Ath Mobile Katha in Hindi Comedy stories by Dr Lakshmi Sharma books and stories PDF | अथ मोबाइल कथा

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अथ मोबाइल कथा

अथ मोबाइल कथा

धूलिया चादर ओढ़े हुए, घुटनों चलते इस कस्बे का उतावलापन गजब है। ये छोटा सा बस-स्टेण्ड, यही इस का मैन बाजार भी है और इसी के सीने से ठस-ठुंस कर आगे के मझोले शहरों की सड़क निकलती है।
सड़क के दोनों तरफ के फुटपाथ चाय के डिस्पोजेबल कपों और पान मसाले की सुंदर-सुंदर पन्नियों से ढंके हैं और दुकानों के बाहर निकला सामान भी उन्हीं के बीच जगह बना कर बैठा है। रेशम से कढ़ी और सस्ते सितारों से जड़ी लाल, पीली, केसरिया ओढ़नियाँ, किफायती, टिकाऊ और चटख साड़ियां, नायलॉन के सलवार-कमीज के कपड़े, फ्रॉकें, किफायती जीन्स, टी शर्ट्स, शर्ट, कुर्ते, धोती, पगड़ी और सब से ज्यादा चड्डी, बनियान और स्याफी यानि सूती अंगोछे।
लोहे की दुकान पर कुल्हाड़ी, गैंती, फावड़ा, कुदाल, तगारी, कुंदे, सांकल, खुरपी, बाल्टी, सण्डसी, तवा, पराती, चिमटा, बक्से, ताले और पानी की टूंटियाँ भी है तो सबसे ज्यादा गिर्दी यहीं है।
पास में खड़े खोमचे वाले ने अपने गोलगप्पों के छाबड़े को प्लास्टिक की पन्नी से ढँका हुआ है लेकिन आलू मसाले की परात पर पसरती धूल से उसे कोई कष्ट नहीं। देहाती बालकों को कृत्रिम केसरिया रंग में रंगी जलेबी ज्यादा लुभा रही है और वो मक्खियों से प्रतिस्पर्धा लेते हुए उन पर भिनभिना रहे हैं।
काले केले, पिलपिले सेब, मुरझाए सन्तरे और पथरीले अनारों के ठेले पर सबसे ज्यादा मांग रसीले और सस्ते तरबूजों की है।
पीछे की ओर ट्रेक्टर, मोटर सायकिल के पुर्जों की, खाद-बीज की दुकानें, जिन पर केवल पुरुषों की आवाजाही है, जरा सूनी लग रही हैं पर उनके दुकानदार ठसके से बैठे हैं कि वो बड़े दुकानदार हैं।
इन्हीं के बीच वो छोटी गुमटी है, 'पिंकी मोबाईल सेंटर एवम सीडी शोप' जहाँ भारी मात्रा में देश के भावी कर्णधार जुटे हैं। स्थानीय बोली के गीतों से हवा के कलेजे को दहलाती संगीत लहरियां.. टूटे, ख़राब, डमी मोबाइल, 'रेशमा की रेशमी जवानी' और 'जहरीली अंगड़ाई' जैसी सीडी के बीच 'बजरंगी भाई जान' और 'उड़ता पंजाब' भी हिलमिल के बैठी है।
इन्हीं के बीच गूलर के विशाल पेड़ के मोटे तने के नीचे ये मन्दिर 'जबरेश्वर महादेव' भी इस कस्बेे के स्थायी भाव की तरह विद्यमान है और मन्दिर के इकलौते चौंतरे पर कुर्सी जमाए बैठा रामकेश भी।
रामकेश जाने कितने साल पुराने इस मन्दिर जितना पुराना तो नहीं लेकिन आजकल का भी नहीं ही है। "मैं ब्या के बाद म्हादेव जी को धोक देबे कूँ आई तब भी या य्हां ईं कुर्सी पर बैठ्यो हो। वा के बाद कित्ती कुरस्याँ टूट गई पर या वैसो को वैसो बैठ्यो है। मेरी चोटी धोळी हो गई पर या को माथो काळा को काळो ई धरयो है।" सब्जी का ठेला लगाने वाली सुशीला को रामकेश कतई नहीं सुहाता। वो छुपा जाती है कि वो ब्याह के नहीं, पहले ब्याहे को छोड़ के दूजे के नाते आई थी, और उस समय वो कमसिन नहीं, पूरी से भी ऊपर चढ़ती जवान थी। और तब तक रामकेश की मसें भी ठीक से नहीं भीगीं थी।
लेकिन दोहरे बदन और घने काले बालों वाले रामकेश की उम्र पैंतालीस के पेटे में तो फिर भी है ही।
