवार आगया

आज सोमवार था,संसथान कई दिनों के बाद खुला था रात को आई तेज आधी से हर तरफ धुल धक्कड़ हो गया था कोढ़ में खाज सफाई करने वाले कमिटी के जाने के बाद ही आराम से बैठ गए छोटे मोटे अफसरों की छोड़ो डिरेक्टर तक के कमरे,वा श रूम तक साफ नहीं सुबह का समय है,अफसर,प्रोफेसर हैं लेकिन कहाँ बैठे,का म काज कैसे शुरू हो,वैसे कई लोगों के अभी तक समिति की सेवा की खुमारी उतरी नहीं हैं धीरे धीरे सफाई का का म चलाऊ इंतजाम किया गया प्रधानमंत्री की सफाई योजना का यहां पर कोइ प्रभाव नहीं निदेशक को एक जरूरी फोन के द्वारा बताया गया की दिल्ली से सरकार के चहेते बाबा का एक शानदार प्रवचन कराया जाये निदेशक ने मन में कहाएक और हेडेक आ रहा है लेकिन काम तो करना ही था

आना बाबा का –

इस संसथान के निदेशक की हर विषय में गति है सिवाय उस विषय के, जिस को पढाने के लिए इनको शुरू में रखा गया था वे राजनीति,अध्यात्म योग,प्रशासन आदि में निपुण हो गये बस कक्षा नहीं ले सकते पांच प्रोफेस् रों को एक साथ देख कर उनको बुरा लगता है पीठ पीछे लोग इनके शेक्षणिक ज्ञान के ऐसे ऐसे किस्से सुनाते हैं की श्रोता मन्त्र मुग्ध हो जाते हैं बहुत सा रे अध्यापक तो अपनी कक्षा में इन किस्सों से ही काम चला लेते है

ज्यो ही दिल्ली की काल आई,निदेशक समझ गए बाबाजी ने मंत्रीजी की जन्मकुंडली बांच कर उनके प्रमोशन की घोषणा कर दी है मंत्री जी का तो भगवान जाने मगर निदेशक अपनी जनम कुंडली बचाना चाहते थे सो डीन अकादमिक को बुला भेजा डीन साहिब ने तुरंत कहला भेजा –

सर,क्लास लेकर आता हूँ,वैसे वे कैसी क्लास लेते हैं ये निदेशक अच्छे से जानते थे,खेर कुछ देर बाद डीन साहब नमूदार हुए,

आजकल बहुत पढ़ा रहे है,क्या बात है राष्ट्रपत्ति पदक लेना है क्या?

नहीं सर, छोटी कक्षा नहीं छोड़ता और एक डेढ़ घंटे की क्लास के बिना मज़ा नहीं आता

हूँ,मैं सब समझता हूँ निदेशक बोल पड़े

मंत्रालय से एक फेक्स आया है,वे एक बाबा जी को भेज रहे हैं,उनके योग व् अध्यात्म पर व्याख्यान होने हैं आप व्यवस्था कराइए निदेशक ने सपाट स्वर में कहा लेकिन वो डीन ही क्या जो आसानी से मा न जाये तुरंत बोले –

सर,हमारे संसथान के उद्दश्यों में ये योग वोग भोग नही आते ये का म तो किसी धरमकर्म कि संस्था में ठीक रहेगा हमारा का म तो पीड़ित मानवता की सेवा, विकास और प्रबंधन का है

ये भी विकास ही है,मंत्रालय कहे वहीँविकास

सबका साथ सबका विकास चलो शुरू हो जाओ

तो फिर क्या करे,बाबाजी व् उनके स्टाफ को टी ए,डी ए भी देना है

सर एक का म करते हैं,छात्रों व् ट्रेनर्स को शारीरिक ट्रेनिंग के नाम पर इस बवाल को करवा देते हैं टी ए डी ए छात्र कोष या ट्रेनर्स कोष से कर देंगे

तुम मरवाओगे,पहले ही बहुत सारे ऑडिट आक्षेप हैं,फिर इस छात्र निधि का उपयोग करना या ने छात्रों को उकसाना

पासा उल्टा पड़ता देख डीन ने रुख बदला,और कहा

ठीक है सर हम पहले प्रोग्राम कर लेते हैं फिर पत्रावली चलती रहेगी मैं एक जूनीयर टीचर को लगा देता हूँ बाबाजी कि सेवा के लिए भि तो कोई चाहिए होगा डीन सर ने अपने कक्ष में जाकर

अपने शोधार्थी को बुल वाया और व्यवस्था के लिए बताया, शोधार्थी की स्थिति उनके बंधुआ मजदूर जैसी थी संसथान में ऐसे स्कॉलर हर बूढ़े प्रोफेसर के पास थे,जिनको बेटा बेटा कह कर किसी भी काम में जोता जा सकता था वे बेचारे चूं भी नहीं कर सकते

बाबाजी का मंत्रालय में पूरा रुतबा था,एक सलाहकार को घर का रस्ता दिखा चुके थे,एक अन्य सलाहकार इधर –उधर पानी मांग रहा था बाबाजी यो धरम अध्यात्म ध्यान के तो विशेषज्ञ थे ही राज निति व् महिला मित्रों में भी बदनाम थे बाबाजी के साथ चेले चांटी,चेलियाँ लम्बा चो ड़ा लवाजमा आता था,गाड़ियों का एक हुजूम साथ चलता था,उनका अपना एक सिक्यूरिटी नेट वर्क था

बाबाजी का आश्रम राजधानी के निकट ही था,जानका र बताते हैं की इस आश्रम में घुसना आसान नहीं था आश्रम में ही जीवन की सब सुख सुविधाएँ मौजूद थी आश्रम में ही स्कूल कॉलेज,अस्पताल,प्रवचन स्थल सब कुछ था आश्रम में घुसना आसान नहीं था घुसने के बाद जिन्दा निकलना मुश्किल ही नहि ना मुम्किन था आश्रम में दवा कम्पनी थी बाबाजी सभी प्रकार के उत्पाद बनाते व् बेचते थे ये उत्पाद बनाने के लिए बाबाजी के पास फेक्टरियाँ नहि थी ज्यादातर मॉल आयातित होता था ठप्पा लगाकर बे चा जाता था बाबाजी के खेतों के फल आर्गेनिक के नाम पर महंगे बिकते थे बाबाजी कम्पनी के अवेतनिक मुखिया थे,कहने को केवल एक लंगोट धारी बाकि सारा जहाँ हमारा तो ऐसे बाबाजी जो फिल्मों व् टी वि के भी शौक़ीन,हर चेनल पर बाबा के उत्पादों के विज्ञापन और हर चेनल के किसी न किसी कार्यक्रम में बाबाजी की सजीव उपस्थिति बाबा खुद भी रा स लीला विशेषज्ञ, बाबा और बालाओं के डांस देख कर देवता भी शर्मा जाये हर चेनल पर छाये रहते थे अपनी कम्पनी के विज्ञापन अपना कार्यक्रम अपने माडल्स

