किसी ने नहीं सुना
-प्रदीप श्रीवास्तव
भाग 3
संयोग यह कि इसे मैंने एक बार संजना के यह कहने पर ही खरीदा था कि यार कब तक पुराने मोबाइल पर लगे रहोगे। इससे आवाज़ साफ नहीं आती। नया लो न। आज उसी मोबाइल ने हमारी पोल खोल दी थी। मुझे हक्का-बक्का देखकर बीवी कुछ क्षण मुझे देखती रही फिर मोबाइल मेरी तरफ धीरे से उछाल दिया। उसकी आंखें भरी थीं। वह बेड से उतर कर अलमारी से अपना नाइट गाउन निकालने को चल दी। मेरी एक नजर उसके बदन पर गई मगर मेरा मन शून्य हो गया था। भावनाहीन हो गया था। गाऊन पहनकर उसने बेड पर से साड़ी, ब्लाउज, पेटीकोट उठाकर एक तरफ रख दिया। फिर भरे गले से बोली,
‘मुझे नहीं लगता कि मैंने पत्नी धर्म निभाने में कभी कोई गलती की है कि तुम्हें किसी और की तरफ देखने की ज़रूरत हो। फिर ऐसा क्यों कर रहे हो ? अरे! इतनी सी बात आपकी समझ में नहीं आ रही कि जो औरत अपने पति की नहीं हुई, तुम्हीं बता चुके हो कि उसका पति महीनों से बीमार पड़ा है लेकिन वह देखने को कौन कहे उससे बात तक नहीं करती, जो अपने भाई-बहन, मां-बाप की न हुई आप की क्या होगी। अरे! इतना भी आपकी समझ में नहीं आ रहा जो पति के रहते गैर मर्द से अपने अंग-अंग का बखान करे, फ़ोन पर सेक्स करने का मजा ले। खुद कहे कल वहां चलो मजा करते हैं, यह कहे कि एक बच्चा मैं तुमसे चाहती हूं। एक बच्चा जो है उसको तो पाल नहीं पा रही उसे लावारिस सा डे बोर्डिग में छोड़ रखा है। और एक बच्चा तुमसे और चाहती है। अरे! यह सब उसकी कुटिल साजिश है। तुम को फंसाकर तुम्हारी सारी संपत्ति हड़प लेगी। ठीक वैसे ही जैसे सुख शांति घर का खुशहाल माहौल छीन लिया है। इस समय इतने तनाव में हो तुम, हम यह पूरा माहौल सिर्फ़ एक उसकी वजह से जिससे तुम्हें क्षणिक छद्म सुख के सिवा सिर्फ़ बर्बादी ही मिलती है।’
बीवी की बातें मुझे उस वक़्त काटने को दौड़ती लग रही थीं। तब मेरे दिमाग में एक ही बात घूम रही थी कि बातें रिकॉर्ड कैसे हुईं मैंने पूछ लिया तो उसने जो बताया उससे मेरा मन और ज़्यादा खिन्न हो गया। उसने नफरत भरे शब्दों में कहा कि,
‘एक दिन बेटे के हाथ में मोबाइल लग गया और उसने रिकॉर्डिंग ऑन कर ली। जब बातें मेरे कानों में पड़ीं तो मोबाइल लेकर मैंने चेक किया। तब पता चला कि इसमें तो ऑटो कॉल रिकॉर्डिंग का भी सिस्टम है। उसे ऑन करने पर सब रिकॉर्ड हो जाएगा। उसके बाद मैं बराबर रिकॉर्डिंग सुनती रही। सोचा कि एक दिन साफ-साफ बात करूंगी इस बारे में।’
इसके बाद नीला दूसरी तरफ मुंह किए लेटी रही। कुछ देर उसकी सिसकियां भी सुनाई दीं। मैं उस वक़्त नीला को अपने दुश्मन की तरह देख रहा था। मैं खुद पर इस बात के लिए भी खीझ रहा था कि मैं मोबाइल, कम्प्यूटर आदि के बारे में अच्छे से जानकारी क्यों नहीं रखता हूं।
आज जब जेल में हूं, तब नीला की सारी बातें इतनी अच्छी, इतनी तर्कपूर्ण लग रही हैं कि मन मसोस कर रह जाता है कि काश उसकी बातें मान लेता।
आज भी नहीं भूल पाया हूं संजना के साथ किया गया वह पहला लंच। जब वह लंच के वक़्त अपना लंच बॉक्स लेकर निसंकोच मेरे पास आकर बोली थी,
‘नीरज जी मैं आज लंच आप के साथ करूंगी। आप को कोई ऐतराज तो नहीं है।’
उस दिन उसे नौकरी ज्वाइन किए मुश्किल से हफ़्ता भर हुआ था। उसका इस तरह बोलना मुझे कुछ चौंका गया। क्योंकि इतने दिनों में मेरी उससे हाय-हैलो के अलावा और कोई बात नहीं हुई थी। दूसरे वह सेक्शन की महिलाओं के साथ मिक्सअप होने के बजाय मेरे पास आई थी। जबकि सेक्शन की सारी महिलाएं एक गुट में आती थीं। साथ ही लंच करती थीं। पुरुषों का भी यही हाल था। कुछ-कुछ लोगों के कई गुट थे। सभी लंच ऊपर कैंटीन में जाकर करते थे। लेकिन मैं कैंटीन न जाकर अपनी टेबल पर ही करता था। संयोग से उस दिन लंच मैंने ही बनाया था। क्योंकि नीला कई दिन से बुखार में तप रही थी।
