ईश्वरत्व का अहंकार
भाग-1
मानव में ईश्वरीय आस्था बहुत कुछ ज्ञान-सापेक्ष होती है- जहां मानवीय ज्ञान की सीमा रेखा आ जाती है और अज्ञान के अंधकार का साम्राज्य प्रारम्भ होता है, वहीं मानव ईश्वर का अवलम्ब प्राप्त करने को आतुर हो जाता है और ईश्वरीय आस्था का साम्राज्य प्रारम्भ हो जाता है। आदिम कालीन मानव का ज्ञान सीमित होने के कारण उसने जल, अग्नि, वायु, नदी, समुद्र, चंद्र, सूर्य आदि सभी उन शक्तियों, जिन पर वह नियंत्रण कर पाने मे अपने को असमर्थ पाता था, को देवत्व प्रदान कर दिया था, परंतु मानवीय ज्ञान एवं तद्जनित प्रकृति पर नियंत्रण की शक्ति के विस्तार के साथ मानवीय विश्वासों में देवत्व का दायरा संकुचित होता गया। ज्ञान एक प्रकाश है जो मानव को शक्ति एवं साहस देता है, परंतु साथ ही प्रायः उसके अहम् की वृद्धि करता है; अज्ञान ऐसा अंधकार है जो मानव को शक्तिहीन एवं भयभीत करता है परंतु साथ ही उसे उसकी सीमाओं को स्मरण कराते हुये ईश्वरीय महानता का आभास कराता रहता है और उसमें विनम्रता उत्पन्न करता है। इक्कीसवीं सदी में ज्यों ज्यों मानव के ज्ञान और उसके प्रकृति पर नियंत्रण की सीमायें विस्तृत हो रही थीं, ईश्वर पर आस्था का साम्राज्य संकुचित होता जा रहा था और मानव के अहम् का विस्तार हो रहा था। परंतु जब तक मनुष्य कृत्रिम मानव के निर्माण एवं चिर यौवन प्राप्त करने में सफलता नहीं प्राप्त कर सका, वह ईश्वर के अस्तित्व को नकार नहीं सका था क्योंकि उसका संस्कारजनित विश्वास था कि ये कार्य ईश्वरीय हैं- मानव की शक्तियों के परे। परंतु 21वीं सदी में जब मानव ने इस सीमा रेखा को पार कर लिया, तो उसके अहम् की कोई सीमा न रही। यह कहानी एक ऐसे ही असीम स्वलिप्त मानव के असीम अहं की कहानी है।
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‘‘अलेक......अलेक......अलेक.............अलेक्ज़ांडर.....’’ - मंगल ग्रह की सतह के नीचे 500 मीटर गहराई मे बनी एक महलनुमा गुफ़ा़ के एक अत्यधिक शानदार कमरे में ब्राह्मवेला में गहरी नी़द में सोये हुए अलेक्जा़ंडर को लग रहा था कि कोई एक लम्बी सुरंग के उस पार से उसे बुला रहा है। एयरटाइट गुफा़ का वह एयरकंडीशंड कमरा मंगलग्रह की धरती के अंदर एक गुफा़ का भाग न लगकर पांच सितारा होटल का एक वृहताकार सुसज्जित कमरा लग रहा था। अर्धअंडाकार कमरे मे सीधी दीवाल के समानांतर पलंग का सिरहाना था जिसके दोनो ओर की साइड टेबुल्स पर अनेक इलेक्ट्रोनिक संयंत्र लगे हुये थे। यद्यपि गुफा़ के बाहर का तापमान ऋण चालीस अंश था और मंगलग्रह की सतह पर बर्फ़ भरी धूल का अंधड़ चल रहा था परंतु गुफा़ के अंदर पूर्ण शांति छायी हुई थी। मंगल ग्रह की अपनी धुरी पर परिक्रमा की अवधि इतनी लम्बी होती है कि वहां प्रातः अथवा सायं होने का कोई वैसा भान नहीं हो सकता है जैसा पृथ्वी पर होता है। समय का ज्ञान वहां के गुरुत्व को ध्यान में रखकर बनायी गयी विशेष घडी़, जो उसी संयंत्र के पास रखी थी जिसमें से अलेक को बुलाने की आवाजे़ आ रही थी, से ही किया जा सकता था।
अलेक गहरी निद्रा-निमग्न स्थिति से धीरे धीरे तंद्रा की स्थिति और फिर जाग्रत स्थिति मे आ रहा था। रात में देर तक सोफ़िया और जेन के साथ डांस करते रहने और फिर दोनों के साथ कामरत रहने के कारण अलेक का खु़मार बहुत धीरे धीरे उतर रहा था। उसे लग रहा था कि उसे पुकारने की आवाज़ उसका स्वप्न मात्र है क्योंकि इतने शीघ्र उसे जगाने का साहस बिरला ही कर सकता था। वह सोफ़िया को पीछे से अपने बलिष्ठ शरीर में भरकर सोया हुआ था और जेन उसके पीछे से उसे अपनी बांह में भरकर सोयी हुयी थी। पहले तो पुकारने की आवाज़ सुनने पर उसने सोफ़िया के वक्ष की पकड़ और मज़बूत कर ली थी परंतु आवाज़ के न रुकने पर उसने बेमन से बेड में लगे स्विच के बटन को दबाकर आंखें आधी खोली। सामने टी. वी. के स्क्रीन पर विकारियो का परेशान चेहरा दिरवायी दिया,
