क्वारंटाइन...लॉक डाउन...कोविड 19... कोरोना के नाम रहेगी यह सदी। हम सब इस समय एक चक्र के भीतर हैं और बाहर है एक महामारी। अचानक आई इस विपदा ने हम सबको हतप्रभ कर दिया हैं | ऐसा समय इससे पहले हममें से किसी ने नहीं देखा है। मानसिक शारीरिक भावुक स्तर पर सब अपनी अपनी लडाई लड़ रहे हैं |
लॉकडाउन का यह वक्त अपने साथ कई संकटों के साथ-साथ कुछ मौके भी ले कर आया है। इनमें से एक मौका हमारे सामने आया: लॉकडाउन की कहानियां लिखने का।
नीलिमा शर्मा और जयंती रंगनाथन की आपसी बातचीत के दौरान इन कहानियों के धरातल ने जन्म लिया | राजधानी से सटे उत्तरप्रदेश के पॉश सबर्ब नोएडा सेक्टर 71 में एक पॉश बिल्डिंग ने, नाम रखा क्राउन पैलेस। इस बिल्डिंग में ग्यारह फ्लोर हैं। हर फ्लोर पर दो फ्लैट। एक फ्लैट बिल्डर का है, बंद है। बाकि इक्कीस फ्लैटों में रिहाइश है। लॉकडाउन के दौरान क्या चल रहा है हर फ्लैट के अंदर?
आइए, हर रोज एक नए लेखक के साथ लॉकडाउन
मूड के अलग अलग फ्लैटों के अंदर क्या चल रहा है, पढ़ते हैं | हो सकता है किसी फ्लैट की कहानी आपको अपनी सी लगने लगे...हमको बताइयेगा जरुर...
मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन
कहानी 10
लेखिका: रश्मि रविजा
गुड बाय नहीं...सी यू
लम्बा सा गलियारा बिलकुल शांत है. नीली दीवारों पर हल्की रौशनी पड़ रही है. धुला-पुंछा फर्श चमचमा रहा है. कोनों में बड़े से गमले में प्लास्टिक का रबर प्लांट लगा हुआ है.दूर से पत्ते बिलकुल सजीव दिखते हैं. यानी कि आँखों को हरियाली भी मिलती रहे और पानी डालने,मिटटी के दाग का कोई टेंशन भी ना हो. नीली कुर्सियों की कतार में एक कुर्सी पर देवेन अकेले बैठे हैं. दरम्याना कद, ना दुबले-न मोटे. कच्चे-पक्के बालों और थोड़ी सी बढ़ी दाढ़ी के साथ चेहरा बहुत थका सा लग रहा है. कई रातों से नींद न पूरी होने की निशानी लिए आँखें टमाटर की फांक सी लाल नजर आ रहीं हैं. यही कोई और समय होता तो कितनी ही कुर्सियां भरी होतीं. लोग तेजी से आ जा रहे होते. अस्पताल में गहमा गहमी होती.और क्या वे यूँ अकेले बैठे होते ? पर इस कोरोना कहर ने पूरे शहर और देश क्या...सारे संसार को ही ताले में बंद कर रखा है. तंगम के भीतर पल रही ये इतनी बड़ी बीमारी भी क्या इस तालेबंदी से घबरा कर ही,छटपटा कर बाहर आ गई. तंगम ने कितने प्यारे ख्वाब संजो रखे थे. अगर इस कोरोना का कहर न बरपा होता होता तो इस वक्त वह अपने पोते-पोतियों के साथ सिडनी के किसी बीच पर रेत के महल बना रही होती पर ये रेत के महल तो तैयार होने से पहले ही भरभरा कर गिर पड़े.और वह नीले समुद्र के किनारे,ठंढी बयार और उजली रेत के बीच होने की बजाय, तरह तरह के उपकरण और सफेद कोट से लैस डॉक्टर्स के बीच ऑपरेशन टेबल पर बेखबर लेटी हुई है.
सब कुछ सलीके से बिलकुल अनुशासित ढंग से करने वाली तंगम की सारी तैयारी पूरी हो चुकी थी. महीनों पहले से अचार-पापड़, साम्भर मसाला, चाय-पत्ती,चिप्स, सोहन हलवा के साथ बहू और बेटी के लिए सलवार सूट, बेटे-दामाद के लिए कुरते ,पोते-पोती के कपड़े सब खरीद कर जमा कर चुकी थी. बल्कि तंगम की खीरदारी तो बेटे-बेटी के यहाँ से आने के बाद से ही अगले ट्रिप के लिए शुरू हो जाती. देवेन टोक देते तो कहती, "अभी याद है कि उन्हें क्या क्या चाहिए....बाद में भूल जाउंगी और फिर एक साल बाद ही सही हमें जाना तो है ही." देवेन समझते थे,ये तंगम की बच्चों से जुड़े रहने की कोशिश है. और तंगम ने बच्चों के बिना जीना भी कहाँ जाना है. देवेन तो सुबह के ऑफिस गए शाम में या अक्सर देर रात गए घर लौटते.सबकुछ तंगम ने अकेले ही सम्भाला है.. केरल से सीधा दिल्ली आकर उसे ठीक से हिंदी भी नहीं आती थी,यहाँ का रहन-सहन, तौर तरीके, खान-पान, मौसम सब कुछ तो केरल से कितना अलग था. शादी के समय की तंगम की छवि याद कर देवेन के होठों पर एक मुस्कराहट आ गई. दुबली पतली,छरहरी काया, सांवला रंग, लम्बे बाल और रतनारी आँखें जो उन दिनों हमेशा भरी भरी रहतीं.
