Karm path par - 25 in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | कर्म पथ पर - 25

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कर्म पथ पर - 25



कर्म पथ पर
Chapter 25


शिव प्रसाद गुस्से में उबलते हुए हवेली पहुँचे‌। पर उन्हें गेट के भीतर ही नहीं घुसने दिया गया‌ दरबान ने कहा कि उन्हें अंदर जाने की अनुमति नहीं है। शिव प्रसाद का गुस्सा और भड़क गया। उन्होंने जबरन भीतर जाने की कोशिश की। इस पर दरबान ने उन्हें धक्का देकर सड़क पर गिरा दिया।
अपमान की आग में जलते हुए शिव प्रसाद पुलिस थाने पहुँचे। उन्होंने थानेदार बृजलाल क खत्री को हैमिल्टन द्वारा अपनी बेटी पर किए गए अत्याचार के बारे में बताते हुए उसके खिलाफ रिपोर्ट लिखाने की बात कही।
बृजलाल गंभीरता से सारे मामले पर विचार करने के बाद बोले,
"शिव बाबू आपने मानस में पढ़ा होगा समरथ को नहीं दोष गुसाईं। जॉन हैमिल्टन उस सामर्थ्यवान अंग्रेज़ी हुकूमत का हिस्सा है जो हम पर कई सालों से राज कर रही है। उन्होंने अगर कोई गुनाह किया भी है तो कोई उन्हें दोषी नहीं मानेगा। आप जिस विभाग में काम करते हैं उसी विभाग के अधिकारी पर दोष लगा रहे हैं। ये कोई समझदारी की बात नहीं है। चिड़िया कितने भी वेग से उड़े। लेकिन पहाड़ से टकराने पर मरती वही है।"
शिव प्रसाद बृजलाल की बात सुनकर बोले,
"आपने मानस का ज़िक्र किया है खत्री जी। वनवासी रामचंद्र की पत्नी को लंकापति रावण ने हर लिया था। पर उसकी सामर्थ्य की परवाह किए बिना रामचंद्र ने उससे युद्ध कर अपनी पत्नी सीता के मान की रक्षा की। निडरता और साहस से सामर्थ्यवान को भी झुकाया जा सकता है।"
"बातें आप बड़ी प्रभावशाली करते हैं शिव बाबू। पर आप खुद की तुलना प्रभु रामचंद्र से कर रहे हैं। फर्क है। आज के समय में ताकतवर के पाप की सज़ा भी कमज़ोर को ही भुगतनी पड़ती है।"
बृजलाल ने शिव प्रसाद को घूरा। शायद वह आँखों ही आँखों में कहना चाह रहे थे कि तुम्हारी औकात इतने बड़े आदमी से भिड़ने की नहीं है। पर शिव प्रसाद भी दबने को तैयार नहीं थे। उन्होंने कहा,
"आप मेरी शिकायत दर्ज कीजिए।"
"शिव बाबू मैं आपके भले के लिए आपको समझा रहा हूँ। एक अंग्रेज़ अधिकारी के खिलाफ शिकायत लिख कर हम अपने आप को खतरे में नहीं डालेंगे। आप बेकार की ज़िद छोड़िए। वैसे भी आपने जो कहा उसका क्या सबूत है। कोई भी आसानी से हैमिल्टन साहब की हवेली में नहीं घुस सकता है। फिर आप और आपकी बेटी कैसे हवेली में घुसे।"
"हमने दरबान के ज़रिए अंदर खबर भिजवाई थी। हमारे आने की बात सुनकर जॉन हैमिल्टन ने खुद हमें अंदर बुलाया था।"
बृजलाल ज़ोर से हंसे। फिर अचानक गंभीर होकर बोले,
"मुझे नहीं पता था कि आप इतने प्रभावशाली हैं। आपका नाम सुनते ही आपको हैमिल्टन साहब की हवेली में प्रवेश मिल गया।"
शिव प्रसाद को उनका यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा। उन्होंने जवाब दिया,
