Moods of Lockdown - 11. in Hindi Moral Stories by Neelima Sharma books and stories PDF | मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन - 11.

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मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन - 11.

क्वारंटाइन...लॉक डाउन...कोविड 19... कोरोना के नाम रहेगी यह सदी। हम सब इस समय एक चक्र के भीतर हैं और बाहर है एक महामारी। अचानक आई इस विपदा ने हम सबको हतप्रभ कर दिया हैं | ऐसा समय इससे पहले हममें से किसी ने नहीं देखा है। मानसिक शारीरिक भावुक स्तर पर सब अपनी अपनी लडाई लड़ रहे हैं |

लॉकडाउन का यह वक्त अपने साथ कई संकटों के साथ-साथ कुछ मौके भी ले कर आया है। इनमें से एक मौका हमारे सामने आया: लॉकडाउन की कहानियां लिखने का।

नीलिमा शर्मा और जयंती रंगनाथन की आपसी बातचीत के दौरान इन कहानियों के धरातल ने जन्म लिया | राजधानी से सटे उत्तरप्रदेश के पॉश सबर्ब नोएडा सेक्टर 71 में एक पॉश बिल्डिंग ने, नाम रखा क्राउन पैलेस। इस बिल्डिंग में ग्यारह फ्लोर हैं। हर फ्लोर पर दो फ्लैट। एक फ्लैट बिल्डर का है, बंद है। बाकि इक्कीस फ्लैटों में रिहाइश है। लॉकडाउन के दौरान क्या चल रहा है हर फ्लैट के अंदर?

आइए, हर रोज एक नए लेखक के साथ लॉकडाउन

मूड के अलग अलग फ्लैटों के अंदर क्या चल रहा है, पढ़ते हैं | हो सकता है किसी फ्लैट की कहानी आपको अपनी सी लगने लगे...हमको बताइयेगा जरुर...

मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन

कहानी 11

लेखिका: पूनम जैन

परमानेंट लॉकडाउन

होली खेलें मुनिराज अकेले वन में...भजन पूरा हो गया। अब कमरे में केवल पंखे की घड़-घड़ सुनाई दे रही थी। ठीक कराने के लिए बिजली वाले को कहा हुआ था कि लॉकडाउन हो गया। खैर, इतनी आवाज नहीं थी कि किसी को बहुत परेशानी होती। सोफे पर जैन साहब बैठे टिंडे छील रहे थे। अखबार बगल में सिमटा हुआ पड़ा था। मिसेज जैन पास ही फोन पर कैंडी क्रश खेल रही थीं। इसके अलावा भी कुछ आवाजें थीं। रसोई में बेटा बर्तन मांज रहा था और दूसरे कमरे में बेटी पोंछा कर रही थी। सब कुछ नॉर्मल था। यह अलग बात थी कि बर्तन धो-धोकर टोकरे में रखने की जगह थोड़ा पटक कर रखने की सी आवाज थी। पोंछा मारते समय आगे की ओर सरकाते समय बालटी से पानी कुछ ज्यादा ही बाहर गिर रहा था। और जैन साहब के हाथ से टिंडे बार-बार फिसल रहे थे। फिर भी कोई बहुत ऐसी बात नहीं थी, जिससे यह पता चल सकता कि बीती रात घर में क्या हुआ था!

यह लॉकडाउन ही था जिसकी वजह से पूरा परिवार इकट्ठा था। बेटी गिन्नी ने ग्रेजुएशन के बाद मुंबई मंे अनुपम खेर के एक्टिंग इंस्टीट्यूट से तीन महीने का डिप्लोमा किया था। और लगभग एक साल से अपनी एक दोस्त के साथ वहीं रह रही थी। मतलब, स्ट्रगल कर रही थी। अब पूरी तरह लॉकडाउन लगने की खबरें थीं, तो पापा ने वापस बुला लिया। घर आने की हल्की खुशी तो थी लेकिन मन भारी भी था। बीते एक साल में काफी कुछ बदल गया था। एक अलग किस्म की आजादी उसने महसूस की थी। दरअसल, गिन्नी एक अफेयर में थी। पलाश का साथ उसे अच्छा लग रहा था। अब उसी दिन जब उसे लौटना था, सुबह, ऑटो में बैठते समय, जब उसका एक पैर हवा में ही था, पलाश ने उसके उड़ते बालों को सहेजकर कंधे पर रख दिया था। हाथ थोड़ा ज्यादा सेंकेंड तक कंधे पर रह गया था। गिन्नी को उंगलियों की छुअन अलग सी महसूस हुई। उसने पलाश को देखा। फिर दोनों ऑटो में बैठ गए। उसके कुछ देर तक पलाश गुनगुनाता रहा- लंदन तो आई लगदा है/जिस हिसाब नू, चलदी आ/ लगदी लाहौर दिया, जिस हिसाब नू, हंसदी आ।