ऑफिस से आकर उसकी लाल आँखें देख देवेन पूछ बैठते.."फिर से रोई ?...ऐसा लगता है तुम्हे किडनैप करके ले आया हूँ. तुम्हे पता तो था कि दिल्ली कितनी अलग होगी.फिर शादी के लिए हाँ क्यूँ की ? "
"मुझे कैसे पता होगा...दिल्ली इतनी अलग है "
"बी ए किया है और इतना भी नहीं पता.."
" बी ए में इंग्लिश,हिस्ट्री और साइकोलॉजी पढ़ी...दिल्ली सब्जेक्ट नहीं था "...देवेन सर पर हाथ मार लेते.और तंगम अपनी मोतियों से दांत चमकाती हंस पड़ती.
पर तंगम ने बहुत जल्दी अडजस्ट कर लिया.उसे हिंदी नहीं आती लेकिन अंग्रेजी पर अच्छी पकड़ थी.पडोस के बच्चों और किशोर किशोरियों से उसकी दोस्ती होने लगी. कुछ ही महीनों बाद जब देवेन ऑफिस से लौटते तो तंगम सोसायटी के बच्चों के साथ पसीने से तर बतर बैडमिंटन खेलती मिलती. देवेन का सारा गिल्ट दूर हो जाता. फिर राजन और रेवती के जन्म ने तो तंगम को बिलकुल ही व्यस्त कर दिया. पर तंगम, शायद अपनी कुंडली में ढेर सारे उतार चढाव लिखवा लाई है. और देवेन के मुँह से एक ठंढी आह निकल गई. अब जब तंगम ने अपनी सारी जिम्मेवारियां पूरी कर लीं. अब सिर्फ आराम और पोते-पोतियों के साथ खेलने का समय है तो जिंदगी ने इतना बड़ा झटका दे दिया. इस ए.सी. की ठंढ में भी देवेन के माथे पर पसीना चुहचुहा आया. जेब से रूमाल निकाल पसीना पोंछ लिया. उठ कर दूसरे कोने में रखे वाटर कूलर तक गए, पास में रखे सैनिटाईजर की बूँदें हथेलियों पर गिराई. हाथों पर मला और कागज़ के ग्लास में पानी लेकर आ बैठे.
यह भी पहली ही बार है कि वे एक डिस्पोजेबल ग्लास में पानी पी रहे हैं वरना इतनी आर्गनाइज्ड तंगम बिना पानी की बोतल लिए घर से बाहर नहीं कदम रखती. कभी कभी तो छोटे से पर्स में इतनी छोटी बोतल होती कि देवेन हंस देते, " इस से तो सिर्फ कंठ ही गीला होगा "
"हाँ तो कंठ ही तो गीला करना है, मुझे इस से ज्यादा की जरूरत नहीं पडती " तंगम के व्यक्तित्व की एक यह भी खूबी थी. जो उसके पास नहीं होता, वो उसे चाहिए भी नहीं होता. उसे वह दुनिया की सबसे निरर्थक चीज़ साबित कर देती.हाथों में पकड़े ग्लास का पानी नमकीन हो चला. आस-पास कोई था भी नहीं, देवेन ने अपने आंसुओं को बे रोक टोक बह जाने दिया.
तंगम ने पूरी गृहस्थी बहुत अच्छी तरह सम्भाल ली थी. दोनों बच्चे स्मार्ट थे. स्कूल में पढाई के साथ खेल-कूद,डिबेट-ड्रामा सबमें भाग लेते और ढेर सारे ईनाम जीत कर लाते. इन सबके बीच तंगम की मेहनत थी. वो बच्चों के पीछे सारा दिन भागती रहती. परेशानियां भी आईं जिन्हें तंगम ने अकेले ही सम्भाला. जब देवेन टूर पर थे और अचानक रात में राजन के पेट में दर्द उठा था. तंगम अपनी एक दोस्त के साथ खुद ड्राइव कर उसे हॉस्पिटल ले गई थी. डॉक्टर ने अपेंडिक्स बता कर अगले दिन ही ऑपरेशन कर दिया था. ना देवेन पहुँच पाए थे, ना कोई रिश्तेदार ही आ सके. राजन ऑपरेशन थियेटर में था, जब देवेन ने कॉल किया तो अब तक हिम्मत दिखाती तंगम बिलकुल बिखर गई. देर तक रोती रही थी.देवेन के आंसू खुद रुमाल में जज़्ब हो रहे थे. वे समझाते रहे, "छोटा सा ऑपरेशन है,इस तरह मत घबराओ."
वक्त का पहिया कैसे घूमता है, कभी बेटा ऑपरेशन थियेटर में था और बाहर अकेली, तंगम थी.फोन पर वे हिम्मत बंधा रहे थे.आज तंगम अंदर है, वे बाहर अकेले हैं और फोन पर बेटा उन्हें समझा रहा है...'माँ बिलकुल सही सलामत बाहर आ जायेगी पप्पा प्लेज डोंट वरी . ये चिंता ना करो कहने से चिंता करना रुक जाता है,क्या.