तो सूरज के पीछे-पीछे मन्दिर के चौंतरे चढ़ा रामकेश चाँद को देहरी चढ़ा के ही घर जाता है। आराम के नाम पर दोपहर में एक घण्टे मन्दिर के दालान में ही कमर सीधी कर लेता है।
तालाब के किनारे दस बीघा की खेती, ये मन्दिर और बस-अड्डे पर तीन दुकान का किराया बहुत से भी ज्यादा ही है अकेले मिनख के लिए। खाए भी तो कित्ता खाए, रामकेश का पेट तो मन्दिर के सीधे-प्रशादी से ही पेट भरा रहता है। और जगजानी बात है कि भरे पेट और और बेकार बैठे आदमी का दिमाग कुछ ज्यादा ही चलता है, फिर रामकेश के तो पैर भी नहीं चलते। 'तीन बरस की उमर में पोलिया बाप जी ले गए.' पोलियो बाबा के आदर में हाथ जोड़ता रामकेश लापरवाही से बताता है।
अब रामकेश की कुर्सी है, मन्दिर है, आते-जाते भक्त हैं और ये बाज़ार है और सेवाराम भी तो है, "बाप र जी रोटी खा लेओ... बाप जी दूध... बाप जी दवा.." की गुहार लगाते सेवाराम को भगवान ने शायद रामकेश की सेवा के लिए ही दुनिया में भेजा है। अज्ञात कुल-गोत्र-शील सेवाराम के लिए रामकेश की सेवा से बड़ा न कोई काम है न सुख।
"कौन सी माई और कौन सो बाप। जब से आँख खुली बाप जी की बाँह को आसरो देखो है, तो अब दूजो कौन है मोय।" पूछने पर सेवाराम का एक ही जवाब होता है, चाहे कोई किसी भी तरह पूछे। और इस छोटे से कस्बे के मन्दिर की बड़ी मुसाफिरी में ये जवाब उसे आए दिन देना ही होता है, जिसे सुनते रामकेश की मूंछे उसके कलेजे की तरह गदगद हो कर फड़क उठती है।
कस्बे का चिड़ी-चूँगला तक जानता है कि अपने किए एहसानों का गीत खुद गाना और दूसरो से सुनना दोनों ही रामकेश को बहुत पसन्द है, अपने मोबाइल से भी ज्यादा।
कस्बे के सब लोगों की ही नहीं आते-जाते भक्तों की खबर और खास कर सारी महिलाओं की राई-रत्ती की ख़बर रामकेश को रहती है जिन्हें वो बीडी के धुएँ की तरह उगलता रहता है "अरी जमना काकी! तेरी बहु के मैले पड़ने कम हुए के ना?" "क्यों रे राधे, तू शहर के बेद से धात की दवा लेने गया था न?" अरे कुलराज, तेरी छोरी के सासरे वाले माने कि नहीं?" और जबर की बात ये कि किसी के बाप में हिम्मत नहीं जो उसे टोक दे, आधे गाँव का बोहरा जो है वो। और सब जानते हैं कि ये कर्जा कभी भी नहीं चुकेगा।
"हरामी को बाप मोकळी माया छोड़ गयो है, बैठे-बैठे कू बातां करबा और मोबाइल खेलबा को ही काम है।" लोग रामकेश से चिढ़ते हैं, पीठ पीछे गालियाँ देते हैं, लेकिन उसके सामने सब के मुँह में कर्जे का जूता भरा रहता है, सो या तो चुप खींच कर रह जाते हैं या उसके मोबाइल की झूठी तारीफ करने लगते हैं।
दरअसल रामकेश का मोबाइल रामकेश की जान है। बड़ा सा, महंगी कम्पनी वाला... अलार्म, घड़ी, केलकुलेटर, फोटो-वीडियो वाला महंगा स्मार्ट फोन।
फीचर तो और भी होंगे पर रामकेश को इन के सिवा किसी से कोई मतलब नहीं है।
हफ्ते-पखवाड़े की बात छोड़ दें तो उसका कोई फोन आता-जाता नहीं। दरअसल गाँव से बाहर उसका कोई अपना है ही नहीं जिस का फोन आए, और कस्बे के लोग तो उससे वैसे ही रोज मिल लेते हैं। कभी रामकेश किसी से बात करना भी चाहे तो भाई लोग फोन नहीं उठाते, जानते हैं कि बात पैसे के तकाजे की ही है सो बोहरे की गालियों से कान के परदे कौन फुड़वाए।
