Deh ki Dahleez par - 1 in Hindi Moral Stories by Kavita Verma books and stories PDF | देह की दहलीज पर - 1

Featured Books
  • ऋषि की शक्ति

    ऋषि की शक्ति एक बार एक ऋषि जंगल में रहते थे। वह बहुत शक्तिशा...

  • बुजुर्गो का आशिष - 9

    पटारा खुलते ही नसीब खुल गया... जब पटारे मैं रखी गई हर कहानी...

  • इश्क दा मारा - 24

    राजीव के भागने की खबर सुन कर यूवी परेशान हो जाता है और सोचने...

  • द्वारावती - 70

    70लौटकर दोनों समुद्र तट पर आ गए। समुद्र का बर्ताव कुछ भिन्न...

  • Venom Mafiya - 7

    अब आगे दीवाली के बाद की सुबह अंश के लिए नई मुश्किलें लेकर आई...

Categories
Share

देह की दहलीज पर - 1

साझा उपन्यास 

देह की दहलीज पर 

संपादक कविता वर्मा

लेखिकाएँ 

कविता वर्मा 

वंदना वाजपेयी 

रीता गुप्ता 

वंदना गुप्ता 

मानसी वर्मा 

 

कथाकड़ी 1

सुबह की पहली किरण के साथ कामिनी की नींद खुल गई उसने आंखें मिचमिचाकर उन्हें श्यामल उजाले में देखने को अभ्यस्त किया। बाहों को सिर के ऊपर तानकर पैरों को लंबा खींच शरीर की जकड़न को दूर किया और बाएं करवट लेकर बगल में सो रहे मुकुल को निहारा। गहरी नींद में दोनों बाजुओं को सीने पर बाँधे होठों को थोड़ा सा खोले सोता हुआ मुकुल बेहद मासूम लग रहा था। उसे देख कामिनी के शरीर में एक झुरझुरी सी दौड़ गई। उसका शरीर कसमसाने लगा उसका तन और मन खुद को मुकुल की बलिष्ट बाहों में कैद होने को मचलने लगा। उसके होठों की तपिश अचानक कई गुना बढ़ गई। वह उन अधखुले होंठों से एकाकार होने को मचल उठे। उसने हौले से अपने होंठ उसके होंठों से छुआए साथ ही उसके बालों की खुली लटें मुकुल के चेहरे को चूमने लगीं। एक सरसरी तो उसके चेहरे पर भी पैदा हुई होगी वह कुनमुनाया और उसने करवट बदल ली। कामिनी के तप्त खुले होंठ उपेक्षित से ठिठके रह गए। यह ठिठकन उसे पिछली रात में ले गई। 

डिनर के बाद किचन समेटकर वह अपने कमरे में आ गई थी। बच्चे अपने-अपने कमरों में चले गए थे मुकुल ड्राइंग रूम में टीवी देख रहे थे सासु माँ बेटे के साथ बैठने का सुख लेने के लिए इंग्लिश न्यूज़ चैनल की गिटर पिटर में भी हाथ में माला लिए बैठी थीं। कामिनी ने दिन भर की थकान को शॉवर में धो डाला। गीले बालों को टॉवल में लपेटे लेस की नीबू पीली नाइटी पहने वह आईने के सामने खड़ी हुई तो खुद के रूप पर मोहित हो गई। गोरा चंपई रंग बड़ी बड़ी आंखें थोड़ी छोटी लेकिन तीखी नाक भरे भरे होंठ जो दबे छुपे शरीर में उठने वाली हर लहर पर लरजते हैं सुतवां लंबी गर्दन और भरे भरे वक्षों के बीच गहरी रेखा में ऊँगली फेरते वह गर्व से भर गई थी। "बहुत खूबसूरत हो तुम क्या किसी को इतना सुंदर होना चाहिए ?" उसने आईने में नजर आने वाली गहरी काली आँखों में झांकते हुए पूछा था और कोई जवाब न पाकर अपने बालों को टॉवल से आजाद कर गर्दन झटकते हुए पीछे पीठ पर फेंका था। दो-तीन अल्हड़ लटें दूसरी ओर से घूम कर उसके चेहरे को चूमने लगी थीं और उनके ऐसा करते ही चेहरे की लुगाई और बढ़ गई थी। देर तक कामिनी खुद को निहारती रही हाथों में क्रीम मलते पैरों को सहलाते कभी झुकते कभी मुड़ते शरीर पर बनने वाली रेखाओं को देखते वह मुकुल के कमरे में आने का बेसब्री से इंतजार करने लगी। 