हॉस्पिटल के नीले गाउन में लिपटे असहाय सी तंगम को देख देवेन के मन में एक हूक सी उठी थी. आज तक उन्होंने रात दस के पहले और सुबह छह बजे के बाद तंगम को गाउन में नहीं देखा. पहले बच्चों को सुबह बस स्टॉप पर छोड़ने जाती,बाद में मॉर्निंग वॉक शुरू कर दिया. हर वक्त सलीके से रहती.कभी तंगम के बाल बिखरे और कपड़े अस्त-व्यस्त नहीं होते.. तंगम के घने बालों की लम्बी चोटी और उसमें लगी वेणी ,उन्हें बहुत पसंद थी. शादी ब्याह या किसी त्यौहार में जब तंगम ,कांजीवरम साड़ी पहन माथे पर बड़ा सा कुंकुम का टीका और लम्बी चोटी में वेणी लगाती तो देवेन की नजरें उसपर से नहीं हटतीं. तंगम हंस कर कहती, " निन्न्ल एन्ना निरिकम " (ऐसे क्या देख रहे हो ?) बच्चों की वजह से उनका भी आपस में मलयालम में बात करना लगभग छूट सा ही गया था. बच्चों की अंग्रेजी सुधारने के लिए तंगम उनसे इंग्लिश में ही बात करती, आस-पड़ोस-स्कूल से बच्चों ने हिंदी सीख ली थी. कभी देवेन अफ़सोस भी करते, बच्चे मलयालम नहीं बोल पाते तो तंगम ताना मार देती, 'अब बच्चे दिल्ली में रहेंगे तो वहीँ की भाषा बोलेंगे न.वैसे अच्छा है,बच्चों के मन पर बोझ नहीं है वरना रेणु के बेटे ने तीन वर्ष तक कुछ बोला ही नहीं. माँ पंजाबी , पिता तमिल, दादा-दादी घर में तमिल बोलते, पडोस में रहने वाली नानी पंजाबी बोलती, माता-पिता उस से इंग्लिश में बात करते और आस-पडोस वाले हिंदी. वो बच्चा कन्फ्यूज़, इन चार भषाओं में किस भाषा में बात करे, इस चक्कर में वो कुछ बोलता ही नहीं. रेणु ने डॉक्टर्स के कितने चक्कर लगाए. अब जाकर वो एकाध वाक्य बोलने लगा है. बच्चों के कोमल मस्तिष्क पर ज्यादा बोझ नहीं डालना चाहिए. " देवेन चुप रह जाते, उनके पास चारा भी क्या,खुद ही सारी कमान तंगम के हाथों में सौंप दी है. चुप तो तब भी रह गए थे जब तंगम ने अपने लम्बे बाल कंधे तक कटवा लिए थे. दो दिनों तक तो देवेन को पता ही नहीं चला,वो दुपट्टा सामने कर के रखती. ऑफिस के थके देवेन,खाना खा कर टी वी देखते और फिर सो जाते. तीसरे दिन शनिवार को देर से सो कर उठे, सोफे पर बैठ अखबार उठाया ही था कि फिल्टर कॉफ़ी की ट्रे लिए तंगम आई. दिल्ली में रहते हुए भी,वह चाय नहीं अपना पाई थी. दूर कहीं केरल की एक दूकान ढूँढ़ निकाली थी.वहीं से फिल्टर कॉफ़ी और गुड़ का पाउडर ले आती. ट्रे में कपड़ा बिछा होता, जग में दूध,पाउडर गुड का डब्बा और फिल्टर मशीन...पूरी ताम-झाम होती.वीकेंड की कॉफ़ी का वे इंतज़ार करते रहते पर आज तो नजर कॉफ़ी पर नहीं, तंगम पर थी. देवेन उसे देख आवाक रह गए. टी शर्ट और कंधे तक लहराते बाल में तंगम किसी कॉलेज गर्ल सी लग रही थी,माथे पर बिंदी भी नहीं थी.
'अच्छी नहीं लग रही...?" तंगम ने भवें तिरछी कर पूछा.
" तुम्हें मालूम है...मुझे तुम्हारे लम्बे बाल पसंद हैं.." सूखे गले में थूक गटकते हुए देवेन बोले.
"दो दिन पहले कटवाए,नोटिस तो किया नहीं और लम्बे बाल पसंद है...तुम्हें देखने की फुर्सत भी है....' व्यंग्य से तंगम बोली फिर थोड़ा स्वर मुलायम किया. "सुबह सुबह दोनों बच्चों को तैयार करना, टिफिन बनाना, बस स्टॉप तक जाना और इस बीच अपने लम्बे बालों में कंघी करना बहुत मुश्किल होता था.अब तो एक मिनट लगता है बस ब्रश घुमाया और रेडी."
तंगम के मुलायम हल्के से घुंघराले बालों का स्पर्श याद आ गया और एक आवेग सा उमड़ा....गले में कुछ फंसता हुआ सा महसूस हुआ. कल ही ऑपरेशन के लिए तैयार करने के लिए तंगम के सारे बाल शेव कर दिए गए थे. बाल शेव करने होंगे,तंगम को यह बताते देवेन की आवाज़ काँप गई थी, आँखों में उमड़ते आंसुओं को छुपाने के लिए निगाहें ऊंची कर छत की तरफ देखने लगे. पर तंगम भांप गई, उल्टा उनकी हिम्मत बढाते हुए बोली, ' कोई न विग पहन लूँगी और अपनी पसंद की लम्बे बालों वाली विग लाना. ' बहुत जोर का मन हुआ,तंगम को सीने से लगाकर,उसके बालों में मुंह छुपा ले.
