Karm path par - 26 in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | कर्म पथ पर - 26

Featured Books
Categories
Share

कर्म पथ पर - 26



कर्म पथ पर
Chapter 26


शिव प्रसाद जय और रंजन के साथ बैठे थे। सभी खामोश थे। शिव प्रसाद समझ नहीं पा रहे थे कि आगे की कहानी कैसे बनाएं। रंजन ने बात बढ़ाते हुए कहा,
"आपकी बेटी के साथ बहुत बुरा हुआ। उस हैमिल्टन ने एक प्रतिभाशाली लड़की का जीवन बर्बाद कर दिया।"
शिव प्रसाद ने कहा,
"जब भी उस हैमिल्टन के बारे में सोंचता हूँ तो गुस्से से जल उठता हूँ। पर अब मैं भी लगभग हार मान चुका हूँ। समाज का जो रूप देखा उसने तोड़ दिया। कोई मदद नहीं करता है। उल्टा ऐसे में आपको अपमानित करने का एक भी मौका नहीं छोड़ते हैं लोग।"
जय ने उन्हें तसल्ली देते हुए कहा,
"सिंह साहब मैं आपका दर्द समझ रहा हूँ। लेकिन जीतने के लिए आवश्यक है कि हम हिम्मत ना हारें। आप हमें पूरी बात बताएं। हम आपकी लड़ाई में आपके साथ हैं।"
"आप लोगों से कुछ उम्मीद लगी है तभी तो आपको अपने घर लेकर आया था। पता नहीं मेरी बेटी किस हाल में है ?"
"क्यों ? विवाह के बाद आप लोग माधुरी से नहीं मिले ?"
"हमें उसके बारे में कुछ भी नहीं मालूम है।"
"सिंह साहब माधुरी का विवाह उस ऐंग्लो इंडियन से कैसे हो गया ?"
शिव प्रसाद ने एक आह भरी और आगे की कहानी सुनाना शुरू किया।