फोन के अलावा रामकेश का दूसरा शगल है मन्दिर में आयोजित होने वाले पर्व और कथा-पाठ। मंदिर में वो आए दिन कभी हवन, कभी पूजा, कभी रामायण पाठ, कभी सुंदर कांड तो कभी सप्ताजी का पाठ करवाता रहता है। और कस्बाई लोग इस के लिए सहयोग करने में तनिक भी पीछे नहीं हटते कि उन लोगों के जीवन में भी ये अवसर एकरसता को दूर करते हैं।
इन पर्वों में भी 'सप्ताजी' यानि भागवत पुराण का एक सप्ताह तक चलने वाला कथा पारायण सबसे ज्यादा लोकप्रिय और बहू प्रतीक्षित आयोजन होता है, कस्बे से ही नहीं आसपास के गांवों से भी लोग इसे सुनने आते हैं। इसमें धर्मप्राण बुजुर्गों का हित तो है ही, चंचल युवाओं को भी इस अवसर की बेताबी से प्रतीक्षा रहती है। दुकानदारों का व्यावसायिक हित जुड़ा है कि उन्हें ग्राहक मिलते हैं, और रामकेश के लिए तो ये सात दिन ब्याह के से होते हैं जिसमें वही दूल्हा और वही दूल्हे का बाप होता है, खूब पूछ-कदर होती है उसकी इन दिनों में।
तो, इस समय भी मन्दिर में सप्ताजी बैठी है। इस बार केकड़ी के रामधन शास्त्री जी अपनी गायन मण्डली के साथ पधारे हैं तो भीड़ भी हर बार से ज्यादा है। मन्दिर बड़े-बूढ़ों, घर-गिरस्थी वालों से भरा पड़ा है, टाबरों की किचिर-पिचिर और जवान लड़के-लड़कियों की चुहलबाज़ियों से गुलज़ार है।
रामकेश अपनी कुर्सी पर दरोगा सा बैठा सब का जायजा ही नहीं ले रहा, सब को अनुशासित भी कर रहा है। हर आने जाने-वाले पर उसकी आँख रहती है और हर आने-जाने वाले को पहले 'पण्डज्जी' यानि उसे ढोक लगानी होती है।
और इसी सब में रामकेश की नज़र लगभग बीसेक साल के एक लड़के पर ठहर गई, और ऐसी ठहरी कि वहीँ चिपक गई। लड़के का ऊंचा कद, भूरी आँखें और गठा शरीर भीड़ में अलग ही दीख रहा है, लेकिन रामकेश की नज़र को इस सब में कोई रूचि नहीं है। उसे तो लड़के के हाथ में थमा मोबाइल खटक रहा है।
खूब बड़ा, रामकेश के मोबाइल से भी बड़ा, सफेद रंग का मोबाइल जिसकी रिंग टोन रामकेश के कलेजे के आर-पार हो रही है।
"ऐ लड़के, बन्द कर ये तेरी टूँटूँ-पूँपूँ।" रामकेश ने गरज कर लड़के को धमकाया, और लड़के ने मान भी लिया। उसने अपने मोबाइल की आवाज बन्द कर ली। लेकिन रामकेश को फिर भी चैन कहाँ, उसकी आँखों में लड़के के मोबाइल की सफेदी भर गई है।
"किन का छोरा है रे तू? इधर का तो नहीँ दिखाई देता। लगता है पढाई से भाग के आया है।" रामकेश से रहा नहीं गया, उसने पास खड़े सेवाराम को कह कर लड़के को पास बुला लिया।
"मैं सामरिया के सरपंच जी का भतीजा हूँ, और भाग कर नहीं, घर वालों पूछ कर सप्ता जी सुनने आया हूँ।" लड़के में गजब का आत्मविश्वास है। और बस, यही रामकेश को सहन नहीं होता, ऊपर से उसका चमचम चमकता मोबाइल भी रामकेश की जान जला रहा है।
"सरपंच जी का भतीजा है तो क्या यहाँ छोरियाँ छेड़ेगा, साले, हराम खोर..." रामकेश गुस्से से उबल गया।
"तमीज से बात करो पण्डज्जी! तुम्हारे मन्दिर में सप्ता जी बैठी है इसका मतलब तुम जात्रियों को गाली दोगे, और किस लड़की को छेड़ा मैंने? ज्यादा धौंस मत दो, वरना..." लड़का गरम खून का है और उसके साथ वाले लड़के भी तेवरी हैं। रामकेश खून का घूँट भर कर चुप रह गया। वैसे वो किसी के बाप से भी नहीं डरता और फिर ऐसे मुद्दे पर तो कस्बे के लोग भी उसके साथ खड़े हो जाते।
