समय बदल रहा था. बच्चे उच्च शिक्षा हेतु शहरों में पढ़ रहे थे. नौकरियां भी बाहर ही मिलनी थीं, अब तो उनके खुद के परिवार भी बन गये, शादी के बाद. अब सब तभी इकट्ठे होते जब कोई शादी गांव से होनी होती. अधिकांश ने शहरों में ही घर बनवा लिये थे
अब सब तभी इकट्ठे होते जब कोई शादी गांव से होनी होती. अधिकांश ने शहरों में ही घर बनवा लिये थे. तिवारी जी के भाइयों ने ज़रूर पुराने मकान में ही तब्दीली कर, उसे पक्का और सुविधाजनक कर लिया था. उन सब का विचार था, कि वे रिटायरमेंट के बाद गांव में ही रहेंगे. रहना तो तिवारी जी भी चाहते थे, लेकिन कुन्ती का स्थाई निवास गांव में ही था. वैसे स्थाई तो नहीं था. दोनों लड़कों के पास जाती रहती थीं बीच-बीच में, लेकिन अधिकांश समय उसका गांव में ही बीतता था ; ऐसे में सुमित्रा जी का गांव में रहना उचित नहीं था. अपनी नई उमर में तो सुमित्रा जी झेल गयीं, बड़े-बड़े आरोप, झगड़े-झंझट, लेकिन अब इस उमर में बर्दाश्त न कर पायेंगीं. इतने सालों में अब उनकी आदत भी नहीं रह गयी थी खिच-खिच में रहने की. तो तिवारी जी ने ग्वालियर में ही घर बनवा लिया था. न घर से दूर, न पास.
बड़े दादाजी के देहान्त के बाद कुन्ती का एकछत्र राज्य हो गया था तब. अपने या अपने बच्चों के बारे में किसी से कोई राय लेना जैसे पाप था उसके लिये. कोई राय दे दे तो उसकी खैर नहीं. परिस्थितियों ने कुन्ती को और चिड़चिड़ा बना दिया था. उस पर, सुमित्रा का स्थाई रूप से बाहर रहना उसके लिये सबसे तक़लीफ़देह बात थी. वो महारानी शहर में मौज काटें और मैं गांव में सड़ूं? दो-दो बच्चों को ले के? लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था. उत्तर प्रदेश की सुमित्रा जी, अब मध्यप्रदेश में नौकरी कर रही थीं, और वहीं की स्थाई निवासी भी बन चुकी थीं. जबकि कुन्ती की नौकरी उत्तर प्रदेश की ही थी. फिलहाल अकेली किसी शहर में ट्रांसफ़र ले के रहने की स्थिति भी नहीं थी. इसमें भी उसे सुमित्रा की ही चाल लगती. कुन्ती ने ये कभी नहीं सोचा कि उसकी करतूतों की वजह से सुमित्रा जी को घर छोड़ना पड़ा. उल्टे कुन्ती ही इल्ज़ाम लगाती कि मुझे अकेली छोड़ के ये लोग शहर निकल लिये!!!
सुमित्रा जी का जीवन अब जितना शान्त था, कुन्ती के जीवन में उतनी ही उथल-पुथल. कुन्ती ने न कभी खुद चैन से जीना सीखा था, न ही दूसरों को चैन से जीने देती थी. किशोर जब केवल सत्रह साल का था, तभी उसकी शादी के पीछे पड़ गयी. कारण, परिवार अब विभाजित हो चुका था. सब अपने-अपने घरों का काम निपटाते जबकि कुन्ती को तो घर का कोई काम करने की आदत ही न थी. उसने सोचा, किशोर का ब्याह कर देगी तो दो फ़ायदे होंगें. एक तो घर का काम सम्भालने वाली आ जायेगी, दूसरे लड़की की उमर कम होगी तो वो उसे अपनी तरह से नचा पायेगी. पूरे परिवार ने विरोध किया, कुन्ती के इस फ़ैसले का लेकिन कुन्ती कहां किसी की सुनने वाली? यदि सब राज़ी हो जाते तो शायद कुन्ती अपने फ़ैसले से पलट जाती, लेकिन सब के विरोध ने फिर उसके भीतर ज़िद भर दी. खुले आम कहती-