Ofidiojobiya in Hindi Short Stories by Abhinav Bajpai books and stories PDF | अोफिडियोफोबिया

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अोफिडियोफोबिया

बापू.. बापू.. सूरज सर पे चढ़ आया है, उठोगे नहीं, अम्मा गुस्सा हो रही है। भैंस का चारा - सानी नहीं करना है।' कहते हुए सरजू की लड़की इमली उसे जगाती है।
सरजू - ' हां… उठ रहा हूं, जा तू जाकर लोटा भर पानी ले आ '
सरजू उठकर भैंस का चारा - सानी करके और अपने दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर खाना खाता है।
खाना खाने के बाद दोपहर में सरजू छप्पर के नीचे चारपाई डालकर लेटा है, ये चारपाई सरजू ने अपने हाथ से ही बनाई थी, और ये छप्पर तो उसने कल ही बनाया है।
' हां! कल ही तो उसने अपने और महाराज के खलिहानों से अनाज आदि को लाकर ठिकाने पर रखा था। महाराज के खेत उसने बटाई पर ले रखे थे। (सरजू एक पैर अपने दूसरे पैर पर चढ़ाते हुए) अब तो महाराज के खेत कुछेक दिन के लिए खाली ही रहेंगे, वैसे उस दिन जाने कुछ बोने को कह तो रहे थे, चलो देखा जाएगा, अपने खेत का तो जैसा राम जी ठौर - ठिकाना करें। (गहरी सांस भरते हुए) अच्छा ही हुआ अनाज और भूसा कोठरी में सही वक़त पर पहुंच गया, कल ही तो अचानक बरखा सी बन आयी थी, पहले - पहले तो आंधी ही चली, लेकिन उसके बाद कुछ ही देर में बदरी छा गई..
वो तो भला हो राम जी का जो कल का दिन सूखा बीत गया, लेकिन आगे का कोई तबक्का नहीं अब जो बादल बरसे तो सोने की कोई जगह ना ठिकाएगी वैसे भी कोठरी में अनाज और भूसा रखा है।
इसीलिए सरजू छप्पर का इंतज़ाम जल्द से जल्द कर लेना चाहता था लेकिन छप्पर छाने से भी पहले, फ़सल को काटना ज्यादा ज़रूरी थी, क्योंकि पानी गिरने पर रात भीगते हुए बितानी पड़ेगी लेकिन फ़सल भीगने पर तो पूरे साल भूखा ही सोना पड़ेगा। हम्म... ऊपर से महाराज फ़सल को जल्द से जल्द काटने के लिए कलह किए थे, और फिर महाराज को खुश भी करना था आख़िर छप्पर टेकने के लिए थूनी उनके ही बाग़ से लेनी थी।
सरजू ने छप्पर के लिए पतावर तो अपने खेत से ही काट रखी थी जबकि बांसों को घूसन की बांस मंडी से ही जुगा‌‌ड़ लिया था और कल शाम को उसने सात - एक आदमी इकट्ठा करके छप्पर छा लिया। (करवट बदलते हुए) अरे! ये छप्पर पर चमकीली रस्सी जैसा क्या लटक रहा है? हां… कल छप्पर बनाते समय जब मैं बांस को रस्सी से बांध रहा था तो हाथ में कुछ फांस जैसा चुभा तो था.. क्या फांस ही थी? पर कुछ चिकना सा सरका था... हां कुछ नरम सा था। पता नहीं उस समय काम की धुन में कुछ बूझा ही नहीं मैं तो छप्पर में रस्सी बांधता चला गया उसी समय मटरू की लड़की चिल्लाई भी थी..... (ऊपर गौर करते हुए) पर ये इतनी चमकदार काली - सफ़ेद सी चीज़ क्या हो सकती है? और ये सुनहरी धरियां?
अरे! (और अपना हाथ देखते हुए) स.. सां... सांप

और वातावरण में गहरी निस्तब्धता छा जाती है..