शायद उस दिन उनके हाथों, गालों और होंठों की दोस्ती भी हुई थी। उसके बाद से दोनों एक- दूसरे की पोस्ट पर केवल दिल चेप रहे थे। व्हाट्सएप चैट पर, गिन्नी हर लाइन के बाद चेहरे को दोनों हाथों से ढकी लड़की वाली इमोजी भेज रही थी और पलाश तीन पुच्ची वाली इमोजी।

अब बात मुदित की। मुदित बेंगलुरू से लौटा है। वहां किसी मीडिया कंपनी की डिजिटल विंग में काम करता है। वीडियो एडिटिंग के काम में माहिर है। बेंगलुरू में किराए पर रहता है। खाने, कपड़े और बर्तन के लिए मेड आती है। ऑफिस में लड़कियां भी काम करती हैं। उन्हीं में से एक है रिपोर्टर दिव्या। दिव्या के लाए इंटरव्यू और न्यूज पैकेजेस को एडिट करने का जिम्मा उसी का है। फिर दिव्या दिल्ली से है। नोएडा और दिल्ली की बातें तो ज्यादा होनी ही हैं। समस्या बस इतनी थी कि उसके सामने मुदित को बड़ा संभलकर बोलना पड़ता है। वह यह सोचकर दिव्या को चुटकला सुनाता है कि दिव्या को हंसी आएगी। लेकिन वो एंटीफेमेनिस्ट व सेक्सिस्ट कह कर भाषण दे देती है। उसी के असर में कहो या खुश करने की जुगत, वो भी जेंडर इक्वेलिटी की बातें करने लगा है। कुछ दिन पहले ही फोन पर मां की सांस फूलती हुई सुनाई दी तो बोला, ‘आपने ही पापा को बिगाड़ा हुआ है। पूरे दिन काम... पापा को क्यों नहीं कहतीं कि हेल्प किया करें।’

वैसे घर का काम मुदित को भी करना पसंद नहीं है। वह केवल मैगी बनाना जानता है। कुछ दिन पहले, दिव्या के चैलेंज को स्वीकार करते हुए उसने एक बार डेलगोना कॉफी बनाने का वीडियो शेयर किया था। हैरत तो सबको तब हुई जब उसने बर्तन मांजते हुए अपनी तस्वीर घर पर भेजी। लॉकडाउन के कारण मुदित की कंपनी ने फिलहाल कुछ स्टाफ को अनपेड लीव पर भेज दिया था। वो और दिव्या एक ही फ्लाइट से लौटे थे।

जैन साब की एमटीएनएल मंे सरकारी नौकरी थी। अब रिटायर हो चुके हैं। थोड़ा बहुत भाई के साथ प्रॉपर्टी डीलिंग का काम कर लेते हैं। सोसायटी की वेलफेयर कमेटी के मेंबर भी है। हर रोज कुछ समय वहां भी देते हैं। व्हाट्सएप पर कई गु्रप्स से जुड़े हैं। पाकिस्तान और चीन को गरियाने वाले संदेशों का आना-जाना लगा रहता है। सुबह सोसायटी के पार्क में शाखा लगती है, वहीं कुछ देर व्यायाम और चहलकदमी करने के बाद घर लौटते हैं और फिर मिसेज जैन के साथ बालकनी में चाय पीते हैं। उसके बाद रिश्तेदारों के गु्रप्स पर गुड मॉर्निंग के ज्ञान भरे संदेश और चुटकले भेजते हैं। कुछ-कुछ श्रीमती जी को भी सुना देते हैं। खान-पान के थोड़े शौकीन हैं। घीया, टिंडे, भिंडी, करेले आदि सब खा लेते हैं, बशर्ते कोफ्ते या भरवां सब्जी हो। खाने के बाद मीठे की चाह रहती है। फिर भी कुल मिलाकर ज्यादा उछलकूद नहीं करते। शांत ही हैं हमारे जैन साब। गौ-सेवा और दूसरे समाज सेवा के कामों के चक्कर में अपनी टोली के साथ मथुरा, वृंदावन और हरिद्वार भी जाते रहते हैं।

