Aur kahaani marti hai - 1 in Hindi Moral Stories by PANKAJ SUBEER books and stories PDF | और कहानी मरती है - 1

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और कहानी मरती है - 1

और कहानी मरती है

(कहानी - पंकज सुबीर)

(1)

कहानी के पात्र आज फिर बग़ावत पर उतारू हैं, ऐसा पिछले एक सप्ताह से हो रहा है। अपनी इस कहानी को जब भी आगे बढ़ाने का प्रयास करता, इसके पात्र फ़ौरन कथा से बाहर आकर अपना विरोध प्रदर्शन करने लगते। इन पात्रों को समझाने के प्रयास में ही पूरा समय व्यतीत हो जाता है, और कहानी वहीं रुकी रहती है। आज भी ऐसा ही हुआ पेन उठाकर रुके हुए घटनाक्रम को प्रारंभ करने ही वाला था कि अचानक निशा सामने आ गई, कहानी की सहनायिका जिसे मैंने अधिक ख़ूबसूरत वर्णित नहीं किया है कथा में।

अधिक ख़ूबसूरत नहीं लग रही है पर शायद अभी अभी नहाकर निकली है। बाल भीगे हुए हैं, उनमें से पानी की बूंदें टपक रहीं हैं, मुझे कहानी को पुनः प्रारंभ करता देख शायद जल्दबाजी में भागकर आई है। उसका सद्यःस्नात रूप देख मुझे लगा कि इसे कुछ और ख़ूबसूरत दिखाया जाना था कथा में, पर जाने क्यों मैं चाहते हुए भी ऐसा नहीं कर पाया। अगर कथा में इसे कुछ और सुंदर वर्णित किया जाता तो आज सद्यः स्नात रूप में यह और ज़्यादा सुंदर लगती।

निशा रीडिंग टेबल के सामने रखी बेंत की कुर्सी पर बैठ गई। मैंने उसकी तरफ़ से कुछ लापरवाही दिखाते हुए कहानी को आगे बढ़ाने का प्रयास किया, कि अचानक वह बोली ‘रुको......।’

मैंने कहा ‘देखो निशा मैं तुम्हें पहले ही बता चुका हूं कि तुम सहनायिका हो, और तुम्हारा चरित्र चित्रण इसी प्रकार किया जाना है।’

शांत स्वर में वह बोली ‘मैंने इस बात पर कब विरोध किया कि आपने मुझसे ज़्यादा सुंदर मालती को दर्शाया है। मेरा विरोध तो केवल इस बात को लेकर है कि आपने मेरा चरित्र बिगाड़कर क्यों प्रस्तुत किया ? आपने मूल कथा में मेरी अतिरिक्त कथा जोड़ी ही क्यों ? अपने मुख्य नायक माही और नायिका मालती की कथा को लेकर ही क्यों नहीं चले ?’

मैंने फिर उसे समझाने का प्रयास किया ‘देखो निशा मैं यह सब अपने लिये नहीं लिखता, अपने पाठकों के लिये लिखता हूं, अगर उन्हें ही संतुष्ट नहीं कर पाया तो कल से कौन पढ़ेगा मुझे ? केवल मूल कथा से काम नहीं चलता, पाठक एक ही कहानी में सब कुछ चाहता है। इसीलिये मैंने तुम्हारा चरित्र गढ़ा है, वरना केवल माही और मालती की कहानी को पढ़ता कौन ?’

निशा के चेहरे पर विरोध नज़र आने लगा, बोली, ‘तो आपने केवल मसाले के रूप में मेरा और अनुज का चरित्र गढ़ा है, केवल अपने पाठकों को चटखारेदार सामग्री देने के लिए ही मेरा चरित्र गढ़ा है। शर्म आनी चाहिए आपको।’ बिना विचलित होते हुए मैंने कहा, ‘निशा अगर मैं ऐसा नहीं करूंगा तो मुझे चुका हुआ घोषित कर दिया जाएगा। इतने वषरें में जो मुक़ाम मैंने हासिल किया है, वह एक ही झटके में हाथ से चला जाएगा। मुझे धारा के साथ बहना ही पड़ेगा। आजकल शर्म और सिद्धांत का कुछ नहीं होता।’