‘‘अलेक! अलेक! इम्पौर्टेंट डेवलपमेंट’’
‘‘यस विकारियो’’, अलेक की नींद पूर्णतः खुल चुकी थी और वह सजग हो गया था।
‘‘अलेक-2 रात से गा़यब है। पता चला है कि वह छुपकर जीन रिजुविनेशन हेतु टाटा इंस्टीच्यूट आफ़ फ़ंडामेंटल साइंसेज़्, मुम्बई चला गया है। वहां के किसी युवा वैज्ञानिक ने स्वतंत्र रूप से रिसर्च कर जीन रिजुविनेशन की अपनी नई विधि खोज ली है।’’ विकारियो घबराहट में जल्दी जल्दी बोले जा रहा था।
‘‘पर अलेक-2 गा़यब कैसे हुआ? किसकी निगरानी में था?’’ अलेक क्रोधित होकर बोला।
‘‘चाउू चिन की निगरानी में था। पता लगा रहा हूं कि भागा कैसे ।’’ विकारियो चिंतित स्वर में बोला।
अलेक का स्वर स्पष्ट, आदेशात्मक व भयजनक था, ‘‘अलेक-2 और चाउू चिन दोनों का आज शाम तक ख़ात्मा हो जाना चाहिये।’’
यह कहकर अलेक ने स्विच आफ़ कर दिया और करवट बदलकर जेन को बांयीं बांह में भरकर सो गया।
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अलेक्जांडर का जन्म उस दिन हुआ था, जिस दिन मनुष्य ने ईश्वरत्व की प्राप्ति की दिशा मे पहला कदम रख लेने की घोषणा की थी। यह 21वीं सदी का मध्यकाल था। यू. एस. ए. में ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट पर काम कर रहे वैज्ञानिकों ने जीन की 3 बिलियन (3 अरब) श्रंखलाओं का एक खा़का खींच दिया था जिससे भविष्य में मानव शरीर के नियोजित निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो गया था।
अलेक्जांडर की माँ मारिया बचपन से ही अनाथ हो गई थी। जब वह दुधमुंही बच्ची थी तभी उसके मां-बाप एक शाम रोम में टाइबर नदी के किनारे कोकीन की अधिक मात्रा का इंजेक्शन ले लेने के कारण मृत पाये गये थे। प्रारम्भ में मारिया रोम में कोलोसियम के निकट स्थित एक अनाथालय में पली थी और फिर रोम की बदनाम गलियों मे। रजस्वला होने के एक वर्ष बाद ही वह अलेक की अनब्याही माँ बन गयी थी- वह दिन मारिया के जीवन में केाई ख़ुशी लाने के बजाय बच्चे को पालने की अतिरिक्त चिंता ही लेकर आया था। प्रसूति के दसवें दिन से ही मारिया ने रोम शहर के बाहर सड़क के किनारे स्थित एक ढाबे जैसे रेस्ट्रां में बर्तन धोने का काम ले लिया था। रेस्ट्रां के मालिक ने उसके गठीले और कामोत्तजक शरीर को देखकर उस पर विशेष कृपा जताते हुये उसे अलेक को एक कोने में रखे गंदे से खटोले पर लिटाने की अनुमति दे दी थी। दस दिन के बाद से ही मारिया के काम में बर्तन धेाने के अतिरिक्त मालिक का बिस्तर गर्म रखना भी शामिल हो गया था। इसके बदले उसे भोजन और अलेक की आवश्यकता के अनुसार दूध भी मिलने लगा था। उस रेस्त्रां के ग्राहक अधिकतर ट्रक ड्राइवर, रोज़गार की तलाश मे आये गरीब लोग, स्मगलरों और डृग माफियाओं के लिये काम करने वाले लोग, जेबकतरे आदि ही होते थे। अलेक टुकुर-टुकुर रेस्त्रां की गतिविधियों को देखा करता और वह वहां आने वाले व्यक्तियों के हृदय में छिपी निराशा, नीचता, स्वार्थ और हृदयहीनता को आत्मसात करता रहता। तीन साल का होते होते अलेक ने अपनी माँ के काम में हाथ बटाना शुरू कर दिया था। बचपन से ही अलेक स्वयं को जीवित रखने और मात्र स्वयं के लिये जीने की कला सीख रहा था।
