chintu - 33 in Hindi Fiction Stories by V Dhruva books and stories PDF | चिंटु - 33

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चिंटु - 33

बेला ने गले तक अपना घूंघट उठाया और इवान को अपना मंगलसूत्र दिखाती है और इशारे से कहती है अब से तुम मेरे पति हो। इवान पूछता है- क्या??? ये मैंने पहनाया है, ऐसा बोल रही हो?
बेला सिर हिलाकर हां में जवाब देती है।
इवान कहता है- ऐसा मत करो सौम्या। मैंने ये शादी मज़बूरी में कि है। अगर मै शादी ना करता तो ये डाकू लोग मेरे मम्मी पापा को मार देते।
बेला को घूंघट में ही हसी आ गई। वह भी बिचारे को तड़पाने में कोई कसर बाकी नहीं रखती है। इवान को सुबह से सब मिलकर उल्लू बना रहे थे उसका अब एंड आने वाला था।
इवान बेला से कहता है- ऐसे समय पर तुम्हे हंसी आ रही है? कही ऐसा तो नहीं के तुम्हे ये रिश्ता मंजूर हो?
बेला फिर सिर हिलाकर हां में जवाब देती है तो इवान गुस्सा हो जाता है। और कहता है- ये क्या घोड़े की तरह मुंडी हिलाए जा रही हो। मुंह से कुछ बोलो भी।
तब जा के बेला कहती है- हां, मुझे ये शादी मंजूर है।
बेला की आवाज सुनकर इवान अवाक रह जाता है। वह तुरंत बेला का घूंघट उठाता है। सामने बेला को देख वह जट से उसे गले लगा लेता है और कहता है ये तुम हो?
बेला कहती है- हां मै ही हुं और मेरी शादी ही तुमसे हुई है। उनकी आवाज सुनकर चिंटु और सुमति अंदर आकर बेला के साथ हंसने लगे। इवान खुशी से पागल हो जाता है। चिंटु उसे सावधान करते हुए धीरे बोलने को कहता है।
इवान- ये सब करने की क्या जरूरत थी? सीधे सीधे नहीं बता सकते थे कि मेरी शादी बेला से ही हो रही है? कितना तड़पा हुं सुबह से लेकर अब तक।
बेला उसके बालो को सहलाने लगी। सुमति और चिंटु अब भी हस रहे थे। चिंटु इवान से कहता है- अगर सुबह सब बता देता तो अभी जो खुशी हुई है ऐसी होती क्या?
इवान- ऐसी तो नहीं होती पर कम से कम पूरा दिन गिल्ट में तो ना रहता के सौम्या को मेरी वजह से...। और मम्मी पापा? वो भी इस प्लान में शामिल थे?
तो बाहर से मेरी और रॉबर्ट भी हंसते हुए अंदर आए।
रॉबर्ट इवान से कहते है- सॉरी माय चाइल्ड। हमने तो चिंटु को बोला था सब बताने को पर इसे ही शरारत सुजी थी।
इवान- और इस चक्कर में सच में मेरी शादी सौम्या से हो जाती तो?
चिंटु- पर वो तुझे पहचान गई ना।
इवान- अगर ना पहचानती तो?
चिंटु- ये आप लोगो की गलती है। हमे पहले ये सब बताना चाहिए था न। तो ये आती ही नहीं दुल्हन बनकर। तुम्हारे जाल में तुम खुद ही फंस गए थे बच्चू..।
सब हस रहे थे। और इवान बेला को देखे जा रहा था। चिंटु सबसे कहता है- चलो भाई, खोली खाली करो। वरना ये हमारी भी शर्म नहीं करेगा।
बेला यह सुन शरमा जाती है बाकी सब हंसते हुए बाहर निकलते है।

सब के जाने के बाद इवान बेला का हाथ मरोड़ता है और कहता है- इन सब में तुम भी शामिल थी?
बेला दर्द से कहती है- हाथ छोड़ो वरना बाबा को बुला लूंगी।
इवान डर से तुरंत हाथ छोड़ देता है।
बेला कहती है- पागल हो क्या? इस वक़्त मै बाबा को बुलाऊंगी क्या?
इवान उसे कहता है- तो क्या करू? फिर से हाथ मरोडू या...
इवान के आगे बोलने से पहले ही बेला अपने होंठ उसके होंठो पर रख देती है। टेंट में रखे लालटेन को बुजाकर दोनों एक दूसरे में खो जाते है।

