क्या हमे किसी की बात से फर्क पड़ना चाहिए ?, पर क्यो ? जब के हम क्या करते है, हम कोन है हमारी परिस्थिति क्या है ये किसी को पता नही है, ना ही ये पता है की हम कैसे माहौल में पड़े बले है , तो फिर हम जैसे है वैसे हमारी परिस्थितियों के हिसाब से है ओर वैसे ही अच्छे है, मानो के कोई गरीब जब बाहर जाता है तो उसे अपने से काफी अलग लोग दिखते है उस्से अच्छे कपड़े वाले,उसे अच्छी जिंदगी जी रहे है तो उन दोनों में काफी फर्क है तो अब गरीब आदमी को इन सव चीजो से तकलीफ होने लगे तो वो अपनी जिन्दगी नही जी पायेगा वो बस उस अमीर आदमी की बारे में सोचता रहेगा ओर आने हालत को भूल जाएगा ओर वो उसके जैसा बनाने में ऊनी जिंदगी बिताने लगेगा, ये बात भी गलत नही है पर वो अगर खुद ये सोच के आगे बढ़े तो वो ऊनकी खुशी भी पा सकता है ओर आगे भी बढ़ सकता है.
ओर देखा जाए तो लोगो का तो काम है हर किसी को कुछ ना कुछ कहना तो हमे हर बात से फर्क पड़ने लगे तो क्या होगा कोई अपनी जिंदगी जी नही पायेगा, जब के हम क्या है हम कैसे है ये हमसे बहेतर कोन जान सकता है, पर फिरभी हम ये सब भूल के लोग क्या कहते है , लोगो को क्या पसन्द है इन सब चीजो पे ज्यादा ध्यान देते है ओर अपनी जिंदगी किसी ओर की तरह जीने लगते है जब के हम अपनी जिंदगी अपनी तरह से जी सकते है वो भी अपनि पसंद ओर अपनी मर्जी से पर हर बार एक खयाल आता है लोग क्या कहेंगे, वो क्या सोचेंगे , क्या उसे ये पसंद आएगा वगेरा, पर तुम किसके लिए जी रहे हो अपने लिए या लोगो के लिए ये पहले जानो फिर सॉचना के लोग क्या कहेंगे. पर में ऐसा भी नही कहता के ये बात हर चीज में लागू पड़े कुछ आदते होती है जो हमे चुपाके रखनी चाइये या कही अकेले में पूरी करनी चाहिए .
ओर भगवान ने जब हमे बनाया तब हैम सबको अलग अलग बनाया, अलग नैन नक्श दिए,अलग सोचने की क्षमता दी,अलग व्यवहार ओर अलग रूप दिए जब हमे बनाया गया तब हमे अलग अलग खूबी भी दी ओर हम में कुछ खामिया भी दी ओर हमे उन खूबी ओर खामियों को स्वीकार कर जीना चाहिए ना की हमे उनको कोश के गली देनी चाहिए ओर हमे उसी बात से दिक्कत होती है ओर हम उस बात से आगे बढ़ नही पाते पर हम जैसे है वैसे ठीक है ।
मानलो के कोई एक लड़का गे(gay) है उसे ये बात मालूम है पर वो लोगो को नही बात पाता, क्यो ? क्योकि उसे ड़र है के।ये लोग उसे अपनाएँगे नही, उसको देखने का नजरिया बदल जायेगा ओर तो ओर उसको चिढ़ाने लगेंगे पर वो खुद को स्वीकार ले के वो गे(gay)है तो उनको इन बातो से ज्यादा फर्क नही पड़ेगा क्योकि उसने खुद को स्विकार कर लिया है वो जैसा है वैसे खुद को पसदं करता है तो फिर लोग क्या कहेंगे ? क्या सोचेंगे ? उन बातो से उसे ज्यादा फर्क नही पड़ेगा ।
बस तो बात यही है की तुम क्या हो, तुम कैसे हो ये पहले खुद स्वीकार करो तुम्हें कैसे जिना है ये तुम खुद सोचा करो ओर लोग क्या कहेंगे ये सोच अपनी बाजुमें रखो फिर तुम्हें जो पसंद है वो करो तो ऊनी जिंदगी खुशी में कटेगी ओर ये खयाल भी नही आएगा के लोग क्या कहेंगे क्योकि इन बातो से कुछ फर्क ही नही पड़ता.