Pragalbha in Hindi Moral Stories by Dr Lakshmi Sharma books and stories PDF | प्रगल्भा

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प्रगल्भा

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“मेम, हमें नाम लिखवाना है.” घनानन्द की आंसुओं में डूबी कविताओं वाली क्लास अभी-अभी खत्म हुई ही है. मैंने स्टाफ रूम में आ कर अभी राहत की साँस भी नहीं ली है कि ये सिरदर्द सिर पर आ खड़ी हुई. लेकिन सांस्कृतिक समिति की संयोजक हूँ सो यूथ वीक करवाना ओर उसकी कॉम्पिटिशन्स के लिए नाम लिखना भी जिम्मेदारी है. अब आने वाला सप्ताह इसी धांय-धूंय में गुजरने वाला है.
‘पर्स में डिस्प्रिन का पत्ता रख ले सुलक्षणा’ मैंने खुद को कहा, ‘डांस में तो आधा कालेज कूदेगा.’
“किस कॉम्पटीशन में पार्ट लोगी, क्विज में या डिबेट में? नोटिस में लिखे नियम ओर शर्तें ठीक से पढ़ लीं ना, डिबेट में दो केंडीडेट होने चाहिए तभी जा पाओगी.” सामने खड़ी लड़की को देख कर मैंने रटे-रटाए शब्द बोले.
“नाम बोलो, आर्ट्स में हो या साइंस में?” ये शक्ल से ही किताबी कीड़ा दिख रही है, जरूर क्विज में इंट्रेस्टेड होगी.

“मेम! हमें सोलो डांस में नाम लिखवाना है. स्वाति शर्मा, बीएससी सेकिंड इयर.” लड़की के ये कहते ही मैं ही नहीं, सोफे पर बैठे हुए धीर-गम्भीर झा सर तक चौंक गए. पास की कुर्सी पर बैठी अंजू ने बमुश्किल खुद को संभाला और खांसने लगी.
मैं अवाक, भौंचक्की हुई लडकी को देखे जा रही हूँ. ईश्वर उसे बनाने में जितना केजुअल रहा होगा उतनी या उससे भी ज्यादा वो बालिका स्वयं है. सामान्य से जरा सा साफ़ रंग, छोटा सा मुखड़ा, छोटा ही कद और नेत्र... लेकिन देह, ओंठ ओर नासिका तीनों भरे-पूरे. एक दूजे के वजूद में खोकर एकाकार हुई भोंहें. और ईश्वर की इस कलाकारी पर उसकी अपनी पच्चीकारी भी कम शानदार नहीं है. छोटे-छोटे चूहे कुतरे से बाल जो आगे उसके लुप्तप्राय मस्तक और पीछे से छोटी सी, मोटी सी गर्दन पर आच्छादित है. आँखों पर कुछ ज्यादा ही मोटे लेंस का बाबा आदम के ज़माने के फ्रेम वाला चश्मा, बिना तराशी भोंहें, शहर के शायद सबसे अनाडी टेलर के हाथों सिला बड़े-बड़े फूलों वाला मेहंदिया सलवार कुरता जिसकी ढीली-ढलंगी आस्तीन से निकलती पृथुल बाहें रोयों से अंटी पड़ी है. त्वचा जैसे युगों से क्रीम के सम्पर्क में नहीं आई और वही हाल ओठों का है. मैंने तनिक नीचे देखा. मर्दानी सी चप्पल पहने छोटे-छोटे रूखे-सूखे पैर भी उसी आर्ट गेलेरी के पीस हैं, जिनके नाख़ून इतने ज्यादा कटे हैं मानो है ही नहीं.
“मेम, लिखिए न, स्वाति शर्मा, बीएससी सेकंड इयर.” लड़की की आवाज़ से मैं चौंक कर बाहर आई और पकडे जाने की खिसियाहट से बचती पर्स में पेन टटोलने लगी स्वाति ने फुर्ती से अपने गाँधीयन झोले से पेन निकाल के मुझे पकड़ा दिया.

“सुनो स्वाति, तुमने पहले कभी डांस किया है?" अंजू ने लपक कर मेरी बात संभाली.

“यस मेम, हम स्कुल के प्रोग्राम में डांस करते थे.” लड़की का चेहरा सितारा देवी बना हुआ है.

“क्लासिक करोगी या पापुलर?” अंजू अब उसके मजे ले रही है, लेकिन स्वाति को शायद समझ नहीं आ रहा.