बाहर टीवी की आवाज बदस्तूर जारी थी आवाज बार-बार बदल रही थी चैनल बदले जा रहे थे। मुकुल न्यूज़ देख चुके हैं फिर भी न जाने क्यों बाहर बैठे हैं आते क्यों नहीं ? कामिनी को इंतजार का एक-एक पल भारी लग रहा था। उसने बाहर झांककर देखा माँजी मुकुल के साथ ही बैठी थी, और कोई दिन होता तो वह उसे आवाज देकर सोने को कहती लेकिन आज वह चाहती थी कि मुकुल खुद उसके पास आए। वह पानी लेने के लिए ड्राइंग रूम से होते हुए गई और लौटी, मुकुल ने उसे देख लिया था। अब तो वह तुरंत आ ही जाएगा सोचते हुए वह बिस्तर पर लेट गई। दिन भर की थकान और इंतजार के भारी पलों भारी होती पलकें गहरी नींद में डूब गईं। 

बाहर दूधवाले ने घंटी बजाई होठों को दांतों से काटते बिखरे बालों को जूड़े में समेटते उसने पैरों में चप्पल डाली नाइटी ठीक की और जल्दी से अलमारी से एक दुपट्टा उठा कर कंधे पर डाल लिया। दरवाजे की चिटकनी खोल कर बाहर आते हुए तन मन में उठती बेचैनी कहीं अंदर दुबक गई थी और उसके भीतर कहीं होने का एहसास एक सूनापन बन मन में फैल रहा था जबकि आसपास के घरों और सड़कों से गाड़ियों बर्तनों और बोलने चालने की आवाजें घर में भर रही थीं।  

दूध गैस पर चढ़ाते हुए उसने खुद को समेटा एक गिलास ठंडा पानी पीकर संयत किया घड़ी पर एक नजर डाली और यंत्रवत काम में लग गई। अब सुबह के समय पहले सी हड़बड़ाहट नहीं रहती बच्चे बड़े हो गए हैं बेटे का कॉलेज का आखरी साल है और बेटी भी कॉलेज में है उनके लिए नाश्ता वही बनाती है लेकिन खाना बनाने कुक आती है। मुकुल खाना खाने दोपहर में ऑफिस से घर आते हैं कभी-कभी बच्चे भी आ जाते हैं। अधिकतर तो वे कॉलेज की कैंटीन में ही खाते हैं या दोपहर बाद घर आकर। पहले तो बेटाइम खाना खाने पर कामिनी उन पर गुस्सा होती थी जिसे वे चिल मोमा चिल कहकर हवा में उड़ा देते थे फिर मुकुल के समझाने पर अब कामिनी ने इस बात का टेंशन लेना छोड़ दिया है। जिसे जब जहाँ खाना हो खाए बस कोई भूखा न रहे।

वह सुबह कुक को बता देती है क्या बनाना है सब्जी बाहर निकाल जाती है अगर कभी भूल गई तो दादी कुक से अपनी पसंद के अनुसार बनवा लेती हैं। 

