3 बाली का बेटा
बाल उपन्यास
राजनारायण बोहरे
सुलह
पम्पापुर के राजमहल से बहुत सारे लोग प्रबरसन पर्वत के लिए चल पड़े थे।
लक्ष्मण सबसे आगे थे। उनके ठीक पीछे अंगद थे। बाकी लोग उनके पीछे चल रहे थे। यह जुलूस जहां से गुजरता, वहां के लोग झुक-झुककर उन सबको प्रणाम करते और पीछे हट जाते।
कुछ ही देर में लोगों का यह झुण्ड नगर की गलियों को पार करता हुआ नगर से बाहर पहुंच गया। अब वे ऐसे मार्ग पर आगे बढ़ रहे थे, जो पहाड़ पर जाता था। इसी के अंत में प्रबरशन पर्वत था। दरअसल बरसात के चार महीने काटने के लिए श्रीराम और लक्ष्मण इसी पर्वत की एक गुफा के सामने बनी झोंपड़ी में बिश्राम कर रहे थे।
आसमान बिलकुल साफ था और जमीन पर हरियाली ही हरियाली थी।
अंगद ने देखा कि अपनी गुफा में बैठे श्रीराम एक मुनि के साथ बैठे इस क्षेत्र की जलवायु के बारे में बात कर रहे थे। उनका अंदाज था कि इस पूरे इलाके में जमीन के नीचे खोदने पर बहुत सारे खनिज पदार्थ मिल सकते हैं, जबकि मुनि का कहना था कि इस क्षेत्र में सिवाय काले पत्थरों, कई तरह के पेड़ पौधों और जंगली जानवरों व पक्षियों के कोई ज्यादा समृद्धिकारक खनिज वगैरह मिलना दुर्लभ है। जब लक्ष्मण के साथ पम्पापुर के राजदरबार के अनेक मंत्रीगण उस गुफा के पास पहुंचे उन दोनों की यही बातचीत चल रही थी और मुनि के साथ आये उनके अनेक चेले चुपचाप बैठे शांत भाव से इस बातचीत को सुन रहे थे।
लक्ष्मण, अंगद और दूसरे लोगों के श्रीराम और उन मुनि को प्रणाम करने के कारण बातचीत में थोड़ी सी बाधा आई फिर दुबारा उसी विशय पर बातें होने लगीं। जामवंत ने बातचीत का विषय सुना तो उन्होंने श्रीराम से अनुमति लेकर अपनी बात कही, ‘‘ आपका अनुमान बिलकुल सही है श्रीराम, हमार यहाँ पहले से ही बहुत से खनिज मिलते है, जिनके कारण हमारा यह छोटा सा राज्य बहुत धनी और समृद्ध बना हुआ है। हमारे पम्पापुर में लगभग एक हजार मजदूर केवल खनिजों की खुदाई करते हैं। आगे के लिए अभी भी हमारे यहां लगभग सौ से ज्यादा हुनरमंद लोग जंगलों और पहाड़ों पर घूमते हुए जमीन के नीचे मिल सकने वाले खनिजों की खोज में लगे रहते हैं।’’
बातचीत की समाप्ति के बाद वे मुनि चले गये तो श्रीराम ने लक्ष्मण की ओर देखा। लक्ष्मण बोले, ‘‘ बड़े भैया, मैं जब पम्पापुर गया था, उस समय महाराज सुग्रीव अपने मंत्रियों के साथ बैठे इसी योजना पर विचार कर रहे थे कि भाभी सीता का पता कैसे लगाया जाय।’’