“मेम, हम डांस तो क्लासिक ही करेंगे लेकिन आप मेरा नाम पापुलर केटेगरी में ही लिखना, हम ट्रेंड डांसर नहीं हैं न.” हांय... क्लासिक!! मुझे फिर झटका लगा.

सामने नाम लिखाने को अंगद का पैर बनी खड़ी स्वाति की सादगी और गर्व दर्शनीय है, अंजू और भी कुछ कहती लेकिन मैंने आँखों से अंजू को बरजा ओर लिस्ट में उसका नाम लिख लिया.

“जाओ, ठीक से तैयारी करना, सीडी या पेन ड्राइव जो भी लाओ सही सेटिंग से लाना और नाम आने के साथ ही ग्रीन रूम से स्टेज पर पहुँच जाना. रूल्स ठीक से पढ़ लेना और...”

“और इन बालों को ठीक से सेट कर के आना वरना उलझ के गिर पडोगी.” मेरी बात काट के अंजू बीच में ही टपक पड़ी. अंजू का दिल नहीं रुक रहा उसकी खिंचाई करने से. “डोंट वरी मे’म, आइ विल मेनेज.” स्वाति ने बेफिक्री से कहा और चप्पलें फटकारती बाहर निकल गई.

“क्लासिक...इटस क्रेजी.” अंजू खिसिर-खिसिर कर के हंसे जा रही है और अख़बार में चेहरा गडाए झा सर भी अपनी दुर्लभ मुस्कान छुपा रहे हैं.

“बस कर, चल चाय पीकर आते हैं.” मैं झा सर के सामने नहीं हंसना चाह रही हूँ.

को-एजुकेशन कॉलेज हो और उसका कल्चरल वीक हो तो कार्यक्रम के पहले की तैयारियों में क्या धमाचौकड़ी मचती है ये कोई संयोजक के दिल से पूछे. रातों में भी वही सपने दुस्वप्न बन कर घूमते हैं. हर तीसरा स्टूडेंट डांस कॉम्पिटिशन में पार्टिसिपेशन चाहता है और वो भी अपनी शर्तों पर. एक नौनिहाल तो सलमान खान की तर्ज़ पर केवल जींस पहन कर नाचने को कटिबद्ध होकर आए हैं तो दूसरे साहब का कहना है कि उनके डांस साँग की तो प्रील्यूर ही तीन मिनट पर खत्म होती है सो उनको सब की तरह पांच मिनट दिया जाना नाइंसाफी है, उन्हें आठ मिनट मिलना उनका कला सिद्ध अधिकार है और तीसरे ‘तमंचे पे डिस्को..’ की प्रॉप्स में तमंचा ही लाना चाहते हैं. लड़कों से तो खैर आलोक मीणा निपट लेता है पर लडकियाँ तो हमारे ही जिम्मे आनी थी जो इस मामले में लडकों की अम्मा हैं. जितने भी डांस हैं उन सब में उन की महारत है कुछ लडकियाँ क्लासिक और पापुलर दोनों में नाचना चाहती है.

’इतनी देर में ड्रेस कैसे चेंज करोगी?’ का बहुत सीधा उत्तर आता है ‘एक ही ड्रेस में कर लेंगे न.’ पर मेरी, अंजू और रीना तीनों की बोलती बंद हो गई जब एक लड़की ने इसका उपाय सुझाया- “मेम, हम क्लासिक के वक्त जींस पर चुन्नी लपेट लेंगे न, फिर वो साड़ी ही तो लगेगी.”

“ओ लड़की, भेजा फिर गया है तेरा....” अंजू ऐसे अवसर पर हाइपर हो जाती है जिसे रीना सम्भालती है.

इस बार तो डांस के लिए जैसे गीत लड़के-लडकियाँ चुन के ला रहे हैं न, तौबा! और मज़ा ये कि उनके चुने गीत पर ‘डांस क्यूँ नहीं हो सकता’ भी ये अपने ही तर्क से समझना चाहते हैं या आलोक, अंजू की धमकी से समझते हैं. मुझे तो सिवा माथा सहलाने के कुछ नहीं सूझता ऐसे में. क्या जमाना आ गया है, या शायद हम ही जूने पड़ने लगे हैं. ‘आउट डेटेड!’

खैर...रोजे कयामत, यानि लड़कियों के डांस कॉम्पटीशन के दिन को आना था, आ गई. मैं, अंजू और रीना कई-कई बार कहीं जा के मरने की सोच चुके हैं पर ईश्वर को ये इवेंट करवाना था तो हमें क्यों कर मारता.