****
दिग्विजय सिंह और रमादेवी अपने टेंट में बात कर रहे थे। मोहन और हीरा भी वहां मौजूद थे।
रमादेवी आंखो में आंसू लिए बोल रही थी- हमारी बेटी की बिदाई है। मै कैसे उसे बिदा कर पाऊंगी? इतने सालो से हमारे साथ रही थी, एक पल भी पराई नहीं लगी। और आज... वह फिर से हमे छोड़कर किसी और के साथ चली जाएगी।
दिग्विजय- ये तो दुनिया का दस्तूर है। तुम भी तो अाई थी अपने मा बापु को छोड़कर।
रमादेवी- वो तो है। पर बेटी की बिदाई इतनी कठिन होगी नहीं पता था। पेटजनी तो नहीं है पर दिल का रिश्ता बन गया है उससे। क्या हम...( वह आगे बोलते बोलते अटक जाती है)
दिग्विजय- क्या हुआ? कुछ कह रही थी।
रमादेवी- वो... मै... कह रही थी हम उसे बिदाई के वक्त क्या देंगे। दहेज भी तो कोई रिवाज है। (असल में वह बोलने वाली थी की हम बेला और इवान को अपने साथ ही रख ले। फिर बेला के भविष्य को देखकर वह आगे नहीं बोली।)
दिग्विजय- हां, तुम सच कह रही हो। मोहन, हमारे पास अभी कितनी रकम पड़ी है?
मोहन- सरदार अभी शायद पंद्रह लाख जितना पड़ा है और यही कोई चार पांच लाख के गहने होंगे। बाकी के रुपए गाव में मेरी मौसी के घर रखवाए है।
दिग्विजय- अच्छा, ऐसा करो के सात लाख नगद और दो लाख तक के गहने बेला के लिए रखाव दो अलग।
हीरा बोलता है- सरदार, मैंने हमेशा से बेला को अपनी छोटी बहन मना है। मेरे पास पच्चीस हजार पड़े हुए है। मै भी अपनी तरफ से उसे देना चाहूंगा।
तो रमादेवी कहती है- नहीं हीरा, वो तुम्हारे खेतो के लिए है। जमींदार से उसे छुड़वा लो, उसे खर्च मत करो। यह सब जो उसे दिया जाएगा वह हम सब के हिस्से से ही जाएगा। अब आगे कोई बात नहीं...
मोहन कहता है- पर वो हमारी भी बहन है तो..
दिग्विजय बीच में ही उसकी बात काटते हुए- अभी जो तय हुए वो फाइनल रहेगा। और भी आगे रीति रिवाज आयेगे। तभी तुम लोग खर्च कर लेना।
मोहन- क्या वो ससुराल से वापस कभी हमे यहां मिलने आएगी?
उसके सवाल से सब चुप हो जाते है।

****
दूसरे दिन सुबह

चिंटु, सुमति और मेरी आंटी अपना समान समेटने में लगे थे। वैसे ज्यादा कुछ था नहीं पर जितना है वह एक थैले में रख रहे थे। और मेरी और रॉबर्ट के पास अपनी बेग थी ही। यहां से जाने की खुशी उन सबके चेहरे पे दिख रही थी। रॉबर्ट बैठे बैठे बाते करते हुए कहता है- मेरी, क्या तुमको पता था हमारे इवान की मैरेज इतनी जल्दी हो जाएगी?
मेरी- क्या रॉबर्ट? कैसी स्टुपिड जैसी बात करता है? मुजे कैसे मालूम होगा? अब मैरेज हो गई तो हो गई। वैसे अच्छा ही है, इवान को इतनी सुन्दर वाइफ शहर में तो ना ही मिलती। तुम देखना वो मिसिस गाइतुंडे तो जल जाएगी मेरी सन इन लो को देखकर। हमेशा कहती रहती थी के अपने बेटे का शरीर कुछ कम कराओ वरना लड़की नहीं मिलेगी। अब दिखाऊंगी मै भी... हूं।
रॉबर्ट- ये लेडीज कभी नहीं सुधरेंगी।