पर वह तो जाने कितनी नलियों से घिरी, गले तक हरी चादर ओढ़े निढाल पड़ी थी.उसका शरीर थक चुका था पर मन वैसा ही चपल-चंचल प्रतीत हो रहा था. तंगम को पता था,वह बिलकुल अकेला है.दुनिया के हालात ऐसे हैं कि विदेश से बच्चे तो क्या कुछ किलोमीटर की दूरी से रिलेटिव-दोस्त भी नहीं आ सकते. देवेन ने यूँ तो बहुत हिम्मत रखी है पर ज़रा सा भी कमजोर पड़े तो तंगम को ही सम्भालना होगा. तंगम ने सम्भाला भी वरना अपने शरीर के साथ ही ऐसी अनहोनी घटते देख कोई संयत रह पाता.
जब राजन ने एम, एस. करने के लिए ऑस्ट्रेलिया जाने की इच्छा जताई तो तंगम मायूस तो बहुत हुई पर रोका नहीं। पर जब अपने अन्ना के पीछे रेवती ने भी आगे की पढ़ाई के लिए विदेश जाने की बात कही तो तंगम टूट सी गई।पर बेटे-बेटी में फर्क न करने के लिए उसे भी नहीं रोका।अब तो दोनों ने शादी कर वहीं की परमानेंट नागरिकता भी ले ली है।
दोनों बच्चों के चले जाने से, तंगम बहुत अकेली पड़ गई थी। पर संतोष यह था कि देवेन जल्दी ही रिटायर होने वाले थे। रिटायरमेंट को लेकर दोनों की बहुत योजनाएं थीं । पहली बार दोनों को एक दूसरे के साथ इतना वक्त बिताने के लिए मिलेगा। पर हुआ उल्टा... दोनों की आदतें, शौक, पसंद इतनी अलग थीं कि हर बात में बहस हो जाती ।बस ये सुकून था कि रिटायर होने के तीन महीने बाद ही उन दोनों का छह महीने के लिए बच्चों के पास ऑस्ट्रेलिया जाने का प्रोग्राम था.टिकट बुक हो गई थी. वीसा मिल चुका था.दुनिया की खबरों पर उन दोनों की भी नजर थी. चीन, इटली, स्पेन,अमेरिका सब जगह कोरोना वायरस अपना तांडव दिखा रहा था.पर ऑस्ट्रेलिया अब तक महफूज़ था. तंगम रोज सुबह-शाम मन्दिर के सामने हाथ जोड़ प्रार्थना करती..'ऑस्ट्रेलिया और इण्डिया को बचाए रखना ' पर प्रकृति से की जाती खिलवाड़ को देख,ईश्वर कुछ भी सुनने के मूड में नहीं थे. एक एक कर इण्डिया और ऑस्ट्रेलिया में भी कोरोना वायरस के केसेज़ मिलने लगे. तंगम के चेहरे से हंसी गायब हो गई थी. पूरे समय चिंता में उद्विग्न रहती. बच्चों के साथ समय बिताने के उसके सारे सपने धराशायी होते जा रहे थे. और आखिरकार इण्डिया से सारी उड़ानें रद्द कर दी गईं. ऑस्ट्रेलिया भी लॉक डाउन में चला गया. टिकट कैंसल करनी पड़ीं और तंगम की जिंदगी से सुख-चैन भी कैंसल हो गया. बाहर निकलना बंद, सबसे दूरी बरतनी वरना शायद सहेलियों से मिलकर उनके साथ लंच डिनर, मूवीज, टी पार्टी कर तंगम बच्चों के पास न जाने का दुःख भुलाए रहती. पर अब खाली दीवारें थीं और वे दोनों. तंगम का मन ठीक नहीं था पर काम करने में वो कोई कोताही नहीं करती. जैसी की सिस्टमैटिक थी. सारा राशन ले आई. ढेर सारी सब्जियां लाकर उन्हें काट कर अलग अलग डब्बों में सम्भाल कर रख दिया. टेट्रा पैक दूध के कई पैकेट्स ले आई. कहती रहती, हम दोनों ही उम्रदराज हैं।हमारा घर से निकलना ठीक नहीं। पर विधि का विधान वे दोनों ही सारे समय घर से बाहर हैं.
एक तो साथ रहने की आदत नहीं,उसपर मन चिडचिडा,दोनों ही एक दूसरे के काम में खामियां निकालते रहते. देवेन नाराज़ होते, "जब सरकार बार बार कह रही है, 'सबकुछ मिलेगा,राशन-दूध-सब्जी-दवाइयां' तो इतनी सारी चीज़ें जमा कर लेने की जरूरत क्या है? फ्रिज गोदाम सा लग रहा है. किचन के कैबिनेट्स खोलो तो लगता है,पैकेट्स अपने ऊपर गिर पड़ेंगे "
" साथ में ये भी तो कह रही है...बड़ी उम्र वालों के लिए ज्यादा खतरा है...घर से बाहर ना निकलें, फिर रिस्क लेने की क्या जरूरत है ?दौड़ने से और डायट का ख्याल रखने से उम्र छुप भले ही जाए, कम नहीं हो जायेगी '
"मेरे रनिंग और डायट का तुम्हें बहुत ध्यान रहता है...अपनी शॉपिंग, पार्टी और ब्यूटी पार्लर भूल जाती हो "
पार्लर का जिक्र करने पर तंगम बुरी तरह चिढ जाती. " आपको क्या तकलीफ है... घर के काम छोडकर जाती हूँ ??....अपना खाली समय सो कर बिताऊं...गप्पें लगाकर या पार्लर जाकर,आपसे क्या मतलब "
" बस समझ नहीं आता....जरूरत क्या है "...समय काटने को देवेन लड़ाई का सिरा छोड़ना नहीं चाहते थे. उन्हें तंगम की झल्लाहट देख मजा आता.