“देखना, सम्भाल के ...ध्यान रहे.” प्रिंसिपल कई बार डरा चुका है ”ये कार्यक्रम नाक है हमारी, कोई कसर नहीं रहनी चाहिए.“

“मेडम, प्रिंट ओर इलेक्ट्रोनिक मीडिया में ठीक से कवरिंग होनी चाहिए.” कॉलेज मेनेजमेंट के सेक्रेट्री को टीवी कवरिंग और पेज थ्री से मतलब है.

आडिटोरियम की लाईट सुबह से झप-झप कर रही है, खुदा खैर करे. आलोक अपनी किलिंग इंस्टिक्ट को दबाए काम से जूझ रहा है. पार्टिसिपेंट लडकियाँ मेक’प किट, ड्रेस और आर्नामेंट्स से लदी-फदी ग्रीन रूम को सिर पर उठाए हुए हैं और लड़के किसी भी जुगत से ग्रीन रूम एरिया में एंट्री पाने के लिए जान की बाज़ी लगा दे रहे हैं लेकिन केशव सेन जैसे छः फुटे पीटीआई और उससे भी ऊँचे निकलते रामलाल चपरासी के आगे बेबस हो रहे हैं.

कॉलेज ऑडिटोरियम जो लेक्चर, सेमिनार के दिनों में लगभग अकेला सा ऊँघता रहता है, आज शहर का मोस्ट हेपनिंग प्लेस बना इतरा रहा है. नीचे हाल की कुर्सियां ही नहीं ऊपर बाल्कोनी भी अपनी क्षमता से दोहरी संख्या में बच्चों को सम्हाले चरमरा रही है. शोर, हँसी, सीटियाँ, फब्तियाँ, घुड़कियाँ, झिडकियाँ, विनती, चिरोरी, डाँट, वर्जना के बीच रीना की कोयल सी आवाज़ में कूकती उद्घोषणा इस समय नक्कार खाने में तूती सिद्ध हो रही है.

“जरा उस लड़की को तो देख, कमीनी खिड़की तोड़ कर ही भीतर घुस पड़ेगी. स्टार्ट करो यार, स्टार्ट किए बिना शांति नहीं होगी. अंजू माइक छीनते हुए फुसफुसाई और माइक का स्विच ऑन कर दिया

“स्टूडेंट्स प्लीज बी सीटेड कामली, अब हम कॉम्पिटिशन के जजेज को इनवाईट कर रहे हैं, हमारे बीच हैं डॉ रमा सुन्दरम और डॉ नरिंदर कुकरेजा...बोथ फ्रॉम डांस डिपार्टमेंट, एनीबेसेंट कॉलेज. जोरदार तालियों से स्वागत करें.” अंजू की दमदार, रोबीली आवाज का असर का तो क्या असर होना था पर हाँ, डांस कॉम्पटीशन स्टार्ट होने की घोषणा का हुआ.

अब हाल में लगभग शांति है. सरस्वती-पूजन की औपचारिकता के बाद सबसे पहले क्लासिकल नृत्य प्रतियोगिता रखते हैं, जिनमें बमुश्किल चार-पाँच नाम आते हैं. ज्यादा माथापच्ची नहीं होती, फटाफट निपट जाता है. इस बार भी क्लासिक में चार नाम आए हैं, सब जानते हैं इस बार भी एमए हिस्ट्री की प्राजक्ता दिवसे ही फर्स्ट आने वाली है, वो कत्थक सीख रही है और कई प्रतियोगिता भी जीत चुकी है.


“स्टूडेंटस, अब दिल थाम के बैठिये, आपका फेवरिट ‘पापुलर केटेगिरी’ डांस कॉम्पिटीशन शुरू होने जा रहा है.” अपना माथा पकड के दिल थामने की सलाह देती अंजू ने आगे जो कहा वो शायद सीटियों और तालियों के शोर में खुद उसने भी नहीं सुना. ऑडिटोरियम की छत मानों शोर से उड़ने को है और छज्जे पर लटके बच्चे नीचे नहीं गिर रहे ये जादू है.