०००००००


तो ऐसे बाबा के स्वागत अभिनंदन व् अभिवादन के लिए संसथान अपने पोर्च में गुलदस्ते,माला,लेकर खड़ा है,स्थानीय परम्परा के अनुरूप बाबाजी की आरती उतारने केलिए सुंदर सुंदर बालाओं का एक समूह आरती कि थाली में दीपक, रोली मोली,कुमकुम लेकर खड़ा है बाबाजी का लवाज्मा पहुचने की सूचना लिए एक बड़ा पुलिस अधिकारी वाकी –टाकि लेकर दोड़ कर निदेशक के पास आया

सर, मुख्यमंत्री भी साथ है बेचारे निदेशक की हवा निकल गयी लेकिन वे जानते थे बाबा के सम्मान से सी एम् भी खुश हो जायंगे हो सकता है मामला पी एम् ओ तक चला जाये किसी राष्ट्रीय सम्मान का जुगाड़ बैठ जाये

संसथान के एक बड़े खेल मैदान में बहुत बड़ा शामियाना लगाया गया है,शानदार ऊँचा मंच मंच से नीचे बीस फिट तक बेरिकेड,बेरीकेड के बाद जमीन पर दरिया, शुरू की पंक्तियों में बाबा के समर्पित शिष्य,शिष्याएं,फिर संसथान के छात्र –छात्राएं,अध्यापक सब को बाबा के निर्देशानुसार योग की ड्रेस बाबा व् मुख्यमंत्री मंच पर बाकि सब नीचे बाबा ने चढ़ते ही मंच संभाल लिया माइक पर ॐ की गुरु गम्भीर वाणी के साथ बाबा ने धरम,ध्यान,योग,अध्यात्म पर प्रवचन शुरू किया उन्होंने नदीयों की सफाई की बात की,पीछे से कोई चिल्लाया –यमुना को क्यों प्रदूषित किया,बाबा ने कोई ध्यान नहीं दिया बाबा ने गंगा नदी की पवित्रता का जिक्र किया पीछे से फिर कोई चिल्लाया आप की फेक्ट्री से ही सबसे ज्यादा प्रदूषित गन्दा पानी आ रहा है, बाबा ने ऊँची आवाज में वन्दे मातरम बोला आगे की पंक्ति में खड़े बाबा के चाटुकारों ने साथ दिया

बाबा फिर बोलने लगे

संत साधू सन्यासी में कोई फर्क नहीं है हम लोग समाज को देते ही देते है,लेते कुछ नहीं हम तो नागे फ़क़ीर है बहता पानी है,हमारे नाम पर कहि एक इंच जमीं भी नहीं है जो कम्पनियां बनी है मैं तो उसका ट्रस्टी भी नहीं तुम्हारी वस्तु तुम्हि को समर्पित

बच्चों!

तुम देश का भविष्य हो जो यहाँ से सीख कर जाओगे वहीँ आगे सिखाओगे भारतीय संस्कृति ही विश्व को बचा सकती है भारतीय सामान काम में लो इस बार एक वीर बालक खड़ा हो गया,जोर से बोला,बाबा आपकी कम्पनी में तो विदेशी और चीनी मॉल को रिपैक करते है बाबा को गुस्सा आना था,आ गया उन्होंने मंच से ही ललकारा

कौन हो तुम,मुझे तो तुम आतंकवादी लगते हो तभी अन्य लोगों ने मामला शांत किया बाबा गुस्से में थे,श्राप देना चाहते थे मगर निदेशक व् मुख्यमंत्री ने माफ़ी मांग कर मामला शांत किया बाबा ने प्रवचन के बाद योग कराया,ध्यान सिखाया,देशी जड़ी बूटियों का ज्ञान दिया,बाबा यह कहना नहिं भुले की हमारी दवा लों इससे उच्च रक्तचाप,मधुमेह,वजन कम –ज्यादा आदि रोगों में बहुत फायदा होता है हमारी पत्रिका के वार्षिक ग्राहक बने बाबा कुछ और बोलते तभी बाबा का निजी सचिव स्टेज पर आया और बाबा के कान में कुछ बोला बाबा ने तुरंत अपना व्याखान बंद कर दिया बाद में पता चला की बाबा के आश्रम पर छापा पड़ा और छापे में ए के सेतालिस रायफल मिली बाबा के कर्मठ नंबर दो बाबा को पुलिस ले गयी, लेकिन् बाबा ने तुरंत अपना वेश बदला सलवार कुर्ती धारण किये और मंच से अंतर ध्यान हो गये कुछ महीनों के बाद बाबा अग्रिम जमानत लेकर एक डांस के कर्यक्रम में दिखे

लेकिन संसथान में यह अफवाह लम्बे समय तक रहीं की बाबा की कुछ चेलियाँ गर्भवती होकर आश्रम से भाग गयीं,कुछ अन्य चेलियों का कुछ अता –पता नहीं मिल रहा है शायद उनको मा र दिया गया या उनके अंग निका ल कर बेच दिए गए बाबा का यह प्रोग्राम संसथान के अलावा मीडिया में भी छाया रहा कुछ चेनलों ने तो महीनों चर्वित चर्वण किया समाचारों के इस अकाल समय में ऐसा अवसर कौन छोड़ताहै?

इस असफल कार्यक्रम के कारण संसथान व् निदेशक की बड़ी बेइज्जती हुई

इसको ठीक करने के लिए निदेशक ने एक नयी चाल चली।

होना आयोजन अन्तर राष्ट्रीय सेमिनार का –

सेमिनार के नाम से ही मास्टरों,छात्रों,प्रशासनिक व् लेखा शाखा के लोगों के बांछें खिल जाती हैं,संसथान में एक कहावत भी प्रसिद्ध थी कुछ का म मत करो,साल दो साल में एक राष्ट्रीय सेमिनार की नोटंकी कर लो मेला जोड लो,अपने अमचो चमचों,विशेषज्ञों को बुला लो,मंत्री या राज्यपाल से उदघाटन करवा लो पी एम् ओ तक कार्ड बंटवा दो एक शानदार किताब छाप लो जिसमे सभी शोध पेपर्स आ जाये इस किताब में सचिव,मंत्री या राष्ट्रपति के शुभ कामना सन्देश सचित्र छाप लो,बस एक सफल और स्वादिष्ट सेमिनार का नुस्खा तेयार मगर इस महान का म से पहले जो राजनेतिक दाव पेच होते हैं,उनकी जानकारी भी जरूरी है

