खोह
वह राजधानी का सबसे अधिक जनसंख्या वाला जनसंख्या केघनत्व वाला इलाका होगा । बहुत छोटे से क्षेत्रफल का किफायती इस्तेमाल ऊंचाईमें कर तमाम बहुमंजिला इमारतें बना दी गई थीं। उन बहुमंजिला इमारतों मेंबहुत छोटे छोटे बत्तीस बत्तीस मकान थे उनमें रहते थे बत्तीस भरे पूरेपरिवार एक कस्बे की बराबरी की आबादी के इस मोहल्ले में। अधिकतर लोग सरकारीनौकरियों में हैं बाबू या चपरासी। कुछ लोग पास ही नए बाजार की दुकानों मेंकाम करते हैं। बढ़ते हुए आर्थिक दबाव और प्रगति की होड़ के चलते घर कीदोनों इकाई पैसे के लिए काम कर रही थी। नतीजतन इस घनी बस्ती के लोग छुट्टीवाले दिनों में ही अपने घर की सफाई करते हैं अगले हफ्ते के लिए कपड़े धोकरप्रेस कर या करवाकर तैयार रखते हैं । यही वजह है की पड़ोस में रहने वालेसज्जन से मुलाकात उस तिराहे पर होती है। जो इस बस्ती के इन सारे लोगों कोजोड़ता है। जिसके एक और पानी की टंकी है । जो दिखने में बहुत बड़ी है परबस्ती की जनसंख्या के मुकाबले बहुत छोटी । तिराहे के दूसरी ओर टंकी के सामनेएक टपरेनुमा मकान है। जिसके दो हिस्सों में से एक में धोबी धोबन अपने तीनबच्चों समेत रहते हैं और पूरे मोहल्ले के कपड़ों को चमक प्रदान करते हैं। दूसरे हिस्से में हैं शामलाल की गुमटी। गुमटी के पीछे वह भी परिवार समेतरहता है। शामलाल की तरह उसकी वह गुमटी भी मल्टीपरपज है। वहां पर उनका सामानचाय , नाश्ता, पान, तंबाकू , बीड़ी , सिगरेट सभी कुछ हर समय उपलब्ध रहताहै । वह गुमटी इस बस्ती का दिल है जो हर वक्त धड़कता रहता है। जनसंपर्क काकेंद्र है यह गुमटी।
इस बस्ती के लोग रात में अपने घर को गुमटी तक तान देते हैं और सोने सेपहले घरेलू वेशभूषा में दांत खोदते पान बीड़ी सिगरेट तंबाकू के लिए आते हैं। यही आपस में मिलते जुलते हैं। शाममलाल सबको अदब से नमस्ते करता है मीठाबोलता है। बस्ती के लोगों के बीच संपर्क सूत्र का भी काम करता है वह ।
मोहल्ले के उभरते हुए नेता लौंडे लपाड़ी गुमटी के स्थाई फीचर है। दाढ़ीवाले कविराज भी इस गुमटी के स्थाई सदस्य हैं । मोहल्ले के लौंडे लपाड़ी देररात तक मोहल्ले से शहर तक शहर से देश तक देश से दुनिया तक की राजनीति तयकरते हैं। बड़े से बड़े तुर्रम खान को अपने घंटे पर वे यहीं इसी गुमटी परमारते हैं। दुर्गोत्सव हो या गणेशोत्सव या कोई भी रैली हो सारी योजनाएं इसीगुमटी पर बनती हैं । बातें किसी के भी बीच में चल रही हो, शामलाल हरवार्तालाप में मौजूद रहता है। बाबुओं के ऑफिस का मसला हो कि पड़ोस वाले कीकोई परेशानी हो कि सामने खिड़की वाली लौंडिया से नैन मटक्का हो शामलाल हरजगह उपस्थित रहता है। मोहल्ले , शहर, देश, दुनिया के माहौल को पकड़ती वह गुमटी जीवंत रहती । खाड़ी युद्ध में तेल संकट से चिंतित थी वह गुमटी। लड़के सद्दाम के साथ थे शामलाल ने एक फोटो लगा लिया था उसका।
