Hone se n hone tak - 10 in Hindi Moral Stories by Sumati Saxena Lal books and stories PDF | होने से न होने तक - 10

Featured Books
  • کاغذ

    زندگی کا کورا کاغذ پڑھ سکتے ہو تو پڑھ لو۔ اگر چند لمحوں کی م...

  • خواہشات کا سمندر

    خواہشوں کا سمندر دور دور تک پھیل گیا ہے۔ ایک خواہش نے زمین و...

  • ادا کیا

    آنکھیں بند کر کے پینے کی ممانعت کیوں ہے؟ شراب پینے کی کوئی م...

  • پناہ

    تباہ حال شہروں میں گھر تلاش کرنے کی بجائے۔ لوگوں کے چہروں کا...

  • سرد موسم

    خوشگوار نشہ آور موسم دل کو مائل کر رہا ہے۔ رنگ برنگے پھولوں...

Categories
Share

होने से न होने तक - 10

होने से न होने तक

10.

‘‘बुआ मैं आपकी कुछ मदद करुं?’’ मैंने अपनेपन से पुकारा था। उन्होने चौंक कर मेरी तरफ देखा था। कुछ क्षण को हाथ ठहरे थे,‘‘नहीं बेटा।’’और वे फिर से काम में व्यस्त हो गयी थीं।

शाम को आण्टी सही समय पर आ गयी थीं। उनके साथ यश को देखकर मुझे अच्छा लगा था। बुआ की स्वागत की मुस्कान में विस्मय था,‘‘अरे यश भी आए हैं?’’

जवाब आण्टी ने दिया था,‘‘असल में अम्बिका का घर देखने चल रहे हैं न। सोचा यश की भी राय मिल जाएगी। फिर रिपेयर्स और पालिशि्ांग वगैरह के लिए तो हमें यश की मदद लेनी ही पड़ेगी न। इन लोगो के आफिस और फैक्ट्री वगैरह में तो कुछ न कुछ काम चलता ही रहता है। ये उसी ठेकेदार को लगा देंगे।’’आण्टी ने यश की पीठ को धीमें से थपथपाया था। यश खड़े खड़े मुस्कुराते रहे थे।

मुझे लगा था जैसे मैं अनायास ही बहुत महत्वपूर्ण हो गयी हूं-सबके ध्यान और क्रियाकलाप का केन्द्र। मुझे एकसाथ बहुत अच्छा और बहुत अटपटा लगता रहा था। रास्ते में आगे बैठी आण्टी पीछे मुड़ कर बात करती रही थीं,‘‘अम्बिका तुम ऊपर नीचे दोनो घर ठीक से देख लो। यदि तुम्हे ऊपर का घर ज़्यादा अच्छा लगता है तो जौहरी जी से बात की जा सकती है। मेरे विचार से वे नीचे आ कर रहने के लिए तैयार हो जाऐंगे। इन फैक्ट ही विल बी मोर दैन हैप्पी। अगर ऊपर के किराए में ही हम उन्हे नीचे का घर दे देते हैं तो उनके लिए तो लाट्री खुल जाने जैसी बात है।’’

अगर नीचे का घर बेहतर है तो फिर अम्बिका ही ऊपर क्यों जाएगी ?’’यश ने टिप्पणी दी थी।

आण्टी ने कंधे उचकाए थे,‘‘मैंने यह नहीं कहा यश कि नीचे का घर बेहतर है पर हॉ वह बड़ा निश्चय ही है। मैं तो ख़ुद ही कह रही हूं कि अम्बिका देख ले, सोच समझ ले। उसे जो अच्छा लगे।’’ कुछ क्षण चुप रहने के बाद वे फिर बोली थीं,‘‘वैसे मुझे लगता है कि अम्बिका के लिए ऊपर का हिस्सा ही अच्छा है-ज़्यादा सनी,ज़्यादा हवादार और मेनटेन करने में आसान। खुले खुले कमरे,छोटा सा टैरेस,अच्छी लकड़ी के खिड़की दरवाज़े,सुन्दर मज़बूत ग्रिल। नीचे के घर में पीछे ऑगन,आगे लॉन, सीढ़ियो का एनक्लोज़र। इतना सब कुछ साफ सुथरा रखना उसके लिए कठिन होगा। वैसे भी ऊपर का हिस्सा वीना ने बाद में बनवाया था। उसकी बीमारी और डैथ के समय उसकी फिनिशिंग चल रही थी। वीना का ख़ुद ऊपर जा कर रहने का इरादा था सो सेफ्टी, सिक्योरिटी अपने अकेले की सुविधा सुरक्षा सबका ध्यान रखा था उसने...फिर’’आण्टी ने अचानक अपनी बात आधी छोड़ दी थी, ‘‘ख़ैर अम्बिका तुम देख और सोच लो। तुम्हे जो ज़्यादा सही लगे।’’ उन्होंने अपनी बात पूरी की थी।