सेमिनार कौन सा विभाग कराएगा,आयोजन सचिव कौन होगा,सेमिनार का विषय क्या होगा,किस किस विद्वान को बुलाया जायगा ये विद्वान वास्तव में विद्वान होंगे या सत्ता के गलियारों में चक्कर काटने वाले तथाकथित बुद्धिजीवी होंगे सेमिनार का वेन्यू कहाँ होगा,इस तरह के सेकड़ो प्रश्न हवा में तेरने लग जाते हैं,कई बार सेमिनार एक अफवाह सिद्ध होती है क्योंकि अचानक बजट कटोती की घोषणा हो जाती हैं कभी कभी यूनियन अपना काम कर जाती है और काम ठप्प हो जाता है,लेकिन वर्तमान निदेशक को अपनी छवि सुधारनी थी सो वे गंभीरता से विचार,मनन,मंथन करने लगे

निदेशक यह अच्छी तरह से जानते थे की करना क्या है,मगर मामला प्रजातान्त्रिक भी बना रहना चाहिए,सभी की सहमती व सहयोग जरूरी होता है सब खुश रहे यहीं सेमिनार की सफलता का मूल मन्त्र था बाकि शोध का क्या है हम नहीं करेंगे तो कोई दूसरा कर लेगा,कौन सा नोबल पुरस्कार मिल जायगा

निदेशक ने मन ही मन तय किया की इस पहली और उनके कार्यकाल की अंतिम सेमिनार का वेन्यू स्थानीय के बजाय दिल्ली का विज्ञान भवन रखना ठीक रहेगा देश की राजधानी में मी डिया और सरकार का ध्यान तुरंत जाता है यदि सब कुछ ठीक ठाक रहा तो सेवा विस्तार भी मिल सकता है,या अन्य किसी जगह पर फिट हुआ जा सकता है यही सब सोच कर निदेशक ने अपने चमचे डीन व् प्रोफेसरों की एक गुप्त मीटिंग बुलाने का निश्चय किया गुप्त या गोपनीय बात उसे कहते है जो बिना बताये सब को मालूम चल जाये गोपनीय पत्र व पत्रावलियों के साथ भी यहीं होता था

अत:यह उपवेशन निदेशक के घर पर सांय कालीन आचमन के साथ रखा गया आचमन की व्यवस्था एक नयी छात्रा को सोंपी गयी जो इसी संसथान में नौकरी का सपना पाले हुई थी इस आचमन के साथ ही चर्चा शुरू हुई

दो पेग के बाद मुर्गे की टांग तोड़ते हुए प्रोफेसर सक्स्सेना बोले

सर कांफ्रेंस का विषय जोरदार होना चाहिए,आखिर अंतर राष्ट्रीय सेमिनार है

यार सक्सेना तुम्हारी यहीं सबसे बड़ी मुसीबत है,दो पेग के बाद ही बहक जाते हो विषय और बजट राजधानी में तय होंगे

मिस शर्मा बोल पड़ी –

सर हिसाब किताब को बड़ी होशियारी से बनाना पड़ेगा कई लोग बाद में संसथान में कपडे फाडते फिरते है

तुम क्यों चिंता करती हो डार्लिंग ये कहकर निदेशक ने मिस शर्मा के कमर में हाथ डाल कर किस कर लिया,बेचारी शरमा गयी निदेशक ने आंख मारी और आगे बोले

सबके ताबीज बना दूंगा,एक कौए को मा र कर लटका दिया है जो ज्यादा बूढ़े हैं उनके मूंडे काले कर के रख दिए है जब जरूरत पड़ेगी आइना दिखा दूंगा कौन बोलेगा ?ये गरीब गुरबे मास्टर जो फर्जी मेडिकल व् फर्जी कनवेंस बिल देते हैं या ये अफसर जो मेरे नौकर व किरायेदा र हैं सबका ध्यान रखता हूँ सबको बचाता हूँ,साले हरामी सब के सब हरामीऔर कमीने निदेशक को चढ़ने लग गयी थी,यह देख कर सब मुफ्त का खाना अरोगने लगे इस पार्टी से ही तय हो गया की सेमिनार जानदारशानदार जोरदार व् धारदार होगी दो करोड़ से कम में कुछ नहीं होगा आजकल तो कवि सम्मेलन भी करोडो के होने लगे हैं एक एम् एल ए का चुनाव ही करोड़ों खा जाता है

निदेशक के मन में था की सेमिनार दिल्ली के विज्ञान भवन में करनी है उदघाटन के लिए राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री को बुलाना है,बस यहीं थोडा मुशकिल काम था,मगर निदेशक राजनीति में भी माहिर थे इतने मंत्रियों को शक्ति वर्धक दवाइयां दी , प्रयोगशालाएं भी दी कब कम आयेंगे साले

निदेशक यहीं सोचते हुए अपने शयन कक्ष की और बढ़ गए चमचे अपने अपने घर को जाते भये निदेशक पलंग पर गिरे और गहरी नींद के आगोश में सुनहरे सेक्सी सपने देखने लगे।

अगले दिन निदेशक ने अंतर राष्ट्रीय सेमिनार का एक विशद प्रोजेक्ट अपने मातहतों को बनाने के निर्देश दिए विदेशों से आने वाले डेलिगेट्स के लिए दिल्ली में पांच सितारा व्यवस्थाएं जरूरी थी दिल्ली में विज्ञान भवन की बुकिंग के लिए एक अफसर को दिल्ली भेजा गया सेमिनार का शानदार प्रोजेक्ट लेकर निदेशक खुद दिल्ली जाना चाहते थे,मगर बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा,सचिव महोदय एक शादी में शरीक होने इस कसबे में पधार रहे है –इस सूचना मात्र से निदेशक को आनंद आगया ऑफिस छोड़ कर वे शादीवाले के यहाँ पर हाजरी बजाने चले गए

सचिव आये लेकिन दुआ सलाम से आगे कोई बात नहीं हो सकी

हाँ एक काम हुआ सचिव का एक विस्तार व्याख्यान तय हो गया सचिव के इस व्याख्यान में संसथान के बाबु,चपरासी,,प्रोफेसर सबको जमा कर दिया गया भीड़ देख कर सचिव को अच्छा लगा व्याख्यान के बीच बीच में करतल ध्वनी से भी सचिव का दिल खुश हो गया मौका मुनासिब देख कर निदेशक ने राग सेमिनार छेड़ा,डीन अकेडमिक ने भी तान छेडी,चमचों ने ठेका लगाया,बात धीरे धीरे बन ने लगी सचिव बोले

तुम पूरा प्रोजेक्ट तीन करोड़ का करके दिल्ली आजाओ मेरी पावर में पांच करोड़ तक के काम है निकाल दूंगा हाँ ये पी एम् या प्रेसिडेंट के लिए प्रोटोकोल के अनुसार काम करो अपनी शासी निकाय के अध्यक्ष के पत्र के साथ जाना,हो सके तो उनको साथ ले जाना राज्य सरकार से भी लिखवाना

