Litti chokha - geetashree in Hindi Book Reviews by राजीव तनेजा books and stories PDF | लिट्टी चोखा - गीताश्री

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लिट्टी चोखा - गीताश्री

कुछ का लिखा कभी आपको चकित तो कभी आपको विस्मृत करता है। कभी किसी की लेखनशैली तो कभी किसी की धाराप्रवाह भाषा आपको अपनी तरफ खींचती है। किसी की किस्सागोई पर पकड़ से आप प्रभावित होते हैं तो किसी की रचनाधर्मिता के आप कायल हो उठते हैं। कभी किसी का अनूठे ट्रीटमेंट तो कभी किसी की कसी हुई बुनावट आप पर अपना असर छोड़ जाती है। अगर अपने समकालीन रचनाकारों के लेखन पर हम नज़र दौड़ाएँ तो उपरोक्त दिए गए गुणों में से अधिकांश पर हमारे समय की चर्चित रचनाकार गीताश्री जी भी खरी उतरती हैं।

उनकी लेखनशैली में उनकी किस्सागोई, स्थानीय भाषा के शब्दों का प्रयोग और विषय को ले कर किया गया उनका ट्रीटमेंट शुरू से ही मुझे प्रभावित करता है। अभी फिलहाल में मुझे उनका कहानी संग्रह "लिट्टी चोखा" पढ़ने का मौका मिला। इस संग्रह में उनकी कुल 10 कहानियाँ सम्मिलित हैं।

शीर्षक कहानी 'लिट्टी चोखा' में सालों बाद गांव आयी युवती अपने बचपन में सुने एक लोकगीत को फिर से सुन कर पुनः उसी दुनिया..उसी बचपन के दोस्त से मिलने को उतावली हो उठती है जो बचपन में ही उससे बिछुड़ गया था। इसी संकलन की एक अन्य कहानी में किसी के मरने के बाद दिए जाने वाले भोज में भांडों द्वारा मरने वाले की स्तुति गाने की एक लुप्त हो चुकी रीत का वर्णन है। इस रीत के माध्यम से बेटी किस तरह घर से अपमानित कर निकाल दिए गए अपनी माँ के मित्र को उसका खोया हुआ आत्मसम्मान लौटाती है।

एक कहानी श्रीलंका की एक ऐसी युवती की कहानी है जो एक बिहारी युवक से प्रेम विवाह करने से पहले लड़के के परिवार वालों से अपनी तथा अपनी माँ की तसल्ली के लिए मिलना चाहती है और अनजान भाषा की वजह से होने वाली दिक्कतों से बचने के लिए एक दुभाषिए की मदद लेती है जिसे उस युवक ने पहले से ही पट्टी पढ़ा का उसके साथ भेजा है कि झूठ- सच कुछ भी बता कर लड़की को राज़ी करे।

इसी संकलन की एक कहानी में शादी करते ही घर छोड़ कर भाग चुका युवक अचानक 12 सालों बाद वापिस अपनी पत्नी के पास फिर लौट कर जब घर आता है तो क्या तब तक परिस्तिथियाँ उसके अनुकूल होती हैं या पूरी तरह बदल चुकी होती हैं?

एक अन्य कहानी में एक युवती अपने बचपन से एक अजीब तरह की गंध से इस कदर परेशान है कि उसे इलाज के लिए मनोचिकित्सक तक की मदद लेने के बारे में सोचना पड़ता है मगर क्या वो उस गंध से...अपनी बीमारी से मुक्त हो पाती है?

इस संकलन की कुछ कहानियाँ मुझे बहुत बढ़िया लगी जिनके नाम इसप्रकार हैं:

• लिट्टी चोखा
• नजरा गईली गुईंयां
• स्वाधीन वल्लभा
• कब ले बीती अमावस की रतिया
• गंध-मुक्ति ।

112 पृष्ठीय इस संग्रहणीय कहानी संकलन के पेपरबैक संस्करण को छापा है राजपाल एण्ड सन्ज़ ने और इसका मूल्य रखा गया है ₹ 160/- जो कि किताब की क्वालिटी और कंटैंट के हिसाब से बहुत ही जायज़ है। लेखिका तथा प्रकाशक को आने वाले भविष्य के लिए अनेकों अनेक शुभकामनाएं।