लड़का भी जरा देर में सब रार भूल गया। अब वो दरी के किनारे पर बैठी उस लड़की को ताक रहा है जिस के नीले सूट का गला कुछ ज्यादा ही खुला है। लड़की की सूखी, साँवली देह में उसकी उभरी छातियों के अलावा कुछ भी दर्शनीय नहीं, जिन्हें दिखाने में उसकी भी पूरी रूचि है।
लड़के ने फिर मोबाइल खोल लिया है और अब वो भगवान जी की फोटो खींचने के बहाने लड़की के वक्ष स्थल की फोटो खींच रहा है।
'कमीण..' रामकेश उसकी एक-एक हरकत देख और समझ रहा है पर मन मार कर चुप है। सरपंच जी के डर से नहीं, ऐसे निरे सरपंच उसके देखे हुए हैं, वो परवाह नहीं करता। दरअसल रामकेश लड़के से नहीं बिगाड़ना चाहता कि उस के पास मोबाइल है और इस समय रामकेश को वो मोबाइल चौक की सारी जनानियों से ज्यादा सुहाना लग रहा है। उसकी नीयत फोन में गड़ी थी। वो एक बार फोन हाथ में लेकर देखना चाहता है, उसकी स्क्रीन सहलाना चाहता है।
"सुन लाला, तेरा मोबाइल तो जबरा है यार, कित्ते का लिया?" रामकेश ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया, क्या करता उससे रहा ही नहीं गया।
"ढाई हज़ार रुपये का" लड़के ने लापरवाही से जवाब दिया।
"ढाई हज़ार का! बस? जरूर चीनी माल है।" रामकेश की नज़र में मोबाइल की इज़्ज़त एकदम उतर गई। "जयपुर से लिया कि कोटा से?" रामकेश का मन उतर के भी पूरा नहीं उतरा है अभी।
"ना ना पण्डज्जी, चीनी माल नहीं, पूरे आठ हज़ार का माल है, मैंने तो चोर बजार से लिया है इसलिए सस्ता पड़ गया।"
असली माल, आठ हज़ार... सुनते ही रामकेश की आँख में मोबाइल दोबारा चढ़ गया और चोर बाजार के नाम से लड़का भी।
"चोरी का माल! साले, तू भी तेरे सरपंच काका से कम चोर नहीं।" रामकेश ने आँख दबाई और इस बार दोनों साथ-साथ हँस पड़े। "ला, एक बार दिखा तो" आखिर रामकेश खुल कर बोल गया।
"अरे सेवाराम, एक कुर्सी तो ला दे जरा। बैठ जा लाला, बैठ के दिखा तेरा मोबाइल" सेवाराम को कतई अच्छा नहीं लगा कि वो बित्ते भर के लड़के के लिए कुर्सी लगाए, पर मालिक का हुकुम मान के वो एक मैली सी कुर्सी धर गया। अब सरपंच का भतीजा आराम से कुर्सी पर बैठा है और उस का मोबाइल रामकेश के हाथ में है।
और रामकेश की अहंकारी उँगलियों ने उस की स्क्रीन पर दौड़ना शुरू कर दिया है, पर बेकार। मोबाइल ने अजनबी रामकेश का कहना मानने से इंकार कर दिया
"हाहा, नहीं खुलेगा पण्डज्जी, इसमें फेस लॉक लगा है" लड़के को पण्डज्जी की खिल्ली उड़ाने का अच्छा मौका मिला।
"तो खोल के दे साले, और ज्यादा हीरोपन्ती ना दिखा मेरे को" रामकेश ने घुड़का तो लड़के ने फिर तेवर बदले पर कुछ सोच कर फोन खोल दिया।अब फोन रामकेश के हाथ में है, अपने सारे जलवों के साथ।

'भक्ति से ज्ञान, वैराग्य पैदा होता है, संसार में पुण्य कार्य करना चाहिए, पुरुषार्थ प्राप्त करने के लिए भगवान की आराधना करना चाहिए, जिससे भक्ति में वृद्धि होती है। शुकदेव महाराज ने राजा परीक्षित से कहा कि...' सामने आसन पर जमे रामधन शास्त्री जी की अभ्यस्त आवाज में सप्ता जी का परायण हो रहा है कि...