तंगम चिढकर मैनीक्योर वाला किट उठा कर ले आती.देवेन को दिखाकर देर तक नेल फ़ाइल करती रहती.फिर पुरानी नेलपॉलिश छुडाकर पूरे मनोयोग से नए चटख रंग का नेलपॉलिश लगाती. देवेन सोचते,अच्छा ही किया चिढाकर,तंगम का कुछ ध्यान तो बंटा. खबरें देखना बंद कर दिया था, खबरें देखकर दहशत होती, डिप्रेशन होने लगता. पर वाट्स एप्प के फॉरवर्ड्स भी कम दुखी नहीं करते.या तो ज्ञान बांटता रहता या फिर डरावनी और झूठी खबरें. नेटफ्लिक्स,अमेजन प्राइम का ही सहारा था.परा यहाँ भी मुश्किल थी.तंगम को सोशल ड्रामे वाली इमोशनल फ़िल्में पसंद आतीं तो देवेन को साइंस फिक्शन.
दो बिलकुल अलग व्यक्तित्व के लोग जो शायद कच्ची उम्र में पूरे समय एक साथ रहते तो एक दूसरे की आदतों से वाकिफ हो जाते, अडजस्ट करने की कोशिश करते पर उम्र के इस मोड पर दोनों की आदतें परिपक्व हो चुकी थीं, एक दूसरे के अनुरूप ढलने की कोई भी कोशिश नहीं करता. फिर भी पहले ये सब बातें ज्यादा परेशान नहीं करती थीं, तंगम बहुत आउट गोइंग थी, उसका बड़ा ग्रुप था.कभी सहेलियों के साथ शॉपिंग करने, फ़िल्में देखने तो कभी यूँ ही गप्पें मारने चली जाती. रोज शाम को पार्क में दो घंटे के लिए जाना तो अनिवार्य था. कुछ अनबन भी होती तो बाहर से आने के बाद तंगम का मूड ठीक हो जाता पर अब तो सारा दिन एक दूसरे के सामने ही रहना था और उसपर से ट्रिप कैंसल. तंगम बहुत खीझी हुई रहती. उसका माइग्रेन का अटैक भी बढ़ गया था.
लॉक डाउन होते ही तंगम ने कामवाली को उसकी सैलरी एडवांस देकर आने से मना कर दिया था. देवेन और तंगम के बीच काम का बंटवारा भी हो गया था.देवेन झाडू-पोंछा, साफ़-सफाई करते और तंगम बर्तन साफ़ करती, खाना बनाती. देवेन को सुनाती भी रहती, "एक बार साफ़ सफाई की और दिन भर आराम. मै सुबह से रात तक लगी रहती हूँ. "
"तो काम बदल लेते हैं, पेट भरने लायक तो बना ही लूंगा "
"मुझे झुक कर झाडू लगाने में चक्कर आते हैं "
"कहो न झाड़ू-पोंछा करना पसंद नहीं...बहाने हैं सब "
"खुद होगा तो पता चलेगा..." तंगम नाराज़ हो जाती.
आज हॉस्पिटल में बैठे देवेन को इतनी आत्मग्लानि हो रही थी. वे तंगम के माइग्रेन और चक्कर आने को उसका बहाना ही समझते थे.कभी सीरियसली नहीं लेते.यही सोचते, औरतों को ये सब होता ही रहता है. ये नहीं पता था, इसके पीछे इतनी बड़ी वजह होगी.
उस दिन लंच के बाद जरा सा लेटे ही थे कि तंगम जोर से चिल्लाई..'देवेन मुझे क्या हो रहा है...देखो क्या हो रहा है. "
तंगम ने बाएं हाथ से अपना दाहिना हाथ पकड रखा था, उसका दाहिना हाथ और पैर बुरी तरह काँप रहे थे. देवेन के होश उड़ गए,जल्दी से उसके हाथ की मालिश करने लगे, घबराहट में उसी पर बरस पड़े, 'इतना स्ट्रेस लेती हो...एन्ग्जाईटी अटैक पड़ा है तुम्हे '
'मुझे हार्ट अटैक तो नहीं आ रहा.."
"नहीं नहीं लेफ्ट साइड ठीक है न...हार्ट अटैक होता तो लेफ्ट हैण्ड पर असर होता..दर्द तो नहीं हो रहा ?"