मिसेज जैन के बारे में ज्यादा क्या कहा जाए। वो हैं हाउस वाइफ। और हाउस वाइफ कहां कुछ करती हैं! एक ठीक-ठाक बनिया घर में ब्याह कर आई थीं। पढ़ी लिखी हैं। नौकरी भी लग जाती, पर जल्द ही शादी हो गई। ससुर जी ने किसी शादी में देखा था। देखते ही लगा कि यही लड़की उनके बेटे के लिए सही रहेगी। मिसेज जैन इंदौरी हैं। जाहिर है कि बोलने में उस्ताद हैं और खाना बनाने में भी। अकेले भुट्टे से ही न जाने क्या क्या बना देती हैं। भुट्टे की कीस, भुट्टे से खंाडवी, यहां तक कि हलवा भी। उनके हाथ की केर सांगरी, कढ़ी और बेसन के गट्टे की सब्जी की तो पड़ोसी भी मांग करते हैं। सास-ससुर ने शुरू में ही कह दिया था-सब कामों के लिए घर में नौकर हैं। बस हमें खाना बहू के हाथ का ही चाहिए। मिसेज जैन ने इस मामले में किसी को निराश भी नहीं किया।

छह साल पहले इस सोसायटी में आए थे। मिसेज जैन को यहां अच्छा साथ मिल गया है। सास-ससुर दोनों दूसरी दुनिया में जा चुके हैं। हर रोज सुबह वह अपनी एक दोस्त के साथ वॉक करने जाती हैं। पहले साड़ी में ही रहती थीं। अब सूट और कभी-कभार ट्रेक सूट में भी चली जाती हैं। पैरों में दर्द रहने लगा है। इसलिए स्पोर्ट्स शूज ही पहनती हैं। खूब हंसती बोलती हैं। कभी-कभार खरीदारी के लिए अपनी दोस्तों के साथ बाहर चली जाती हैं।

दोपहर में जब जैन साब थोड़ी देर कमर सीधी कर रहे होते हैं तब वे टीवी सीरियल्स देखती हैं। रात को स्टारप्लस के प्रोग्राम्स देखती हैं, दोपहर में कलर्स चलता है। बच्चों ने कहा भी कि अब वेबसीरीज देखा करिए, पर मिसेज जैन कहती हैं,‘जो कनेक्ट टीवी सीरियल्स में है, वो नेटफ्लिक्स और प्राइम वीडियो पर कहां! बस मारधाड़, सेक्स और गाली-गलौज।’

बीते बीस दिन से पूरा परिवार साथ था। मिसेज जैन चाव से तरह-तरह की चीजें बना रही थीं। गिन्नी अपनी दुनिया में ही लगी रहती। घर में रहकर वजन न बढ़ जाए, इसलिए सुबह योग और एक्सरसाइज करती। दिनभर में कुछ समय टिक-टॉक वीडियो बनाने और उन पर आने वाले लाइक कमेंट्स में बीत जाता। फिर दोस्तों से बातचीत। उसमें भी ज्यादातर समय प्रेम पलाश की बगिया में ही टहलती रहती। गिन्नी मैडम घर में कम, सोशल मीडिया पर ज्यादा रहती। उसकी आंखें और दिमाग हर समय सेल्फी और हैशटैग खोजते रहते। खाने में कुछ अच्छा बना तो # #maa_ke_hath_ki_khushboo पापा ने तेल मालिश की तो #papakilado, बालकनी में गिलहरी देखी तो # ginni_ki_gullu, गुलाब देखकर पलाश की याद आई तो #missing_my_flower, घोंसले में कबूतर-कबूतरी देखें तो #lockdown_gunturgoo। कभी परिवार पर प्यार तो #familyfirst और फिर अनबन हो गई तो #familysyape। यूं गिन्नी क्रिएटिव भी बहुत है। दूरदर्शन पर रामायण शुरू हुआ था। उसमें शुरू में धनुष पकड़े तीर का संधान करते हुए रामजी का चित्र आता था। गिन्नी ने तुरंत फोटो ली और तीर के आगे कोरोना वायरस पेस्ट कर दिया और हैशटैग हिन्दी में लिखा ‘अबकी बार कोरोना पर वार’। लॉकडाउन मेकअप और स्टाइल की वीडियोज अलग। इन्हीं सब में गिन्नी का दिन गुजर जाता था।