"डीजे वाले बाबू मेरा गाना बजा दे, गाना बजा दे, गाना बजा दे..." की तीखी मादक आवाज ने भक्तगणों की गर्दन घुमा दी। दरअसल, रामकेश ने फोन गैलरी खोल कर एक वीडियो पर ऊँगली दबा दी थी और ये गीत बजने लगा था।
"अवाज तो गजब है यार तेरे फोन की, गाए है कि चिंघाड़े है।" लाज से दोहरे होते रामकेश ने खिसिया के फोन लड़के को पकड़ा दिया।
"लो पण्डज्जी, अब आवाज कम कर दी मैंने" लड़के को भी अपने फोन की प्रदर्शनी में मज़ा आ रहा है और सब के बीच पण्डज्जी के पास कुर्सी पा कर मिल रहे आदर से भी वो विभोर था।
तो फोन फिर से रामकेश के हाथ में है और अब उसने फिर से गैलरी खोल ली है, वो बिना आवाज के फ़िल्मी नाच-गाना देखते रामकेश के चेहरे पर मुस्कान फूटी पड़ रही है।

"साला, हमारे यहाँ तो टॉवर ही नहीं आता। फोन नहीं, डब्बा है साला। सुन, तू ब्लू टूथ से दे जा ना दो-चार नए गीत, ऐसे ही मस्त।" रामकेश फुसफुसाया।
"हौ पण्डज्जी! ब्लू टूथ से नहीं, एक्जेंडर से दे देता हूँ। उससे फ़ाइल जल्दी आ जाएगी, बैटरी बचेगी।" लड़के को भी लहर चढ़ी हुई है, "रंगीन फिलिम भी दे दूँ?" उसने आँख दबाई।
"दे दे भाई, जो तुझे पसन्द आए वो देदे।" अब रामकेश की आवाज और भी दब गई है। उसने अपना फोन लड़के को पकड़ा दिया और लड़का अपने चेहरे पर मास्टर जैसा भाव बैठा कर दोनों फोनों में रम गया है, इस समय उसका ध्यान उस दुबली लड़की पर भी नहीं था।
लेकिन अचानक उसका ध्यान उस दुबली लड़की पर ही नहीं मन्दिर में बैठी हर लड़की की ओर जाने लगा। कभी मोबाइल और कभी औरतों को ताकते लड़के का चेहरा और आँख दोनों लाल होने लगा है। लड़के की बढ़ती बैचेनी उसको भीड़ में अलग कर रही है, "क्या हुआ लाला, गर्मी लगी?" रामकेश ने पूछा और उसी दौरान उसकी नज़र लड़के के फोन पर पड़ गई।
" साले! जबरी ऊँची चीज है रे तू तो" रामकेश की आवाज लड़खड़ा गई, उसका साँवला रंग ताम्बई हो गया और हाथ कुर्सी के पहियों पर कस गए।
"श्श्श्श्, धीरे बोलो पण्डज्जी" लड़के ने बरजा तो रामकेश ने खिसिया कर मुंह पर ऊँगली रखी और लड़के को पटाने के लिए कानो को छू लिया।
लड़के ने दोनों हाथों से फोन की बाड़बंदी कर रखी है कि कोई देख न ले, दोनों सप्ता जी को भुलभाल के फोन में आँख गड़ाए बैठे हैं।
अचानक लड़का उठ खड़ा हुआ, "पण्डज्जी, अब मुझे जाना है, देर हुई तो काका नाराज़ हो जाएगा।" लड़के ने फोन भी बन्द कर के जेब में रख लिया है। रामकेश इस अप्रत्याशित परिवर्तन से अचकचा गया, उसकी आँखों के सामने पसरा तिलिस्म जैसे किसी ने जबरन छीन लिया है।
"अरे ये क्या बात हुई लाला, नेक घड़ी तो ठहर जा, अभी आरती होगी तो प्रसाद ले कर चले जइयो। और जब तक तेरे फोन का तमाशा भी चला दे न।" आखिरी पंक्तियों तक आते-आते रामकेश के सुर में गिड़गिड़ाने का भाव आ गया है।
"ना, पण्डज्जी! जाना ही पड़ेगा। अभी पसारी से तेल-शक्कर भी लेनी है, माँ ने कह के भेजा है" लड़का उतावला हो रहा है। दरअसल नीले सूट वाली लड़की एक बच्चे के साथ बाहर निकल रही है और वो उसके पीछे निकलना चाह रहा है।
"सुन, तेल-सक्कर की क्या बात है, मैं घर से दे दूंगा। निरी भरी है मेरे घर। शाम तक ठहर जा, शाम को रोटी वोटी खा के, तेल-सक्कर ले के निकल जइयो। आखरी बस तो दस बजे चलेगी। तू कहे तो मैं तेरे काका को फोन कर दूँ। रामकेश लड़के को सामर्थ्य भर पटा रहा है।