‘लेकिन आपने मेरे चरित्र को इतना विकृत क्यों प्रस्तुत किया है, अनुज के साथ बिना विवाह के मेरे संबंध दिखाए हैं, और बिना विवाह के ही, उसके बच्चे की मां बनते हुए बताया है। और सबसे बड़ी बात यह कि अनुज के साथ मेरे संबंधों को इतना विस्तृत रूप से वर्णन किया है कि मुझे भी अपने आप से घिन आने लगी है। क्या आवश्यकता थी आपको उन अंतरंग प्रसंगों का इतने तफ़सील से वर्णन करने की ?’ निशा सवालिया अंदाज़ में बोली।

मैंने कहा, ‘निशा आजकल का पाठक यही चाहता है। आजकल कहानी में अगर स्त्री पुरुष के अंतरंग संबंधों का ज़िक़्र नहीं आए, तो उस कहानी को मुक़म्मल नहीं माना जाता। और मालती का चरित्र मैंने जिस प्रकार गढ़ा है, उसे लेकर मैं इस तरह का कुछ नहीं कर सकता था, इसीलिए तुम्हारे और अनुज के संबंधो का उपयोग करना पड़ा।’

‘उपयोग ...?’ उपहास भरे स्वर में बोली निशा, ‘तो आपने मेरा और अनुज का केवल उपयोग किया है, साथ ही मुझे ज़्यादा सुंदर भी नहीं दर्शाया, ताकि कहीं ऐसा न हो कि मालती को छोड़कर माही का रुझान मेरी तरफ़ हो जाए। और इन सबके बाद आपने मेरे साथ बड़ा अन्याय तो यह किया है, कि अनुज के बच्चे की मां बनने के बाद भी आपने मेरा विवाह अनुज के साथ नहीं करवाया, मुझे श्रापित सा भटकने के लिए छोड़ दिया।’

समझाइश वाले अंदाज़ में मैंने कहा, ‘निशा तुम्हारी और अनुज की शादी तो मैं कर ही नहीं सकता था, क्योंकि कहानी में आगे तुम्हारे ओर माही के बीच संबंध बनना है, हालांकि वह सब कुछ एक बार ही होना है, पर कहानी को मोड़ देने के लिए वह आवश्यक है। अगर अनुज की और तुम्हारी शादी कर दूंगा, तो वह सब कैसे होगा ?’

भड़कते हुए बोली निशा, ‘आपने क्या मुझे वेश्या समझ रखा है ? जब चाहा जिसके साथ संबंध बनवा दिये, अपनी कहानी की मुख्यधारा को मज़बूत रखने के लिए मेरा चरित्र इतना विकृत क्यों करते जा रहे हो ? और फ़िर यह क्यों भूल रहे हो कि अनुज और मेरे बीच प्रेम भी था, जिसके कारण वह संबंध बने थे, और कहानी में अब भी अनुज की और मेरी शादी की संभावनाएं जीवित हैं, ये माही के साथ नए संबंध बनाकर उन संभावनाओं को क्यों समाप्त कर रहे हो ?’

मुझे ऐसा लगा मैं अपने ही बुने जाल में फंस रहा हूं, बोला, ‘निशा तुम मुझे ग़लत समझ रही हो तुम्हारा चरित्र मैं जान बूझकर नहीं बिगाड़ रहा हूं, ये कहानी की मांग है। माही और तुम्हारे संबंधों के कारण ही कहानी में वह मोड़ आएगा जो उसे रोचकता प्रदान करेगा। और फ़िर इस संबंध के कारण ही तो कहानी में तुम्हारी उपस्थिति एक बार पुनः दर्ज होगी ।’

‘मेरी नहीं मेरे शरीर की उपस्थिति’ क्रुद्ध होते हुए बोली निशा, ‘आप यह क्यों भूल रहे हो कि अनुज और मैं एक दूसरे से प्यार करते थे। यह आपने ही दर्शाया है, परंतु माही और मेरे बीच तो किसी तरह का कोई प्यार नहीं है, ऐसे में इस नए संबंध का सीधा मतलब यही होगा कि मैं चरित्रहीन हूं। तभी तो एक ऐसे व्यक्ति के साथ संबंधों को स्वीकार कर लेती हूं, जो न केवल मुझसे उम्र में छोटा है, बल्कि मेरी छोटी बहन मालती का होने वाला पति भी है।’ कहकर शांत हो गई निशा और एकटक मेरी तरफ़ देखने लगी।