चिंटु और सुमति उन दोनों की बातो पर हंस रहे थे। सुमति के मन में एक अनजान सा डर था। वापस जाना उसे एक तरह से अच्छा नहीं लग रहा था। वापस जाकर वह चिंटु से नहीं मिल पाएगी। और पुनिश और मम्मी पापा को क्या कहूंगी? चलो पहले यहां से निकले तो सही। फिर जो होगा देखा जायेगा।

बेला और इवान भी तैयार हो गए थे। बेला अपने मा बाबा से मिलने गई तो इवान अपने मम्मी पापा के पास आ गया। वहां चिंटु और सुमति को देखकर उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।
चिंटु इवान के पास जाकर उसे चिढ़ाते हुए कहता है- क्या जनाब... बहुत खुश लगा रहे हो...?? हम्म...
इवान शरमाते हुए- जाना तु भी क्या? वैसे मै तुम लोगो को माफ़ नहीं करने वाला। ऐसा डेंजरस मजाक कोई करता है क्या?
रॉबर्ट ने पूछा- कैसा मजाक?
इवान- अरे कल इन लोगो ने जो किया वो। यह सुन एकबार तो मेरी और रॉबर्ट भी हंस पड़े। फिर रॉबर्ट कहता है- चलो ठीक है, सब अच्छे से हो गया। इवान, माय चाइल्ड तुम खुश होना?
इवान- यस पापा! बेला मेरी जिंदगी में आ गई तो मै बहुत खुश हु। हां बस इसे शहर के कुछ तौर तरीके सीखने पड़ेंगे और कुछ नहीं।
तो सुमति कहती है- ये बात तुम मुज पर छोड़ दो। एक महीने में मॉडर्न बना दूंगी उसे। कोई कह भी नहीं सकेगा ये गांव की गोरी है।
यह सुन मेरी कहती है- उसे जबरदस्ती मत बदलना। जैसी भी है अच्छी है।
सुमति- वो तो है आंटी। इतने दिनों से साथ है पर कभी वह पराई नहीं लगी। हमेशा अपनापन महसूस होता था। और आज देखिए... बहू बनाकर साथ ले जा रहे है।