मेरे मन में अपने घर के सपने तैरने लगे थे। तभी बुआ बोली थी,‘‘पर मिसेज़ सहगल अम्बिका तीन बैडरूम के उतने बड़े घर का क्या करेगी? अगर कोई हिस्सा अलग किया जा सकता है तो उसके लिए तो एक कमरा,एक किचन और बाथरूम काफी है।’’

मैं जब तक कुछ कहती या सोच भी पाती तब तक आण्टी ने बुआ की बात पूरी तरह से काट दी थी,‘‘नहीं उमा। अम्बिका अब बड़ी हुयी। फिर जब वह अपने घर का फील लेना ही चाहती है तो उसे पूरा और प्रापर घर मिलना चाहिए।’’

बुआ एकदम से चुप हो गयी थीं जैसे उन्होने पूरी स्थिति से अपने आप को अलग कर लिया हो। मुझे बुआ की कही बात याद आयी थी,‘‘मिसेज़ सहगल को किसी की राय सुननी भी होती है जो राय मॉगती ही हैं।’’ बुआ का उतरा चेहरा देख कर मैं अपने आप को अपराधी सा महसूस करने लगी थी। मुझे उन पर अजब तरह से तरस आया था। तब भी मैं पूरी स्थिति के लिए एक तरह से आण्टी का आभारी महसूस करने लगी थी।

मुझको लगा था कि कितना अच्छा हुआ मॉ मेरी गार्जियनशिप आण्टी को दे कर गयीं। नहीं तो मेरी पूरी ज़िदगी बुआ और मामा मामी की सालों पुरानी सोच में फॅस कर रह जाती। फिर भी इस समय मेरे कारण बुआ का अपने आप को उपेक्षित महसूस करने ने मुझे तकलीफ दी थी। पर मैं चुप रही थी। सच बात यही है कि एक बार अपने घर मे रहने की इच्छा जागी है तो मैं पूरा और प्रापर घर ही चाहती हूं। बुआ नहीं समझ पा रहीं मेरी बात और मैं उन्हें समझा भी नही सकती।

यश ने कार घर के सामने रोक दी थी। उतर कर मैं फाटक के बाहर घर के सामने ठिठक कर खड़ी हो गयी थी और बहुत देर तक खड़ी रही थी। मेरी निगाहें घर के एक किनारे से दूसरे किनारे तक भटकने लगीं थीं-दाऐं से बाएॅ, ऊपर से नीचें। अचानक मॉ बहुत शिद्दत से याद आईं थीं। इस घर में बीता अपना बचपन याद आया था। इस घर के छूट जाने का दर्द याद आया था। मॉ का इस दुनिया में न होना याद आया था। अभी तक का पूरा जीवन हास्टल्स में भटकते हुए बीतना दिल और दिमाग को मथने लगा था। मेरी ऑखें भरने लगी थी। पैरों के तलवे और हाथों की हथेली लगा था ठंडे होने लगे हों। यश कार बंद कर रहे हैं। आण्टी और बुआ अंदर जा चुके हैं। वहॉ से आण्टी ने पुकारा था। पीछे से यश ने मेरी पीठ पर हाथ रखा था...तसल्ली भरा वह स्पर्श और मैं अन्दर की तरफ बढ़ ली थी। जौहरी दम्पति शायद हम सब की प्रतीक्षा नीचे के घर में ही कर रहे हैं। वे लोग बहुत गर्मजोशी से मिले थे,‘‘बिटिया अब इस घर में आकर रहेंगी सुन कर बहुत ख़ुशी हुयी। इससे अच्छा तो कुछ हो ही नही सकता। भई जिसकी सम्पति वह भोग करे उसका वही सही।’’ मुझे लगा था जैसे उन्होंने किसी भूले हुए दर्द को शब्द दे दिए हों। मन में आया था कि जिसकी सम्पति थी वे तो भोग नही पाए इसे...न पापा न मॉ...अब मैं आयी हूं इसमें रहने। मन में एक हूक सी उठी थी और मेरी ऑखें भरने लगी थीं। मैंने बुआ की तरफ देखा था। लगा था उनकी आखों में भी ऑसू हैं।

