वह चेहरा
(1)
मध्य दिसम्बर का एक दिन. सुबह की खिली-खिली धूप और लॉन में पड़ी बेंचें. बेंचों पर बैठे कई चेहरे..... धूप में नहाये चेहरे.... धूप सेकते चेहरे. खिड़की का पर्दा उन्होंने थोड़ा-सा खिसका दिया था,जिससे लॉन का दृश्य स्पष्ट दिख रहा था. उनकी नजर एक चेहरे पर टिक गयी और वह गौर से उसे देखते रहे. चेहरे पर उम्र की लकीरें स्पष्ट थीं. उन्होंने कुर्सी एक ओर खिसकाई और खिड़की पर जा खड़े हुए.... निर्निमेष उस चेहरे को देखते हुए.
'वही हैं......लेकिन यहां क्यों ? ' मस्तिष्क में तंरगें दौड़ने लगीं. कुछ क्षण खिड़की पर खड़े रहकर वह कमरे में टहलने लगे सोचते हुए,'मैं कैसे भूल सकता हूं उस चेहरे को. ढल गया है.... ढलना ही था. पचास से अधिक सालों की लंबी यात्रा.... पचीस साल जैसा कौन रहता है ! शरीर में स्थूलता भी है....अपने को देखो तपिश.... तुम क्या उतने ही स्लिम-ट्रिम हो.... बढ़ती उम्र में सभी के आकार-प्रकार - चेहरे बदलते ही हैं........'
वह एक बार पुन: खिड़की के पास जा खड़े हुए और देखने लगे. इस समय वह चेहरा किसी युवती से बातें कर रहा था....युवती,जो पचीस -छब्बीस के आसपास थी....उस चेहरे से मिलता -सांवला चेहरा,नाक नोकीली,होंठ पतले और आंखें छोटीं. लंबाई भी उतनी ही.....वह भी तो उस युवती जितनी लंबी थीं,लेकिन तब उनके नितंब छूते बाल थे,जैसे कि उस युवती के हैं,लेकिन अब वह बॉब्ड थीं.
'निश्चित ही यह वही हैं.....' वह अपनी टेबल के चारों ओर कमरे में कुछ क्षण तक टहलते रहे,' क्या उन्हें मेरे बारे में जानकारी नहीं ? या उनकी स्मृतिपटल से मेरा नाम सदा के लिए मिट चुका है. लेकिन ऐसा संभव नहीं. हम दो बार मिले थे.... कितने ही पत्र लिखे थे एक-दूसरे को.' वह पुन: खिड़की के पास जा खड़े हुए,'यह मेरा भ्रम नहीं....यह वही हैं .'
दरवाजे पर दस्तक हुई.
''कम इन '' वह तेजी से पलटे और कुर्सी की ओर ऐसे बढ़े मानो चोरी करते हुए पकड़े जाने का भय था .
कॉलेज के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. प्रवीण राय ने आहिस्ता से प्रवेश किया.
''यस प्रवीण.... इज एवरीथिंग फाइन !''
''जी सर. एक्सपर्ट्स डॉ. श्रेयांष तिवारी और डॉ. निकिता सिंह आ गए हैं. ''
''और हेड साहब....डॉ. सच्चिदानंद पाण्डे ?''
डॉ. सच्चिदानंद पाण्डे विश्वविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष थे और विश्वविद्यालय या विश्वविद्यालय के किसी भी कॉलेज में शिक्षक के किसी भी पद के साक्षात्कार में उनका होना अनिवार्य था. यह विश्वविद्यालय का नियम था.
'' उनके पी.ए. का फोन आया था सर कि वह कुछ देर पहले ही कार्यालय से निकले हैं......उन्हें पहुंचने में कम से कम आध घण्टा का समय लगेगा.''
''हुंह......'' कुछ सोचने के बाद वह बोले,'' हेड साहब के आने तक प्रतीक्षा करना होगा.... डॉ. तिवारी और डॉ. निकिता सिंह को मेरे यहां ले आओ.......''
''सर मैंने पहले ही उन्हें आपके यहां के लिए कहा था लेकिन दोनों सीधे गेस्ट रूम में जाते हुए बोले कि वहां उन्हें कोई कष्ट नहीं.....''