जी सर

निदेशक ने हाँ में हाँ मिलायी

सब लोग सचिव को छोड़ने हवाई अड्डे पर गए उनको यात्रा का एल्बम भेंट किया एक चमची शोध छात्रा ने सेल्फी खिंची और सेमिनार का पहला पड़ाव पार हुआ

सेमिनार के विषय जोरदार हो,विशेषज्ञ जोरदार हो विदेशी डेलिगेट्स आ जाये प्रधानमंत्री उदघाटन कर दे बस फिर सब मज़े ही मज़े निदेशक ने सोच समझ के विषय तय कर दिया भारतीय विध्याओं की शोध की प्रक्रिया याने रिसर्च मेथोडोलोजी ऑफ़ इंडियन साइंसेज इसे भाई लोग इंडोलोजी भी कहते हैं यह तय करके निदेशक ने शोध पत्र चयन समिति बनाइ व स्वयम इसके अध्यक्ष हो गए अन्य समितियों में अपने लोग अध्यक्ष व विरोधियों को महत्त्व हीन स्थानों पर फिट कर दिया स्वीकृति की आशा में बजट जारी कर दिया विज्ञान भवन बुक हो गया प्रधान मंत्री से मिलने का टाइम ले ने स्थानीय सरकार के मंत्री के साथ निदेशक प्रधान मंत्री कार्यालय के लिए उड़ चले।

प्रधान मंत्री कार्यालय की दिव्य व भव्य छटा देख कर स्थानीय मंत्री व निदेशक चकित रह गए अफसर ही अफसर हर काम के लिए अलग अफसर प्रधान मंत्री जो स्वयम को जनता का प्रधान सेवक कहते थे, पूरे सामंतवादी रस्मो रिवाज के साथ रहते थे मिलने से पहले इतनी ज्यादा सेकुरिटी जाँच की आदमी बिदक जाय सुना था वे अठारह घंटे काम करते हैं,एक समय भोजन बस,नवरात्री में केवल निम्बू पानी एक मेडिकल टीम दफ्तर में,एक घर पर, व एक हर समय साथ,लेकिन क्या कोई यमराज से बच सका है आज तक निदेशक निमन्त्रन पत्र के साथ प्रतीक्षा कक्ष में बैठ गये मंत्री जी के कारण जल्दी ही बुलावा आ गया

पी एम सर ने उद घाटन का न्योता स्वीकार कर लिया क्योंकि विज्ञान भवन में आयोजन था वे बोले

मेरा विषय से सम्बन्धित एक भाषण लिख कर भेज देना,मेरे सलाहकार देख लेंगे यह कह कर प्रधान सेवक संसद के किये प्रस्थान कर गए एक सहायक ने उनको स्वीकृति पत्र दे दिया परम प्रसन्न मन निदेशक उड़ते हुए वापस अपने संसथान को आगये वे समझ गए अब अच्छे दिन आये हि समझो

ज्योहीं यह खबर फैली की संसथान एक अंतर राष्ट्रीय सेमिनार देश की राजधानी में करने जा रहा है,पत्रकारों के पंख लग गए ख़बरों का भयंकर अकाल था समाचारों के दानव का रोज पेट भरने के लिए चोबीस घंटे की बाईट चाहिए थी ऐसा सुनहरा अवसर कौन हाथ से जाने देता प्रिंट मीडिया,ऑडियो विजुअल मीडिया लाव लश्कर के साथ संस्थान की सेवा में बिना बुलाये मेहमान की तरह आने लगे एक जाता दूसरा आता दूसरा जाता तीसरा आता

पत्रकारों में दो समूह बन गया एक संस्थान के क्रिया कलापों की तारीफ करता दूसरा आलोचना,जो आलोचना करता उसे मैनेज करने के लिए मास्टरों को लगाया गया,अफसरों की सेवाएँ ली गयी मगर बात बनी नहीं,धूर्त मीडिया के केप्सूल सुबह से शाम तक चलने लगे बाते मंत्रालय से पी एम ओ तक जाने लगी, एक स्वतंत्र पत्रकार ने एक लम्बा आलेख एक विदेशी अख़बार में छपा मारा, प्रशासन कुछ न कर सका स्थिति विस्फोटक थी निदेशक को रोज़ सचिव की डाट पड रही थी,लेकिन संसथान का एक तबका खुश था क्योकि वह अपने आपको उपेक्षित मान रहा था

एक स्थानीय पत्रकार जिसकी बीबी के नाम से चल रही फर्म से सामान नहीं ख़रीदा गया था,बड़ी दूर की कोडी लाया,उसने अपने पेम्फलेट रुपी पत्र में यह रहोस्योद्घाटन किया की संसथान के छात्रा होस्टल के पीछे कुछ दिनों पहले एक लाश मिली थी इस की जाँच का क्या हुआ परिसर में ही एक सुसाइड पॉइंट के भी समाचार पत्रकार जी ने बॉक्स बना कर छाप दिया

इस मामले को साबित करने के बजाय द्रश्य –श्रव्य माध्यम ने किस्से को इतना उछाला की उनकी टी आर पी बढ़ गयी मामला पिपली लाइव फिल्म जैसा हो गया सेमिनार कही बहुत पीछे छूट गयी

निदेशक इस बवाल से पिंड छुड़ाने के लिए छुट्टी जाने की सोचने लगे लेकिन फिर एक घटना से सब ठीक होगया हुआ यों की प्रदेश में निकाय चुनाव आगये पत्रकार व्यस्त हो गए उनको नए ग्राहक मिल गये,पीने खाने का जुगाड़ हो गया उन लोगों ने संस्थान को बक्श दिया

सेमिनार दिल्ली में थी सो सब ने राहत की साँस ली

सेमिनार के लिए दिल्ली में एक केम्प ऑफिस बनाया गया इसे सेमिनार सचिवालय का बड़ा सा नाम दे दिया गया दिल्ली के मीडिया को सँभालने केलिए एक बड़ी पी आर एजेंसी को संविदा पर लिया गया,यह तो बहुत बाद में पता चला की यह एजेंसी शासी निकाय के अध्यक्ष की पुत्र वधु चलाती है एक इवेंट मैनेजमेंट कमेटी को भी उपकृत किया गया,जो एक उपसचिव की बेटी चलाती थी

निश्चित दिन विज्ञान भवन को दुल्हन की तरह सजाया गया संसथान के निदेशक की हैसियत दुल्हन के बाप की तरह हो रही थी सम्बन्धित मंत्री व सचिव खुद सब इंतजाम देख रहे थे हाल की शुरू की सीटों पर मंत्रालय के अधिकारीयों व् उनके परिवार के लोगों का कब्ज़ा था विशेषज्ञों को पीछे बैठाया गया था संसथान के अधिकारी कर्मचारी अध्यापकों को इधर उधर खड़ा रहना पड़ा बीच की जगह पर मीडिया वाले काबिज थे सरकारी जनसंपर्क वाले व् पी आर एजेंसी वाले भी काम में लगे थे