नीचे का पूरा घर ख़ाली पड़ा है। नई पुताई के कुछ छींटे फर्श पर अभी भी पड़े हैं। कमरे में नए वार्निश पेंट की थोड़ी बहुत गंध भी है। बाहर के बड़े वाले कमरे में प्लास्टिक की चार कुर्सियॉ और दो मूढ़े रखे हुए हैं। संभवतः जौहरी जी ने ऊपर से मॅगवा कर रखवायी हैं। हम सब बैठ गए थे। मॉ के साथ इस घर में बिताया बचपन खण्ड खण्ड मेरी आखों के आगे तैरने लगा था। मुझे अच्छी तरह से ध्यान आया था कि बाहर वाले इस कमरे के पीछे किचन और एक छोटी सी लॉबी है। उसके पीछे बाए हाथ को एक के बाद दूसरा बैडरूम और एक कमरा दाहिने हाथ को। बॉए वाले पहले कमरे में मैं और मॉ सोते थे। दूसरे वाले कमरे में भी दो पलंग पड़े थे। घर का बहुत सा अतिरिक्त सामान मॉ ने बहुत ही करीने से इसी कमरे में लगा रखा था। दॉए हाथ पर बना कमरा मेरा था...मेरे लिए एक सिंगल बैड, मेरी राईटिंग टेबल, कपडो़ और कितबो की अलग अलग अल्मारी, खेल खिलौने, मेरे बचपन का पूरा संसार। कमरा अलग होने पर भी मैं सोती मॉ के साथ ही थी। वैसे भी पूरे घर में हम दो प्राणी ही भर तो थे। घर का पूरा समय ही साथ रहते। मॉ मेरे आस पास और मैं उनके साथ। मैंने गर्दन उठा कर पीछे की तरफ झॉका था और सब लोग अचानक उठ कर खड़े हो गए थे। जौहरी जी आगे बढ़ लिए थे,‘‘आओ बिटया अपना घर देख लो।’’वे बहुत ख़ुश हो कर बोले थे,‘‘बडे मौके से घर ख़ाली हुआ है।’’ वे घर दिखाने लगे थे। बंद कमरे खोल खोल कर, बाक्स रूम और टायलेट्स तक। उन्होने शायद बुआ के चेहरे की उदासी और तनाव को लक्ष्य किया था,‘‘बहन जी आप बिल्कुल भी परेशान न हों। हम लोग हैं तो यहॉ...बिटिया को कोई डर नही है। इन्हें अकेले परेशानी लगेगी तो हमारे दोनो बच्चे इनके पास आ कर सो जाया करेंगे।’’उन्होने निश्छल अपनेपन से मेरी तरफ देखा था,‘‘हमारी बिटिया हाई स्कूल में है और बेटा सैवेन्थ में। बहुत अच्छे समझदार बच्चे हैं। तुम्हारा उनके साथ मन लग जाएगा।’’

‘‘जी अंकल।’’

जौहरी आण्टी हॅसी थीं,‘‘नहीं बेटा तुम जैसे चाहना वैसे रहना। तुम्हे कोई डिस्टर्ब नही करेगा।’’ उन्होंने जैसे सफाई सी दी थी।

‘‘नही आण्टी डिस्टर्ब करने की तो कोई बात ही नही है मुझे तो अच्छा ही लगेगा।“

सब लोग बाहर बराम्दे में खड़े हुए थोड़ी देर तक और ऐसे ही बात करते रहे थे और फिर चल दिए थे। आण्टी ने कार के चलते ही पीछे मुड़ कर देखा था,‘‘अब...?कैसा लगा...?नीचे ज़्यादा अच्छा लगा या ऊपर?’’