थानेदार बृजलाल ने कोई सहायता करने की जगह उन्हें ही जो घटा उसका दोषी ठहरा दिया। लेकिन शिव प्रसाद ने अभी हिम्मत नहीं हारी थी। वह इस मामले को लेकर पुलिस के आला अधिकारियों से मिले। किंतु नतीजा कुछ नहीं निकला। उन्हें न्याय मिलने की जगह सज़ा भुगतनी पड़ी।
शिव प्रसाद की कोशिशों से चिढ़ कर हैमिल्टन ने उन पर हिसाब में हेराफेरी करने का इल्ज़ाम लगा कर नौकरी से निकलवा दिया। शिव प्रसाद पहले ही बेटी के साथ हुए अन्याय से दुखी थे। स्वयं को बेईमान ठहराए जाने से और अधिक दुखी हो गए।
भले ही आसपास के लोग बेटियों को पढ़ाने के लिए उन्हें ताने देते रहे हों। पर शिव प्रसाद और संतोषी सदा ही पड़ोसियों और रिश्तेदारों के दुख में शामिल होते थे। अतः इस उम्मीद से कि जब उन पर दुख पड़ा है तो वो लोग भी उनका साथ देंगे, उन्होंने अपने पड़ोसियों और रिश्तेदारों से कहा कि वह हैमिल्टन के खिलाफ आवाज़ उठाने में उनका साथ दें।
किसी का उनके साथ आना तो दूर की बात थी उल्टा लोगों ने उनसे सारे रिश्ते तोड़ लिए। शिव प्रसाद अपने परिवार के साथ अकेले पड़ गए। इन सबने उन्हें तोड़ दिया था।
जो हो रहा था उसका असर माधुरी पर भी पड़ा था। पहले ही अपने ऊपर हुए जुल्म के घाव उसके मन में ताज़ा थे। अब अपने पिता को इस तरह टूटा हुआ देखकर उसे अपराधबोध होता था। उसे लगता था कि अपने परिवार पर आई विपत्तियों का कारण वही है। वह भीतर ही भीतर घुलती जा रही थी।
संतोषी के बड़े भाई रमनलाल अपनी बहन के परिवार पर आई विपदा के बारे में सुनकर उससे मिलने आए। उन्होंने शिव प्रसाद को समझाया कि जो हुआ उसे भूल कर आगे बढ़ना ही ठीक है। अतः वह परिवार सहित उनके साथ मेरठ चले जाएं।
"देखो शिव अब परिस्थिति से निपटने का एक ही उपाय है। जो हुआ उसे बदल नहीं सकते हैं। पर आगे बढ़ सकते हैं। वहाँ मेरे पहचान के एक आढ़तिया मेवाराम हैं। हमने उनसे बात की थी। भले आदमी हैं। हमारी ज़िम्मेदारी पर तुम्हें काम पर रखने को तैयार हैं। किराए के मकान की भी व्यवस्था हो जाएगी। इसलिए अब सब छोड़ कर यहाँ से चलो।"
शिव प्रसाद ने अपने साले रमनलाल की बात पर विचार किया। उनका मन भी खिन्न हो चुका था। अतः उन्होंने रमनलाल से कहा कि वह जाकर सब व्यवस्था कर सूचना भेजें। वह परिवार को लेकर आ जाएंगे।
रमनलाल सारी व्यवस्था करने के लिए मेरठ लौट गए। शिव प्रसाद और संतोषी लखनऊ छोड़ने की तैयारी करने लगे।
इसी बीच एक घटना घटी।
रमनलाल ने सूचना भेज दी थी कि सारी व्यवस्था हो गई है। अगले महीने तक वो लोग आ जाएं। शिव प्रसाद अपनी तैयारियों को अंतिम रूप दे रहे थे। कुछ ऐसा सामान था जो ले जाना संभव नहीं था। अतः उन्होंने उसे यहीं किसी ज़रूरतमंद को दे जाने की बात पर विचार किया था। उनके एक आर्य समाजी दोस्त रमेशचंद्र थे। सारे मामले में वही एक थे जिन्होंने शिव प्रसाद की थोड़ी बहुत मदद की थी। शिव प्रसाद ने उनसे कहा कि वह सामान अपने घर रखवा लें। यदि उनके काम का ना हो तो जिसे ज़रूरत हो उसे दे दें। रमेशचंद्र वही सामान लेने आने वाले थे।
दरवाज़े पर दस्तक हुई तो उन्होंने मालती से कहा कि मेहमान को बैठक में बिठाए वो आ रहे हैं। जब कुछ पलों के बाद वह बैठक में पहुँचे तो आगंतुक को देख कर क्रोधित हो उठे।
आगंतुक महेंद्र कुमार हैमिल्टन का चमचा था। शिव प्रसाद ने गुस्से से कहा,
"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहाँ आने की। मुझे बेईमान साबित करने के लिए तुमने झूठी गवाही दी थी। जबकी सब जानते हैं कि बेईमान कौन है।"
महेंद्र ने दांत निपोरते हुए कहा,
"काहे इतना गुस्सा हो रहे हो। हम भी अपनी मर्जी से थोड़ी ना आए हैं। वो तो हैमिल्टन साहिब का एक पैगाम था। वो ही देने आए हैं।"