मुदित 26 के करीब है। बेंगलुरू से पहले एक नौकरी गुड़गांव कर चुका था। एक बे्रकअप से गुजर चुका था। अबकी घर आया तो थोड़ा खुश है। पढ़ता तो पहले भी था, पर आजकल दिव्या की पसंद की किताबें पढ़ रहा है। दिव्या उससे उम्र में डेढ़ साल बड़ी थी। सेपियंस पढ़ चुका था। अब घर में होमो डेयस पढ़ना चाहता था। पर दिव्या ने फ्लाइट में वन पार्ट वूमेन और लोनली हार्वेस्ट पकड़ा दी थी। अब वही पढ़ रहा है। ब्रेकअप के बाद से एक्सरसाइज करना छोड़ चुका था। लुक पर भी कम ध्यान देने लगा था। इस बार घर आते ही वापस एक्सरसाइज किट निकाल ली थी। वेट्स उठाने लगा था। सोसायटी कैंपस में ही थोड़ा बहुत रनिंग कर लेता है। कभी-कभी जगजीत सिंह भी सुन लेता। दिव्या के कहने पर भी अभी गुलाम अली और मेंहदी हसन तक नहीं पहुंच पाया था।

घर में खाना सब साथ ही खाते हैं। और वहीं पर मुदित की पापा से कोरोना और क्रिकेट पर बातें हो जाती हैं। जैन साब रिश्ते की बात चलाते हैं तो मुदित टाल जाता है। जैन साब वायरल हो रहे जमातियों के कारनामे सुनाते हैं,तो मुदित झट से उन खबरों की हकीकत सामने रखने लगता है। दिव्या और उसके कुछ दोस्त वायरल होने वाली इन खबरों का सच पता करके सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं। मुदित पापा को वह सुना देता है। इस तरह खाने की टेबल पर दो चार बार दिव्या का नाम भी आ जाता है। कभी-कभी मुदित और जैन साब की बहस भी हो जाती है, पर बात ज्यादा बढ़ती नहीं। फिर जैन साब की अच्छी बात यह थी कि मरने-मारने की बातें या धर्म की रक्षा के नाम पर दूसरों की मां-बहन करने वालों से दूरी ही बनाकर रखते थे।

हां, पर जैन साब प्रधानमंत्रीजी के बहुत बड़े फैन हैं। उनकी हर बात को मन से सुनते हैं। थाली बजाने से लेकर दिए जलाने के हर टास्क को उन्होंने मन से किया है। उस दिन तो जान-पहचान के डॉक्टर और सोसायटी में रह रहे पत्रकार और नर्स को फोन करके धन्यवाद भी कहा। मुदित इन टास्क को नाटक कहकर हंसी उड़ाता था। उसे लगता था कि इनकी जगह पर सरकार को असल कदम उठाने चाहिए। लेकिन, जैन साब को मुदित की इन बातों की परवाह नहीं थी। उन्हें इसमें देश प्रेम का जज्बा दिखाई देता था। हालांकि खबरों में सड़कों पर थाली पीटने उतरे लोगों के हुजूम को देखकर उन्हें बड़ा तेज गुस्सा आया था। अपने दोस्त से बोले- -अनपढ़ जाहिल लोग, किसी और देश में होते तो खाते पुलिस के डंडे। अकेला बेचारा पीएम कितना कोरोना से लड़ेगा!