मेरे लिए भी परिस्थितियां असहज होने लगी हैं। इसलिए बात को सहज बनाने के उद्देश्य से कहा, ‘निशा मैं नहीं जान पा रहा तुम्हें वास्तव में क्या बुरा लगा रहा है, मैंने तो तुम्हारे चरित्र को पूरी तरह से आधुनिक परिवेश के अनुरूप ही गढ़ा है। अनुज अगर तुम्हारे प्रति वफ़ादार होगा तो उस पर माही और तुम्हारे बीच बने इन एक रात के संबंधों का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। वो फ़िर भी तुम्हारे साथ विवाह करेगा, और शायद ऐसा ही कुछ माही ओर मालती के बीच भी होना चाहिए, आख़िरकार वो दोनों भी तो एक दूसरे को प्यार करते हैं।’

निशा शांत ही रही, शायद कुछ सोच रही है। कुछ देर की चुप्पी के बाद बोली, ‘अब तो आप अगर-मगर वाली भाषा बोल रहे हैं, अर्थात आप स्वयं भी कुछ निश्चिंत नहीं है, ख़ैर मुझे अपने अभी तक के चरित्र पर कोई एतराज़ नहीं है, मैं अनुज को प्रेम करती हूँ, उसे अपना सब कुछ सौंप चुकी हूं, वो मुझसे विवाह करे या न करे, मैं अपना जीवन काट लूंगी। पर ये नया संबंध माही वाला मुझे स्वीकार नहीं है, आपसे केवल अनुरोध कर सकती हूं इसे न जोड़ें।’

मैंने फ़िर समझाने का प्रयत्न किया, ‘निशा अब यह बहुत मुश्किल है। मैं ऐसा नहीं कर सकता। माही और तुम्हारे बीच के एक रात के संबंध इस कहानी का बहुत अहम बिंदु हैं। मैं उन्हें तो बदल ही नहीं सकता।’

‘मैं जानती हूं ऐसा क्यों नहीं कर सकते।’ निशा पुनः क्रुद्ध नज़र आ रही है, ‘आप ऐसा इसलिए नहीं कर सकते क्योंकि हर लेखक कहानी के केन्द्रीय पात्र में अपने आपको ही देखाता है और यही आपके साथ हुआ है। अनुज और मेरे बीच के संबंधों का विस्तार से विवरण देते देते, आपकी भी लालसा हो गई मेरे साथ संबंध बनाने की और आप अनुज को अमेरिका भेजकर माही को माध्यम बनाकर मेरे साथ शारीरिक संबंध बनाना चाहते हो। मैं जानती हूं आप लेखकों के दोगलेपन को, इसीलिए कहती हूं छोड़िए इस दोगलेपन को, माही को माध्यम मत बनाइये, जो कुछ करना चाहते हैं स्वयं करिये।’ कहती हुई निशा मेरी ओर बढ़ी, मैंने कुर्सी से उठने का प्रयास किया, परंतु फंसकर रह गया। वो मेरे बिलकुल पास आ गई। मैंने कहा, ‘नहीं निशा मैं ऐसा नहीं कर सकता।’ वह मुझे कुछ देर हिकारत से देखती रही फ़िर तेज़ क़दमों से कमरे से बाहर चली गई। अपने माथे पर चू आए पसीने की बूंदों को पोंछकर मैं टेबल पर सर टिकाकर बैठ गया।

यह रोज़ ही हो रहा है। खिड़की के पास खड़ा मैं सोच में डूब गया क्या करूं इस कहानी का ? बाहर हल्की-हल्की बारिश हो रही है, पूरी शाम भीग रही है। खिड़की के कांच पर जमती गिरती बूंदों को देख निशा का सुबह वाला सद्यःस्नात रूप याद आ गया। सिगरेट ख़त्म हो गई है, खिड़की के परदे को पूरा खोलकर रीडिंग टेबल पर आ गया। आज मौसम बहुत अच्छा है। आज कहानी को एक ही सिटिंग में पूरा किया जा सकता है।