पी एम आये जल्दी से दीपक जलाया,चित्र पर माल्यार्पण किया और सीधे भाषण देने के लिए डायस पर चले गए पी एम् बोले और खूब बोले सेमिनार का उदघाटन किया वर्तमान राजनिति पर चालू हो गये विपक्ष मुझे व् मेरी सरकार को का म नहीं करने देता है,इस देश को विपक्ष मुक्त किया जाना चाहिए वे सेमिनार के लिए लिखे भाषण को भूल कर अपने सरकार के गुणगान में व्यस्त रहे

वे बोले –

भाइयों और बहनों,

आज पूरी दुनिया हमारी और देख रहीं है हमें विश्व को नेत्रत्व देना है हर क्षेत्र में दुनिया को दिखा देना है की हम किसी से कम नहीं है वी आर प्राउड टू बी इंडियन्स लेट अस बी वर्दी ऑफ़ इंडिया हम एक विशाल और महान देश में हैं,बस ये विपक्ष राष्ट्र द्रोह से बाज़ नहीं आता

मीडिया ने भी उनको पूरा कवरेज दिया एक दो छोटे चेनलों ने सीधा प्रसारण भी दिखा दिया पी आर एजेंसी ने सब ठीक कर दिया पूरा मामला आर्थिक है श्रीमान

पी एम के जाने के बाद अलग अलग सेशन शुरू होने से पहले ओपचारिक पंजीकरण हुए,किट,कूपनों व् गिफ्ट को लेकर कुछ जिक जिक हुई जिसे सेमिनार के आयोजन सचिव ने संभाला,तकनिकी सत्र शुरू हुए हुए मगर अब भीड़ नदारद थी विशेश्ज्ञों के पर्चे पढ़े हुए माने जाने लगे कई विदेशी महमान दिल्ली आगरा,जयपुर के गोल्डन ट्राईएंगल की और निकल गए कुछ लोग अपनी महिला मित्रों के साथ सेमिनार करने चले गए,ये लोग दुसरे दिन ही आये सेमिनार के दुसरे दिन फिर तकनिकी सेशन हुए कुछ प्रतापी विशेषज्ञों ने मौखिक लम्बे चो डे व्याख्यान दिए, क्योकि लिख कर बोलने में बड़े खतरे थे मौखिक बोल कर बाद में यह कहा जा सकता था की मेरे कहने के गलत मतलब निकले गए मगर श्रोताओं की कमी ही रही सायकाल संस्कृतिक कार्यक्रम हुए जिसमे लोक कलाकारों,छात्रोंने भाग लिया कुछ अध्यापकों ने भी प्रतिभा दिखाई डिनर से पहले आचमन की व्यवस्था थी कुछ सदाचारी अपने होटल कक्ष में ही गम गलत करते रहे हर बार सेमिनारों में यहीं सब होता रहा है हुआ और आगे भी होता रहेगा स्वादिष्ट व् सफल सेमिनार ही ज्ञान विज्ञान को आगे बढाती है छोटा कार्यक्रम करो तो मज़ा नहीं आता नंगा क्या नहाये और क्या निचोड़े

तीसरे दिन भी यहीं नाटक यहीं नौटंकी

समापन समारोह में विशेष अतिथि विभाग के काबिना मंत्री को बनाया गया ताकि बजट की समस्या न रहे मंत्रीजी ने सेमिनार को सफल घोषित कर दिया खूब करतल ध्वनी हुई इस सेमिनार की एक उपलब्धि हुई एक सामान्य अध्यापक को पद्मश्री मिली एक अन्य चाटुकार को एक विश्वविध्यालय का कुलपति बना दिया गया निदेशक मंत्रालय में फिट होने के सपने देखने लगे लेकिन ये छिपे हुए फायदे है जो काफी दिनों के बाद में नज़र आते हैं

तीन दिवसीय सेमिनार में पढ़े गए शोध पत्रों की पुस्तक प्रधानमंत्री के चित्र के साथ छाप दी गयी

इसे पी एम ओ आफिस में स्वयं विभाग के मंत्री ले गए ताकि उनके नम्बर बढ़ सके

कुछ दिनों के बाद मंत्री जी एक राज्य के राज्यपाल बना दिये गए उनके मंत्री पद के समय के सब पाप धुल गए वे राष्ट्र पति बनने के सपने देखने लगे जैसे उनके दिन फिरे सबके फिरे,प्रभु।

सेमिनार की अपार सफलता व् प्रधान मंत्री के साथ फोटो खिचवा के निदेशक व पूरी पार्टी गदगद भाव से अपने परिसर में लौटी दो दिनों का अघोषित अवकाश रहा

आज संसथान फिर खुला है पुसतकालय के बाहर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी धूप सेकतें बतिया रहे हैं

सुना है दिल्ली में भारी सेमिनार हुयी प्रधानमंत्री ने उद् घाटन किया ‘

प्रधानमंत्री के पास और काम ही क्या है,उद्घाटन,शिलान्यास और मीटिंग

सुना तो हमने भी है,मगर इससे विज्ञान का क्या भला हुआ?

विज्ञान का न सही अफसरों,अधिकारियों का तो फायदा हुआ तीसरा बोल पड़ा

दो –तीन करोड़ फूंक दिए हैं,

बीस प्रतिशत तो ईमानदारी का ही बनता है यहीं देवता का भाग कहलाता है

हाँ ये तो है,कमाई में ही समाई है

प्रशासन की तो पांचो घी में और सर कडाही में

लेखा शाखा की भी बल्ले बल्ले एक बोला

संसथान में कुल बीस पद है जिनपर उपर की कमाई होती है सब मिल बाँट कर खाते हैं

अपन ग़रीबों को कौन पूछता है चलो भाई काम करो साहब लोगो के आने का समय हो रहा है

सेमिनार के विडीओ बनाये गए थे सब वीडियो देख देख कर खुश होते रहे जो लोग दिल्ली न जा पाए थे उन्हें परिसर में ही फिल्म दिखाई गयी उत्सव का यह वातावरण ज्यादा दिन नहीं चला स्थानीय ऑडिट पार्टी ने आकर डेरा जमाया

आना ऑडिट पार्टी का

संस्थान अस्त व्यस्त था।

लोकल ऑडिट पार्टी के मेमो से निपटे ही थे की महालेखाकार की ऑडिट पार्टी के पांव पड़ने का समय हो गया ये सबसे खतरनाक पार्टी होती है एसा निदेशक ने बताया तो सब लोग और भी सावचेत हो गए महा लेखाकार की ऑडिट रपटों से सरकारे तक गिर जाती है ऐसा सयानों का कहना है

लोगों ने लेखा शाखा की और जाना ही बंद कर दिया मगर रेत में गर्दन छुपा लेने से क्या होता है?