"मेरी बेटी माधुरी बहुत मेधावी है। दसवीं कक्षा में उसने अपने स्कूल में सबसे अधिक अंक प्राप्त किए थे। खुद जॉन हैमिल्टन ने उसे पुरस्कार दिया था। उसने ही कहा था कि वह उसकी आगे की पढ़ाई के लिए वजीफा दिलाएगा। इसी सिलसिले में हम उसकी हवेली पर गए थे।"
शिव प्रसाद ने वहाँ क्या हुआ सब विस्तार से बता दिया।
"मेरे जाने के बाद हैमिल्टन ने मेरी बेटी के साथ दुष्कर्म किया। फिर अपने आदमी के साथ घर के बाहर छुड़वा दिया। आज मुझे उसके कुकर्म का पता चला। अब आप मेरी रिपोर्ट लिखिए।"
बृजलाल ने एक बार फिर शिव प्रसाद को घूरा। उसके बाद तल्ख लहजे में बोले,
"आप सोंचते हैं कि आप एक कहानी सुनाएंगे और हम उस पर यकीन कर इतने बड़े आदमी के खिलाफ कार्यवाही करेंगे। आप अपना मानसिक संतुलन खो चुके होंगे हम नहीं।"
उसकी बात सुनकर शिव प्रसाद तिलमिला उठे। वह कुछ कहने जा रहे थे कि बृजलाल ने उन्हें रोक दिया। शिव प्रसाद को समझाते हुए कहा,
"देखिए शिव बाबू हम दोनों ही एक मिट्टी में पैदा हुए हैं। इसलिए आपकी बेटी के साथ जो हुआ उसका अफसोस है। पर मेरी सलाह है कि हैमिल्टन साहब से टकराने की बात दिमाग से निकाल दीजिए। जो हुआ वह तो बदल नहीं सकता है। पर अब कुछ दिन शांत रहिए। फिर अपनी बिरादरी में किसी विधुर को देखकर अपनी बेटी का ब्याह कर दीजिए।"
बृजलाल कुछ पल के लिए रुके फिर आगे बोले,
"हमारे पुरखे बहुत समझदार थे। उन्होंने अपने अनुभव से कुछ नियम कायदे बनाए। हम पीढ़ियों से उन पर चल रहे हैं। तभी समाज की व्यवस्था बनी हुई है। पर आप जैसे लोग उसे तोड़ने में ही बुद्धिमानी समझते हैं।"
शिव प्रसाद उसकी बात का आशय समझ रहे थे। बृजलाल अपनी बात करता रहा।
"अब मैं भी एक बेटी का बाप हूँ। उसे घर पर ही मतलब भर का पढ़ाया। ताकि धार्मिक किताबें पढ़ सके। चिठ्ठी पत्री पढ़ लिख सके। उसके बाद समय रहते उसका ब्याह कर दिया। सम्मान के साथ अपनी ससुराल में घर गृहस्थी संभाल रही है। पर आप तो अपनी बेटी को स्कूल भेज कर पढ़ा रहे थे। आगे की पढ़ाई के लिए वजीफा मांगने चले गए। उसे हवेली में अकेली छोड़ दिया। लोग सवाल नहीं करेंगे कि जवान बेटी को इस तरह हवेली में छोड़ कर क्यों गए ? मुझे ही समझाइए। कौन समझदार बाप ऐसा करेगा।"
बृजलाल ने जो आखिरी बात कही उसे सुनकर शिव प्रसाद निरुत्तर हो गए। उन्हें भी इसी बात का मलाल था। उन्हें चुप देख कर बृजलाल ने आगे कहा,
"अब जो मैंने समझाया है घर जाकर ठंडे दिमाग से उस पर विचार कीजिए। एक बेटी का जीवन तो बर्बाद हुआ ही है। आपके और बच्चे तो होंगे ही। उनके बारे में सोचिए।"
शिव प्रसाद समझ गए कि बृजलाल से किसी तरह की उम्मीद रखना बेकार है। वो थक हार कर घर लौट गए।

दरवाज़े की कुंडी को किसी ने खटखटाया। कहानी सुनाते हुए संतोषी रुक गई। वह उठ कर दरवाज़ा खोलने गई।
दरवाज़ा खुला तो शिव प्रसाद थे। आंगन में जय और रंजन को देख कर बोले,
"आप लोगों ने भोजन कर लिया।"
जय ने जवाब दिया।
"जी हाँ....पर आप तो...."