" आखिर इतरे सारे लोगों के खिलाफ अकेला लड़ रिया है "
मुंहमें तमाखू दबाकर शामलाल बोलता तो सब लोग बुश हो गालियां बकते । शामलाल कोदुनिया जहान में क्या चल रहा है और क्या होने वाला है की खबर रहती । गलीमोहल्ले में क्या खुराफात चलने वाली है यह सब उसे अंदाज रहता। मोहल्ले कीकिस लड़की ने आज किस रंग के कपड़े से लेकर फलां बाबू ने आज अपनी बीवी कोमारा या वर्मा जी को उनकी बीवी ने मारा तक की खबर उसे रहती। शामलाल कीदुकान पर बहुत सुबह से चहल-पहल शुरू हो जाती कुछ लोग जनेऊ चढ़ाकर प्रेशरबनाने के लिए तमाकू दबाने आते हैं । बहुत सारे लोगों की दिन की पहली चायउसकी गुमटी पर ही होती है । सबसे पहले आने वालों में नल खोलने वालामूसाखान और जनेऊ चढ़ाएं पांडे जी हैं। पांडे जी मूसा को हिकारत की नजर सेदेखते हैं पर क्या करें उसी के हाथ की चकरी से खुलकर ही पानी उनके यहांपहुंचता है । पांडे जी सरकारी दफ्तर में बाबू हैं, गुमटी के सामने टंकी केपीछे वाले ब्लॉक में रहते हैं । मोहल्ले और देश के माहौल को पकड़ती याघूमती एक समय राम मय थी । धर्म में रंगी थी। लौंडे लपाड़ी गले में भगवागुलूबंद लपेटे राम के उद्धार की तैयारी में थे। उन दिनों भगवान के नाम हवामें थे। हर जगह भगवान थे । लोग गालियों तक में उनका इस्तेमाल कर लोकपरलोक सुधार रहे थे । ईश्वर पर आस्था रखने वालों के लिए यह खबर हो सकती है ।
"अरे गुरु वह बहुत फिर फिर कर रहा था तो मैंने उसकी जै शिव कर दी। "
लोगों की कल्पना शक्ति का कोई जवाब नहीं था । उस सर्वव्यापी को हर जगह देख रहे थे ।
रम में राम
जिन में जानकी
ब्रह्मा बसे ब्रांडी में
ठर्रे में हनुमान
जय बोलो श्री राम ।
माहौलपूरी तरह राममय था । नाले से नदी तक, सूअर से आदमी तक सब राममय था। शामलाल की गुमटी पर भगवा झंडा था। उसका अभिवादन जय जय श्रीराम था। उसनेअगरबत्ती के पूड़े को फाड़कर राम मंदिर को अपनी दुकान के माथे पर लगा दियाऔर उस पर रोज अगरबत्ती लगाता । पांडे जी का जनेऊ भी सक्रिय था उन दिनों। वे सब के कहे मुताबिक अपने पर गर्व करते थे । जबकि गर्व करने जैसा उनकेपास कुछ भी नहीं था। बार-बार जनेऊ पर हाथ जाता। माथे पर तिलक गले मेंमाला। होठों पर बात बात में हरि ओम और जय श्री राम की बुदबुदाहट होती थी । वे गर्व से गमगमा रहे थे । जैसे मंदिर बनते ही उनकी मुश्किलें आसान होजाएंगी। जैसे लोग उन्हें उनकी पंडिताई को पूजने लगेंगे । खुश हो लेते परएक ही माहौल कब तक चलता। फिर चुनाव हो चुके थे । राम भुनाए जा चुके थे । अब राम से नहीं राम वालों को दाम से मतलब था सो उन्होंने एक नया तूफानचलाया उसमें मोहल्ले , कस्बे , शहर , पूरा राज्य उड़ने लगा । अब माहौलबिल्कुल भिन्न था। हालांकि समानता यह थी कि दोनों ही माहौल में आदमी कोअपने वास्तविक दुख तकलीफ को को भुलाने के लिए था ।