''ओ. के....'' प्रवीण राय को सामने कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हुए वह बैठ गए और बोले, ''इन दोनों की जोड़ी जहां भी जाती है अपने कंडीडेट के लिए दबाव बनाते है....''क्षणभर चुप रहे, '' दरअसल हेड साहब सीधे व्यक्ति हैं..... वह सब कुछ जानते हैं,लेकिन नहीं मालूम किन कारणों से प्राय: इन दोनों को एक साथ विशेषज्ञ के रूप में रिकमेण्ड कर देते हैं.''
''सर,मुझे जहां तक जानकारी है.... जब भी डॉ. तिवारी से पूछा जाता है विशेषज्ञ के रूप में किसी कॉलेज में जाने के लिए उनकी शर्त होती है कि उनके साथ दूसरा विशेषज्ञ डॉ. निकिता सिंह होंगी तभी.... विश्वविद्यालय में उनके खिलाफ जाने की शक्ति किसी में नहीं है. हिन्दी के प्रतिष्ठित आलोचक हैं.... सत्ता में पैठ है और वी.सी. भी उन्हें मानते हैं .''
वह मुस्कराते रहे.
''सर,निकिता सिंह का कोई छात्र है....सुना है.... उनके निर्देशन में पी-एच.डी. कर रहा है और 'नेट' भी उत्तीर्ण है.....हो सकता है.....''
उन्होंने प्रवीण की बात आधी-अधूरी सुनी. उस क्षण उनकी नजरें खिड़की से बाहर बेंच पर अखबार में झुके उस चेहरे पर टिकी हुई थीं. युवती अब वहां नहीं थी .
'युवती भी शायद अभ्यर्थी है.' उन्होंने सोचा.
''सर,फिर.....'' प्रवीण के टोकने से वह अचकचा गए .
''हुंह.....यह हो सकता है. लेकिन डॉ. तिवारी दो अपने रखते हैं तब कहीं एक वेकेंसी निकिता सिंह को देते हैं . ''
''सर ''.
''प्राय: महिला अभ्यर्थी ही उनकी कंडीडेट होती हैं. उनके निर्देशन में पी-एच.डी करने वाली सभी लड़कियां ही हैं..... एकदम समाजवादी हैं डॉ. तिवारी. निकिता ने भी उनके निर्देशन में पी-एच.डी की थी..... उनके आलोचक इसे उनकी कमजारी मानते हैं तो मानते रहें. '' चुप होकर प्रवीण की ओर देखने के बाद वह खिड़की से बाहर लॉन की ओर देखने लगे. वह चेहरा उन्हें वहां नजर नहीं आया. 'कहां गई ? ' क्षणांश के लिए वह विचलित हुए,लेकिन तभी सामने बैठे अपनी ओर ताकते प्रवीण पर दृष्टि डाली और बोले,''लेकिन हम क्या करें प्रवीण?''
'' क्या सर?''
''आपको बताया था.... मिनिस्ट्र्री से आए फोन के बारे में.... मंत्री जी किसी निरंजन प्रसाद में इंटरेस्टेड हैं.... मंत्री जी के मुंह लगे ज्वाइण्ट सेक्रेटरी का फोन था. दोनों ही बिहार के हैं. जे.एस. ने संकेत में यह भी कहा था कि निरंजन मंत्री जी का दूर का रिश्तेदार है.......''
''सर,हमें डॉ. तिवारी से पहले ही बात कर लेनी चाहिए और अपनी समस्या डॉ. पाण्डे को भी बता देना चाहिए .''
''प्रवीण,आप जानते हैं कि डॉ. तिवारी का कंडीडेट नहीं तो किसी का नहीं......उन पर मंत्री-संत्री का प्रभाव नहीं पड़ने वाला....... ''
''सर,वेकेंसी भी एक ही है....एडहॉक भी नहीं....वर्ना डॉ. तिवारी के लिए एडहॉक का ऑफर दे सकते थे .''
''प्रवीण,'' वह कुछ गंभीर हो उठे, ''आपको नहीं लगता कि यह सब कितना अनफेयर है.... मंत्री के कंडीडेट की बात हो या डॉ. तिवारी या डा. निकिता की या किसी अन्य के कंडीडेट की.... जो अभ्यर्र्थी दूर से आते हैं और कितनी ही बार उन्हें दूर शहरों में असफल साक्षात्कार के लिए जाना होता है....... उनके विषय में सोचो. अधिकांश बेकार और साधारण हैसियत के युवक.... ये तिवारी या मंत्री जैसे घड़ियाल उनकी नौकरियां निगल जाते हैं.....'' उनका चेहरा लाल हो उठा.