उसकी बात समझते हुए शिव प्रसाद बोले,
"हाँ में यही सोंच कर गया था कि शाम से पहले नहीं लौट‌ पाऊँगा। लेकिन जब वहाँ पहुँचा तो पता चला कि जिस काम के लिए गया था वह आज नहीं हो सकता है। इसलिए लौट कर दुकान चला गया। वहाँ कुछ ज़रूरी काम निपटा कर सेठ जी से जल्दी छुट्टी लेकर आया हूँ कि आप लोग मेरी राह देख रहे होंगे।"
संतोषी ने कहा,
"आ गए हैं तो आप भी हाथ पैर धोकर खाना खा लीजिए।"
जय ने भी समर्थन करते हुए कहा,
"आप खाना खाकर कुछ आराम करें। भाभी जी ने हमें बहुत कुछ बता दिया है। बाकी की कहानी आपसे जान लेते हैं।"
"ठीक है आप दोनों ऊपर अपने कमरे में चलिए। मैं कुछ देर में आता हूँ।"
जय और रंजन ऊपर चले गए। संतोषी ने मेघना को बुला कर कहा कि वह अपने पिता के हाथ पैर धुला दे। खुद रसोई में जाकर अपने और शिव प्रसाद के लिए खाना परोसने लगी।
खाना खाते हुए पति पत्नी आपस में बात करने लगे। शिव प्रसाद ने कहा,
"तुमने इन्हें माधुरी के साथ जो कुछ हुआ वह बता दिया।"
संतोषी ने उन्हें बता दिया कि उसने ‌कहाँ तक कहानी सुनाई है।
"आपने इन लोगों को मदद के लिए बुलाया है। क्या ये हमारी सहायता कर सकेंगे ?"
शिव प्रसाद मुंह का कौर समाप्त करने के बाद बोले,
"संतोषी हमने अपने आसपास के लोगों से इस मामले में मदद मांगी थी। पर किसी ने मदद नहीं की। उल्टा हमें अपमानित किया। पर ये लोग लखनऊ से मेरठ मुझे खोजते हुए हमारी मदद करने के लिए आए हैं।"
शिव प्रसाद ने संतोषी से थोड़ी और सब्जी देने को कहा। संतोषी ने मालती को आवाज़ लगाई। मालती ने अपने पिता की थाली में सब्जी परोसी। साथ ही दो रोटियां और रख दीं। उसके बाद उसने संतोषी की थाली में भी दो रोटियां और सब्जी परोसी। जब वह अंदर चली गई तो शिव प्रसाद ने आगे कहा,
"पहले तो मैंने सोंचा कि इन लोगों को वापस लौटा दूँ। पर जब इन्होंने हिंद प्रभात का नाम लिया तो मुझे कुछ उम्मीद हुई। इसलिए मैं इन्हें यहाँ ले आया।"
"मैंने भी हिंद प्रभात का नाम सुनकर ही इन्हें माधुरी के बारे में बताया। शायद इन लोगों के ज़रिए मुझे अपनी बच्ची के बारे में कुछ पता चल सके। जबसे उसकी शादी हुई उसकी कोई खबर ही नहीं है।"
कहते हुए संतोषी रोने लगी। शिव प्रसाद उसे धैर्य रखने के लिए समझाने लगे।