परयह तूफान कुछ ज्यादा ही तेज था। वार त्यौहार जलसे सब फीके थे। दुख सुखभूल गए थे, लोग अपनी तकलीफें भूलकर चकरियों से उठते तूफान की चपेट में थे । किसकी यह जानने की फुर्सत किसे थी। यह स्वर्णकाल था। यह लॉटरीयुग के रूपमें इतिहास में दर्ज होगा । लोग दारु नहीं पी रहे थे । पान सिगरेट का सेवनकम था
बाजार में खरीद कम हो गईथी। बाजार की कई भव्य दुकानें लॉटरी बाजार में बदल गई थीं। पान की गुमटीफुटकर सामानों के ठेले सब लॉटरी की दुकान में बदल गए थे। सब लॉटरी खरीदरहे थे। यह कलयुग में अवतार था, जिसने सबके दुख सुख हर लिए थे। सरकार नेलॉटरी और सट्टे की जो कॉकटेल तैयार की थी डेली लाटरी के रूप में लोगों कोचढ़ गई थी । हर गली कूचा, मोहल्ला, गांव कस्बा ,नगर, महानगर कुछ अंकों मेंसिमट गया था।
मिंडी से लेकर नौ तकअंक किस दिन आ सकते हैं इस जुगाड़ में सब लोग लग गए थे । यह समझने के लिएलोग गणितज्ञ, गणितज्ञों से ज्यादा बाबाओं की सेवा में लगे थे। गणक यानि केलकुलेटर संगणक यानी कंप्यूटर का उपयोग पढ़े लिखे लोग अंक निकालने में कररहे थे। धरती से आकाश तक लॉटरी ही लाटरी थी। रोज खुलने वाली लाटरियों कीसंख्या साठ तक पहुंच चुकी थी। जो ₹2 से लेकर ₹200 तक की। आखरी अंक पर आठगुना प्राप्ति थी। ठीक सट्टे की तरह लोग इसी में लगे थे। यह वह सट्टा थाजिसे वैधता प्राप्त थी । जिसे लोग छुप कर परचियों में अंधेरे में नहीं, बल्कि खुलेआम बीच चौराहे पर दिन के भव्य उजाले में लगा रहे थे । अखबार किसीभी स्तर के हों वे सब तड़कीले भड़कीले विज्ञापन लॉटरी के छाप रहे थे।
संपादकीयऔर छोटी मोटी टिप्पणियों में अखबार विरोध प्रदर्शन कर उससे बड़े अक्षरोंमें लुभावने विज्ञापन छाप रहे थे । जैसा कि सिगरेट के पैकेट पर बहुत छोटेसे अक्षरों में वैधानिक चेतावनी लिखवा कर कर्तव्य की इतिश्री हो जाती है। कुछ अखबार सिर्फ लॉटरी के ही थे। हर कोई हर जगह अंकों में बात कर रहा थाअंको की बात कर रहा था।
जब यह काल शैशवास्था में था, लोग सुरूर में थे, तब पांडे जी ने शामलालसे एक नंबर सुना जनेऊ चढ़ाकर घर जाकर सोचा, और फिर 12:00 बजे दोपहर कोचौराहे से एक टिकट ₹10 का खरीदा आखरी नंबर था मिंडी । यह शब्द सट्टा बाजारसे आया था जिसका मतलब है 0 । उस दिन मिंडी पर रुक गई यानी आखरी चकरी शून्यपर रुक गई। हवा में ऑक्सीजन से ज्यादा मिंडी घुल गई। सब तरफ आवाज थीमिंडी मिंडी मिंडी । पांडे जी के हाथ में 3:10 पर ₹80 थे 10 की जगह। वेअपनी पूंजी को 8 गुना देख रहे थे, उनके कपड़े 8 गुना , उनके रुपए आठ गुना, उनकी