श्रीराम हँसे और कहने लगे, ‘‘ इस तरह सिर्फ एक जगह बैठ कर किसी को तो नहीं खोजा सकता है लक्ष्मण, इसके लिए तो घर से बाहर निकलना पड़ता है। सुग्रीव खुद नहीं जा सकते थे तो इनके दूत तो बाहर निकल कर सीता की खोज कर सकते थे। अगर इनको समय नही था तो ये मुझे बता देते, मैं खुद निकल कर सीता को खोजता रहता, और इन जंगलों में रहने वाले आदिवासी लोग इस काम में मेरी मदद करते। कम से कम हमारा यह चार महीने का समय तो बेकार नहीं जाता। अब इस बीच सीता का अपहरण करने वाले ने सीता को कोई हानि न पहुंचा दी हो।’’
यह सुनकर जामवंत तेजी से बोले, ‘‘ हे श्रीराम, मैं अपनी बुढ़ापे तक मिले तरह-तरह के अनुभवों के आधार पर कह सकता हूं कि महारानी सीता जहां भी हैं वहां स्वस्थ्य और सुरक्षित हैं। ’’
हनुमानजी ने मौका पाया तो वे झुक कर बोले, ‘‘ हे प्रभु, इन जामवंत जी को आप पहले से जानते होेंगे। ये हमारे राज्य के गुप्तचरी यानि कि जासूसी विभाग के मुखिया हैं। इन्हें बड़ा पुराना अनुभव है। अपनी जवानी के दिनों से इन्होंने कई राज्यों की यात्रा की है और बड़े-बड़े बहादुर लोगों के साथ काम किया है। इसलिए इनकी कही गई हर बात में सचाई है यानि कि यह बिना आधार के नहीं है।’’
अब सुग्रीव बोल उठे, ‘‘ हे प्रभो, मुझे क्षमा कीजिये। मुझसे चार महीने की देरी हो गई यह बात सच है। लेकिन यह देर इसलिए हुई कि बरसात के दिनों में नदियों और तालाबों में भरपूर पानी भर जाता है और चारों ओर के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं।’’
श्रीराम गंभीर आवाज में बोले, ‘‘ चलो आप सबकी बात मान लेते हैं, पर अब तक की देरी किसी भी कारण से हुई हो, अब हमे देर नही करना चाहिये । हमे सीता को ढूँढने के लिए पूरी ताकत लगा देनी चाहिये।’’
जामवंत बोले ‘‘ हे प्रभो, मैं खुद कल सुबह से हमारे राज्य के सारे के सारे जवान लोगों को साथ लेकर दक्षिण दिशा की ओर निकल रहा हूं । यहां से समुद्र तक के पूरे रास्ते में बसे सारे के सारे गाँवो में हमारी बिरादरी के आदिवासी लोग निवास करते हैं, इसलिए हम लोग उन सबसे भी मदद माँगेंगे और उन्हे भी अपने दल मेें शामिल करेंगे। आप थोड़ा धीरज धरिये, हम ज्यादा से ज्यादा पन्द्रह दिन में लौट आयेंगे और आपको पूरी और पक्की खबर लाकर देंगे कि महारानी सीता कहां मौजूद हैं?’’