"रहने दो पण्डज्जी, मेरे को पाँच किलो सक्कर और पाँच किलो तेल चहिए।" लड़का होशियार है, उसे पंडित की नस हाथ लग गई है।
"अरे तो ले जाना। तेरे से ज्यादा थोड़े ना है। पर आज रात रुकना पड़ेगा भाई, मेरे को तेरे फोन का खेला देखना है।" सयाना रामकेश भी सौदेबाजी पर उतर आया। "और इस छोरी को मत देख, ये मेरे पड़ोस के दुसाधों की बहन है। पाँच भाई हैं इसके, और पाँचों जबर लठैत हैं।" लड़का खिसिया गया और रामकेश धूर्तता से हँस पड़ा।
"बापजी, आरती का बखत हो गया" सेवाराम का मुँह फूला हुआ है और उस की आवाज में नाराज़गी है। वो आते-जाते सारा माजरा देख-समझ चुका है "सारी दुनिया देख रई है, न्याह् तो लाज रखो। एकदम ई धोलन में धूल डाल लोगे का।"
"बेसी मत बोल तू, तुझसे ज्यादा अक्कल है मुझमें, जो तुझसे कहूँ वो कर दे समझा कि ना। आज ब्यालू में दो जनों की रोटी बना देना और कोठ्यार से आधा पीपा तेल और पाँचेक किलो खांड काढ़ के धर देना।"
"तुम्हारी मर्ज़ी, पर ये ठीक नहीं हो रहा बाप जी" सेवाराम भीड़ में बात नहीं बढ़ाना चाहता, इसलिए चुपचाप आगे सरक गया। "पर हां, मैं घर पर ना रहूंगा आज रात।" सेवाराम का आखिरी हथियार घर पर न रहना है, जानता है न कि रामकेश उसके बिना लाचार हो जाता है।
"तेरी मर्ज़ी, पर कल सुबह जल्दी आ जइयो।" रामकेश की आँखें अब अपने मोबाइल से उलझी हैं। "और मेरे बिना टट्टी-पेसाब कौन कराएगा तुम्हें? इस लौंडे से ऐसी आस मत करना बाप जी।" ठिठक कर पलट गए सेवाराम की आवाज में जहर और पानी दोनों है।
"तू मुझे मत सिखा सेवा, जित्ती कही है उत्ती कर देना बस।"
"ठीक है बाप जी, पर याद रखो कि हर कोई सेवाराम न हो सके।" सेवाराम आगे भी कुछ कहता पर आरती की घण्टियों ने दोनों के कान मुँह बन्द कर दिए। सेवाराम की ज्योत की लपट सी भभकती आँखें लड़के को जलाने लगी तो लड़का फोन के बहाने से बाहर खिसक गया।
और फिर धीरे-धीरे मन्दिर से भीड़ छँट गई, शास्त्री और उनकी मण्डली भी थक कर अपने डेरे पर चली गई। अब संध्या आरती तक मन्दिर में सून रहेगी, लेकिन रामकेश को तो सन्ध्या आरती तक यहीं रुकना है, जिसमें अभी दो घण्टे बाकी है। उसकी आँखें लड़के को ढूंढ रही है जो शायद बाज़ार चला गया है। लेकिन रामकेश कतई चिंतित नहीं है क्योंकि उसे लड़के पर पूरा भरोसा है, और अपने तेल-चीनी पर भी।
धीरे धीरे शाम हो गई, सूरज छुपने के साथ ही आरती की झालर बज गई और अपने समय से आरती खत्म भी हो गई। ठण्ड की रात में गप्पबाजी की महफ़िल भी नहीं जमती तो जल्दी ही मन्दिर निचाट सूना हो गया और रामकेश अकेला रह गया। सेवाराम तो पहले ही चला गया था, वो अब सुबह से पहले नहीं आएगा।
लड़का अब तक नहीं आया है, "जाने किधर हांडता फिर रहा है छुट्टा साँड" उकता कर रामकेश ने अपना फोन खोला, लेकिन लड़के का नम्बर तो है ही नहीं, फोन किसे करे।
"मर, भेण..." रामकेश ने झुंझला कर फोन पटक दिया। अब उसे भूख भी लगने लगी है पर सेवाराम के बिना रोटी कौन परोसे, रामकेश से तो अपना शरीर ही नहीं सम्भलता।
"सेवाराम! ओरे मेरे सेवा मेवा।" रामकेश ने खुद को बहलाया, लेकिन आज उसकी आवाज़ पर हमेशा की तरह पीछे की कोठरी से निकल कर सेवा नहीं आया।