बीवी की साड़ी जेवर 8 गुना, उनकी दोनों लड़कियों के पास 8 गुनाकपड़े, उनकी लड़कियां 8 गुना फीस वाले स्कूल में ,वे लोग 8 गुना बड़े मकानमें थे, अब हर जगह 8 गुना देख रहे थे । जमीन से 8 गुना ऊपर थे हवा मेंवहीं कहीं उन्होंने हर रोज टिकट खरीदने की ठानी । नंबर सुनेंगे शामलाल सेजनेऊ चढ़ाकर टिकट खरीदेंगे 12:00 और 3:10 पर लेंगे 8 गुना । वैसा ही कियाउन्होंने नियमित जनेऊ चढ़ा कर नंबर सुना शामलाल से टिकट भी लिया 12:00 बजे। पर उस दिन के बाद शामलाल के बताए नंबर पर आखिरी चकरी नहीं रुकी । उनके 8 गुने का गणित गड़बड़ा गया वे अब जमीन पर थी वे शून्य की ओर बढ़ रहे थे । और शायद वेल लाटरी की दुनिया से कूच कर ही गए होते तभी अखबारों में एकसंदेश जगमगाया कि जैसे आकाशवाणी । देवता बोले हों जैसे। यह विज्ञापन हरअखबार में था। इसमें लोगों को लुभावने तरीके से टिकट खरीदने का तरीकासमझाया गया । बाकायदा लाभ की तालिका बनाकर। सीधा-सादा नफे का गणित था वहउस विज्ञापन के मुताबिक। उसका लब्बे लुआब यह था कि कोई एक नंबर पकड़िए औरउसे रिपीट कीजिए । जैसे आप ने पकड़ा नंबर 3 पहले दिन एक तिक्का दूसरे दिनदूसरा दो तिक्के, तीसरे दिन 4, और चौथे दिन 8 तिक्के। इस प्रक्रिया मेंबढ़ाते जाएं। जिस दिन आपका नंबर खुलेगा उस दिन आपका नफा पिछले सब नुकसानहटाकर कई गुना होगा। कितना गुना होगा यही विज्ञापन का सबसे लुभावना इसकालोग सीधा थे लोग फिदा थे अपने को खुलेआम लूटने वाले पर । उन दिनों सारा शहरसूर्य से नहीं उस विज्ञापन से आलोकित था। जगमग जगमग।
जिनदिनों पांडे जी हताशा में थे उन्होंने देखी वह जगमग जगमग और उछल पड़े । उन्होंने पकड़ा 7 नंबर यानि सत्ता । उनका लकी नंबर ऐसा ऑफिस में कभी किसीने बताया था उन्हें। बस वे नये उत्साह से प्रारंभ हो गए । पहले दिन दोसत्ते दूसरे दिन चार सत्ते तीसरे दिन आठ सत्ते। पांडे जी योग साधना की कीतरह चक्र दर चक्र उठ रहे थे। 1 दिन में एक चक्र 2 दिन में दूसरा चक्र 3 दिन में तीसरा चक्र 4 दिन में चौथा चक्र।
गजब हो गया । आखरी चकरी सत्ते पर नहीं रुक रही थी पांचवें दिन रुकी अट्ठेपर छठे दिन रुकी छक्के पर अब तो सत्ता होगा । पर नहीं वह सातवें दिन रुकीमिंडी पर । पांडे जी उठ रहे थे। निस्वार्थ भाव से फल की चिंता किए बिनासत्तों को रोज दुगना कर रहे थे । उनकी जमा पूंजी निकल गई थी । निर्लिप्तभाव से बीवी बच्चों, पास पड़ोस यहां तक कि शामलाल को भी तुच्छ समझते हुएघर की सारी किचकिच परे घर का सारा कीमती सामान बेच रहे थे । उनकीकुंडलिनी जागृत होने को थी । 8 दिन 9 दिन 10 दिन सत्ता नहीं आ रहा था। उनका उधार बढ़ना शुरू हो गया । पर वे सब से ऊपर उठकर सिर्फ सत्ते पर नजरटिकाए थे।