यह सुन कर राम को संतोश हुआ वे महाराज सुग्रीव से बोले ‘‘ कहो महाराज सुग्रीव, राज्य कैसा चल रहा है? अंगद और महारानी तारा प्रसन्न तो हैं न ? आपके राज्य में सारी जनता भी कुशलता से होगी।’’
अंगद को यह जानकर बहुत खुशी हुई कि श्रीराम ने पहला सवाल माँ और उनके बारे में पूछा है। यानी कि श्रीराम अभी भी अंगद से पहले जैसा ही प्यार करते हैं।
बड़े लोग राज-काज की बातें करने लगे तो अंगद ने अपनी उम्र के दूसरे साथियों की ओर देखा। वहां बैठे नल, नील और गद भी इसी मौके की तलाश में थे कि जैसे ही मौका मिले वे लोग बाहर निकल लें और आस पास के ऊंचे पेड़ों पर धमाचौकड़ी मचा सकें। अंगद का इशारा पाकर वे सब धीमे से उठे और गुफा के बाहर निकल आये। सामने खड़े ऊंचे-ऊँचे पेड़ उन्हें ललकारते से हवा से बातें कर रहे थे। वे लोग उछले और सरसराते हुए पेड़ों पर चढ़ते चले गये।
बहुत देर बार जामवंत की आवाज पर अंगद ने नीचे ताका। सब लोग पम्पापुर लौटने की तैयारी में थे। वे लोग नीचे उतरे और जामवंत के पास जा खड़े हुए।
श्रीराम से विदा लेकर सारा झुण्ड वहाँ से चला तो रास्ते में जामवंत ने बताया कि कल भोर से ही वे सब यात्रा पर निकलने वाले हैं ।
अंगद ने सुना तो उन्हे मजा आ गया । बचपन से ही पिता की संगत में रहने के कारण मन से वे पक्के सैलानी थे। अन्जान जगहों की सैर करना उनका प्रिय शौक था। घर मे बन्द रहने से उन्हे ऊब होती थी।
घर पहुंच कर उन्होंने माँ को सारी बातें कह सुनाईं। महारानी गंभीर हो कर सारी बातें सुनती रहीं फिर बोलीं ‘‘ सीता की खोज में पूरी पलटन चली जाय, लेकिन तुम्हारा जाना जरूरी नही है। तुम इस राज्य के राजकुमार हो। जासूसी और तलाशी वाले ऐसे काम तो दूत और गुप्तचर करते हैं। इस काम के लिए अगर श्रीराम तुम्हे भेजना चाहते हैं तो मैं खुद जाकर उनसे बात करती हूं।’’
‘‘ नहीं माँ ऐसा मत करना’’ अंगद को लगा कि इतना मजेदार मौका हाथ से निकल रहा है तो वे बच्चे की तरह माँ के सामने मचल उठे, ‘‘ सच्ची बात तो यह है माँ, कि मुझे खुद इस बहाने लम्बी सैर पर जाने की इच्छा है। क्यों रोकती हैं आप मुझे बच्चों की तरह? मैं अब छोटा नहीं रहा, बड़ा हो गया हूं ।’’
माँ की आँखों में पानी था, वे शायद रोने लगी थीं। बोलीं ‘‘ केवल पन्द्रह साल के तो हुए हो। तुम इतने बड़े भी नहीं हो गये हो कि ऐसे अन्जान सफर पर भेज दिया जाय तुम्हे। ’’
अंगद पॉँव ठिनकते हुए कह रहे थे ‘‘ माँ, एक लम्बे समय से मैं इस महल में कैद सा हो गया हूं। मेरी इच्छा है कि कुछ दिनों के लिए कैसे भी बाहर निकल सकूं।’’
महारानी तारा बोलीं ‘‘ बेटा, तुम नही जानते कि तुम अपने बाप की अमानत हो मेरे पास। मेरी जिम्मेदारी है कि मैं तुम्हे पाल पोस कर सयाना और लायक आदमी बना सकूं।’’
‘‘ माँ, इस काम के लिए ही तो काका जामवंत को आपने मुझे सोंपा है । इस सफर में वे हर पल मेरे साथ रहेंगे। इसलिए आप मेरी कुशलता की चिन्ता छोड़ दो।’’ अंगद ने महारानी को समझाने का प्रयास किया।
‘‘ ठीक है, कल की कल देखेंगे ।’’ कहते हुए माँ चली गई।
अंगद को लगा कि माँ के इस मोह के कारण कहीं उनकी सारी खुशियाँ गायब न हो जायें, माँ उन्हें बाहर जाने से रोक न दें । भोजन करने से लेकर सोने के लिए पलंग तक पहुँचने तक वे इसी चिन्ता में डूबे रहे।
रात को उनकी आँखों से नींद कोसों दूर थी।
अंगद को बार-बार अपने पिता की याद आ रही थी, जिनके समय में वे खूब सुखी थे, और आजाद, स्वतंत्र भी।
यों तो सबके पिता बहुत प्यारे होते हैं, लेकिन अंगद के पिता बहुत निराले थे।
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