मैने बुआ की तरफ देखा था। वे चुप रही थीं। उनके चेहरे पर तनाव है।

‘‘उमा तुम्हारी क्या राय है?’’ आण्टी नें पूछा था।

‘‘जो आप लोग ठीक समझें’’ अपने स्वर को भरसक सहज रखते हुए बुआ बुदबुदाई थीं। वे शायद अपने आप को किसी निर्णय प्रक्रिया में शामिल नहीं करना चाहतीं।

‘‘क्यों यश ?’’आण्टी ने यश की राय जाननी चाही थी।

‘‘निश्चय ही ऊपर का घर अच्छा है। ज़्यादा साफ सुथरा और सेफ भी।’’ कुछ क्षण रुक कर यश ने अपनी बात पूरी की थी,‘‘पर जौहरी परिवार ही ऊपर से नीचे आने के लिए तैयार हो जाएगा यह हम लोगों ने कैसे सोच लिया?’’ यश ने शंका जतायी थी। मैं स्वयं बहुत देर से यही बात सोच रही थी। यश ने जैसे मेरी सोच को शब्द दे दिए हों।

‘‘सो वे ख़ुश हो कर तैयार होंगे।’’ आण्टी ने बहुत विश्वास के साथ कहा था,‘‘आज पहली बार नहीं है कि उन्होंने नीचे के घर के स्टोर और अल्मारियो की बात की है। दर्जनो बार कह चुके हैं वे यह बात। वैसे भी वे गृहस्थी वाले लोग हैं। घर गृहस्थी का फैलाव नीचे के घर में सुविधाजनक लगता है। होता भी है।’’

‘‘नीचे का घर तो तीन महीनों से ख़ाली था मॉ। उन्हे इतना ही पसंद था तो पहले ही मॉग कर सकते थे।’’

‘‘नीचे के घर का किराया अधिक है वह दे पाने की स्थिति में वह नहीं हैं। इसलिए यह सच है कि नीचे का घर हमें उन्हें उसी किराए में ही देना पड़ेगा। हम उनसे किराया बढ़ाने की मॉग नहीं कर सकते।’’

‘‘वैसे भी जब हम ही उनके घर की मॉग कर रहे हैं तो उनसे किराया बढ़ाने की मॉग हमें करना भी नहीं चाहिए। अगर वह दे पाने की हैसियत में होते तब भी नहीं। वह ग़लत है।’’

‘‘यश सही कह रहे हैं।’’ मैं ने कहा था। बुआ अभी भी चुप रही थीं।

‘‘वैसे भी मेरे ख़याल से जिस तरह के लोग वे हैं उन्हें इस बात से कोई अन्तर नहीं पड़ता है कि खिड़की दरवाज़े कैसे बने हैं,कौन सी लकड़ी के हैं,फर्श कैसा है। उनके लिए ओनली साइज़ मैटर्स।’’

‘‘शायद आप ठीक कह रही हैं।’’ यश ने बहुत सोचते हुए हामी भरी थी। यश काफी देर चुप रहे थे जैसे कुछ सोच रहे हों,‘‘जौहरी परिवार मुझे सीधे सादे लोग लगे। अम्बिका को सहारा रहेगा उन लोगों से।’’

बुआ एक बात पर बहुत देर तक रूठी नहीं रह पातीं। यश की बात से वे एकदम उत्तेजित हो गयी थीं,‘‘चलो अच्छा है जौहरी जी ने ख़ुद ही अपने बच्चों को अम्बिका के पास सुलाने की बात कह दी। कम से कम रात में तो वह अकेली नहीं रहेगी।’’

मैं ने डर कर आण्टी की तरफ देखा था। कहीं वे फिर से बुआ की बात को पूरा का पूरा न काट दें। पर आण्टी ने एक बार उनकी तरफ देखा था। वे कुछ क्षण सोचती रही थीं,‘‘हॉ उमा वह बहुत अच्छा है। बस अम्बिका पहले कुछ दिन उन लोगों को अच्छी तरह देख और जान ले। समझ ले कि उनसे उसके मन का ताल मेल कैसा बैठता है।’’