यह ऑडिट अपनी रपट सीधे संसद को देती है इस बार तो एक बड़ी सेमिनार करी गयी थी,सो बड़े पेरे बनने की पूरी उम्मीद थी सब डरे हुए थें

यूनियन के अध्यक्ष इस पवित्र अवसर पर अपने दल बल के साथ ऑडिट पार्टी के अफसर से गुफ्तगू करने केलिए चले

वे व उनके साथी अफसर को ज्ञानदान करने लगे ज्ञान बाँटने के कारण लोगों को मज़ा आने लगा

सर,क्या बताएं यहाँ तो कुएं में ही भांग पड़ी हुयी है संसथान छोटा है मगर यहां की पोलिटिक्स बड़ी हैं,गन्दी है हम तो छोटे कर्मचारी है,बच्चे पाल रहे हैं बाकि रखा क्या है यहा ?इत्ती बड़ी सेमिनार दिल्ली में करने का क्या ओचित्य था ?फिर वहां पर एक आफिस खोल दिया पि आर एजेंसी का ठेका बिना टेंडर के दे दिया कई लोगो को अनियमित भुगतान कर दिए सर पूरी और इमानदार जाँच की जरूरत है,हमें आप पर पूरा विश्वास है हम गरीबों के तो वेतन आयोग के फिकसेशन भी नहि हुए और ये लोग विदेशी मेहमानों को के साथ गुलछर्रे उडा के आ गये वेतन के अलावा कमिशन,रिश्वत, और न जाने क्या क्या ?पुरे संसथान को चूहे कुतर रहे हैं हर पत्रावली को दीमक लगी हुयी है,चारो तरफ इल्लियों का साम्राज्य है सर आप न्याय करना साहब ऑडिट अफसर ने उनको अश्श्वस्त किया और केश बुक पर लाल,पीले,हरे निशान लगाने में व्यस्त हो गया निदेशक को यह खबर मिल गई थी की यूनियन का पग फेरा हो चूका है,सो उन्होंने अपने लेखा अधिकारी को बुला कर यूनियन के अध्यक्ष की एक पुराणी रिकवरी का नोट ऑडिट को दिखाने को कह कर अपना पैतरा फेका अब ऑडिट पार्टी को मज़ा आने लगा पार्टी ने निदेशक की जन्म तारीख के कागज़ मांग लिए निदेशक का नियुक्ति पत्र भी मांग लिया गया जो कभी निकला ही नहीं,उनके पास तो अतिरिक्त चार्ज ही था

ऑडिट पार्टी मज़े ले रही थी संसथान के लोगों को लग रहा था की उनको गरम तेल में पकोड़ा बनाया जा रहा हैं निदेशक ने ऑडिट के मुख्य आफिस में ताल मेल बिठाने के लिए अपने विश्वस्त चमचे को लगाया चमचे ने अपना खेल खेला और ऑडिट पार्टी के कडक अफसर के बजाय एक नए सॉफ्ट अफसर को लगवा दिया ये भाई साब जल्दी सेवा निवृत होने वाले थे सो सज्जनता से शालीन तरीके से अपना बुढ़ापा काट कर इज्जत के साथ पेंशन के लाभ लेकर घर जा ना चाहते थे उन्होंने कई बड़े पे रे ड्राप कर दिए जिनमें निदेशक की जन्म तारीख का मामला भी था

ऑडिट पार्टी ने नव नियुक्तियों का भी मामला चेक किया यूनियन के अध्यक्ष अपने ही मामले में एसे फंसे की कई दिन तक संसथान आये ही नहीं

संसथान में नियमित निर्माण काम भी चलते थे ऑडिट ने इस का पे रा बनाने की पूरी कोशिश की मगर केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग के कामों में वे कोई खोट नहीं निकल सके वेतन आयोग के फिक्सेशन भी सही पाए गए लेकिन कुछ तो करना ही था सो कुछ छोटे पदों को सरप्लस किये जाने का पे रा लिया गया जिसे आगे सी ए जी से निरस्त करने केलिए निदेशक को खुद जाना पड़ा

लगभग एक मास के गहन ऑडिट के बाद पार्टी चली गयी,कोई बड़ी गडबडी नहिं पायी गयी प्रधान मंत्री जी के सेमिनार में आ जाने के कारण सब ठीक ठाक मान लिया गया रिपोर्ट आने पर यथा समय मंत्रालय को भेज कर कर्तव्य की इतिश्री कर दी गयी ओडिट पार्टी के अफसर को ए जी आफिस से रिटायर हो ने के बाद संसथान में सविदा पर रख लिया गया अब इतना सा तो करना ही पड़ता है जैसे उनके दिन फिरे सब के फिरे होना रेप का।

साँझ का समय हवा धीरे धीरे चल रही थी पेड़ो की छायाएं लम्बी होने लगी थी सर्दी के कारन दिन छोटे थे संसथान के नि यमानुसार लंच के बाद वाली कर्मचारियों की जमात घर जाने की तेयारी में थी चतुर्थ श्रेणी अधिकारी भवन के ताले लगाकर चाबियाँ सेकुरिटी वालों को देकर घर जाने से पहले की गपशप में व्यस्त थे,तभी यह अघट घटा

शुरू में तो कोई कुछ समझ ही नहीं पाया,लेकिन धीरे धीरे राज खुलने लगा परिसर में कोई सामूहिक दुष्कर्म का मामला बताया जाने लगा जितने मुहं उतनी बातें

अफवाहें हवाओं में तैरने लगी जिस महिला के साथ अघट घटा था वो निदेशक कक्ष की ओर दौड़ पड़ी भाग्य से वे वहां नहिं थे,मामला उपनिदेशक ने संभाला आनन फानन में एक जाँच कमिटी बना दी गयी महिलाओ के शोषण के मामलों को देखनेवाली समिति की अध्यक्ष को का म मिल गया मामला पेचीदा था

अफवाहों के आधार पर पता चला की संसथान के लव पॉइंट के पास सुनसान रहता है,इसी सुनसान इलाके में एक दलित मंद बुद्धि महिला जो संसथान में संविदा पर काम करती थी पर कुछ लड़कों की नज़र पड गयी,वो संभलती,समझती तब तक कुछ नए नए युवा बने छात्रों ने अपना का म पूरा कर दिया मामला पुलिस में न जाये इसकी व्यवस्था के लिए छात्रों का एक तबका पहले से ही तैनात था चूँकि मामला दलित महिला का था सो कर्म चारी यूनियन भी ज्यादा कुछ नहीं करना चाहती थी मगर दलित वर्ग ने झंडा उठा लिया और लगातार धरना,प्रदर्शन,शुरू कर दिया मंत्रालय को ज्ञापन दिए जाने लगे मंत्रालय से फोन आने लगे निदेशक हैरान परेशान हो गए छात्रों पर कार्यवाही करे तो जबर्दस्त खतरा, कर्मचारियों को तो बहला फुसलाया जा सकता है लेकिन छात्र शक्ति तो युवा शक्ति इ से काबू में करना मुश्किल

इस मुश्किल् माहोल को हल किया जाँच समिति की चेयर परसन ने पीडिता के बयानों व् अन्य श्रोतों से प्राप्त जानकारी के आधार पर मामला गेंग रेप का नहीं बन रहा था छात्रों का कहना था यह सब गलत आरोप है पूरा मामला सहमती से सहवास का था

फिर ये आरोप क्यों ?