‘‘अलेक इधर आओ’’ एक दिन मालिक ने बर्तन धोते हुये अलेक को घूरकर देखते हुये अन्दर के कमरे की तरफ़ इशारा करते हुये कहा। अलेक अब सात वर्ष का भरे पूरे बदन का फूले फूले गालों वाला सुंदर सा बालक था। उस दिन दोपहर का भोजन समाप्त होने के बाद रेस्त्रां दो घंटे के लिये ग्राहकों के लिये बंद हो चुका था और मारिया को मालिक ने सब्जी़ खरीदने के लिये बाजा़र भेज दिया था। अलेक हाथ धेाकर मालिक के पीछे अंदर कमरे में चला गया। फिर मालिक द्वारा कमरे का दरवाजा़ बंद करने पर अलेक को घबराहट होने लगी, परंतु भेड़िये के सामने खडे़ मेमने के समान उसके मुंह से आवाज़ निकलना बंद हो गई। मालिक ने जब उसे पीछे से दबोच लिया और उसका दर्द असह्य होने लगा, तभी उसके मुंह से चीख़ निकली, परंतु उस चीख़ को सुनने वाला वहां कोई नहीं था। फिर अलेक ने अनुभव किया कि वह पीडा़ से जितना अधिक चीख़ता था, मालिक उतनी अधिक निर्दयता से उसे पीड़ित करता था। इस घटना से अलेक असीम पीड़ा, क्षेाभ व ग्लानि से ग्रस्त हो गया परंतु भयवश अपने आंसू पीकर रह गया। फिर बार बार उसी दुर्दशा को झेलना उसकी नियति बन गयी।
अलेक बढ़ रहा था- आयु में ,शरीर में, चोर-उचक्कों से सीखी स्वार्थ एवं हृदयहीनता की प्रवृत्ति में, अपनी माँ और अपने प्रति रेस्त्रां के मालिक द्वारा किये जा रहे अत्याचारों के अहसास में, परंतु उसका विकास साहचर्य, सहृदयता एवं प्रेम की अनुभूति में पूर्णतः अवरुद्ध था। 21वीं सदी भी अबाध गति से बढ़ रही थी मानव द्वारा ईश्वरत्व की प्राप्ति की दिशा में- मानव ने मंगल ग्रह पर यान उतार दिया था, कैंसर और डायबिटीज़ के रोगियों में जीन परिवर्तन का प्रयोग प्रारंभ कर दिया था, और जीन परिवर्तित सुअरों के दिल, पैन्क्रियाज़, लीवर जैसे अंगों का मानव शरीर में प्रत्यारोपरण प्रारंभ हो गया था। टूर आपरेटरों द्वारा स्पेस स्टेशनेां पर टूर कराना भी प्रारंभ कर दिया गया था और चंद्रमा पर होटल बनाने की दिशा में प्रयत्न प्रारंभ कर दिये गये थे। मानव की इन सफलताओं के ज्ञान से अछूता अलेक जब 13वीं वर्ष मे प्रवेश कर रहा था, तभी एक दिन,
‘‘अलेक! तुझे अच्छी नौकरी चाहिये? यहां से अच्छा खाने पीने को मिलेगा और वेतन भी।’’ एक मोटा सा ग्राहक जिसे अलेक बियर की बोतल दे रहा था, ने अलेक से पूछा। अलेक कोई उत्तर दे पाता उसके पहले ही उसकी माँ ग्राहक की बात सुनकर पास आ गई और धीरे से बोली,
‘‘खाने के बाद रेस्त्रां के बाहर बात करना।’’
मारिया को डर था कि कहीं मालिक न सुन ले और उसे जाने से रोके। मारिया वर्षों से चाह रही थी कि उसके बेटे को कहीं और काम मिल जाय- विशेषकर तब से जब उसे यह ज्ञात हुआ था कि मालिक उसके बेटे का भी यौन शोषण कर रहा है।
‘‘क्या काम करना होगा और कहां?’’ बाहर आने पर उसने ग्राहक से पूछा।
‘‘एक कम्पनी में काम करना होगा। अभी रोम में ही काम सीखेगा, पर अच्छा सीख जाने पर देश-विदेश में कहीं भी नियुक्त हो सकता है। तुम सोच भी नहीं सकती हो कि अच्छा काम करने पर कितनी तरक्की कर सकता है।’’ ग्राहक ने सब्ज़बाग दिखाये।
मारिया का बीता हुआ सम्पूर्ण जीवन सुख के सपनों में ही बीता था; अतः वह अपने बालक के सुखपूर्ण भविष्य के सपने देखने लगी। वह खुशी खुशी राजी़ हो गई। वह स्वीकृति अलेक्जा़ंडर के नारकीय जीवन को अतुल वैभव एवं ईश्वरत्व की प्राप्ति की दिशा मे प्रथम सोपान था। वह दिन अलेक्जा़ंडर का अपनी माँ से मिलन का अंतिम दिन भी था- ईश्वर को माँ की क्या आवश्यकता?
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