रोज 12:00 बजे सत्तों की गड्डी लहराती उनके हाथों में । 3:00 बजे चौक परभागते लगभग बदहवासी में। अपने आप से बात करते हुए। घर पर सत्तों की गड्डीजमा देते।
वेउठ रहे थे । जूते चप्पल छूट गए थे। कपड़ों का होश नहीं, खाने-पीने काठिकाना नहीं सत्ता आएगा की साधना ने उन्हें दीन दुनिया से परे कर दिया था।
पूरे बीस दिन सत्ता गायब था । पांडे जी की जमा पूंजी , पांडे जी के घर कासामान ,पांडे जी का उधार सब निकल चुका था। उठते उठते पांडे जी चरम अवस्थाको प्राप्त हो चुके थे। आज इक्कीसवें दिन जब उनके सारे स्रोत खत्म हो चुकेथे। एक सत्ता खरीदने की स्थिति में नहीं थे। तब रुकी चकरी आखिरी सत्ते पर । हवा में सत्ता था। आसमान पर लिखा था सत्ता नंबर 7 । पांडे जी ने पढ़ी वहइबारत। उछल पड़े थे। चीखते हुए घर की ओर दौड़े।
आ गया रे सत्ता
मेरा सत्ता आ गया
सत्ता आ गया रे ओ शामलाल
उन्होंने अपने घर से सत्तों की गड्डी उठाई । हाथ में नहीं आ रही जैसे तैसेबड़े-बड़े झोलों में ठूंसी गड्डियां। दौड़ पड़े चौक की सबसे बड़ी दुकानपर ।
"अरे ओ सेठ ओ लाला ले गिन ले सत्ते और दे 8 गुना "
दुकानदार हैरान था । इतने सत्ते इस पागल के पास । आज के सारे मार्केट के सत्ते इसने खरीद लिए क्या।
कहा उसने "दिखाओ"
वे सत्ते थे असली सत्ते खालिस सत्ते दुकानदार हड़बड़ा रहा था। होश खोने ही वाला था कि उसकी नजर तारीखों पर पड़ी।
"अरे ये तो बासी है" उसने पलटना शुरू किया । उसके होशो हवास वापस आए । जान में जान आई। वह खुश था । एक भी टिकट आज का नहीं था।
" अबे चलता फिरता नजर आ। धंधे का टैम है । आज का एक भी सत्ता नहीं है । सब बासा है सड़ैला"
"सत्ता खुला है यह सत्ता है देख"
सेठ ताड़ गया सिद्ध हो चुका है यह पुरुष । उसने मन ही मन प्रणाम कियाउन्हें और नौकर से बाहर फिंकवा दिया मय सारे सत्तों के । पांडे जी गालियांबक रहे थे दोनों हाथों से सत्ते उड़ा रहे थे।
वे उड़ा रहे थे दोनों हाथों से अपनी जमा पूंजी को वह उनकी लड़कियों कीशादी का सामान था उनकी बीवी का जेवर था, उनके घर का जरूरी सामान था जो आजसत्तों की शक्ल में वे उड़ा रहे थे। आसमान उस दिन सत्तों से ढंक गया था। लोगों को लग रहा था कि मानसून आ गया अभी से।
पांडे जी के दिमाग की चकरी में सत्ता अटक गया था । वे अब सिर्फ सत्ता आएगासत्ता आएगा चिल्लाते हैं । लॉटरी की साधना ने उनकी कुंडलिनी जागृत कर दीहै। अखबारों की वे छोटी सी ध पढ़ी जाने वाली खबर थे। जिन अखबारों नेउन्हें लाटरी की दुनिया में खींचा था वे विज्ञापन आज भी उसी तरह जगमगा रहे हैं और और पांडे जी को तलाशते।
शहर की हर सड़क हर गली कूचे पर पांडे जी दौड़ रहे हैं चिल्लाते हुए सत्ता सत्ता गया रे शामलाल सत्ता आ गया रे।
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