इन्हीं सबके साथ रह रही हैं मिसेज जैन। हमेशा हंसती-मुस्कराती। खिला-खिला चेहरा। और अब सब साथ थे। खाने- पीने की फरमाइशों और घर के काम में ही मिसेज जैन का दिन बीत जाता था।

घर में सब आराम से थे। बस इतनी बात थी कि सबकी घर से अलग भी अपनी-अपनी दुनिया थी। और अब हर दिन बीतने के साथ उन्हें बाहर की उस दुनिया की याद सताने लगी थी। उस दुनिया की जहां हैरान-परेशान दौड़ भाग करते लोगों के चेहरे थे। रिश्तेनाते थे। दुनियादारी थी। यार दोस्त थे, उनकी छुअन थी। सुबह बिस्तर छोड़कर खड़े होने की वजह थी।

गनीमत है कि हमारे शरीर की मशीनरी में एक पेट भी है, जिसे भरने के लिए उठना ही पड़ता है। पेट के सवाल पर ही तो मजदूर शहरों की ओर भागता है। और फिर जब काम पर मार पड़ती है तो वापस पेट पर गीली पट्टियां बांधे जड़ों की ओर लौटने को बेचैन हो उठता है। इसी चाह में कि और कुछ नहीं तो कम से कम अपनों के बीच मरने का सुकून तो मिलेगा।

यूं भी हमें खुद को नहीं दूसरों को देखने, दिखाने की आदत होती है। सारा ताम-झाम, सारे रंग, सारे बाजार इस बाहर की दुनिया के ही तो हैं। केवल खुद से ही निभाना हो तो फिर बात ही क्या! और अभी सबसे बड़ी बात यही थी कि जैन साब के घर सब वापस अपनी-अपनी दुनिया में लौटने को बेचैन होने लगे थे। ऐसा नहीं है कि बाहर उनके लिए कोई बहार थी। पचड़े कम न थे। गिन्नी कई जगह स्क्रीन टेस्ट दे चुकी थी, पर बात नहीं बन रही थी। मुंबई में रहना और अपनी जगह बनाना मुश्किल होता जा रहा था। पिछले कुछ समय से मुदित की दुनिया दो चीजों तक सिमट गई थी-नौकरी और पहाड़ों पर ट्रैकिंग। अब कोरोना काल में नौकरी जाने का संकट मंडराने लगा था। वहीं जैन साब को यूं पैसे की कमी नहीं थी। पैंशन आ रही थी। सेहत भी ठीक थी। बावजूद, दोनों बच्चों की जिम्मेदारी सिर पर थी। रिटायरमेंट के बाद एक शेड्यूल बन गया था। पर अब वे भी घर में ही रह गए थे।

और मिसेज जैन को काम से ही फुरसत नहीं मिलती थी। थोड़ा बहुत समय मिलता तो सब अपने-अपने काम या मोबाइल मंे लगे होते। और फिर वे भी मोबाइल में लग जातीं। इस तरह सबके सपने, एहसास, पहचान, रोमांच,भागदौड़, मिलना-जुलना तीन बैडरूम वाले घर में कैद होकर रहे गए थे।

सबको एक अलग तरह की घुटन का एहसास होने लगा था। और सबसे मजेदार बात पता है क्या थी? पहले जिन कामों को करते हुए बोर होते थे, अब उन्हीं के लिए तरस रहे थे। पहले मन के काम करने का समय नहीं मिलता था। अब समय मिल रहा है तो बोर हो रहे थे। गिन्नी सेल्फी और हैशटैग की दुनिया से उकता गई थी। चेहरे पर तरह-तरह के पैक लगाने, टिक-टॉक वीडियो में तरह-तरह के चेहरे बनाने से ऊबने लगी थी। मुंबई दूर थी और घर में बंद होकर रहना काटने को दौड़ रहा था।

मुदित कितनी ही बार पहले बॉस के चिल्लाने और बढ़ते काम के स्ट्रेस से झल्ला उठता था। पीयर प्रेशर के कारण लेट नाइट पार्टी या दोस्तों के साथ शॉपिंग आदि करना उसे पसंद नहीं था। यही चाहता था कि घर के लोगों के साथ कुछ समय चैन से सोने, खाने को मिल जाए तो कितना अच्छा! पर अब होने पर भी चैन नहीं था। देर रात तक मोबाइल पर उंगलियां फिराता रहता। वेबसीरीज देख-देखकर बोर हो चुका था। मन वापस दोस्तों से मिलने, ट्रेकिंग करने, बॉस की गॉसिपिंग करने और ऑफिस के अपने उस छोटे से स्क्वेयर में लौटने को मचल रहा था।