****
रमादेवी बेला से आंखो में आंसू लिए कहती है- बिटिया, अगर हमसे कोई गलती हुई हो या तुम्हारा दिल कभी दुभाया हो तो कहा सुना माफ़ करना।
बेला- ये आप क्या कह रही है मां? आप लोगो ने तो मुजे नई जिंदगी दी है। मै सपने में भी आपकी कही बातो का बुरा नहीं मानती। मां बाप अपने बच्चो को वहीं कहते है जो सही है। ये उनका इतने सालो का तजुर्बा बोलता है। क्या कोई मां बाप अपने बच्चो का अहित करना चाहते है? नहीं ना... तो फिर...।
दिग्विजय भी आज बेला की बिदाई से दुःखी है। वह बेला से कहते है- बेला तुम्हारी कमी हमे हमेशा खलेगी। तुम हमसे मिलने साल मै एक बार जरूर आ जाना।
बेला- ये भी कोई कहने की बात है बाबा? मै आपसे हमेशा मिलने आया करूंगी। बस जब भी मन करे संदेश भिजवा देना। मै आ जाऊंगी। मै इवान से कह दूंगी अपना मोबाइल नंबर आपको दे देगा।
रमादेवी- बिटिया, वो जल्दी जल्दी में तुम्हारी शादी का तोहफा नहीं ला पाए। तो ये कुछ रुपए और गहने हमने तुम्हारे लिए रखे है।
रमादेवी बेला को एक पोटली थमाती है। बेला को पोटली देख अंदाजा आ जाता है कि मां बाबा ने रकम ज्यादा रखी है।
इतने में इवान और उसके मम्मी पापा, सुमति और चिंटु भी वहां आ जाते है। इवान आकर रमादेवी और दिग्विजय के पैर छूता है। और पास खड़े मोहन के भी। मोहन उसे पैर छूने से मना करता है तो इवान कहता है- आप हमसे बड़े है ब्रदर। हमारा फर्ज बनता है आपके पैर छूना।
यह देख दिग्विजय सोचता है ' लड़का तो हमने सही ही चुना है हमारी बिटिया के लिए'।
इवान बेला के हाथ में पोटली देख पूछता है- ये क्या है बेला?
बेला जवाब देती है- ये मां और बाबा ने कुछ रकम दी है हमारी शादी के तोहफे के रूप में।
इवान- क्या? इतनी...?
वह पोटली खोलकर देखता है उसमे काफी सारे पैसे और गहने रखे है। वह तुरंत उस पोटली को बंद करके दिग्विजय के पास जाता है और कहता है- बाबा, यह सब क्या है? आप हमे दहेज दे रहे है? आपको पता नहीं दहेज देना और दहेज लेना कानूनन अपराध है?
दिग्विजय कहता है- ये दहेज नहीं तोहफा है आप दोनों के लिए।
इवान- बाबा, हम ये नहीं ले सकते। अगर आपको देना है तो आशिर्वाद दीजिए। अभी हमारे नए जीवन की शुरुआत के लिए वो ही सबसे ज्यादा जरूरी है।
चिंटु और सुमति इवान को सुन एक दूसरे से कहने लगे- यार ये तो शादी करके समजदार बन गया।
दिग्विजय- बेटा, ये तो...
इवान- कुछ नहीं, अगर आप जिद करेंगे तो मुझे बेला को भी यही छोड़कर जाना पड़ेगा।
रमादेवी- अरे नहीं नहीं बेटा, ऐसा नहीं बोलते। ये हमारा प्यार है आप दोनों के लिए।
यह सब सुनकर मेरी बोलती है- बहनजी, इवान सही कह रहा है। हम इतना तो कमा ही लेते है जिससे आपकी बेटी खुश रह सके। हमे इसकी जरूरत नहीं है। और कभी होगी तो मांग लेंगे। अब तो हम सब एक ही है।
रॉबर्ट कहता है- हम सब एक नहीं, हम सब संबधी है। कहां डाकू बना रही हो सबको।
उसकी बात पर सब हंसने लगते है। रमादेवी और दिग्विजय इवान की जिद के आगे जूक गए। फिर भी उन्होंने कुछ गहने जो रमादेवी के खुद के थे वह जबरदस्ती बेला को पहना दिए। और कुछ मेरी और सुमति को भी पहनाए।
रॉबर्ट ने अब जाने की इजाज़त मांगी। यह सुन रमादेवी का मन भारी हो जाता है। वह बेला को आशिर्वाद देते वक्त अपने आंसू नहीं रोक पाई। बेला भी उनसे लिपटकर बहुत रोई। वहा खड़े सबकी आंखो मै आंसू आ गए। किसी ने सोचा भी नहीं था कि बेला की शादी इतनी जल्दी और इस तरह से होगी।

आज सबको पता चला कि डाकुओं के दिल में भी प्यार होता है। बेला को बिदा करते वक्त सारे गिरोह की आंखे नम हो गईं थी।
दिग्विजय ने सबके लिए घोड़े का बंदोबस्त करवा दिया था।

****
मोहन अपने कुछ साथियों को साथ लेकर उन लोगो को शहर तक छोड़ने जा रहा था। पर जब वे सब अपनी मंजिल तक पहुंचने आए तब चिंटु ने सबको रुकने के लिए कहा।
सब लोग पूछने लगे यहां क्यों रोक दिया?
तो चिंटु ने जवाब दिया- हम इन लोगो को अपनें साथ ले जाकर मुसीबत में नहीं डाल सकते। मोहन भैया आप लोग यही से ही वापस चले जाइए हम अपने आप बाहर निकल जाएंगे। वहां पुलिस भी हो सकती है।
रॉबर्ट ने भी कहा- हां यही सही रहेगा। मोहन, हमे आप सब की बहुत याद आएगी। और बेला के बाबा को कहना बेला की बिल्कुल फिक्र ना करे। ये अब हमारी जिम्मेदारी है।