लंच करते वक़्त वह चपर-चपर बातें भी किए जा रही थी जो मुझे अच्छी नहीं लग रहीं थीं। अचानक मुझे लगा कि वह साड़ी का आंचल खिसक जाने के बावजूद जानबूझ कर उस पर ध्यान नहीं दे रही है। जबकि स्तनों का अच्छा-खासा हिस्सा दिख रहा है। मुझे यह भी लगा कि वह जानबूझ कर लंच को लंबा खींच रही है। उसने अपने लंच के काफी हिस्से की अदला-बदला कर ली थी। मैं अजीब सी स्थिति का अहसास करते हुए लंच जल्दी खत्म करने की कोशिश में था, क्योंकि उसके स्तन जिसकी गोलाइयों के बीच में उसकी सोने की पतली सी चेन गहराई तक उतर गई थी मुझे असहज किए जा रहे थे। दूसरे बाकी लोग लंच करके वापस आने लगे थे और हम दोनों पर अर्थपूर्ण नजरें डालते हुए आगे जा रहे थे। मुझे जल्दी लंच खत्म कर लेने पर उसने कहा ‘आप बहुत स्पीड में लंच करते हैं।’ फिर जल्दी ही खत्म कर कहा,
‘भाभी जी खाना अच्छा बनाती हैं।’
मुझे लगा वह जली हुई सब्जी और मोटे-मोटे बेडौल से पराठों पर व्यंग्य मार रही है तो अनायास मैंने सारी बातेें बताते हुए कह दिया कि,
‘मैंने बनाया है।’
मेरा इतना कहना था कि उसने चौंकने का नाटक करते हुए मेरी हथेली को तेजी से मुंह के पास खींचकर चूम लिया। मुझे लगा कि उसने जानबूझ कर मेरे हाथ को ठुड्डी के नीचे रखकर इस ढंग से चूमा कि मेरा हाथ उसके स्तनों को छू जाए। मैं अपनी सकपकाहट को छिपाने की कोशिश में लंच बॉक्स बंद करने लगा। और वह अपने को बेखबर सा दिखाते हुए बोली,
‘वाकई आप बहुत अच्छा खाना बनाते हैं। भाभी जी को छुट्टियों में तो आपके हाथों के बने टेस्टी खाने का मजा मिलता ही होगा। वह बड़ी लकी हैं। सॉरी नीरज जी मैंने एक्साइटेड हो कर आपके हाथ को किस कर लिया उसमें जूठा लगा गया होगा। लाइए मैं साफ कर देती हूं।’
इसके पहले कि वह मेरा हाथ पकड़ती मैंने उसे मना कर दिया और उठकर चल दिया बाथरुम की ओर। उसके बदन का स्पर्श मुझे शाम को घर पहुंचने तक कुछ ज़्यादा ही परेशान करने लगा। मैंने रात में सोते वक़्त नीला से सारी बातें शेयर की तो वह तमककर बोली थी।
‘ऐसी बेशर्म औरत से दूर ही रहिए। आप उसे डांट कर हटा भी सकते थे। पक्का वो अपना कोई स्वार्थ सिद्ध करने के लिए तुम्हारे पीछे पड़ गई है।’
मुझे उस वक़्त नीला की यह बात एक पत्नी का दूसरी औरत का अपने पति की तरफ देखना बर्दाश्त न कर पाने जैसी ही लगी थी। तब यह अनुमान नहीं था कि नीला की यह बातें आगे चलकर अक्षरशः सच साबित होने वाली हैं।
लंच वाली घटना के अगले ही दिन से संजना से मुझे रोज एक नया अनुभव एक नया अहसास मिलने लगा था। दो-चार दिन में वह बातचीत में इतना घुल-मिल गई थी कि लगता जैसे न जाने कितने बरसों से मेरे साथ ही रह रही है। मेरा ध्यान जब इस तरफ जाता तो मैं हैरान हो जाता कि मैं तो इस बात के लिए जाना जाता हूं कि मैं किसी से जल्दी मिक्सअप नहीं होता, वह भी औरतों से तो और भी नहीं। फिर इसने ऐसा क्या जादू कर दिया है कि लगता है कि यह मेरे पास ही बैठी रही।
दो-तीन हफ्ते बीतते-बीतते ही हम दोनों की दोस्ती लोगों के बीच काना-फूसी का सबब बन गई। लोग देखते ही व्यंग्य भरी मुस्कुराहटें फेंकने लगे। मैं इस बात से जब कुछ अचकचाता तो संजना का सीधा जवाब होता ‘क्या राजा जी तुम भी कमाल करते हो। ऐसी बातों की इतनी परवाह करते हो। मैं तो ऐसी बातों को सुनने के लायक भी नहीं समझती कि इन्हें एक कान से सुनो फिर दूसरे कान से निकालने की जहमत उठाओ। फिर आप क्यों इतना परेशान होते हैं। ये सब जब भौंकते-भौंकते थक जाएंगे तो अपने आप चुप हो जाएंगे।’
उसकी इस बात से मैं दंग रह गया। इस बीच मेरा काम बढ़ गया था। उसका भी काम मुझे करना पड़ रहा था। क्योंकि वह इतने प्यार, मनुहार के साथ अपना काम करने को कहती कि मैं इंकार न कर पाता। काम सारा मैं करता और वह अपने नाम से उसे आगे बढ़ाती। जल्दी ही लोगों के बीच यह भी चर्चा का विषय बन गया। जब मैं अकेले होता तो रोज सोचता कि अब यह सब नहीं करूंगा। लेकिन उसके आते ही मैं सब भूल जाता, सम्मोहित सा हो जाता और मन प्राण से उसका हो जाता।
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