इसके जवाब ने छात्रों का कहना था मामला भुगतान को लेकर था और एसा अक्सर होता रहता है

चेयर परसन सब समझ गई,उन्होंने बातचीत को इसी कोण से शुरू किया महिला के घर वाले व सम्बन्धित ठेकेदार को भी समझाया गया एक बड़ी नकद राशी मुआवजे के रूप में दी गयी महिला संतुष्ट हो कर का म छोड़ कर चली गयी आगे भी ऐसे वाकये न हो इसकी कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं की गयी हाँ बजट में मुआवजे का प्रावधान रखा गया ताकि इस प्रकार की घटनाऑ पर पर्दा डाला जा सके

लव पॉइंट और गर्ल्स हॉस्टल के बीच में एक बड़ी दीवार बनाने का भी प्रस्ताव आया,मगर छात्राओं के जबरदस्त विरोध के कारन एसा नहीं हो सका

कुछ बूढ़े प्रोफेसर स्त्री –पुरुष संबंधों की व्याख्या करने लग गए कक्षाओं में इस विषय पर प्रस्तुतियां दी जाने लगी एक कर्मचारी उवाच

यह सब तो वैदिक का ल से ही चल रहा है,पोरानिक साहित्य भरा पड़ा है द्वापर में भी था और अब तो कलयुग है जनाब ये सब ऐसे ही चलेगा संसथान से मुआवहर युग में निर्भया थी, है और रहेगी यहीं युग सत्य है फिर यह संसथान तो भारतीय विद्याओं को समर्पित हैं यहाँ तो वात्स्यायन को भी पढाया जाता हैंऔर कुट्टनीमतम भी ,भारतीय वैदिक साहित्य, उपनिषदों,पुराणों व् संस्कृत साहित्य में इस पाशविक प्रवृत्ति के हजारों उदाहरण है रामायण, महाभारत व् अन्य ग्रंथों में भी विशद विवेचना है इंद्र ने देव गुरु ब्रह स्पति की पत्नी के साथ छद्म से विहार किया, चंद्रमा ने ऋषि गोतमपत्नी अहल्या के साथ कुकर्मप्रसंग किया राम ने उसका उद्धार किया विदेशी साहित्य में भी इस प्रकार के विवरण थोक में है आखिर क्या कारण है की हर तरफ अनादी काल से यह सब चल रहा है ? कब रुकेगा ?

शायद ही कोई दिन गुजरता होगा जब अख़बार या मीडिया में ऐसे समाचर नहीं आते हो सत्ता और विपक्ष दोनों अपनी अपनी रोटियां सेकनें में लग जाते हैं आम आदमी ठगा सा रह जाता है पीडिता या उसका घर परिवार जिन्दगी भर यह बोझ उठाते रहते हैं बुजुर्ग प्रोफेसर अपनी भड़ास निका ल कर लघु शंका करने चले गए सो दूसरे दिन ही नमूदार हुए छात्र यदि प्रायोगीक कर लेते हैं तो आश्चर्य किस बात का

ये तो इन्नोसेंट क्राईम है इसे न तो छोड़ा जा सकता है और न ही मिटाया जा सकता है एक अन्य टीचर उवाच

विज्ञान के एक जवान अध्यापक ने बड़ी मार्के की बात कहीं –होमो सेपयिंस क्लास मेमेलिया में आता है और इस क्लास का केरेक्टर ही पोली गेमी है जो मानवीय समाज नहिं बद्ल सकता यह केरेक्टर ऐसे ही रहेगा ज्ञान –बाँटने का सिल सिला कई दिनों तक चलता रहा,छात्रों के मौज हो गयी

लेकिन वो संसथान ही क्या जो शांति से चलता रहे,कुछ न कुछ तो होना ही था और हुआ

छात्रों की सभा में इस बलात्कार या गेंग रेप की अच्छी तरह मलामत के बाद यह तय किया गया की लगातार पढाई से बोर हो गए हैं थीसिस के सिनोप्सिस बनाते करते भ्रमित हो गए हैं पी एचडी के छात्र भी कुछ दिनों के लिए अपनी बंधुआ मजदूरी से मौज शौक चाहते थे सो सर्व सम्मति से सांस्कृतिक पखवाड़े की योजना बनाई गयी जिसे लेकर निदेशक के पास हर वर्ग का एक प्रतिनिधि लेकर छात्र अध्यक्ष चले उनकी सज धज निराली थी अद्ध्यापकों का मौन समर्थन था देवताओं ने दुन्दुभी बजायी त्रि देवों ने पुष्प वर्षा की

इस आयोजन के लिए पुरे देश के कालेजों से प्रतियोगिता में भाग लेने वालों को बुलाया जाना था बजट बड़ी समस्या थी लेकिन युवा राजनीतिज्ञ जिन्हें निदेशक गुंडे कहते थे आश्वस्त थे,क्योकि वे खुद को भविष्य का कबिनेट मंत्री मानते थे वैसे भी इस संसथान के लगभग सभी पूर्व नेता विधान सभा या लोक सभा में थे कुछ तो वास्तव में मंत्री बन गए थे,अस्तु छात्रों ने एक लम्बी रूप रेखा प्रस्तुत की उद्घाटन के लिए वे बालीवूड के हीरो रणवीर सिंह व् दीपिका पादुकोण को बुलाना चाह्ते थे निदेशक इसे खतरे की घंटी मानते थे डीन अकादमिक ने अमिताभ का नाम सुझाया जिसे छात्र –नेता ने तुरंत रिजेक्ट कर दिया वे तो और भी आगे जाना चाहते थे माहोल ज्यादा गरम न हो इसलिए निदेशक ने डीन की अध्यक्षता में एक आयोजन समिति बना दी छात्र नेताओं ने निदेशक को छोड़ा और डीन को कस के पकड़ लिया,वे रोज़ डीन कक्ष में मीटिंग करने लगे डीन लम्बे मेडिकल अवकाश पर जाने की सोचने लगे मगर गए नहीं क्योकि एक बार ऐसा करने पर सेकंड मेडिकल बोर्ड बैठा दिया गया था और तत्कालीन डीन को काम पर लौट आना पड़ा था छात्रों ने एक लम्बा चोड़ा कार्यक्रम बनाया,