कामिनी सुबह जल्दी नाश्ते के साथ खुद की सब्जी रोटी बना लेती है कॉलेज के कैंटीन का खाना उसे पसंद नहीं आता फिर वह हेल्थ और हाइजीन के लिए भी कुछ ज्यादा ही सजग रहती है। सिर्फ यही नहीं न जाने क्यों पिछले दो-तीन वर्षो से वह अपने फिगर के लिए भी कुछ ज्यादा सचेत हुई है। कॉलेज में उसकी फ्रेंड उसकी फिटनेस की तारीफ भी करती हैं तो ईर्ष्या भी। खुद को कैसे कैरी करना है यह कामिनी को खूब बखूबी आता है। कलफ लगी कॉटन या सिल्क की साड़ियां हो या जॉर्जेट शिफॉन , मैचिंग पर्स ज्वेलरी घड़ी और सैंडल हर किसी की नजरों में भरते हैं और तारीफ करते-करते भी कोई तंज उनके मनोभावों को कामिनी तक पहुंचा देता है। कामिनी भी पल्ला लहराते बालों को झटकते मंद मुस्कान से तंज को नजरअंदाज कर आगे बढ़ जाती है। कॉलेज केंपस हो कॉरीडोर या क्लासरूम कामिनी को कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता। बस न जाने क्यों मुकुल ही आजकल उससे दूर कटा कटा रहने लगा है। उसके निजी वक्त को टीवी के सामने बैठ चैनल बदलते हुए जाया करना, उसके सो जाने के बाद कमरे में आना, आकर भी न उसे उठाना न बाहों में भरना न किस करके उसे जगाना, बस बाहों को बांधकर सो जाना।

कामिनी को लगता है यह उनकी जिंदगी का गोल्डन टाइम है। मुकुल का बिजनेस अच्छा चल रहा है, बच्चे अपनी जिंदगी की दिशा तय कर चुके हैं, वह भी अपनी नौकरी में सीनियर होकर अच्छा पैसा मान सम्मान पा रही है। ऐसे समय में उनके बीच अंतरंगता कुछ और प्रगाढ़ होना चाहिए। दोनों अब दीन दुनिया भूल कर एक दूसरे में खोए रहें एक दूसरे के साथ खेलते बोलते बतियाते छेड़ते जिंदगी का आनंद लें। जितना कामिनी इन पलों को जीने के बारे में सोचती मुकुल उतना ही उससे उदासीन होता जाता। मुकुल उठ चुका था कामिनी दो कप चाय बना कर कमरे में ले गई वह लेटा हुआ था। उसकी बलिष्ठ बाहें, बनियान से झाँकता घने काले रोयेंदार सीना, कामिनी के अंदर दुबकी बेचैनी को फिर बाहर ले आया। उसने मुकुल की बाँहों को सहलाते हुए हाथ की उंगलियों को घुँघराले रोयो में उलझा दिया। अचानक ही मुकुल चादर एक तरफ फेंक कर उठ बैठा और स्लीपर पैर में डालकर बाथरूम में घुस गया, कामिनी बुरी तरह आहत हुई। शादी के दूसरे दिन से ही सुबह की चाय के साथ मुकुल को जगाना उसकी दिनचर्या में शामिल हो गया था। जागते ही कामिनी को बाहों में भर कर बिस्तर में खींच अपनी शरारतों से उसे सराबोर करना, मां बाबूजी की उपस्थिति, घर के काम की व्यस्तता जैसी उसकी अनुनय विनय को उसके होठों में ही दबा देना मुकुल का शगल था। चाय रखे रखे ठंडी हो जाती जिसे दग्ध होठों से दोनों हंसते-हंसते पीते। कामिनी को रोज ही देर होती नाश्ता बनाते नहाते तैयार होते भी मुकुल उसके आसपास ही होता। वह रूठती वह मनाता अगले दिन से सुधरने की कसम खाता लेकिन कामिनी मन ही मन मनाती कि तुम कभी न सुधरो। कमरे के बाहर भी आंखों ही आंखों में यह छेड़छाड़ चलती रहती। लजीली सजीली शर्मीली शरारती मुस्कान कामिनी की चेहरे की लुनाई बढ़ाती और मुकुल विभोर हो उसे देखता रहता। दस बजे वह कॉलेज के लिए निकलती उसके बाद मुकुल की दिनचर्या शुरू होती। बाथरूम में मुकुल को देर लग रही देख खीझकर कामिनी ने अकेले ही चाय पी ली और मुकुल की चाय ढँककर वह एक कड़वाहट गटकते कमरे से बाहर चली गई। 

