Bazar in Hindi Poems by Ajay Amitabh Suman books and stories PDF | बाजार

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बाजार

1.बाजार

झूठ हीं फैलाना कि,सच हीं में यकीनन,
कैसी कैसी बारीकियाँ बाजार के साथ।
औकात पे नजर हैं जज्बात बेअसर हैं ,
शतरंजी चाल बाजियाँ करार के साथ।

दास्ताने क़ुसूर दिखा के क्या मिलेगा,
छिप जातें गुनाह हर अखबार के साथ।
नसीहत-ए-बाजार में आँसू बावक्त आज,
दाम हर दुआ की बीमार के साथ।

दाग जो हैं पैसे से होते बेदाग आज ,
आबरू बिकती दुकानदार के साथ।
सच्ची जुबाँ की है मोल क्या तोल क्या,
गिरवी न माँगे क्या क्या उधार के साथ।

आन में भी क्या है कि शान में भी क्या ,
ना जीत से है मतलब ना हार के साथ।
फायदा नुकसान की हीं बात जानता है,
यही कायदा कानून है बाजार के साथ।

सीख लो बारीकियाँ ,ये कायदा, ये फायदा,
हँसकर भी क्या मिलेगा लाचार के साथ।
बाज़ार में खड़े हो जमीर रख के आना,
चलते नहीं हैं सारे खरीददार के साथ।

2.आदमी का आदमी होना बड़ा दुश्वार है

रोज उठकर सबेरे , नोट की फिराक में,
चलाना पड़ता है मीलों , पेट की खुराक में।
सच का दमन पकड़ के , घर से निकालता है जो,
झूठ की परिभाषाओं से , गश खा जाता है वो।

बन गयी बाज़ार दुनिया , बिक रहा सामान है,
जो है जितना बड़ा वो , उतना हीं बेईमान है।
औरों की बातें है झूठी , औरों की बातों में खोट,
और मिलने पे सड़क पे , छोड़े ना दस का भी नोट।

तो डोलते नियत जगत में , डोलता ईमान है,
और भी फुसलाने को अब ,बिक रहे सामान हैं।
झूठ के बाज़ार में सब, खुद हैं ललचाए हुए,
रूह में धोखे की ज्वाला ,आग लहकाए हुए।

तो तन बदन में आग लेके , चल रहा है आदमी,
ख्वाहिशों की ख़ाक में भी ,जल रहा है आदमी।
टूटती हैं ख्वाहिशें जब , रुठतें जब ख्वाब हैं,
आदमी में कुछ बचा जो , लुटती शराब है।

सच न कहने पे हैं, जमीर को कुछ दिक्जतें,
झूठ ना सहने पे भी, अमीर को कुछ दिक्कतें।
इन दिक्कतों मुसीबतों में, आदमी नापाक हैं,
सिगरेटी धुएँ में करता, रूह अपनी राख है।

उलझनों में खुद उलझती , कैसी कैसी आदतें,
आदतों पे खुद हैं रोती , जाने कैसी आदतें।
अनगिनत इन आदतों से, खुद हीं में लाचार है,
आदमी का आदमी होना , बड़ा दुश्वार है।

3.देशभक्त कौम

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई ,या जैन या बौद्ध की कौम,
चलो बताऊँ सबसे बेहतर ,देश भक्त है आखिर कौन।

जाति धर्म के नाम पे इनमें , कोई ना संघर्ष रचे ,
इनके मंदिर मुल्ला आते,पंडा भी कोई कहाँ बचे।

टैक्स बढ़े कितना भी फिर भी, कौम नहीं कतराती है ,
मदिरालय से मदिरा बिना मोल भाव के ले आती है।

एक चीज की अभिलाषा बस, एक चीज के ये अनुरागी,
एक बोतल हीं प्यारी इनको, त्यज्य अन्यथा हैं वैरागी।

नहीं कदापि इनको प्रियकर,क्रांति आग जलाने में ,
इन्हें प्रियकर खुद हीं मरना,खुद में आग लगाने में।

बस मदिरा में स्थित रहते, ना कोई अनुचित कृत्य रचे,
दो तीन बोतल भाँग चढ़ा ली, सड़कों पर फिर नृत्य रचे।

किडनी अपना गला गला कर,नितदिन प्राण गवाँते है ,
विदित तुम्हें हो लीवर अपना, देकर देश बचाते हैं।

शांति भाव से पीते रहते ,मदिरा कौम के वासी सारे,
सबके साथ की बातें करते ,बस बोतल के रासी प्यारे।

प्रतिक्षण क़ुरबानी देते है, पर रहते हैं ये अति मौन ,
इस देश में देशभक्त बस ,मदिरालय के वासी कौम।