थक कर सेवाराम ने अपनी बैसाखियाँ सम्भाली और किसी तरह अपने घर तक आ गया। घर क्या है मन्दिर की पिछली परिक्रमा में दो कमरे और एक रसोई है जहाँ वो और सेवाराम रहते हैं। छोटा कोठरी नुमा कमरा तो मन्दिर के चढ़ावे से आए सामान से ही भरा रहता है और बड़े कमरे में रामकेश रहता है। सेवाराम कभी रसोई तो कभी कोठरी में सो रहता है। लेकिन आज वो कहीं नहीं।
"पण्डज्जी," अचानक लड़के की आवाज आई। सूखते सावन पर पानी की फुहार सी आवाज, और रामकेश के मन की कली-कली खिल गई। "कहाँ चला गया था लाला तू, मैं तो तेरी चिंता कर रहा था। चल आजा, रोटी खाले जल्दी से, फिर..." रामकेश का मन मोर पंख पसारने लगा है।
"मेरे साथ चोट हो गई पण्डज्जी," लड़का रुआँसा है, और उसकी आँखों में आँसू डबडबा रहे हैं । "क्या हुआ लाला, किसी से लड़ आया क्या, दुसाधों की छोरी के चक्कर में तो नहीं भिड़ गया किसी से?" रामकेश को ज्यादा चिंता नहीं है।
"ना-ना, किसी से लड़ाई दंगा नहीं हुआ, पर मेरी जेब कट बस स्टेण्ड पर।" लड़के की आँखों से पानी बह रहा है "पर्स में दो हज़ार से ज्यादा रुपए थे और मेरा आधार कार्ड भी था। कल घर पर क्या जवाब दूंगा, सामान कैसे खरीदूँगा, घर वाले तो मुझे मार ही डालेंगे।" लड़का अब आँसू पोंछ रहा है।
"अरे कोई बात नहीं लाला, तू रो मत तुझे सामान तो मैं दे ही रहा हूँ न, पाँच सो रुपए भी दे दूँगा। तेरा सामान खरीदने के बाद इससे ज्यादा तो बचते भी नहीं। अब आँसू पोंछ ले और रोटी खा ले, ठंडी हो रही है।" रामकेश को भी भूख लग रही है और उसका मन उतावला भी हो रहा है। "खा पी के निरचूं हो जा फिर हम तेरे मोबाइल...."
"पण्डज्जी! बहुत बड़ा नुकसान हो गया मेरा, जेब में मोबाइल था वो भी चला गया। अब घरवालों को क्या जवाब दूँगा मैं।" लड़के ने धमाका किया। "सामान और पैसे तो आप दे दोगे, पर मोबाइल का क्या करूँगा, यहाँ तो वो मिलता भी नहीं और जयपुर जाने ...."
आँसू बहाता लड़का बोले जा रहा है, जाने क्या क्या, लेकिन रामकेश के कानों ने केवल एक वाक्य सुना "जेबकतरे मेरा मोबाइल भी ले गए पण्डज्जी" उसके आगे रामकेश के कान बहरे हो गए हैं।
"पण्डज्जी, आप मुझे पैसे उधार दे दो तो मेरी जान बच जाए, कसम से कहता हूँ मैं आपकी पाई-पाई चुका दूंगा। पण्डज्जी, इत्ता उपकार कर दो, वरना घरवाले मुझे मारेंगे और मेरी पढाई छुड़ा देंगे।" लड़का रामकेश के घुटने पकडे सच में बिलख रहा था।
"तूने मोबाइल गुमा दिया, उसकी सारी फिलिम भी गुमा दी..." रामकेश बावले की तरह बड़बड़ा रहा है। "इत्ते मस्त किस्से कहानी गुमा आया तू? इत्ती जवान छोरियों को रात के टेम बाहर छोड़ आया तू। हरामखोर, किसी काम का ना है तू, एक मोबाइल ना सम्भाला गया तेरे से। निकल जा मेरे घर से। एक पेसा ना दूंगा तुझे मैं। निकल, निकल जा यहाँ से" रामकेश पर जैसे दौरा पड़ गया। उसकी आँखों से आग निकल रही है, हाथ काँप रहे हैं और गर्दन टेढ़ी हो गई है। "निकल जा, इसी समय निकल जा यहाँ से, साले हरामखोर, निकल नहीं तो टांग तोड़ दूँगा।" रामकेश भूल गया कि उसकी अपनी टाँगें लाचार है।
लेकिन लड़का क्यों हिलता, वो रामकेश के कमजोर घुटने पकड़े आँसू बहाता रहा, रामकेश के मुक्के खाता हुआ भी गिड़गिड़ाता रहा। बाहर मन्दिर में बैठे भोलेनाथ चुपचाप सब सुनते रहे पर उन्होंने भी बीचबचाव नहीं किया। "निकलता है कि मोहल्ला इकट्ठा करूँ। साले, निकल नहीं तो तेरे काका को फोन कर दूंगा।" रामकेश ने शँकर जी की तीसरी आँख खोलने की सी धमकी दी। आखिर लड़का उठा और बाहर जाने के लिए मुड़ा...