झाड़ू पोंछा करने वाली कांता आ गई थी। कामिनी अनमनी सी फैले बिखरे घर को समेटने लगी कांता की चाय बनी रखी थी कामिनी नाश्ते की तैयारी में लगी थी। चाय पीते कांता कामिनी से अपने सुख-दुख कह सुन लेती है। "भाभी कल सब्जी में जरा नमक तेज हो गया इस बात पर मेरे पति को इतना गुस्सा आया कि उसने मुझे थप्पड़ मार दिया। एक तो वह इतना लंबा तगड़ा है उस पर मेहनत करने वाले हाथ, मैं तो एक हाथ में जमीन पर गिर पड़ी। भाभी मैं भी कम नहीं हूँ मैं वहीं पड़ी रही उठी ही नहीं। वह आवाज लगाता रहा कांता कांता मैं बिना हिले डुले वैसे ही पड़ी रही। फिर तो भाभी वह ऐसा घबराया कि कहीं मर मरा तो नहीं गई, खाना छोड़ कर उठा मुझे उठाया। मैंने भी नाटक किया जैसे मैं बेहोश हूँ। " कांता साड़ी का पल्लू मुँह में दबाकर खी खी करके हंसने लगी। कामिनी खिन्न मन से उसकी बात सुन रही थी उसे समझ कुछ नहीं आ रहा था इस समय वह कुछ सुनना भी नहीं चाहती थी लेकिन अपनी बात सुनाए बिना कांता टलने वाली नहीं थी। उसने बे ख्याली में कहा "हूँ फिर" , इससे उत्साहित होकर कांता कहने लगी "फिर क्या भाभी उसने मुझे उठाया मैं तो हाथ पैर सिर ढीले छोड़कर उसकी बाहों में झूल गई। सच कहूँ उसकी चीख निकल गई, उसे लगा यह तो गई। मुझे वही छोड़कर पानी लेने भागा मेरे मुँह पर पानी के छींटे मारे फिर मुझे उठा कर बिस्तर पर लिटाया।" कांता की हंसी नहीं रुक रही थी हंसते-हंसते वह कामिनी की प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगी। कामिनी अभी कोई बात सुनने समझने की मन स्थिति में नहीं थी मुकुल का व्यवहार उसे छलनी किए दे रहा था। लेकिन कांता को मना करना आसान नहीं था वह बुरा मान गई तो आधा अधूरा काम करके चलती बनेगी। कामिनी कब तक उसके पीछे पीछे घूमेगी ? उसने खुद को समेटा और स्वर में उत्साह अचरज भरकर कहा फिर ? "फिर क्या भाभी मैंने भी उससे खूब मान मनव्वल करवाया उसने मुझ से माफी मांगी मुझे अपने हाथ से खाना खिलाया और फिर भाभी," कांता लाज से दोहरी हो गई "उसने मुझे खूब प्यार किया। "

यह सुन कर कामिनी के दिल में एक हूक सी उठी उसने खुद को कामों में और व्यस्त सा करते कांता की तरफ से पीठ फेर ली। "अच्छा चल अब जल्दी से काम निपटा देख नौ बज गए हैं ," कामिनी ने हूक को दबाते हुए स्वर को भरसक सामान्य बनाते हुए कहा। कांताबाई पहले मेरा कमरा साफ कर दो मुझे जाना है बेटे ने किचन में प्रवेश करते हुए कहा तब कांता की गोष्टी भंग हुई वह उठ खड़ी हुई। "आज जल्दी जाना है लंच तो घर पर करेगा ना ?" 

