Nrusingh bhagwan prakruti aur purush in Hindi Spiritual Stories by Ajay Kumar Awasthi books and stories PDF | नृसिंह भगवान प्रकृति और पुरुष

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नृसिंह भगवान प्रकृति और पुरुष

भगवान नृसिंह मानव और पशु का रूप हैं इसे समझना होगा वस्तुतः यह प्रकृति और प्रकृति के स्वामी का रूप है । जब इस धरा पर मनुष्य असुर हो जाता है ,जब अपनी बुद्धि और कौशल से प्रकृति को कुचलने लगता है ,और अपनी शक्ति का अंहकार लेकर अपने सिवा किसी और सत्ता को स्वीकार नही करता, तब प्रकृति के रूप में ईश्वर उसका अहंकार नष्ट करते हैं।
क्या आज हम हर चीज पर हक जमा कर खुद को खुदा नही समझ रहे,,? आज हमारी सारी काबिलियत धरी की धरी रह गई है,,जब एक वाइरस ने हमारी सोच को बदल कर रख दिया है,,,हमारे बनाये सारे ताम झाम को एक झटके में रोक दिया है,,,

हिरण्यकश्यप का दोष यही था वो अपने कठोर तप से अमर होना चाहता था । इसमे कोई बुराई नही थी, पर अजेय होने के बाद वो ईश्वरीय सत्ता को नकारने लगा था । वो खुद ईश्वरीय सत्ता को नही मानता था उसमे भी बुरा नही था, ये उसकी निजी राय हो सकती थी, पर वो दूसरों को प्रताड़ित करने लगा था ,मारने लगा था, ये बुरा था । वो दूसरों को ज्ञान देने लगा कि मेरे अलावा कोई दूसरा नही है, इस भाव मे रहकर वो अपने पुत्र प्रह्लाद को भी दुश्मन समझने लगा । उसे बेटे की समझाइश पसंद नही आती थी ।
उसने प्रकृति का घोर अनादर किया , सारा कुछ अपने लिए ही रख लिया,,उसे लगता कि हवा पानी,आकाश,धरती और आग, सब उसके अधीन है ,,,,बहन होलिका से अग्नि को जीतने का अहंकार था,,,,
लेकिन उसके इस अहंकार और अमर होने का भाव एक झटके में भगवान नृसिंह ने खत्म कर दिया ,,,,उसका पेट फाड़कर उसे जमीन की धूल चटा कर उसे बता दिया कि यहाँ ऐसे किसी की सत्ता कायम नही रह सकती ,जो सब कुछ अपने लिए समेट लेना चाहता है,,भगवान ने उसे उसको मिले वरदान की याद दिलाकर उसे मारा,, उसने न दिन में न रात में, न नर से न पशु से,न अस्त्र से न शस्त्र से,न घर मे न बाहर में, न जमीन में न आसमान में कोई न मार सके ऐसा वरदान मांगा था ,भगवान ने उसे याद दिलाया कि देख न मैं नर हूँ न पशु, तू शाम के समय ,मेरी गोद मे अपने घर के आंगन में ,मेरे पंजे के नाखून से मारा जा रहा है,उन्होंने उसे बताया कि यहाँ सत्ता उसकी कायम रहती है, जो इस कायनात को ओर इसमे अपने जीवन को ईश्वर का उपहार मानता है और धन्य होता है,,प्रहलाद और उसके बाद उसकी पीढ़ियाँ राज करती रहीं उन्हें कोई बाधा नही आई ,,
राजा बलि का दान हम सब जानते है, जो प्रह्लाद के अंश थे,,,
सो,,,
जो देता है वो पाता है,, देने में सुख है,,राजा बलि ने वामन भगवान को सर्वस्व दान कर दिया क्योकि वो जान गया था कि तेेेरा तूूझको अर्पण क्या लागे मेंंरा ।।। हम भी इस कठिन दौर में ये विचार करें कि जीवन किंस तरह बेहतर हो किस तरह हम उस परमसत्ता को जाने सत्य को समझें और इसको समझ ले तो फिर और कुुछ समझने की जरूरत नही रह जाएगी ।