तंगम ने ना में सर हिलाया पर उसके हाथ का कांपना बंद नहीं हो रहा था. देवेन को किसी डॉक्टर का नम्बर भी नहीं पता. तंगम को फोन लाकर दिया, तंगम ने हिम्मत बनाये रखी थी. उसने फैमिली डॉक्टर का नम्बर लगाया पर रिंग होता रहा, फोन नहीं उठा. फिर तंगम ने बिल्डिंग में ही रहने वाली अपनी फ्रेंड निशा को फोन किया. पांच मिनट के अंदर निशा एक और सहेली रत्ना के साथ आ गई. वे दोनों भी तंगम की ये हालत देख घबरा गईं. 'सब स्ट्रेस की वजह से हो रहा है...पर कोई दवा तो देनी होगी जिस से उसकी नसें रिलैक्स हो जाएँ. '
रत्ना ने कहा, 'हॉस्पिटल लेकर चलते हैं, मैं गाड़ी निकालती हूँ और वो दो मिनट में गाड़ी की चाबी और पर्स लेकर आ गई. रत्ना को लिफ्ट में बिल्डिंग में ही रहने वाले मिस्टर कुमार मिल गए.वे भी साथ चले आये. तंगम को उठाने की कोशिश की गई तो वो उठ ही नहीं पा रही थी. उसका दाहिना पैर लगातार काँप रहा था.देवेन का तो दिमाग ही काम नहीं कर रहा था, मिस्टर कुमार ने ही एम्बुलेंस को फोन कर दिया. दस मिनट में एम्बुलेंस आ गई. तंगम स्ट्रेचर पर लेटने को तैयार नहीं. वो बेतरह डर गई थी. दोनों सहेलियों ने उसका माथा-कंधे-पीठ सहलाकर उसे लेटने के लिए तैयार किया.
बिल्डिंग में मिनटों में ही बहुतों को खबर हो गई. कुछ लोग देवेन के साथ रनिंग के लिए जाते थे, कभी कभी शाम को बियर के लिए भी इकट्ठे होते थे. उन को नीचे खड़े देख,देवेन को बहुत मानसिक सहारा मिला.जब देवेन,एम्बुलेंस में बैठे तो उन्हें लगा उनके साथियों में से कोई और भी आकर साथ बैठेगा.पर कोई नहीं आया. फिर उन्होंने सोचा, शायद अपनी गाड़ी से आयेंगे.पर उन साथियों में से कोई आगे नहीं बढ़ा. मिस्टर कुमार ने ही अपनी गाड़ी निकाली.दोनों सहेलियाँ उसमे बैठीं. मिस्टर कुमार से उनका सिर्फ हलो हाय का परिचय था. तंगम ने पहले ही आगाह कर दिया था कि वे बड़े अक्खड़ किस्म के हैं. बहुत गुस्सैल और उनकी जुबान पर लगाम नहीं है.बिल्डिंग में उनकी किसी से नहीं पटती. एक बार तंगम से भी तू तू मैं मैं हो गई थी. हालांकि तंगम ने एक मजेदार बात बताई थी, जब भी पडोस की बिल्डिंग से कोई झगड़ा हो या पुलिस का कोई लफडा हो तो सब मिस्टर कुमार को ही आगे कर देते हैं और मिस्टर कुमार भी गरज गरज कर झगड़े का निबटारा बिल्डिंग के पक्ष में करवा लेते हैं. देवेन से कभी उन्होंने आगे बढ़कर बात नहीं की पर आज मानो देवदूत सरीखे वे साथ बने हुए थे. पास के एक बड़े अस्पताल में एम्बुलेंस रुकी. अस्पताल में सन्नाटा छाया हुआ था. अंदर जाने के दोनों ग्रिल बंद थे. दो डॉक्टर्स निकल कर आईं और साफ़ शब्दों में कह दिया,उन्हें किसी भी तरह के पेशेंट को अंदर लेने की इजाज़त नहीं है. उन्हें हालत एक्सप्लेन भी की गई कि ये कोविड-19 का केस नहीं है. फिर भी वे नहीं मानीं. मिस्टर कुमार ने कहा भी, 'एक बार देख कर कोई दवा तो प्रेस्क्राइब कर दीजिये. थोड़ी राहत हो जाए.' पर उनका कहना था,उन्हें पेशेंट को देखने की भी इजाज़त नहीं है. समय न जाया करते हुए,मिस्टर कुमार ने ही, एम्बुलेंस ड्राइवर से दूसरे हॉस्पिटल ले जाने के लिए कहा.देवेन तो तंगम का हाथ थामे, एम्बुलेंस के अंदर ही बैठे हुए थे.रास्ते में ही तंगम को फिट्स आने लगे, एम्बुलेंस ड्राइवर ने पास के एक अस्पताल के सामने गाड़ी रोक दी. यहाँ भी डॉक्टर निकल कर आये, 'हमारे पास जगह नहीं है,आप दूसरे हॉस्पिटल लेकर जाइए " इस बार तंगम की दोस्त रत्ना जोरों से चिल्लाई...'आप एक बार देखिये तो,उसे इम्मिडियेट रिलीफ के लिए कुछ तो दीजिये. दुसरे हॉस्पिटल जाते कुछ हो गया तो आप जिम्मेवारी लेंगे क्या ?" तब तक मिस्टर कुमार ने अपना फोन डॉक्टर के कानों पर लगा दिया, 'लीजिये इनसे बात कीजिये ?'. 'यस सर...जी सर...ओके सर " कहते डॉक्टर ने भीतर से स्ट्रेचर लाने का ऑर्डर दे दिया. मिस्टर कुमार ने किसी नेता,मंत्री या बड़े डॉक्टर जाने किस से बात करवाई, देवेन को ये सब पूछने का होश भी नहीं था. तंगम को भीतर ले जाकर कुछ इंजेक्शन लगाया,ऑक्सीजन दिया.थोड़ी सी कंडीशन स्टेबल हो गई तो डॉक्टर ने बाहर आकर कहा, "हमारे पास MRI की सुविधा नहीं है,आपको दूसरी जगह से MRI करानी होगी. मैं आपको एड्रेस देता हूँ, आप एम्बुलेंस में लेकर जाइए,MRI की रिपोर्ट देखने के बाद ही बिमारी की जड़ पता चलेगी '
. देवेन को लगा, अब यहाँ से आगे अकेले ही उन्हें सब सम्भालना होगा. पड़ोसी यहाँ से लौट जायेंगे.उन्होंने मन को मजबूत कर लिया था.पर मिस्टर कुमार बोले, 'हम भी पीछे से आ रहे हैं..." सुनकर देवेन में जैसे शक्ति का संचार हो गया,वरना भीतर से बहुत डर गए थे. जब अंदर ले जाने से पहले नर्स ने पूछा, ' इनकी चेन और चूड़ियाँ सोने की हैं ? आप उतार कर ध्यान से रख लीजिये. ' देवेन हतबुद्धि से खड़े रह गए, उन्हें पता ही नहीं उनकी पत्नी ने ये सोने के जेवर पहन रखे हैं या इमिटेशन " उतारते वक्त देवेन के हाथ काँपने लगे,.