सब नीचे उतरकर एक दूसरे के गले लगते है। बेला का जी घबराने लगता है। अपने साथियों को अब आखरी बार देखकर वह रोने लगती है और सबके पैर छूती है। मोहन और बाकी साथी भारी मन से उन सबको बिदा करके वापस मुड़ते है।

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आज सुबह से ही साफ मौसम के कारण पुलिस और आर्मी के जवान के साथ साथ पुनिश भी सबको ढूंढने निकल पड़ा था। चिंटु और उनके साथियों को जहां छोड़ा गया था वहां से शहर तक का रास्ता मोहन ने बता दिया था जो सात किलोमीटर का था। और वैसे भी उनके घोड़े ट्रेइंड थे, कही भी छोड़ दो वापस अपने मालिक के पास पहुंच जाते थे। वे सब करीब दो किलोमीटर आगे आए तो कुछ आवाजें सुनाई देने लगी। जैसे जैसे वे आगे बढ़े वैसे वैसे कई लोगो की चलने की आवाजे सुनाई देने लगी। वह एक आर्मी की टुकड़ी थी, जिसमे पुनिश भी था। आज कैसे भी करके सौम्या को ढूंढने के लिए सिर पर कफ़न बांधकर निकला था। कुछ भी हो जाए आज खाली हाथ नहीं आना था उसे। और भगवान ने आज उसकी सुन भी ली। जमीन अब भी गीली थी तो वे उसी हिसाब से आगे चल रहे थे।

इधर चिंटु एंड टीम घोड़ों पर सवार आगे चले जा रहे थे। जब वे एक दूसरे के आमने सामने पहुंचे तो पुनिश ने तो मानो दौड़ ही लगा दी सौम्या का नाम लेकर। उसकी आंखो मै आंसू आ गए थे। चिंटु उसे देखता ही रह गया। पुनिश को देखकर सुमति भी खुश हुई। इतने दिनों बाद वो किसी अपने को देख रही थी। पुनिश सुमति के पास जाकर उसे घोड़े से नीचे उतरता है और कस कर गले लगा लेता है।
पुनिश उससे पूछता है- तुम ठीक हो? आप लोग इस तरह कैसे? डाकू लोग कहां है? और आप सब के पास ये घोड़े?
सुमति उसे रोकते हुए कहती है- अरे अरे रुको...। एक ही बार में कितना पूछोगे? पहले हम मम्मी पापा के पास चलते है फिर बाकी बाते करते है।
पुनिश- हा हा, चलो। पर मै पहले इंस्पेक्टर राजीव को कॉल कर देता हुं। अभी ज्यादा जंगल के अंदर नहीं पहुंचे तो मोबाइल में नेटवर्क आता ही होगा।

पुनिश इंस्पेक्टर राजीव के साथ साथ सुमती के मम्मी पापा स्नेहा और राहुल को भी बता देता है के सब मिल गए है और हम सब वापस आ रहे है। खुशी के मारे उसने अब तक ध्यान नहीं दिया था कि इन लोगो के साथ चूड़ा पहनकर एक और लड़की भी है। सब पक्के रास्ते पर आकर घोड़े वहीं छोड़ देते है। जब आर्मी के जवान उन्हें पकड़ने जा रहे थे तो सुमति उन्हें मना करती है पकड़ने के लिए और कहती है- इन बेजुबानों को मत पकड़िए। वे अपने रास्ते चले जाएंगे।
पुनिश- पर ये घोड़े तो...
सुमति उसे बीच में टोकते हुए- plz उन्हें जाने दो पुनिश।

पुनिश आर्मी के जवान को उन्हें ना पकड़ने का कहकर वहा से आर्मी की ज़िप में सबको रेस्ट हाउस पर ले जाता है जहां पर सब रुके है।
जैसे ज़िप रेस्ट हाऊस पहुंचती है चिंटु की मां शारदा और बाकी सब बाहर आ जाते है। सब अपने अपने बच्चे को गले लगाकर रो रहे थे। सबको मिलने की खुशी के कारण एक बार भी किसी का ध्यान बेला पर नहीं गया।

क्रमशः