खैर, अब जानते हैं उस रात क्या बवाल हुआ था? लॉकडाउन का 20वां दिन ज्यादातर बीत चुका था। रात के करीब 9 बजे थे। वे खाना खा चुके थे। मिसेज जैन ने आज कुछ मीठा नहीं बनाया था। कमर का दर्द बढ़ा हुआ था। जैन साब ने मीठा खाने की इच्छा जाहिर की तो मिसेज जैन ने पास ही रखी सोंफ की डिब्बी आगे सरका दी। इतने में ही इंदौर से मिसेज जैन के छोटे भाई का फोन आ गया। भाई ने जो बताया उसे सुनकर उनकी आवाज थोड़ा तेज हो गई। पहले मुंह से निकला-अरे कब, हद है ये तो। इधर जैन साब और बच्चे मिसेज जैन की ओर देखने लगे। मिसेज जैन की छोटी भाभी डॉक्टर हैं। इंदौर में बीते कुछ दिन से हालात लगातार बिगड़ रहे थे। कुछ लोग डॉक्टरों पर हमले कर रहे। भाई ने बताया कि कल रात सोसायटी के लोग चेतना को अंदर नहीं आने दे रहे थे। लोगों का कहना था कि चेतना के कारण सोसायटी में संक्रमण फैल सकता है। आखिरकार पुलिस ही बुलानी पड़ी। पीछे से भाई की 6 माह की बच्ची रोने लगी थी। ‘दीदी, अभी थोड़ी देर में बात करता हूं, यह कहकर भाई ने फोन रख दिया।

मिसेज जैन, जैन साब से बात करने लगी- ‘ढोंगी समाज। कल सम्मान में थालियां पीट रहा था, आज डॉक्टरों को पीट रहा है। बात करेंगे फिर इंसानियत की, महान संस्कृति की। सबसे पहले तो इन्हें ही डंडे पड़ने चाहिए।’ बात तो जो हुई खराब ही थी। लेकिन जैन साब ने मिसेज जैन का मूड ठीक करने के लिए बात बदलने की सोची। और यहीं वो गलती कर बैठे। जैन साब नोएडा की एक खबर बताने लगे-घर के काम से परेशान होकर पत्नी रात को पैदल मायके के लिए निकल पड़ी। घर में सबके वर्क फ्रॉम होम से थी परेशान। पति ने मुश्किल से मनाया। सबने कहा हम भी मिलकर कराएंगे काम। यह कहकर जैन साब हंसते हुए मिसेज जैन की ओर देखने लगे।

मूड उखड़ा हुआ था ही, ऊपर से कमर दर्द

मिसेज जैन: इसमें हंसने की बात क्या है?

जैन साब-मतलब!

मिसेज जैन: -हां, यही पूछा कि आपको इस पर इतनी हंसी क्यों आ रही है?

जैन साब-अरे तो क्या रोने की बात है। इतनी दिक्कत थी घर में ही बैठकर बात कर लेती।

मिसेज जैन: - अच्छा! औरत की शांति से कही बात क्या किसी को समझ आती है? आप लोगों को ही कितना समझ आता है?

गिन्नी-चिल मॉम। अब इसमें अपन की बात कहां से आ गई?

मिसेज जैन: -तू तो बोल ही मत। बड़ी आई चिल मॉम। बता, इन 20 दिनों से कौन से पहाड़ तोड़ रही है। एक दिन दो गिलास धो दिए तो फोटो के साथ हैशटैग डाल रही थी-#मांकाअत्याचार। पूरे दिन वीडियो, दोस्तों से बातें और मोबाइल। बता, कौन सा काम किया है? घर में एक 24 घंटे का रसोइया आ जाए तो मां की भी जरूरत नहीं।

गिन्नी तो एकदम चुप। जान रही थी इस वक्त कुछ कहा तो और सुनेगी। मुदित ने मां को शांत करने की कोशिश की। वह गिन्नी को ही बोला, ‘गिन्नी, कोई नहीं। मां ठीक कह रही है। ऐसा कर, अंदर से तेल लाकर मां की कमर में लगा दे।’

यह कहकर मुदित पापा की ओर इस तरह देखने लगा मानो कह रहा हो आपने भी क्या आफत मोल ले ली।

मिसेज जैन: क्यों बेटा, अपने पापा की ओर क्या देख रहा है?

