Bhadukada - 32 in Hindi Fiction Stories by vandana A dubey books and stories PDF | भदूकड़ा - 32

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भदूकड़ा - 32

कुन्ती के इस फ़ैसले का लेकिन कुन्ती कहां किसी की सुनने वाली? यदि सब राज़ी हो जाते तो शायद कुन्ती अपने फ़ैसले से पलट जाती, लेकिन सब के विरोध ने फिर उसके भीतर ज़िद भर दी. खुले आम कहती-
“सब होते कौन हैं रोकने वाले? सब तो अपनी चैन की बंसी बजा रहे न? तो हमारा सुख क्यों अखरने लगा सबको? शादी तो अब हो के रहेगी.”

बेचारा किशोर न हां कह पाता न ना. अजब मुश्किल में थी उसकी जान. स्कूल में पढ़ने वाला किशोर समझ ही नहीं पा रहा था कि ये नयी धुन क्यों सवार हो गयी अम्मा के सिर पर? किशोर की राय लिये बिना ही कुन्ती ने पड़ोसी गांव की ही एक लड़की भी ढूंढ ली. लड़की के मां-बाप खुश कि उनकी बेटी तिवारी खानदान में जा रही. बड़े दादा जी का बहुत नाम था. सब जानते थे कि अच्छे खेतिहर, पैसे वाला है तिवारी खानदान. सैकड़ों एकड़ ज़मीन है, दुधारू जानवर हैं, हवेलीनुमा मकान है और अब तो अधिकतर लोग सरकारी नौकरियों वाले भी हैं. उन्हें पूरा भरोसा था कि लड़का भी देर-सबेर सरकारी नौकरी में आ जायेगा. लड़की भी उनकी विशुद्ध घरेलू है. जैसी गांव की लड़कियां होती हैं. दिखने में भी बस ठीकठाक ही है. ऐसे में अगर रिश्ता खुद चल के आया है तो समझो भगवान उनके साथ हैं. बात पक्की करने जब वे कुन्ती के पास आये तो पहले ही हाथ जोड़ के बोले-

“अम्मा, हम आपकौ मुकाबला तौ कर नईं सकत. न ज़मीन में, न जायदाद में न कछू में. अब आप आदेस करौ, हमें का करनै?”

वो समय दहेज़ का नहीं था. कम से कम गांव उस समय तक इस कुप्रथा से बचे थे. फिर तिवारी खानदान ने तो कभी भी किसी भी शादी में कुछ लिया ही नहीं था. सो लेनदेन की कोई बात ही न थी. कुन्ती को तो वैसे भी शादी की हड़बड़ी थी तत्काल बोली-

“मिसरा मराज, आप चिन्ता न करौ. हमें कछु चानै भी नैयां. भगवान की दया सें कछु कमी नैयां इतै. आप तौ बस ब्याओ की तैयारी करौ.”
वो समय दहेज़ का नहीं था. कम से कम गांव उस समय तक इस कुप्रथा से बचे थे. फिर तिवारी खानदान ने तो कभी भी किसी भी शादी में कुछ लिया ही नहीं था. सो लेनदेन की कोई बात ही न थी. कुन्ती को तो वैसे भी शादी की हड़बड़ी थी तत्काल बोली-

“मिसरा मराज, आप चिन्ता न करौ. हमें कछु चानै भी नैयां. भगवान की दया सें कछु कमी नैयां इतै. आप तौ बस ब्याओ की तैयारी करौ.”

और इस तरह इंटर में पढ़ रहे किशोर की, आठवीं पास जानकी से शादी तय हो गयी. आनन-फानन सारी तैयारियां हो गयीं. अब जब फ़ैसला हो ही गया था तो परिवार के अन्य सदस्य भी शादी की तैयारियों में हाथ बंटाने लगे. सुमित्रा जी ने सुना तो चौंक गयीं. अभी तो उन्होंने अपनी बड़ी बेटी की शादी के बारे में सोचा तक न था और कुन्ती किशोर का ब्याह कर रही....! दबी ज़ुबान में उन्होंने विरोध जताया भी तो कुन्ती ने झिड़क दिया- हमेेशा की तरह।
(क्रमशः)