पन्ने उठाकर कहानी को बढ़ाना शुरू किया। धीरे-धीरे कहानी बढ़ने लगी, माही के घर की पार्टी में निशा और मालती का शामिल होना, देर रात निशा और मालती का शेष रह जाना, माही द्वारा कार से दोनों को छोड़ने जाना, पहले मालती को छोड़ना और फ़िर अनुज के फ़्लैट तक निशा को छोड़ने जाना, जहां अनुज के अमेरिका चले जाने के कारण निशा अकेली रहती है। कहानी तेज़ी से सरक रही है, अभी तक कोई बाधा नहीं आई है। कार अनुज के फ़्लैट के नीचे खड़ी है, निशा कार से उतरी और माही से बोली, ‘माही तुम पहली बार आए हो और पार्टी के कारण थके भी हो, ऊपर आओ एक कप गरमा गरम काफ़ी पीकर जाओ, पार्टी की थकान भी मिट जाएगी।’

कहानी बिल्कुल वहीं पहुंच गई है जहां मैं पहुंचाना चाहता हूं। माही कार का दरवाज़ा खोलकर उतरने ही वाला है कि अचानक आवाज़ आई ‘ठहरिए ....! ’ मैं चौंक गया, क़ाग़ज़ से नज़र उठाई तो देखा सामने अनुज खड़ा है। चेहरे पर कुछ परेशानी के भाव नज़र आ रहे हैं।

‘अनुज तुम .....?’ मैंने आश्चर्य चकित होते हुए कहा, ‘तुम्हें तो मैं अमेरिका भेज चुका था।’

‘हां भेज चुके थे, और शायद इसीलिये भेजा था।’ उसकी आंखों में कुछ उदासी नज़र आई, ‘परंतु आप एक बात भूल गए मैं आपका पात्र हूं, आप मुझे कहीं भी भेज दो में आपके आस पास ही रहूंगा। आप मुझसे भाग नहीं सकते।’ मुझे ऐसा लगा जैसे कोई चोरी पकड़ी गई हो। सहज होते हुए कहा, ‘नहीं मैं तुमसे कहा भाग रहा हूं, वो तो कहानी के इस भाग में तुम्हारी आवश्यकता नहीं थी, इसलिए, तुम्हें ऐसा लग रहा होगा, पर वास्तव में मेरे लिए तो तुम चारों पात्र ही अहम हो, किसी एक को तो मैं छोड़ भी नहीं सकता।’

अनुज की आंखें अभी घोर उदासी में डूबी थीं, ऐसा लग रहा था अभी बरस जाएंगीं, बोला, ‘आपने मुझे इसलिए ही अमेरिका भेजा था, कि मेरे पीछे इतना बड़ा खेल कर सकें आप क्यों एक साथ चार-चार पात्रों के साथ खेल रहे हैं ? मैंने पहले भी निशा के साथ संबंध बनाने की बात का विरोध किया था, तब आपने मुझसे कहा था कि आजकल कहानी में ऐसी ही मांग होती है। अब जब निशा मेरे बच्चे की मां बन चुकी है, तब आप उसे माही के साथ जोड़ रहे हैं, यह जानते हुए भी कि माही उसकी बहन का होने वाला पति है।’

मुझे ऐसा लगा कि कहानी फ़िर उसी मोड़ पर रुक जाएगी। अनुज वही प्रश्नवाचक चिन्ह लिये खड़ा था। मैंने कहा, ‘अनुज तुम ग़लत समझ रहे हो, माही और निशा के बीच यह सब कुछ एक रात का ही होना है, तुम्हारे और निशा के बीच की संभावनाएं इससे समाप्त नहीं होंगी। आख़िर को तुम दोनों की एक बेटी है।’

अनुज धीरे से फीकी हँसी हँसा बोला, ‘संभावनाएं कैसे समाप्त नहीं होंगी, आपकी पत्नी एक रात किसी के साथ गुज़ार कर आ जाए तो क्या आप उसे केवल यह सोच कर स्वीकार लेंगे, कि वह आपके बच्चों की मां है ? बोलिए !’