''सर'' प्रवीण ने चुप रहना ही उचित समझा क्योंकि वह स्वयं भी सिफारिश से नियुक्त हुआ था. लेकिन वह जानता था कि उसके सामने बैठे डॉ.तपिश.... उसके प्राचार्य एक मेरीटोरियस व्यक्ति थे और उन्होंने सिफारिश से नहीं अपनी योग्यता से प्राध्यापकी पायी थी और विश्वविद्यालय - कॉलेज की राजनीति के बावजूद वह इस पद पर पंहुचे थे... अपनी योग्यता के बल पर....
'' डॉ. तिवारी और डॉ. निकिता सिंह के लिए जलपान की व्यवस्था.....'' अपनी बात अधूरी छोड़ दी उन्होंने.
''सर डॉ. अनिरुध्द शुक्ल उनकी सेवा में हैं.''
''ओ.के.....'' उन्होंने पुन: लॉन की ओर देखा. बेंचों पर बैठे अन्य लोग भी इधर-उधर जा चुके थे.... केवल एक वृद्ध पुरुष को छोड़कर.
''डॉ. पाण्डे के आते ही मुझे सूचित करना. उनके आते ही इंटरव्यू प्रारंभ कर देना है..... तब तक आप डॉ. तिवारी और डॉ. निकिता सिंह का खयाल रखें.....'' वह पुन: कुर्सी से उठ खड़े हुए और कमरे में टहलने लगे.
****
'लोग रिसेप्शन में बैठे होंगे....धूप में गर्मी बढ़ गयी होगी. मुझे रिसेप्शन की ओर जाना चाहिए.'
'लेकिन क्यों ?'
'शायद वह वहां मिल जांए. '
'मिल भी जाती हैं तो क्या तुम उनसे बात कर सकते हो इस समय. वह लड़की उनकी बेटी होगी.... यह तो अनुमान लग ही गया है. एक अभ्यर्थी की मां से बात करना....तपिश तुम प्राचार्य हो इस कॉलेज के.....'
'प्राचार्य क्या इंसान नहीं ! उसके परिचितों के बच्चे साक्षात्कार में नहीं बैठ सकते? बात कर लेने से ही मैं उनकी लड़की का फेवर करने लगूंगा? मुझे उस लड़की का नाम भी मालूम नहीं.... जबकि मंत्री जी की तोप इन्हीं बच्चों के बीच कहीं समायी होगी.... तिवारी और निकिता सिंह की गन भी होगी कहीं...... इण्टरव्यू करने उधर से जाते हुए मैं उन्हें भलीभांति देख सकूंगा.....जरूरी नहीं कि वह मानसी ही हों.... हों भी तो वह मुझे पहचान लेंगी यह आवश्यक नहीं है.'
'फिर तुम उधर से जाना ही क्यों चाहते हो?' अंदर से आवाज आयी. 'पहचान लिए जाने के लिए ही न ! लेकिन क्या बात मात्र इतनी ही है ! क्या यह सच नहीं कि उनके पहचानने से तुम्हारा आहत स्वाभिमान संतुष्ट होगा. तुम उन्हें यह अहसास नहीं करवाना चाहते कि तुम इस कॉलेज के प्रिसिंपल हो ?'
'नहीं,ऐसा नहीं है.....इतनी पुरानी बात....तीस साल पुरानी....मैं तो भूल ही गया था..'
'नहीं तपिश....तुम उसे एक दिन...बल्कि एक पल के लिए भी नहीं भूले....भूल सकते भी नहीं थे.... वह पुन: खिड़की पर खड़े हो गए और बाहर देखने लगे. लॉन की एक बेंच पर वही अकेला वृद्ध व्यक्ति बैठा था और बेंच से कुछ हटकर एक कुत्ता अपना पेट,टांगें और मुंह ऊपर उठाये पीठ के बल निश्चल लेटा हुआ था. तभी दरवाजे पर नॉक हुआ .
''यस !'' वह पलटे.
'सर,हेड साहब आ गए हैं....सीधे कांफ्रेंस रूम में.....आप भी......''
''ओ.के.'' अभ्यर्थियों के नामों का फोल्डर टेबल से उठा वह डॉ. प्रवीण के पीछे हो लिए थे .
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