फ़ाइल पर डीन के हस्ताक्षर लेकर निदेशक के कक्ष का रुख किया पुरे देश की संस्थाओं को बुलाने का विचार तो अच्छा था मगर व्यवस्था का प्रश्न गंभीर था, छात्रों ने आर्थिक व्यवस्था हेतु मंत्रालय में स्वयं सम्पर्क करने की सूचना दी साथ ही यह भी कह दिया की हम अपनी व्यवस्था कर लेंगे इधर लेखा शाखा के किसी कर्मचारी ने छात्रों को फूंक मार दी की कई वर्षों से छात्रसंघ का बजट ऐसे ही पड़ा था बस छात्रों को और क्या चाहिए था

एक भावी कवि जो स्वयं को बहुत आला दर्जे दार्शनिक समझता था ने घोषणा करदी की इस आयोजन में एक कवि सम्मेलन –कम –मुशायरा भी रखा जायगा मगर छात्र संघ अध्यक्ष को मनाने के लिए भावी कवि को पसिने आगये अंत में बात इस पर सुलझी की कवयित्रियों व् शायराओं को ही बुलाया जायगा संसथान के कवि भी का व कांव कर लेंगे सांस्कृतिक दिन धीरे धीरे नजदीक आ रहे थे क्लासेस बंद थी शोध कार्य ठप थे सभी व्यस्त थे कुछ प्रक्टिस कर रहे थे कुछ ने क्रीकेट का बल्ला था म लिया था कुछ क्रिकेट कमेंट्री कर जसदेवसिंह बन्ने की फ़िराक में थे सर्वत्र उत्सव का वातावरण बन गया था पुरे देश से टीमों की आने सम्भावना बन गयी थी होस्टलों को तेयार कर लिया गया था खाने पिने के ठेके दे दिए गए थे,सारा पैसा छात्र कोष से जा रहा था सो ज्यादा चिंता की बात नहीं थी कुछ बुद्धिजीवी छात्रों ने चुपचाप एक स्मारिका छाप कर बाज़ार से विज्ञापन ले लिए प्रशाशन कुछ न कर सका,कुछ ज्यादा समझदार छात्रों ने आसपास की दुकानों,छोटी फेक्टरियों से चंदा कर लिया था,वे इस यज्ञ में माँल कमा बैठे ऐसा मज़ा,एसा आनन्द क्या कहने

सांस्कृतिक सचिव अपना राग अलग बजा रहा था,उसने कार्यक्रम के कार्ड छापने में कौशल दिखाया,एक सूट सिल्वा लिया कवियों व् शायराओं के रेट्स सुनकर इस प्रोग्राम को मुल्तवी कर दिया गया,एक स्थानीय कवि ने बताया की इस पैसे में तो एक आईटम सोंग कराया जाना अच्छा विकल्प होगा,एक स्थानीय राखी सावंत यह काम निशुल्क करने को तैयार थी केवल ड्रेस का खर्चा मांग रहीं थी वैसे लोकल काव्य पाठ तो रोज़ ही होता है,सो यहीं फाइनल रहा सब तरफ अपनी अपनी ढपली अपना अपन राग का अल्गोंजा बज रहा था आज़ादी अराजकता में बदल रहीं थी

अध्यापक कक्षाओं की चिंता से मुक्त होकर अपने अन्य धंधों में व्यस्त हो गए थे जो किताबे लिख रहे थे वे कुंजियों में रम गए,जिनके पत्नियों ,प्रेमिकाओं,सालियों,आदि के नाम से धंधे चल रहे थे वे उसमे व्यस्त हो गए निदेशक की आवाज़ पड़ने पर दूसरे या तीसरे दिन नमूदार होते सांस्कृतिक सप्ताह के दिन आ पहुचें चरों तरफ शहनाई की आवाजे आने लगी छात्रों ने अपने अपने होस्टलों में बाहर से आने वाले प्रतिनिधियों को ठहरा दिया भोजन की व्यवस्था उत्तम थी किट व् कार्यक्रम के फोल्डर,पोस्टर बांटे गए शानदार उदघाट्न हुआ अतिथि,मुख्य अतिथि,अध्यक्ष,आदि के भाषण हुये जो नयी पीढ़ी के अलावा सबने गंभीरता से सुने मीडिया में शानदार जानदार धारदार कवरेज करवाया गया प्रतियोगितायें शुरू हुईं,छोटे मोटे झगड़े हुए मगर कोई बड़ी बात नहीं हुईं निर्णायकों ने पक्षपात किये लेकिन शांति व् सौहार्द के साथ मामले निपटते चले गए महिला टीमों को कुछ ज्यादा मिला,मगर किसी ने शिकायत नहीं की

सब कुछ ठीक ठाक था मगर जिन स्थानों पर महिला टीमों को ठहराया गया था वहां पर छात्र व् बाहर के युवा मधुमखियों की तरह भिन भिनाते थे इस खतरे की घंटी को सब समझ रहे थे,मगर कुछ कर पाने में असमर्थ थे इसी दौरान फिर अघट घटा

सोशल मीडिया पर एक फोटो वायरल हुआ,जिसमे एक महिला खिलाड़ी एक लड़के के साथ आपतिजनक स्थिति में थी,वैसे यह सब युवा समारोहों में चलता रहता है,मगर सोशल मीडिया से मामला प्रिंट व् ऑडियो मीडिया तक चला गया कार्यक्रम को बदनामी से बचचाने केलिए तुरत फुरत एक कमिटी बनाई गयी जाँच हुयी जाँच का निष्कर्ष क्या था इसकी जरूरत ही नहीं पड़ी क्योकि दोनों लोगों ने शादी करली और विवाह का पंजीकरण करा लिया वे पढाई लिखाई छोड़ कर हनीमून पर चले गए बाकि के लोग जीत हार का हिसाब लगाकर ट्रोफ़ियां ले कर अपने अपने कालेज चले गए

यह तो बहुत बाद में पता चला की लड़के ने लड़की पटाने के लिए फोटो शॉप की मदद से लड़की के अश्लील फ़ोटो बनाकर किला जीत लिया था याने बिल्ली मार दी थी एक गुनाह तो भगवान भी माफ़ करता है जिस कपल ने शादी कि थी उस कपल के कुछ दिनों के बाद ही ट्रोफी हुयीं और दोनों को एक संविदा नौकरी का बोनस दिया गया,उनकी मेहनत का कुछ तो फल मिलना ही था बेरोज़गारी से बेगार भली, ऐसा सयानों ने कहा है जैसे उनके दिन फिरे सबके फिरे।