बुआ और यश दोनो ने हामी भरी थी। पर यह सच है कि जौहरी परिवार से मिल कर सब ही काफी सीमा तक निशि्ंचन्त हो गए थे। मेरे अपने मन में अकेले रहने का दबा छिपा भय, यश और बुआ के मन में मुझे अकेले छोड़ने की चिन्ता काफी सीमा तक मिटने लगी थी।

घर पहुच कर सब लोग सीधे लॉबी में ही आ कर बैठ गए थे। यहॉ बुआ ने एक तरफ सोफा डाल कर बैठने की व्यवस्था कर रखी है। उसी के पास में एक सैटी लगी है। रंगीन टी. वी. यहीं रखा हुआ है। दूसरी तरफ थोड़ी दूर पर खाने की मेज़ लगी हुयी है। बुआ के घर में यह हिस्सा सबसे अधिक उपयोग में आता है। बुआ आते ही किचन में चली गयी थीं और काम करते करते वहीं से बात भी करती जा रही हैं। मैं जहॉ बैठी हूं वहॉ से मुझे पूरा किचन साफ दिख रहा है। दीना शायद पकौड़ी तल रहे हैं और बुआ किचन से ला कर खाने का सामान मेज़ पर रखने लगीं थीं। मैं बुआ की मदद करने के लिए उधर बढ़ ली थी।

नाश्ते के बीच ही आण्टी ने फिर एक बार घर की बात छेड़ दी थी,‘‘कल मैं जौहरी जी से बात कर लूंगी। मेरे ख़्याल से उनकी तरफ से कोई रुकावट नहीं होगी। उनसे फौरन ही शिफ्ट करने के लिए कह देंगे। नीचे के घर की पुताई पालिश हो ही चुकी है। इससे ज़्यादा उनके लिए कुछ कराना नहीं है।’’उन्होने यश की तरफ देखा था,‘‘यश ऊपर का घर ख़ाली होते ही उसमें काम लगवा दो। अपने यहॉ के ठेकेदार को दिखा दो। सारा ठेका उसी को दे दो। किचन में क्या कराना है यह चल कर एक बार फिर देख लेंगे। सबसे इम्पार्टैन्ट बाथ रूम्स हैं। उनके पॉट और टाइल्स सब बदलवा दो।’’

बुआ नें चांक कर देखा था। उनके चेहरे पर प्रतिरोध है। कुछ कहने को उन्होने मुह खोला था फिर जैसे कुछ सोच कर एकदम चुप हो गयी थीं, जैसे उस बातचीत से उनका कोई मतलब ही न हो।

बुआ के मन की बात मैं ने बोली थी,‘‘क्यों आण्टी उतने ख़र्चे की भला क्या ज़रुरत है?’’

‘‘नहीं बेटा ज़रुरत है। ऊपर के घर से जो किराया आता है उसी के जमा पैसे में से थोड़ा बहुत खर्च करेंगे। बारह तेरह साल से उन टायलैट्स को दूसरे लोग इस्तेमाल कर रहे हैं।’’ आण्टी का मुह बुरा सा बन गया था। वे कुछ क्षण के लिए चुप हो गयी थीं,‘‘वैसे भी वे ठीक से बन ही कहॉ पाए थे। घर पूरा होने से पहले ही वीना की भाग दौड़ शुरू हो गई। उसके बाद लौटी ही कहॉ।’’ कुछ क्षण के लिए आण्टी फिर मौन हो गई थीं जैसे कुछ सोच रही हों,‘‘मैं तुम्हें घर नया जैसा करा कर देना चाहती हूं ।’’ उन्होंने जैसे अपना निर्णय घोषित किया हो। उन्होने यश की तरफ देखा था।

‘‘आइ विल टेक केअर ऑफ दैट मम्मा।’’ यश ने जैसे आण्टी और मुझे दोनों को एक साथ तसल्ली दी थी।

Sumati Saxena Lal.

Sumati1944@gmail.com