"हां दो बजे तक आ जाऊँगा लंच बनवा लेना" ग्रीन टी के पैकेट निकालते हुए बेटे ने कहा। चाय लेकर वह अपने कमरे में चला गया। बच्चे अपने अपने कमरे की सफाई करवा लेते हैं मां जी अपने कमरे की चाय और बातें सुनने के एवज में कांता उसके कमरे और बाकी घर की सफाई अच्छे से करती है। कामिनी ने नाश्ता बनाकर डाइनिंग टेबल पर रखा और खुद के लिए फुलके सेंकने लगी। 

किचन समेटकर वह कमरे में आई तब तक मुकुल वहाँ से जा चुका था वह ड्राइंग रूम में बैठ पेपर पढ़ रहा था। कमरे में चाय का खाली कप, मुचड़ा पड़ा बिस्तर कामिनी को मुँह चिढ़ा रहे थे।उसने जल्दी-जल्दी सब कुछ समेटा तब तक कांता सफाई करने आ गई। उसके जाने के बाद कामिनी बाथरूम में घुस गई। कल रात से अब तक कई गुना बढ़ चुकी बेचैनी आंखों के रास्ते बाहर निकल पड़ने को हुई जिसे उसने रोकने की कोशिश भी नहीं की और उसे शावर के साथ बहा दिया। मन तो उसका बुक्का फाड़कर रोने का हो रहा था लेकिन कहीं आवाज बाहर न चली जाए। इतने लंबे समय से अपने अंदर जतन से छुपाई इस बेचैनी को सबके सामने खासकर बच्चों के सामने आ जाने की शर्म ने उसे कुशल अभिनेत्री बना दिया था। बच्चे क्या वह तो मुकुल के सामने भी सामान्य रहने की ही कोशिश करती है। अभी तो वह खुद ही इस बदलाव के कारण को नहीं समझ पाई है, और न ही समझ पा रही है कि इसका सामना कैसे करें ? ऐसे में सब समझने की कोशिश करते सामान्य दिखना ही एक उपाय है। जवान बच्चों और बूढ़ी सासू माँ के सामने कोई भी तमाशा उसका मजाक बना देगा या फिर मुकुल को प्रश्नों के घेरे में खड़ा करेगा। प्रश्न भी ऐसे जिन्हें न बच्चे पूछ सकेंगे न सासू माँ लेकिन वे उनके दिल दिमाग और आँखों में कौंधते रहेंगे। वह कैसे उन आँखों में प्यार और सम्मान की जगह इन प्रश्नों को देख सकेगी ?इसलिए खुद जाने समझे बिना वह क्या महसूस कर रही है किस उपेक्षा को झेल रही है यह बात इस कमरे की चार दीवारों से बाहर नहीं जाना चाहिए। 

कामिनी ने तैयार होकर खुद को निहारा इंडिगो ब्लू बाग प्रिंट की साड़ी के साथ मोती की माला और कर्णफूल उसके चेहरे को दिपदिपा रहे थे। ध्यान से देखने पर ही आँखों की उदासी नज़र आ सकती थी उसे भी वह करीने से लगे काजल और लाइनर से छुपाने की कोशिश करती थी। वह होठों पर लिपस्टिक लगा रही थी तभी मुकुल ने पीछे से आकर उसे बाहों में भर लिया, "आज कहाँ बिजलियां गिराने का इरादा है ?" 

कामिनी तल्ख़ होकर कुछ कहने वाली थी लेकिन रुक गई। इस समय मूड खराब करने का कोई फायदा नहीं है। मुकुल ने उसके माथे पर प्यार भरा चुंबन अंकित किया और फिर अपनी पकड़ ढीली करते हुए कहा, "चलो नाश्ता कर लो देर हो जाएगी" और कामिनी को वैसे ही छोड़कर बाहर चला गया। 

नाश्ता करते हुए सब कुछ सामान्य था कामिनी भी चुपचाप नाश्ता करती रही और फिर गाड़ी की चाबी लेकर कॉलेज के लिए रवाना हो गई। 

क्रमशः

कविता वर्मा 

Kvtverma27@gmail.com 

कविता वर्मा

निवास इंदौर 

विधा लेख लघुकथा कहानी उपन्यास

प्रकाशन

कहानी संग्रह परछाइयों के उजालेकछु अकथ कहानी

उपन्यास छूटी गलियाँ (प्रिंट और मातृभारती पर उपलब्ध)

पुरस्कार अखिल भारतीय सरोजिनी कुलश्रेष्ठ पुरस्कार

अखिल भारतीय शब्द निष्ठा सम्मान

ओंकार लाल शास्त्री पुरस्कार बाल साहित्य के लिए।