मुदित: कुछ नहीं मम्मी।

मिसेज जैन : नहीं, नहीं तू भी कुछ बोल। दोपहर में क्या कह रहा था- ‘पता नहीं पापा कैसे टाइम पास करते हैं। मेरा तो दिमाग खराब होने लगा है। आपको तो आदत है।

मुदित: मम्मी, उस वक्त कुछ और बात हो रही थी।

मिसेज जैन: यही तो पूछना चाह रही हूं कि क्या अलग बात थी। बता ना, एक दिन अपनी मां को भी पिला देता ना कॉफी बनाकर, हम भी खा लेते मैगी। झूठे बर्तन रख के आने के लिए तो दो बार कहना पड़ता है। हंसी उड़ाते हो न क्या पूरा दिन टीवी सीरियल्स और कैंडी क्रश खेलते रहते हो? बता कितनी साथ बैठकर बातें की हैं। आदत डालनी पड़ती है बेटा। लॉकडाउन तुम्हारे लिए नया है। मेरा तो पर्मानेंट लॉकडाउन है। और क्या कह रहे थे तुम- पापा क्यों नहीं काम में हाथ बंटाते? मेरे साथ रसोई में किया कर काम। तू क्यों बन रहा है पापा जैसा।

लॉकडाउन ने तुम्हारा ही दिमाग खराब नहीं किया, मेरा भी कर दिया है। मिसेज जैन की आवाज भर्राने लगी थी। सब चुप थे मानो सांप सूंघ गया हो। हल्का सा चुप रहने के बाद फिर कहने लगीं,

और हां, जैन साब। दो दिन पहले क्या कह रहे थे-क्वारंटीन कॉन्सटिपेशन। जब हिलेंगे नहीं, पूरे दिन पड़े रहेंगे, खाया, पिया सो गए तो मोशन जाम नहीं होंगे तो क्या होंगे! जैन साब चुप ही रहे। उन्होंने मिसेज शर्मा को पानी का गिलास पकड़ाने की कोशिश की। उसे बिना हाथ लगाए मिसेज शर्मा रसोई में अपने बर्तन रखने चली गई। पीछे सब एक-दूसरे का मुंह देखने लगे।

अगले दिन सब ‘सामान्य’ ही था। बस सब थोड़ा ज्यादा संभलकर बात कर रहे थे। कौन क्या करेगा ऐसा कुछ तय नहीं हुआ था, पर सबके हाथ चल रहे थे। मिसेज जैन को भी लग रहा था कि वह कुछ ज्यादा ही बोल गईं थीं।

खैर, आज सबको उम्मीद थी कि 21 वें दिन पीएम लॉकडाउन को खोलने की बात कहेंगे। और सब फिर पहले जैसा हो जाएगा। लेकिन लॉकडाउन अभी और आगे बढ़ा दिया गया था।

कुलमिलाकर, एक अजीब सी चुप्पी घर में पसरी थी। जैन साब अचानक उठे और म्यूजिक प्लेयर के पास चले गए। भजन की धीमी-धीमी आवाज उस चुप्पी को तोड़ रही थी।

होली खेलें मुनिराज खड़े वन में

अकेले वन में हो...अकेले वन में

लेखिका परिचय: पूनम जैन। दिल्ली विश्वविद्यालय से बीकॉम और पत्रकारिता की पढ़ाई। चीफ कंटेंट क्रिएटर, हिंदुस्तान।

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लेखिका परिचय: पूनम जैन। दिल्ली विश्वविद्यालय से बीकॉम और पत्रकारिता की पढ़ाई। चीफ कंटेंट क्रिएटर, हिंदुस्तान।

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