“सुन, सत्रह नाम है. टाइम लिमिट पाँच की जगह तीन मिनिट कर देते हैं वरना पागल हो जाएँगे नहीं तो बहरे तो पक्के से हो ही जाएंगे...” मैंने रीना की बात बीच में ही काट दी “तू पागल हुई है क्या, अभी अनाउंस करके कत्ले आम करवाना है? अभी चुपचाप चलने दे, केंडिडेट देख के इशारा कर देंगे.” मैंने पुराने अनुभव का सहारा लिया. जहाँ कोई कमज़ोर केंडिडेट या कोई बोरिंग डांस दिखे, ऑपरेटर को इशारा कर दो, काम हो जाता है.

पहली एंट्री कटरीना कैफ की फिल्म का गाना है, प्रतियोगी लड़की जिस तरह से नाच रही है, शायद वैभवी मर्चेंट भी इतनी अच्छी कोरियोग्राफी न कर पाई हो. कमर की लहरें समंदर के भँवर को मात दे रही है जिसमें लड़कों के दिल डूब-डूब के डूबे जा रहे हैं और जिन्हें बचाने को सीटियाँ ही उनका आखिरी सहारा है. ‘परीक्षाओं के समय कहाँ जाता है इनका ये टेलेंट?’ मैंने टिपिकल मास्टरनी की तरह सोचा और अपनी नादानी पर खुद ही खिसिया गई.

उसके बाद श्रीया बनर्जी की एंट्री है, सब जानते हैं इसका जीतना तय है, दो सालों से यही जीत रही है. ‘हेटट्रिक..हेटट्रिक..’ का शोर बता रहा है कि श्रीया की ग्रुपिंग तगड़ी है, बेशक नाचती भी जोरदार है. हर बार कुछ हट के लाती है, इस बार भी शकीरा का गाया ‘केंट रिमेम्बर टू फारगेट यू...’ लाई है. लेटिन अमरीकी डांस, जिसमें मराली सी लहराती श्रीया की देह, उसका चुस्त पद लाघव, कमर पर दोनों हाथ टिकाए उसकी एक एडी पर ली जा रही फिरकियाँ और अचानक ही आसमान को छू लेने को तत्पर होकर एक पैर पर उर्ध्वगामी मुद्रा में आगे को आ जाना... सच में शानदार प्रस्तुति है. नृत्य समाप्त हो गया... स्टूडेंट्स ‘वंस मोर..वंस मोर’ चिल्ला रहे हैं, जिसे अनसुना करते हुए ‘म्हारो हेलो सुणो जी रामा पीर...’ बजने लगा है.

सिर, पीठ, बाँह, घुटने और पैर पर मंजीरे बांध कर पारम्परिक राजस्थानी राजस्थानी लोक नृत्य ‘तेरहताली’ नाचने की कोशिश में खुद को ही चोट पहुँचा रही अनाड़ी कोमल शेखावत को नाचने देना उसके और हमारे लिए भी घातक होता, रीना ने उसे बीच में ही रोक कर अगला नाम पुकार लिया. बीएससी थर्ड इयर की रौनक, उफ्फ्फ ये मिस चिपको.. इसे हर प्रोग्राम में हिस्सा लेना होता है और उसकी तैयारी के नाम पर स्टाफ रूम में टीचर्स का सिर खाना होता है. “तू देखना, इस के डांस को तो मैं तीन मिनिट पहले ही रुकवा के मानूंगी.” रीना ने मेरे कान में उद्घोषणा की और अपने कहे को सच भी कर दिखाया.

अगला नाम विशाखा देवनानी का है जिसे लड़के व्हिस्की के नाम से बुलाते हैं. सेक्सी बदन और हेप अदाओं की मालिक विशाखा का रवैया लड़कियों को ‘एटीट्यूड’ और लड़कों को ‘हॉट’ लगता है. लम्बी, गदराई विशाखा नाचती भी ऐसे ही है, बिंदास और ग्लेमरस. और आज भी उसने ऐसे ही महफिल लूट ली. चुस्त केप्री और ट्यूब-टॉप के ऊपर पारदर्शी श्रग पहने ‘मैं कमली कमली मेरे यारा..’ पर नाचती विशाखा के लिए लड़कों की सीटियाँ और फिकरे बेकाबू हैं पर ज्यादातर लडकियाँ कुढ कर ऊपरी शालीनता ओढ़े बिना तालियाँ बजाए बैठी हैं. “कमाल है यार, इसके डांस में रिदम और ग्रेस नहीं छूटता.” प्रतिमा जी की बात से हम सब सहमत हैं.