अनुज के प्रश्न ने मुझे उलझन में डाल दिया। समझ में नहीं आया क्या जवाब दूं, टालने वाले अंदाज़ में कहा ‘नहीं अनुज कभी स्वीकार नहीं करूंगा, इसलिए क्योंकि मैं जीता जागता इंसान हूं, जबकि तुम एक पात्र हो, आदर्शवाद के सारे प्रयोग पात्रों पर ही आज़माए जा सकते हैं, इंसानों पर नहीं। मैं तुम में आदर्शवादिता का पुट डाल दूंगा, ताकि तुम माही के साथ रात गुज़ारने के बाद भी निशा को स्वीकार कर सको।’

बाहर बरसात की रफ़्तार कुछ तेज़ हो गई है, खिड़की पर धुंध सी जम गई है। जवाब देने के बाद मैं खिड़की की तरफ़ देखने लगा, कि शायद मुझे व्यस्त देखकर और मेरे जवाब से संतुष्ट होकर अनुज उठकर चला जाएगा।

पर वह उसी प्रकार बैठा रहा, मुझे खिड़की की तरफ़ देखता पाकर कुछ देर वह भी खिडकी की तरफ़ देखता रहा फ़िर बोला, ‘आप बार-बार पाठकों की बातें कर रहे हैं, क्या आपका पाठक ऐसी आदर्शवादिता को स्वीकार कर पाएगा ? आप भूल रहे हैं आधुनिकता आज भी केवल क़ाग़ज़ के पन्नों पर ही है। और फ़िर अगर आपको माही और निशा के बीच यह सब कुछ करना ही था, तो मेरा चरित्र गढ़ा ही क्यों ? आपका उद्देश्य तो मेरे बग़ैर भी पूरा हो जाता। आपको मुख्य पात्र माही और मालती की कहानी ही तो चलानी थी, तो वह मेरे बग़ैर भी चल जाती। मुझे गढ़कर आपने मेरे साथ तो अन्याय किया ही है, निशा के साथ भी अन्याय किया है। पूर्व में मेरे साथ के संबंधों को आपने तफ़सील से वर्णन किया, और अब माही..... पहली दृष्टि में तो पाठक उसे चरित्रहीन ही समझेगा।’

मेरी परेशानी बढ़ती जा रही है। अनुज टलने का नाम नहीं ले रहा है। मैंने कहा, ‘अनुज इसका एक मध्यमार्ग तो हम ये निकाल सकते हैं, कि तुम्हें अमेरिका से लौटने के बाद इस बात का पता ही नहीं चलेगा कि माही और निशा के बीच कुछ घट गया है। इससे तुम पर आदर्शवादिता थोपे बग़ैर भी काम चल जाएगा। और जहां तक निशा के चरित्रहीन समझे जाने का प्रश्न है, तो वह एक पात्र है पात्रों की बदनामी नहीं होती, पात्र लोगों के ज़ेहन में भी तक रहता है, जब तक कहानी पढ़ी जा रही है, उसके बाद सब कुछ ख़त्म, ये कोई जीता जागता इंसान थोड़े ही है कि एक बार बदनाम हो गया तो उस बदनामी को उम्र भर पीठ पर ढोकर जीवन बिताना पड़े।’

अनुज की आंखों में पहली बार विद्रोह नज़र आया, बोला, ‘आपका सोच ही ग़लत है, वास्तव में इंसान की चरित्रहीनता तो भुला दी जाती है, परन्तु पात्र की नहीं, क्योंकि पात्र तो कभी मरता ही नहीं, युगों-युगों तक जीवित रहता है, जब तक कहानी जीवित रहती है। एक बार कोई पात्र चरित्रहीन हुआ कि वह हमेशा के लिये हो जाता है। इंसान का तो जीवन ही क्या है, केवल कुछ वर्ष, लेकिन पात्र तो अमर होता है। आप भूल रहे हैं ब्रूटस को आज भी मित्रघाती के रूप में ही याद किया जाता है, क्या वक्त उसकी इस छवि को बदल पाया ? नहीं, क्योंकि उसे व्यक्ति से पात्र में बदल दिया गया। मेरी निशा को भी हमेशा चरित्रहीन स्त्री के रूप में ही जाना जाएगा।’

क्रमश..