"उस दुष्ट का कोई पैगाम नहीं सुनना है मुझे। शराफत से निकल जाओ। नहीं तो धक्के मारकर निकाल दूँगा।"
महेंद्र उसी तरह दांत निपोरते हुए बोला,
"बात तो तुम्हारे भले की है। पर तुम्हें समझ नहीं आएगी। इसलिए हैमिल्टन साहिब ने कहा था कि तुम्हारी पत्नी को ही बताऊँ। भाभी जी को बुलाओ।"
"लगता है धक्के मारकर ही निकालना पड़ेगा।"
कह कर शिव प्रसाद उसकी तरफ लपके। तभी भीतर से संतोषी बैठक में आ गई। झगड़े की आवाजें सुनकर वह आई थी। उसने सुना कि आने वाला किसी पैगाम की बात कर रहा है जो उनके फायदे में है। उसे लगा कि एक बार सुन लेना चाहिए।
"ठहरिए....एक बार सुन तो लीजिए क्या बात है ?"
शिव प्रसाद संतोषी पर चिल्लाए,
"तुम भीतर जाओ। सुनकर क्या होगा। वो हमारा क्या भला करेगा।"
इतने समय में महेंद्र संभल गया था। उसने मौका देख कर कहा,
"बिल्कुल आपके ही फायदे की बात है। माधुरी बिटिया की भलाई के लिए साहिब ने एक बड़ा अच्छा रिश्ता सुझाया है।"
माधुरी के लिए रिश्ते की बात सुनकर शिव प्रसाद और भी भड़क गए। वह महेंद्र को मारने के लिए बढ़े। पर संतोषी ने रोक लिया। महेंद्र बोला,
"भाभी जी ये अपने गुस्से में अपना ही नुकसान कर रहे हैं। पर आप शांती से पूरी बात सुन लीजिए। आपके हित में है।"
शिव प्रसाद बहुत गुस्से में थे। वो कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे। पर संतोषी जानना चाहती थी कि माधुरी के लिए किस तरह का रिश्ता आया है। वह कुछ देर के लिए उन्हें अंदर ले गई। उन्हें समझाया कि पूरी बात सुन लें। उसके बाद अगर सही ना लगे तो जो मन में आए करें।
शिव प्रसाद को शांत कर वह उन्हें लेकर बैठक में आ गई। उसने महेंद्र से पूरी बात बताने को कहा।
महेंद्र ने समझाते हुए कहा,
"भाभी जी अब ये तो आप जानती ही हैं कि समाज में कोई बिटिया का हाथ थामने नहीं आएगा। ऐसे में क्या सारा जीवन वह अपने में घुलती रहेगी। भगवान ना करे कल को इस सबसे घबरा कर अपनी जान दे दे।"
महेंद्र के द्वारा बताई गई इस संभावित परिस्थिति के बारे में सुनकर संतोषी कांप गई। उसकी मनोदशा भांप कर महेंद्र ने बड़ी चालाकी से अपनी बात आगे बढ़ाई।
"ऐसा होने से तो अच्छा है कि भले ही विधर्मी से ही शादी हो पर हो जाए।"
शिव प्रसाद ने कहा,
"विधर्मी से क्यों ?"
"भइया हमारे समाज को तो तुम जानते हो। फिर बात अगर दबी ढकी रहती तो भी ठीक था। पर तुमने तो सबमें फैला दी है।"
शिव प्रसाद चुप हो गए। विधर्मी की बात सुनकर संतोषी को भी संकोच हुआ था। पर वह पूरी बात जानना चाहती थी। महेंद्र आगे बोला,
"भाभी जी हम समझ रहे हैं कि आप दूसरे धर्म की बात सुनकर थोड़ी चिंतित हो गई हैं। पर लड़की अपनी जान दे दे उससे तो अच्छा है। वैसे भी समाज तो पहले ही आप लोगों के खिलाफ है। अब उसका क्या डर।"
संतोषी बात पर विचार करने लगी। महेंद्र ने बात आगे बढ़ाई।
"स्टीफन क्लार्क नाम है। डॉक्टर है। बाप अंग्रेज़ था। माँ हिंदुस्तानी थी। पहाड़ों की रहने वाली। लड़की की ज़िंदगी सुधर जाएगी।"
शिव प्रसाद फिर उत्तेजित होकर बोले,
"जिसने मेरी बेटी के जीवन में आग लगाई है वो मेरी बेटी का जीवन सुधारेगा। उससे जाकर कह दो कि मेरी बेटी के साथ चाहे कुछ भी हो। हम उसका रिश्ता स्वीकार नहीं करेंगे।"
महेंद्र उठ कर खड़ा हो गया। जाने से पहले बोला,
"भाभी जी हैमिल्टन साहिब को और नाराज कर अपनी कठिनाई ना बढ़ाएं। उनकी बात नहीं मानेंगे तो और भी बुरा होगा। उन्हें नाराज़ कर आप लोग लखनऊ छोड़ कर नहीं जा पाएंगे। आपकी और दो बेटियां भी हैं।"
महेंद्र चला गया। संतोषी डर गई। हैमिल्टन उन लोगों पर नज़र रखे था। उसने ईश्वर से सही राह दिखाने की प्रार्थना की।