अंजू फुर्ती से अगला नाम पुकार रही है- अब ‘नं सिक्स ....स्वाति शर्मा...ये आपके सामने देवदास फिल्म के ‘काहे छेड़े छेड़ मोहे..’ गीत पर नृत्य प्रस्तुत करेंगी. मिस स्वाति...’ और मुझे वो झल्ली सी लड़की याद आ गई, मैं और अंजू बमुश्किल अपनी मुस्कान रोके हुए हैं. हाल में भी शांति सी है, शायद इसे कम ही लोग जानते हैं. हम सब की नजर ग्रीन रूम से आने वाले दरवाजे पर है, आम तौर पर इतनी देर में एंट्री हो जाती है, कहाँ रह गई मुटल्लो. शायद नाम लिखा कर ही रह गई हो. यहाँ तक आने की भी हिम्मत चाहिए और वो लडकी तो वैसे ही...

लेकिन नहीं.. मिस स्वाति नमूदार हुई. वो ग्रीन रूम से नहीं सामने, मंच के नीचे, से भागी चली आ रही है, हाथ के इशारे से सॉरी कहती, लहँगे में लदडफ़दड उलझते-संभलते चढती स्वाति को देखते ही हॉल सीटियों, तालियों ओर हूटिंग के तमाम उपादानों से गूँज गया है. हूटिंग के बीच शान से खड़ी स्वाति की बान देखने लायक है. बादामी लहँगे-चोली के साथ लाल चुनरी साफ़ बता रही हैं कि वो किसी लवाजमा भंडार (किराये की ड्रेस वाली दुकान) की जीनत हैं, जिसे पहनने वाली वाली ने बड़े संघर्षों से पहना है और जो उतारे जाते वक्त भी एक महा युद्ध से गुजरने वाली है. स्वाति के भरे-भरे हाथ चूड़ी-कंगन से भरे हैं और कानों के झुमके उसकी लटों पर लहरा रहे हैं. लेकिन लटे.. कहाँ हैं लटें? उसके छोटे-छोटे बाल पता नहीं किस द्रव्य के कारण सिर से चिपके हुए हैं और चश्मे के पीछे झलकती आँखे दो कजरौटियों सी लग रही हैं.

“बाप रे, भीगा कव्वा!’’ अंजू के हाथ का स्पीकर चुगलखोर निकला और उसकी फुसफुसाहट सारे हाल में सरसरा गई. लेकिन खूनी लिपस्टिक में हँसते स्वाति के ओठों पर कोई शिकन नहीं है. जितना उदार उसका चट्ट गुलाबी ब्लशर है उतनी ही उदार वो स्वयम भी लग रही है.

अब जब स्वाति ने अपना चश्मा उतार कर पीछे किसी को पकड़ा ही दिया तो डीजे आपरेटर ने भी हिचकते हुए की-बोर्ड पर धरी ऊँगली का दबाव बड़ा दिया... और हाल में गीत की धुन लहरा गई... ‘मालती गुंदाय केश कारे घुंघवारे, मुख दामिनी सा दमकत चाल मतवारी..’

‘गीत भी महारानी ने एक दशक पुराना चुना है जिस पर नाच-कूद के सब बोर हो लिए हैं. अब कौन देखेगा इसे, अभी बंद हो जाएगा.’ मैं मुतमईन हूँ.

’चाल मतवाली...’ और स्वाति ने अपनी अदृश्य केशराशि से गुंदी चोटी पीठ पर फैंक कर लहंगा सँभालते हुए कदम अगला धरा “हे ईश्वर, बचा लियो, इसने तो चश्मा भी नहीं लगाया है.” इस बार खिलंदडी अंजू गम्भीर है, डीजे आपरेटर सतर्कता से ऑफ बटन पर ऊँगली धरे बैठा है. ‘ताकित धिना..ता धिना ..ताकित धीना थाई तत..’ स्वाति ने तीन ताल में परण लेते हुए हाथ उठाए और और छोटी सी गर्दन के खम के साथ ही मुक्त कर दिया खुद को.