टेस्ट के बाद वापस तंगम को उसी हॉस्पिटल में लेकर आये.जब एम्बुलेंस ड्राइवर से पैसे पूछे जाने लगे तो तंगम की दोस्त ने दस हज़ार रूपये देवेन के हाथों में रख दिए,'मैं कैश लेती आई थी...पता नहीं आपके पास लिक्विड मनी होगी या नहीं. घर में आजकल कैश कहाँ रखते हैं और एम्बुलेंस वाले तो कार्ड से पेमेंट लेगे नहीं " देवेन का मन भर आया, दिल्ली को बेदिल दिल्ली कहते हैं लोग कि इस कंक्रीट के शहर में कोई किसी की परवाह नहीं करता पर ये अनजान लोग, इस संकट की घड़ी में मजबूती से उनके साथ खड़े हैं. उन्होंने सिर्फ हजार रूपये लिए, कुछ कैश वे साथ लेकर आये थे. डॉक्टर ने तंगम की पुरानी फाइल्स मंगवाई. वे सबलोग साथ ही लौटे. देवेन ने कहा,अब आपलोग आराम कीजिये, चार घंटे से खड़े हैं.मैं फ़ाइल लेकर चला जाऊँगा " मिस्टर कुमार ने कहा, "अभी आप जिस मनःस्थिति में हैं,आपका ड्राइव करना ठीक नहीं....मैं आपको ले चलूँगा "
जब फ़ाइल ढूंढ कर देवेन ने मिस्टर कुमार के फ़्लैट की घंटी बजाई तो वे खाना खाने जा रहे थे पर तुरंत ही चेंज करने चले गए. मिसेज कुमार ने कहा भी, ' 'पांच मिनट लगेगा...आप खाना खा लें '. देवेन से भी खाने के लिए कहा पर देवेन का कुछ भी मुंह में डालने का मन नहीं था. मिस्टर कुमार चेंज कर के आ गये और बोले, 'चलिए..खाना खाने में देर हो जायेगी. कहीं डॉक्टर चले न जायें '. हॉस्पिटल में एक सीनियर डॉक्टर के इंतज़ार में रात के दो बज गए. हॉस्पिटल का कैंटीन भी बंद था. इस लॉक डाउन में आस-पास कोई होटल,कोई चाय की टपरी भी नहीं कि एक कप चाय भी पी जा सके.
तंगम के ब्रेन में ट्यूमर था,उसकी वजह से नस दब रही थी और हाथ-पैरों में कम्पन हो रही थी. अगले दिन, दूसरे सीनियर डॉक्टर आये और सबने ऑपरेशन की सलाह दी. ऑस्ट्रेलिया से बेटे-बेटी -बहू ने भी सारे पेपर्स मंगवाए,वहां के डॉक्टर से कंसल्ट किया.सबकी यही राय थी कि ऑपरेशन ही एकमात्र उपाय है और उसमे देर ठीक नहीं. डॉक्टर बार बार कह रहे थे कि आपलोग बहुत जल्दी इन्हें हॉस्पिटल ले आये तुरंत मेडिकल असिस्टेंस मिल गई वरना कुछ भी हो सकता था. पड़ोसियों की तुरंत सहायता और लॉक डाउन की वजह से खाली सडकें भी सहायक थीं, वरना क्या पता ट्रैफिक में ही एम्बुलेंस अटकी होती.