लेकिन सारे दिन का भूखा-प्यासा, रोने और पिटने से थका लड़का लड़खड़ा गया और सम्भलने के चक्कर में रामकेश पर गिर पड़ा और बचते-बचते भी रामकेश उसकी चपेट में आ गया। प्लास्टिक की कुर्सी कितना दम रखती, वो दोनों को लिए-दिए गिर पड़ी।अब रामकेश की स्थूल देह और लड़के की जवान देह के टकराव से रामकेश और लड़का कमरे के फर्श पर चित्त थे।
"अबे, साले अँधा हो गया है क्या, देख के ना चल सके मादर... अब पड़ा ही रहेगा क्या? उठा मेरे को।" रामकेश दर्द और गुस्से से जो मुँह में आए बके जा रहा है, लड़का सिटपिटा कर उठा और किसी तरह रामकेश को उठाने की कोशिश करने लगा और इसी उठापठक में लड़के का हाथ रामकेश के मोबाइल पर चला गया और गया क्या वहीं ठहर गया, और अगले पल लड़का मोबाइल के साथ खड़ा था। उसने रामकेश को देखा, कोने में टिकी उसकी बैसाखियों को देखा, क्षण भर को झिझका और फिर मोबाइल की किनारी में नाखून डाल के उसका डेटा कार्ड बाहर खींच लिया।
और अब लड़के के अंगूठे और तर्जनी के बीच में नाख़ून के बराबर डेटा कार्ड नहीं रामकेश का दिल दबा है।
"क्या करता है भैंण.... दे मेरा मोबाइल, साले कमीण जान ले लूंगा मैं तेरी..." रामकेश गुस्से से झाग उगल रहा है, जमीन पर पड़ा हुआ।
"चिल्लाओ मत पण्डज्जी, और घबराओ भी मत। ना ले जा रहा मैं तुम्हारा ये डब्बा मोबाइल, अरे कोई पाँच सौ रुपये भी ना देगा इसके। मैं तो बस तुम्हारा ये कार्ड ले जा रहा हूँ। दिन में जो भी माल मैंने दिया था वो इसमें ही है न। तो मेरा माल मैं वापिस ले जाता हूँ।" लड़के की आँखों में प्रतिशोध ले लेने की शांति है।
"और हाँ, इसमें और भी बहुत कुछ है, तुम्हारे फोटू भी। इसलिए किसी को कुछ भी कहने के पहले या मेरे काका को फोन करने के पहले सोच लियो..." लड़का दिन में सब देख चुका है और रामकेश की कमजोर नस पकड़ चुका है। जमीन पर पसरे रामकेश की शक्ल पर दहशत और आशंका के साथ अविश्वास भी है और उसकी जुबान तालू से चिपकी हुई है।
अब लड़का रामकेश के एकदम पास खड़ा है, रामकेश का चेहरा सफेद पड़ गया। लड़के ने झुक कर कुर्सी सीधी की, रामकेश को उठाकर खाट पर बैठाया, ताख में पडी रुपयों की गड्डी उठाई और बाहर निकल गया। बाहर निकलने के पहले उसने रामकेश की बैसाखियाँ और मोबाइल खाट की और फैंके और फिर अपना झोला संभालता हुआ भाग गया।
रामकेश पत्थर की पिंडी बना बैठा है, ठीक वैसे ही जैसे बाहर मन्दिर में शिव की पिंडी बैठी है। ठंडा और पथरीला।

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