‘काहे छेड़े छेड़ मोहे, गरवा लगाईं ...’ बोल के साथ उसका उसके हाथ उर्ध्वगामी हुए और जब लौटे तो नटराज के साथ एक नया मायालोक लेकर लौटे है. ये न वो स्वाति है न स्वाति का नृत्य... सच तो ये है कि ये दो अलग तत्व ही नहीं, नृत्य में स्वाति और स्वाति में नृत्य है... लास्य है... राग है... कितना कोमल पद संचालन, कितनी गरिमा है इसकी फिरकी में... और ये सधाव से कान्हा को बरजते हाथों की मुद्राएँ... दही की मटकी संभाले, बीच डगर में कंकरी की मार से ठिठकती-चलती नायिका की मृणाल सी कलाइयाँ... माणिक्य जड़े नाखूनों वालीअंगुलियाँ चकित हो कर स्वयम के चुम्बित मुख को छू कर देख रही है.. देह के नकार के साथ मुग्धा नायिका के चपल नेत्रों का आमन्त्रण... बंद कजरौटी सी ऑंखें नवोढ़ा प्रेमिका के विस्फारित नेत्रों में बदल गई हैं.

अब यहाँ सर्वत्र बस नृत्य है, नृत्य जो स्वाति की स्थूल देह से ऊपर है, जो उसके बचकाना वस्त्रों, आभूषणों और हास्यास्पद प्रसाधन से ऊपर है. इस क्षण में कोई देह नाच ही नहीं रही है जिस के वस्त्राभूषण या प्रसाधन देखा जाए. इस मुक्ताकाशी मंडल पर परम प्रकृति नाच रही है, उस अविनाशी परम पुरुष की प्रिया, उससे अभिसार को जाती, आलते से रंगे कमल-कोमल, मिलन को व्याकुल, उल्लास में धरा को मृदु आघात देते पग तत्परता से उठते, सहम कर थमते.. प्रिय की नटखट अटखेलियों में जिसकी काली कुटिल केशराशि खुल-खुल, बिखर-बिखर के उसके प्रगल्भ मुख को बार बार चूम ले रही है...

रस की मटकी को सँभालते उसके हाथों से कभी घूंघट छूटता है तो कभी गागर छलक जाती है... कोई नहीं है उस क्षण में... एक नन्द का ढीठ छोकरा कृष्ण है और एक उस पर रीझती-खीझती मुग्धा षोडशी राधा है, जिसकी ताल, मुद्रा, भाव, शब्द सब नर्तन में है, एक फिरकी...दो फिरकी...पाँच फिरकी...पंद्रह फिरकी...सारा ब्रह्मांड फिरकियाँ खा रहा है. दिगंत को छू कर आती हथेलियाँ कान्हा के परस से कोमल होकर हो कर कभी ह्रदय को छूती हैं तो कभी गालों को... कलाई की सारी चूड़ियाँ तो इस जोराजोरी में चटक गई. हाथ... जिन्हें गुहार करती राधिका कभी दिखाती है तो कभी छुपाती है...‘ओ माईईई...’

दिगंत को रसलीन कर रहे इस क्षण में एकाकार है चिदंबरा पृकृति ओर परम पुरुष.. कहाँ गई सारी सीटियाँ, वो हुटिंग, वो जोकरों जैसा प्रसाधन, वो चूहा कुतरे से तेल चुआते बाल, वो विचित्र वेशभूषा, वो नाटा कद और पृथुल देह, स्वाति के अप्रतिम नृत्य और भाव मुद्राओं के बीच ...इस निर्व्याज प्रस्तुति में सब शब्दातीत हो गया है... ये प्रगल्भ धारा किस रेगिस्तानी नदी से फूटी?

“स्पीचलेस” रमा सुन्दरम मेम ने हाथ का पेन टेबल पर धरते हुए आँखें पोंछी. गीत अपने चरम पर आके ठहर गया है और आखिरी परण के साथ स्वाति भी. हाथ जोड़े खड़ी स्वाति के लिए पहली ताली अंजू की है और उसके बाद ताल ब्रह्म में डूबा सभागार भी जाग गया और एक क्षण में लुप्त हो गया रंग-शब्द-रूप से जगमगाता वो मायावी इंद्रजाल जिसमें इस असीम आकाश को बाँहों में समेटती और धरती के सीने पर चित्र खींचती नायिका अविनाशी पुरुष को रिझा रही थी. सामने मंच पर स्वाति खड़ी है जिसका काजल फ़ैल के गालों तक आने को है. सहज भाव से चश्मा लगाती स्वाति अपनी वही अकृत्रिम हँसी बिखेर रही है जिस के कारण पाँच मिनिट पहले उसे ‘डोडो’ की उपाधि मिली थी. तालियाँ लगातार बजती रहती अगर रीना अपना रुंधा गला साफ़ करते हुए अगले नाम की घोषणा नहीं करती.

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