मिस्टर कुमार लगातार साथ बने रहे. देवेन को डर भी लगता, झिझक भी होती, मिस्टर कुमार के घर में बच्चे थे.कई कई घंटे हॉस्पिटल में उनका साथ बैठना ठीक नहीं. इस वक्त ऐसी जानलेवा खबरें आ रही हैं कि सगे बेटे-बेटी अपने माता-पिता को देखने हॉस्पिटल नहीं आ रहे हैं. किसी बुजुर्ग की मृत्यु पर भी उनके बच्चे नहीं आ रहे। पड़ोसी क्रियाकर्म कर रहे हैं।मिस्टर कुमार कहते, उनके अपने घर में किसी को कुछ हो जाता तो वे आते या नहीं. मिस्टर कुमार ने बहुत जोर देकर कहा, 'देखिये मैं रहता दिल्ली में हूँ पर दिल से गाँव का आदमी हूँ. गाँव-खेड़े में किसी एक को जरूरत पडती है तो पूरा गाँव साथ खड़ा होता है. कोई मुझसे प्यार से बात करेगा,अपनापन दिखायेग तो मैं उसके लिए गाँव का आदमी हूँ पर अगर किसी ने जरा भी एटीट्यूड दिखाया फिर तो उसके लिए मैं अमेरिकन हूँ. मैं उसे पहचानता ही नहीं "
दवाओं से तंगम को आराम मिला था पर हाथ-पैर का कम्पन वैसे ही जारी था. वह भी समझ रही थी,कोई तो बड़ी बीमारी हुई है उसे.उसकी बेचैनी बढती जा रही थी. डॉक्टर ने भी कहा, मानसिक रूप से तैयार करने के लिए उन्हें ब्रेन में ट्यूमर है,और उसका ऑपरेशन करना यह बताना होगा. जब देवेन ने बताया तो तंगम ने जिद ठान ली कि वो बच्चों से वीडियो कॉल पर बात करेगी. बिना बच्चों से बात किये वो ऑपरेशन के लिए तैयार नहीं होगी. ICU में फोन लाने की इजाज़त नहीं थी पर पेशेंट की जिद देखकर डॉक्टर भी मान गए. पर देवेन को ज़रा भी अंदाजा नही था,तंगम फोन की जिद क्यूँ कर रही थी. वीडियो कॉन्फ्रेंसिग में बेटे बेटी सपरिवार बैठे थे. सबने अपना दुःख परे धकेल चेहरे पर मुस्कान सजाए रखी थी. बेटी ने हंसते हुए शुरुआत की...'सो ओल्ड लेडी हाउ आर यू फिलिंग नाऊ " और तंगम ने कह दिया कि वो सबको अंतिम गुड बाय कहने आई है. पता नहीं,ऑपरेशन सफल हो या नहीं, ऑपरेशन के बाद वह किस हाल में लौटे.इसलिए ऑपरेशन से पहले वो बच्चों को एक नजर देखे बिना, बाय कहे बिना नहीं जाना चाहती थीं. फिर तो आंसुओं की नदियाँ बह निकलीं. शुरू में सब तंगम को हिम्मत दिला रहे थे और अब तंगम सबको समझा रही थी. आखिर उन्हें कॉल कट करना पड़ा.
ऑपरेशन थियेटर में जाते वक्त भी तंगम ने देवेन को गुडबाय और टेक केयर कहा.देवेन ने जोर देकर कहा...'गुड बाय नहीं...सी यू बोलो. आइ विल नॉट लेट यू गो लाइक दिस. यू आर कमिंग बैक हेल एंड हार्टी ".एक फीकी सी मुस्कान, तंगम के चेहरे पर आई और वो अंदर चली गई.
तंगम के अंदर जाने के बाद से देवेन कुर्सी से हिले नहीं है. मिस्टर कुमार ने कितना कहा, 'आप जाकर आराम करके आ जाओ, तब तक मैं बैठा हूँ., पांच घंटे से ज्यादा ही लगेंगे'..पर देवेन नहीं माने.
डॉक्टर ऑपरेशन कर बाहर आये, तब भी देवेन अपनी जगह से नहीं उठे, सहमे से बैठे रहे. डॉक्टर की आँखों पर चश्मा था और चेहरे पर मास्क. उनके चेहरे के भाव पता नहीं चल रहे थे. डॉक्टर ने मास्क उतारा और मुस्कराए, ' ऑपरेशन सफल रहा...कल तक होश आ जायेगा "
अगली सुबह डॉक्टर चेक करके बाहर निकले और देवेन के कंधे पर हाथ रखकर बोले, ' शी इज रेसपोंडिंग वेल..गेटिंग बेटर...यू कैन मीट हर नाऊ '
देवेन तंगम के ठीक सामने थे. तंगम का सर पट्टियों से जकड़ा हुआ था, चेहरे पर ऑक्सीजन मास्क लगा था,आँखें बंद थीं, चेहरा सफेद. देवेन का अंतस उमड़ पड़ा, इन पांच दिनों के अंतराल में क्या से क्या हो गई तंगम. आँखें पोंछ कर उन्होंने उसका नाम पुकारा.तंगम ने धीरे से भारी पलकें खोलीं, आँखों में पहचान तैरी और देवेन की जान में जान आई. तंगम ने फिर पलकें बंद कर ली. देवेन उसके कान के पास झुक कर बोले...'कहा था न,गुड बाय मत बोलो..विल सी यू अगेन और देखो अब तुम फिर से मेरे पास हो..." अब तंगम के हाथों में कोई कम्पन नहीं थी.देवेन तंगम की लम्बी मैनीक्योर्ड उंगलियाँ सहलाते रहे.तंगम की पलकों की कोरों से भी एक आंसू ढुलक गया.
लेखिका परिचय
राजनीति शास्त्र में एम. ए.।
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कहानियां-आलेख प्रकाशित। आकशवाणी, विविध-भारती, बिग एफ.एम से कहानियों का प्रसारण।
उपन्यास 'काँच के शामियाने' को महाराष्ट्र साहित्य अकादमी का प्रथम पुरस्कार प्राप्त।
कहानी संग्रह 'बन्द दरवाजों का शहर' प्रकाशित। मातृभारती पर दो उपन्यास प्रकाशित।
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